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________________ andoorsangrore । ते कारण कहेवाय रे ॥ कार्य प्रवृत्ति श्रण करतां, कारण Q एम न बोलाय रे ॥ नेमिः ॥ ५॥ कार्य योग्यतानी बति ह जेमां, ते कारण एम कहीए रे ॥ ए सत्य वचन प्रवृत्ति हे जोगे, नही तो कारण शेर्नु 'सही' एरे ॥ नेमिः ॥ ६॥ है कारण वस्तु स्वन्नावे वर्ते, सोही साधन उत्सर्ग रे ॥ ज्ञान शितळ निष्पन्न कार्य तहीं, व्यक्ति अनंत अपवर्ग रे ॥ नेमि० ॥ ॥ संपूर्ण. ॥ स्तवन ॥ २३ मुं॥ ॥हो धन्ना ॥ ए देशी॥ पार्श्वनाथ त्रेवीसमारे ॥ मिता ॥ वामा राणी तसमात ॥ पिता अश्वसेन नरपतिरे ॥ मि० ॥ नील वरण ए जीन प्रख्यातरे ॥ रंगीला मिता ए प्रनु सेवोने ॥ ए प्रन्नु हूँ सेवो अंतरंगमां रे ॥ मि० ॥ नहीं बाज्य पारस रूपरे ॥ रंगीला मिता ए प्रनु सेवोने ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ बाज्य ते उदयिक नाव रे ॥ मि ॥ पूरव बंध संबंध ॥ १ कर्म जनित पद बाज्यएरे ॥ मि० ॥ ते नहीं चेतन शुद्धरे ॥२०॥ ए० ॥॥ चेतनरूप अंतरंगमां रे ॥ मिता ॥ पर तजतां प्रगटाय ॥ ज्ञान दीपक अनुन्नव सही रे ! ६ ॥ मिता ॥ तिमिरांधकार नाग्यो जायरे ॥ २० ॥ ए० ॥३॥ 9 परनावथी न्यारापणेरे ॥ मिता ॥ अनुन्नवे वस्तु धर्म ॥ १ स्याहाद धर्म इहां संपजे रे ॥ मिता ॥ सहे श्रानंद अति है ६पर्म रे॥ २० ॥ ए० ॥४॥ स्वस्वन्नाव तस कीजीए रे ॥मिता॥ ह, वर्त्तना ए व्यवहार ॥ नेद झान योग वर्णव्यो रे ॥ मिता॥ (२२५) TRALCIEOREKHOPRONDOMBIAS २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034802
Book TitleDharm Pravarttan Sara Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandbhai Swarupchand Shah
PublisherRatanchand Laghaji Shah
Publication Year1910
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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