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श्री शु३मतिनी रास. मुनिवरा अढी छीपे, नाण दरशण तेजे दीपे ॥ विचरे उ६ पयोग समीपे, वंदु चार हजार ॥ हुकम ॥ १४ ॥ ए १
मुनिरायनी योग्यता जब लाधे, प्रमोद अतिशय वाधे ॥ वस्तु धर्म कारज साधे, करे हित उपकार ॥ हुकम॥१५॥ उपगारी ए मोटका दुःख वारे, संसार समुज्थी तारे ।। चेतन- कारज सारे, आपे शीतळ झान ॥ हुकम०॥ १६ ॥6
॥ दुहा ॥ मुनिपद पंच नेदथी, पूरण कार्य यथाख्यात ॥ क्षपक श्रेणीये संपजे, अव्याबाध प्रख्यात ॥१॥
॥ ढाळ ॥१०॥ मी ॥ ॥मोह्या मोह्यारे त्रिजुवन लोक मुनि गुण देखीने॥ ए देशी
वंदो वंदोरे नविक जीव सर्व, हुकम मुनि ज्ञानी ॥ ज्ञानी शुद्ध स्वरूप उपयोगी, अनुन्नवे वस्तु तेहरे ॥ जीव पुद्गल सत्ता निन्न अळगी, गुण पर्याय निन्न तेह ॥ हुकम मुनि शानी ॥ ए आंकणी० ॥ गाथा ॥१॥ जीव सत्ता मूळ स्वरूपे, निर्मळ सिद्ध समानरे ॥ कर्म जनित परथी जीव, दाखे ते अज्ञान ॥ हुकम ॥ ॥ वेदयोग बळ त्रीक प्रत्यके, नेद त्रण त्रण धार रे ॥ गति संज्ञा कषाय प्रत्येके, नेद थाय चार चार ॥ हुकम० ॥ ३॥ शरीर संस्थान इति निमा, प्रत्येके पांच पांच नेदरे ॥ पर्याप्तिले
श्या संघयण, ए त्रणेना षट् षट् नेद ॥ हुकम० ॥ ४ ॥ 9 वर्ण रस गंध स्पर्श प्रत्येके, पांच पांच बे आउरे ॥ जन्म है
ज़रा ने मरण पुनरपि, ए संसारनो गन ॥ हुकमः ॥ ५ ॥ Pateoromraigurasad
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