SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ RamroSarkarGra श्री धर्म प्रवर्तन सा२. यत्तिाने बोलावी पूढयुं के मारुं मृत्यु कोनाथी थशे काहरणके घणा साथे वैर करनाराउने परथी पोतार्नु मृत्यु १ थवानी शंका होय जे त्यारे तेउए कडं के जे माणस सिं@ हासनपर बेसीने दुधपाकरुप थएली श्रा दाढोने पी जशे 9 ते माणसथी तारुं मृत्यु थशे, ते सांजली परसुरामे एक दानशाळा मंमावी तथा त्यां अगामीमां सिंहासन राखी तेपर ते दाढोनो थाल रखाव्यो, हवे ते सुजूम पण यांगणामां रहेला वृक्षनी पेठे हमेशां ऋषियोथी लालनपालन करातो थको वृद्धि पामवा लाग्यो हवे एक दहामो कुवाना देमकानी पेठे वीजी जगोए नही जनार एवा, ते सुनूमे 6 ॐ पोतानी माताने पूज्यु के शुं आ आवमीज पृथ्वी ? है के कंश अधिक डे त्यारे तेनी माताये का के हे वत्स ! 6 पृथ्वी तो अनंती आ आश्रम तो तेमां एक मां खीना पग जेटलो . वली आ पृथ्वीमा हस्तिनापुर नामे हूँ एक प्रख्यात नगर ने त्यां कृतवीर्य नामे महा बलवान् १ तारो पिता राजा हतो ते तारा पिताने परसुरामे मारीने ट्र पोते राज्यपर वेगे डे वली तेणें तमाम पृथ्वी क्षत्रिय विनानी करी , अने तेना जयथी आपणे अहीं रहीयें बीये ते सांजली तत्काल क्रोधातुर थश्ने सुलूम हस्तिनापुर गयो कारण के क्षत्रिय तेज दुर्द्धर होय हे त्यां एकदम ते दानशाळामां गयो अने त्यां रहेला सिंहासनपर चमीने धपाकरुप थएली ते दाढोने ते खा गयो, त्यारे ब्राह्म- णीया रक्षको युद्ध करवा माटे जव्या त्यां सुजूमे मेघ है (१२) OMGMAngiomargs SrIGNOLOGGreenodroGrdG: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy