Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam
Author(s): Balabhai kakalbhai
Publisher: Balabhai kakalbhai
Catalog link: https://jainqq.org/explore/004260/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0.02096 * REARRIOR ARARHWARA GooXXXX-600XXOXKoaXX66XXoe Parkaxxoexxeexrat श्री चैत्यवंदनादि भाष्य त्रयम् साध्वीजी जिनश्रीजीना उपदेशथी छपाची प्रसिद्ध करनार शा. बालानाइककलना मांडवीनी पोळ, नागजी भुदरनी पोळ, अममदावाद. (प्रसिद्ध कर्त्ताए सर्व हक्क स्वाधिन राख्या छे.) संचत 1968. किंमत रु.१-०-० सने 1912. श्री लक्ष्मि मिन्टिंग प्रेसमां शा. मणीलाल उगरचंदे छाप्यु. LogXXOOXXXXDOXX66XXOGXXXXXXDEXXOSX08X-Kota inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DANAS Syntes अनुक्रमणिका. चैत्यवंदन जाष्यनी अनुक्रमणिका अनुक्रम. विषय. ___ गाथा. पा. | अनुक्रम. विषय गाथा पार्नु 1 ग्रंथाकर्ता श्री देवेंद्रमूरिनुं मंगलाचरण 1 1 २त्रण निसीहि कया स्थानके करवी 2 बालावबोध कर्त्तानुं मंगलाचरण 1-2 - 1 तथा त्रण प्रदक्षिणा केवी रीते करर्व 8 3 चैत्यवंदननी विधि चोवीस द्वारे सचवाय छे / 3 त्रीजुं प्रणापत्रिकन स्वरुप ते चोवीस द्वारना नाम 2 थी 5 // 4 चोथु पूजात्रिकनु स्वरुप 4 निसीहि आदिक दशत्रिकनुं जे पेहेलुं . ५पांचमु अवस्थात्रिकर्नु स्वरुप 1 द्वार तेना उत्तर भेद सहित सविस्तर 6 टुं प्रणदिशि जोवाथी निवर्तवान स्वरुप तथा तेमांना कया भेद क्या करवा ते ६थी१९ त्रिक तथा सातमु पदभूमि प्रमार्जन 1 दशत्रिकनां नाम त्रिक तेनं स्वरुप 13 ADVANDAIVipaAGD/MM/NavBANIL in Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1PosprotsavitaSatauses/ANGDAMD/aonesex 7 आठमुं आलंबनत्रिक अने नवमुं 10 अग्यारसुं पांच दंडकनुं द्वार अने बारमुं मुद्रात्रिकनुं स्वरुप १४थी१८ 14 पांच दंडकने विषे देवांदवाना बार 8 दशमा प्रणिधान त्रिकर्नु स्वरुप 19 17 अधिकार आवे छे तेनुदार ४१थी४९३८ 5 पांच प्रकारना अभिगमर्नु बीजुद्वार 20-2118 11 तेरमुं चार वांदवा योग्यतुं द्वार तथा 6 वे दिशिनुं त्रीजुंद्वार तथा त्रण अवग्रहनु चौदमुं सम्यगद्रष्टि देवने स्मरवा चोथुद्वार योग्यनुद्वार ७त्रण प्रकारे चैत्यवंदन करवानुं पांचमुंद्वार 23-24 20 12 पंदरमुं चार प्रकारना जिननुं द्वार 51 8 छ९ प्रणिपातद्वार तथा सातमुं 13 सोळमुं चार थोयोनुं द्वार नमस्कारद्वार 14 सतरमुं देववांदवाना आठ निमित्तनुंदार 53 9 सातमुं देववंदन अधिकारे जे नवकार . . 15 अढारमुं देवांदवाना वार हेतु-द्वार 54 प्रमुख नव मूत्रां आवे छे तेमना हलवा 19 ओगणीसमुं सोल आगारनुं द्वार भारे अक्षरोनो संख्यान आठमुं द्वार 17 वीसमुं काउसग्गना ओगणीस दोषमुंद्वार 56 तथा पद संख्यानुं नवसुं द्वार अने | 18 एकवीसमें काउसग्गना प्रमाणनु तथा संपदानुं दसमुंद्वार २६थी४० 23 / बावीसमुं श्री वीतरागर्नु स्तवन केवा PreViewIEWSavasanapaneseDimens/anavare Jain Education international For Personal & Private Use Only www. j brary Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vote PeaDarasvanmangrag प्रकारे कहेवू तेनुं द्वार 58 53 | 20 चोचीसमें दशथी मांडी चोरासी आशा. 19 तेवीसमें एक दिवसमां चैत्यवंदन केटली तनाओ परिहार करवानुं द्वार वार करवू तेनुं द्वार 59 55 21 देव वांदवानो विधि गुरुवंदन नाष्यनी अनुक्रमणिका. 1 त्रण प्रकारनुं वंदन तथा वांदणां 8 पांचमुं चारजणा पासे वांदणा न देवदेवाचं कारण १मी 4 61 राववा तेनुं तथा चारजण पासे प्रायः 2 वांदणानां पांच नाम 5 मी 7 63 वांदणां देवरावां तेनुं छठं द्वार 14 3 वांदणानां बावीसद्वार ७मी 9 64 9 सातमुं पांच स्थानके वांदणा न देवां 4 पहेलुं वांदणानां पांच नाममुंद्वार 10 तेनुं द्वार 5 बीजु वंदन कर्म उपर पांच द्रष्टांतनुंद्वार . 11 6 त्रीजुं पासथ्थादिक पांच अवंदनीकनुंद्वार 12 10 आठमुं चार स्थानके वादणां देवां 7 चोथु आचार्यादिक पांच वांदवा योग्य छे तेना नाम-द्वार 74 | 11 नवमुं आठ कारणे वांदगा देवां तेनुंद्वार 17 oasdresDraduaDaate/app/B/ HAPPIsraeweres/tag/ तेनुं द्वार 12 DAANDA, inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gia viettel Site Maps 666 12 दशमुं वांदणा देतां पचीस आवश्यक 18 सोळमुंथे प्रकारना अवग्रहनुं द्वार 31 सचवाय तेनुं द्वार 18 79 19 सतरमुं वांदणानां सूत्रांना अक्षरनी 13 अगीयारमुं मुहपत्तिनी पचीस पडि - संख्या-तथा पदनी संख्या- अढारमुंद्वार 32 लेहणानुं द्वार 20 ओगणीसमुं वांदणाना दायकना छ 14 बार शरीरनी पचीस पडिलेहणानुद्वार 21-28 स्थानकनुं द्वार 15 तेरसुं वांदणांमां बत्रीस दोष त्यागवा 21 वीसमुं वांदणांना छ स्थानकमा छ तेना नामनुं द्वार २३थी२६ 86 / गुरुवचन होय तेनुं द्वार 16 चौदमुं वांदणां देतां छ गुण उपजे 22 एकवीसमुं तेत्रीस आशातना न 27 9. लगाडवी तेनुं द्वार ३५थी३७ 98 17 पंदरमुं वांदणामां गुरुनी स्थापना केम 23 वावीसमुं प्रभाते ने सांजे बे वंदनक करवी तेना स्वरुपर्नु द्वार २८थी३० 91 | विधि द्वार 38-41102 Napanipamupasanapoupsamevataaparavenue तेनुं द्वार Guet % % % For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - naveenatavaanvasvaporesavasexsreaseevawarenewanaereasavamsuTOves पञ्चस्काण नाष्यनी अनुक्रमणिका. 1 पञ्चख्खाणनां नवद्वारनां नाम 1 106 / भेद सहित 29-11 129 2 पहेलं उत्तरगुण पचरूखाणना दश / 7 छ भक्ष्य विगयना निवियाता __ भेदतुं द्वार 2-3 107 त्रीस कराय छे तेनुंद्रार तेमां निवि३ बीजं पञ्चख्खाण करवाना पाठरुप यातानो अधिकार सविस्तर वर्णव्योछे 32 चार प्रकारना विधि द्वार .. 3-12 112 / 8 सातमु पञ्चरूखाणनां मूळपुण उत्तर४ त्रीजु चार प्रकारनां आहारना गुणरुप वे भांगानुं द्वार 41 स्वरुपर्नु द्वार 9 आठमुं पञ्चख्खाण छ शुद्धिए सफळ 5 चोथु नवकारशी प्रमुखना आगारनी थाय तेना नाम द्वार संख्यातुं द्वार 16-28 124 10 नवमुं पञ्चख्खाण फळ इहलोक तथा 6 पांचमुंछ भक्ष तथा चार अभक्ष परलोक आश्रयी वे प्रकारे थाय 47 मली दश विगयनुं द्वार भेद पति | तेनुं द्वार द्रष्टांत सहित / VANDRASININ 13-15 120 | 2 आठ For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. व्यवहारिक तथा धार्मिक कोइपण जातनी क्रिया तेनुं संपूर्ण स्वरुप, हेतु, विधि तथा फळ समज्या विना करवामां आवे तो तेनो जोइए तेटलो लान मळी शकतो नथी तो धर्म पामवानां जे मुख्य अंग देवगुरुजी चक्ति अन तपस्या . तेनुं दरेक जातनुं ज्ञान थवा माटे या ग्रंथ - पाववामां आव्यो . जो के शा.नीमशी माणेक तथा अमदावाद विद्याशाळा तरफथी पाएली प्रतिक्रमण अने प्रकरणमाळामां आ विषयोनो समावेश . तोपण ते पुस्तको मोटी किंमतना तथा घणा विषयोने सीधे मोटा कदमां होवाथी दरेक माणसने दरेक स्थळे लन्य नथी तथा शा. वेणीचंद सूरचंद तरफथी उराएली नाव्य जो के एक अलायदा हती तोपण ते खपी गर डे अने तेश्री मळती नथी. माटे आ विषयोना सुलन्न ज्ञानने माटे तथा अन्यासीननी साचवणीने सुगम करवा माटे या लघु ग्रंथनी आवश्यकता धारी ने. For Personal Private Use Only www.janelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भणनाराउने शब्द बोध साथै अर्थ शीखा सुगम पो तेटला माटे या पुस्तकमां प्रथम दरेक गाथाना मथाळे तेना बुटा शब्दोनो अर्थ लखी पनी गाथा लखवामां आवेली दे. थने ते पड़ी तेनो टुंकामां शब्दार्थ तथा पर विस्तार साथे अर्थ मूकवामां आवलो . श्रा त्रण नाप्यो मध्ये बेसी जे पच्चरकाण नाष्य ले ते पन्यासजी महाराज श्री श्री श्री 100 श्रीदानविजयजी महाराजे घणोज श्रम लइ सुधारोडे तेथी तेउ साहेबोनो उपकार मानवामां आवेडे. श्रा ग्रंथ उपाववामां गुरुणीजी साहेब जीनश्रीजीना तथा कमळश्रीजीना उपदेशथी जे जे पुरुषोए मदद आपी ने तेनां नाम आ पुस्तकना बेवा पाने आपेलां . श्रावी रीते बीजा पण सदगृहस्थो थावा ज्ञानखातामां मदद थापी ज्ञाननो फेसावो करशे . तो जैन कोमनी दिनप्रतिदिन धार्मिक वृत्ति सुधारवाना आलंबननूत थशे. For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यवंदन भाष्य. बंदित्तु-बांदीने | चिइवंदणाइ-चैत्यवंदन आदि | वित्ति-वृत्ति दणिज्जे-बांदवा योग मुवियारं-रडा विचार प्रत्ये भास-भाष्य सध्वे-सर्व (पंचपरमेष्ठि) | बहु-पणी चुण्णी-चूर्णि | सुयाणु सारेण-श्रुतने अनुसारे बुच्छामि-कहीश vasaaraaaomeovom/aawaam वंदित्तु वंदणिज्जे, सब्बे चिइवंदणाइसुवियारं॥ बहुवित्तिभासचुण्णी-सुयाणुसारेण वुच्छामि // 1 // For Personal & Private se Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० raavaveteratBP.BawasanaNPARM प्रणम्य प्रणतानंद कारकं विघ्नवारकं // श्रीमद्विजय देवाहूं लसल्लावण्य धारकं // 1 // मेरु धीरं स्फुर द्वीरं, गंभीरं नीरधीशवत् // भाष्य त्रयार्थ बोधाय, बालबोधो विधीयते // 2 // BROADVERasa/REDIAWoo शब्दार्थ-चंदन करवा योग्य एवा सर्वे (पांच) परमेष्ठीने चांदीने चैत्यवंदन, गुरुवंदन अने पच्चख्खाणना उत्तम विचारने बहु वृत्ति, भाष्य अने चूणिरूप सूत्रना अनुसारे हुं कहीश.॥१॥ शब्दार्थ-नमस्कार करनार माणसोने आनंदना करनार अने विघ्नने दूर करवावाळा तथा प्रकाशित लावण्यने धारण करवावाळा एवा श्रीमद्विजयदेवसुरी नामना गुरु महाराजने तेपज बळी // 1 // शब्दार्थ-मेरु पर्वतना जेवा धैर्यवान , अने स्वयंच रमण समुद्र जेवा मंभीर, अने देदीप्यमान् एवा वीरभगवानने नमस्कार करीने प्रणभाष्यना अर्थनो बोध थवा माटे बालावबोध करवामां आवे // 2 // // 1 // m ansavina Jain Education For Personal & Private Use Only www.ebaya Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vaasaramete Pota/D/Mo Navite/apovaisonm/apue/apeeteARDAMAGEABLETERNEval अर्थः-वंदनीयान एटले वांदवा योग्य एवा जे सर्वे श्रीतीर्थंकरदेव अथवा श्री अरिहंता| दिक सर्वे पांचे परमेष्ठी तेमने वंदित्वा एटले वांदीने चैत्यवंदनादिक एटले चैत्यवंदन तथा आदि शब्दथी गुरुवंदन अने पञ्चरकाण पण लेवां ते रूप सुविचारं एटले रूमा विचारप्रत्ये घणा | एवा जे वृत्ति, नाष्य अने चूर्णि तथा नियुक्ति प्रमुख ग्रंथो तद्रूप श्रुतने अनुसारें करीने | कहीश, परंतु महारी मतिकल्पनायें नहीं कहीश. एटले धर्मरुचि जीवोने पंचांगी सम्मत चैत्यवंदनादिकनो विधि कहीश. कारण के समकितनुं वीज तो शुद्ध देव, शुद्ध गुरु अने शुद्ध धर्मनुं स्वरूप जाणवू, अने सद्दह जे ते माटे प्रथम अढार दोष रहित, निष्कलंक एवा जे श्रीअरिहंत देव ले. ते शुद्ध देव बे. तेना स्थापनादिक चारे निदेपा वांदवा योग्य तो इहां चैत्यशब्दे श्री अरिहंत तथा श्रीअरिहंतनी प्रतिमा तेनी जे वंदना करवी, ते विधि सहित करवी ते विधि | कहीश // इति // 1 // हवे ते चैत्यवंदननो विधि मूल तो चोवीश द्वारे सचवाय , ते चोवीशना वली उत्तर ne/Y TRIPED/EAD/ARaavaran For Personal Private Lise Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MOTBAD/EDDD/ vaavaaus/ चै०भा०|| है। नेद 2074 थाय ले. माटे चोवीश धारनां नाम, प्रत्येक छारना उत्तर नेदनी संख्या सहित चार 2 // गाथायें करी कहे .. ___ चार गाथाथी 24 द्वार कहेछे. दुदिसि-वे दिशाभोर्नु | वांदवानुं | वण्णा-वर्ण-अक्षर तिग- श्रीक तिहुग्गह त्रण मकारनाअवग्रहनु पणिवाय-मणिपात करवान सोल सय सीयाला-शोलशेने अहिगम-अभिगम तिहाउवंदणया-त्रण प्रकारे / नमुकाग-नमस्कार करवानुं सुडतालीश पणगं-पंचक च०भा० D/ D/ / /autivate 0Bara/E8/Rama दहतिगअहिगम पणगं, दुदिमितिहग्गहतिहाउ वंदणया॥ पणिवायनमुक्कारा, वण्णा सोलसयसीयाला // 2 // शब्दार्थ-१ नैषेधिक आदि दशत्रिक, 2 पांच अभिगम, 3 स्त्री पुरुषने उभा रहेवानी बे दिशा, 4 जघन्य मध्यम, S2 // उत्कृष्ट त्रण अवग्रह, 5 प्रण प्रकारर्नु चैत्यवंदन, 6 पांच अंगे प्रणिपान, 7 नमस्कार, 8 नवकार प्रमुख नव सूत्रना सोलसाने सुटतावीश अक्षर-॥२॥ NavaDHAV क For Personal Private Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vaaverte/SMEB/MastD/0905Bo/amara-Hamaa विस्तारार्थः-प्रथम देव वांदतां नैषेधिक आदिक दश त्रिक साचवां जोश्ये, तेनुं द्वार कहीश, बीजु थनिगमपंचक एटले पांच अनिगमनुं द्वार कहीश.त्रीजु देव वंदन करता स्त्रीने कयी दिशायें अने पुरुषने कयी दिशायें उन्ना रहेg जोश्ये, ते हिदिशि एटले बे दिशाउँनु छार कहीश, चोथु जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट एवात्रण प्रकारना अवग्रहy हार कहीश, पांचमुं त्रिधातुवंदनया एटले त्रण प्रकारें वली चैत्यवंदना करवी, तेनुं द्वार कहीश, बहुं पंचांग एटले पांच अंगे प्रणिपात करवो, तेनुं द्वार कहीश, सातमुं नमस्कार करवानुं द्वार कहीश, आठमुं | देववंदनना अधिकारें जे नवकार प्रमुख नव सूत्रां आवे , तेना वर्ण एटले अक्षर ते सोलशें| ने सुमतालीश थाय, तेने गणी देखामवानुं द्वार कहीश // 2 // इगसीइसयं-एकसेने एकासी | सगनउइ-सत्ताणु वार अहिगार-बार अधिकार सरणिज्ज-स्मरण करवा योग्य तु-बली संपयान-संपदा चउवंदणिज्ज-चार वांदवा चउहजिणा-चार प्रकारना पया-पदो थायछे | पण दंडा-पांच दंडक, | योग्यतुं जिन VaNeparavaa For Personal Private Lise Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च०भा० इगसीइसयं तु पया, सग नउइ संपयाउ पणदंडा // बारअहिगार चउवं-दणिजसरणिजचउहजिणा // 3 // चै०भा० RomAAPopuDabDainm/node/ शब्दार्थ-चली ९मुं नवकार प्रमुख नव मूत्रना एकसोने एकासी पर,१० ए नवसूत्रनी सत्ताणु संपदा, 11 नमुथ्थुणादि पांच दंडक, 12 बार अधिकार, 13 चार वांदवा योग्य, 14 शरण करवा योग्य 15 नामस्थापनादिक चार प्रका| रना जिन-॥३॥ विस्तारार्थ-नवमं देववंदनना अधिकारें नवकार प्रख नव सूत्रोनां एकसोने एक्यासी पदो थाय बे, ते देखामवानुं हार कदीश, दशमें एज नव सूत्रांनां सप्तनवति एटले सत्ताणुं संपदा थाय बे, ते देखामवानुं छार कदीश, अगीयारमुं नमुत्थुणादिक पांच दंमकनुं हार कदीश, बारमुंह चैत्यवंदनने विषे पांच दमकमां बार अधिकार यावे . तेनुं हार कहीश, तेरमुं चार वांदवा योग्य तेनुं द्वार कहीश, चौदम उपव टालवा निमित्तें एक स्मरण करवा योग्य जे सम्यग्दृष्टि देवो 33 // तेमनुं हार कहीश, पन्नरमुं नामस्थापनादक चार प्रकारना जिननुं हार कहीश // 3 // as/apiVARMEREDAsmitD/DDRDS V 356 For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3D dowanm/areasantewana/RBae/am/aawaraavan चउरो धुइ-चार स्तुति कहेबान अ-वली . गुणवीस दोस-ओगणीश दोपर्नु थुष-स्तवन निमित्तह-निमित्त आठ सोळ आगारा-शोल भा- उस्सग्गमाण-काउस्सगना | अ-वली बारहोऊ-बार हेतु गारर्नु प्रमाणनं | सगवेला-सातवेला कर, चउरो थुइ निमित्तह-बारह हेउअ सोल आगारा // गुणवीसदोसउस्स-ग्गमाणथुत्तं च सगवेला // 4 // शब्दार्थ-१६ चार प्रकारनी स्तुति, 17 पापक्षपणादिक आठ निमित, 18 फल साधवाना चार हेतु अने 19 - | | पवादथी सोल आगार, 20 काउस्सग्गमा ओगणीश दोष, 21 काउस्तग्गनुं प्रमाण, 22 वीतरागनी स्तुति अने 21 दर रोज सात वखत चैत्यवंदन-॥४॥ | विस्तारार्थ-सोलमुंचार स्तुति कहेवार्नु द्वार कहीश,सत्तरमुं देव वांदवामां पापक्षपणादिक निमित्त |श्रा , तेनुं द्वार कहीश, बढारमुं फल साधवा निमित्तें बार हेतुर्नु द्वार कहीश, वली उंगणी|| शमुं अपवादें काउस्सग्गना सोल आगारनुं द्वार कहीश, वीशमुं काउस्सग्गमा उंगणीश दोष mmen/aavada/IAaPaom/u/amwalewaaamanad For Personal Private Lise Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० PRIMJavanerad करीने i torpawoolcialidasaibaapMana उपजे तेनु द्वार कहीश, एकवीश, काउस्सग्गना प्रमाणनुं द्वार कहीश, बावीशमुं श्रीवीतरागर्नु ||६||०भा० स्तवन केवा प्रकारे करवु ? तेनुं द्वार कहीश, त्रेवीशमुं वली दिन प्रत्ये चैत्यवंदन सात वेला क. रवू, तेनुं द्वार कहीश // 4 // दस आसायण चाओ-दश आ चिइवंदणाई ठागाई-चैत्यवंदन। | उसयरा-चुम्मोतेर वातनामो त्याग करवान / नां स्थानक दुसहस्सा-धे हजार दुन्ति-थाय सब्वे-सर्व | चवीस दुवारेहि-चोवीओं द्वारे. | दारागाहा-दारनी गाथा दसआसायणचाओ, सब्वे चिइवंदणाई ठाणाई॥ चउवीसदुवारेहिं दुसहस्सा हुंति चउसयरा॥५॥ इतिद्वारगाहा अन्दार्थ-२४ मुं देरामा चैत्यवंदन वखते तांबुल प्रमुख दश आशातनानो त्याग. मा उपर चारे गाथामा कहेग चो-६ बीश द्वारे करीने सर्वे मली चैत्यवंदननां स्थानको बे हजार अने चुमोतेर थाय छे.॥५॥ - avarNavanamamMBINDow-m/anesammaan Jan Education in For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A MODAROGRAPoonawane विस्तारार्थ-चोवीसमुं देववंदन करतां देरासरमां तांबूल प्रमुख दश आशातनानो त्याग करवो, तेनुं द्वार कहीश, एम सर्वे चैत्यवंदननां स्थानक ते चोवीश द्वारे करीने बे हजारनी ऊपर चुम्मोतेर थाय // 5 // ए द्वारनी गाथा चार जाणवी // . . चोवीश कारनां उत्तर नेद सहित यंत्रनो स्थापना. अंक मूलधारनांनाम.उत्तरजेदनीसंख्या.सरवालो. अंक मूलधारनांनाम.उत्तरत्नेदनीसंख्या.सरवालो. 1 नैषेधिकादिक दशत्रिकनुं द्वार. 30 30 5 त्रण प्रकारें वंदना करवी तेनुं झार.३ 43 2 पांच अनिगम साचववानुंछार. 5 35 6 प्रणिपात पंचांगें करवानुं हार. 1 44 3 देववांदतां स्त्री पुरुषने उन्ना रहे वानी बे दिशानुं धार. 7 नमस्कार करवानुं हार. 4 जघन्य, मध्यमादित्रण अवग्र G नवकार प्रमुख नवसूत्रानां व हनुं छार. 3 40 पोर्नु द्वार. 1647 १६ए। 4000-1BAB'DDDD/POPaa/PANVERS/NONS PD inin Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० opany/app/ee/Ow एनवकार प्रमुख नव सूत्रानां 16 चार थुश् कद्देवानुं द्वार. 4 2000 | पदसंख्यानुं द्वार. 171 1773 17 देव वांदवानाथाप निमित्तनुंद्वार- 2007 10 नवकार प्रमुख नवसूत्रानी संप | 17 देव वांदवाना बार देतुनुं द्वार. 15 2020 दानुं द्वार. ए 10 रए काउस्सग्गनासोलागारमूंद्वार.१६ 2036 | 11 नमोत्थुणादि पांच दंगकर्नु द्वार. 5 १ए७५ 20 कानस्सग्गना जंगणीश दोषनुं | 12 देव वांदवाना बार अधिकारनुं १ए 2055 . 15 रए | १कानस्सग्गना प्रमाणनुं द्वार 1 2056 | 13 चार वंदनीयतुं द्वार. . रएए। शस्तवन केम करवू? तेनुं द्वार. 1 2057 | 14 स्मरण करवा योग्यतुं द्वार. 1 रएए५ 53 सात वार चैत्यवंदन करवानुं द्वार.७ 2064 || २५नामादि चार प्रकारे जिननुं द्वार.४ १एए६ 24 दश आशातना त्यागवानुं धार.१० 2074 ___ हवे ए चोवीशे द्वारना उत्तर दनुं स्वरूप अनुक्रमें देखामतो थको प्रथम दश त्रिकोनुं द्वार कहेतो तो बे गाथायें करी दश त्रिकोनां नाम कहे . dpavasacause-SE/AAND/supasana द्वार. | दार. // 5 a p Jan Education international For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MBED/DPut/AMBEDD/a/क/09 हवे दश त्रिकनां नाम कहेछे. तिनि-त्रण पयाहिणा-प्रदक्षिणा देवी ।तिविहा-प्रण प्रकारनी अवत्थ-अवस्था निसिही-निसीही (कवी) तिनि-प्रणवार पूया-पूजा तिय-त्रण प्रकारे चेवय-निश्चे अ-वली भावणं-भारवी तिनिओ-त्रण पणामा-प्रणाम करने तहा-तेमज चेव-निश्चे तिन्नि निसिहि तिन्निओ, पयाहिणा तिनि चेव य पणामा॥ तिविहा पूया य तहा, अवत्थ तिय भावणं चेव // 6 // शब्दार्थ-१ त्रण निसिही, 2 त्रण प्रदक्षिणा अने 3 त्रण प्रणाम, 4 त्रण प्रकारनी पूजा, वली तेमज 5 त्रण अवस्थानुं भाव.। 6 // विस्तारार्थः-प्रथम देरासरें जातांत्रणवार नैषिधिकी कहेवी, बीजं देरासरेत्रण वली प्रदक्षिणा देवी, त्रीजी वणवार प्रणाम करीये, चोथो त्रण प्रकारनी अंगपूजादिक पूजा करवी, तथा वक्षी MUNIVaamana/aaa/Emathamom/auBABA /vaaru JainEducation.indernational For Personal Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० चै०भा० पांचमी प्रजुनी पिंमस्थावस्थादिक अवस्थात्रयनुनाववं ए निश्चं जाणवं, तिदिसि-त्रण दिशिनी | पमज्जणं-प्रमार्जन लंबन त्रण तिविहं-त्रण प्रकारे निरखण-जोर्बु च-बली च-वळी च-बली विरई-विरती, नीयम तिख्खुसो-त्रणवार कर मुद्दतियं-त्रण मुद्रा पणिहाणं-प्रणिधानने पयभूमि-पग मूकवानी भूमीन बनाइत्तियं-वर्णादिकना आ-| DBDDODom/wDODARDPREDATEGMEN तिदिसि निरख्खण विरई, पयभूमि पमजणंच तिख्खुत्तो॥ वन्नाइतियं मुद्दा-तियं च तिविहं च पणिहाणं // 7 // raniwas/arwasnasewaresaw-one शब्दार्थ-६ त्रण दिशामा जोवानुं विरमण अने ७त्रणवार पग मकवानी भूमिर्नु प्रमार्जन, 8 वर्णादिकनुं आलंचन, 9 वली ऋण मुद्रा भने 10 ऋण प्रकारनुं प्रणिधान. ए दशत्रिकनां नाम जाणवां // 7 // विस्तारार्थ-बही चार दिशिमांथी मात्र नगवान् जे दिशियें बेठेला होय, तेज एक दिशिनी सामुं| जोवू, अने शेषत्रण दिशिनी सन्मुख जोवानुं विरमण करवू, सातमी पग मूकवानी नूमिनुं प्र-||६|| For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VDRDayaPRABBAI.VEDEntvaporan 2790/IANSamoar माऊँन ते वली त्रणवार करवं, पाठमी वर्णादिकना आलंघन त्रण कदेशे, वली नवमी त्रण मुसा | कहेशे, दशमी त्रण प्रकारे वली प्रणिधान कहेशे, जे त्रण बोलनो समुदाय तेने त्रिक कहीये, ए | दश त्रिकनां नाम कह्यां // 7 // ___हवे प्रथम त्रण निसिही कये कये स्थानकें करवी ? ते कहे बे. घर-घरना चायओ-त्यागवा थकी / अग्गद्वारे-अग्रद्वारे पूजा संबंधि) जिणहर-जिन घरना निसिही-निसिही मजे-मध्य गभारामा चिइवंदणासमए-चैत्य वंदन जिणपूा-श्री जिनपूजा | तिगं-त्रिक (त्रणनो जयो) | तइया-त्रीजी निसिही जे (जिन करवा वखते वावार-व्यापार VERamanata/amBAIBae/amVIDEO/RBARBaava घर जिणहर जिणपूया-वावारचायओ निसिहि तिगं॥ अग्गद्दारे मज्जे, तइया चिइवंदणासमये // 8 // sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भान चं०भा० // 7 // VANDAN/AANDARVADPARDADODARADVERN शब्दार्थ-घर, जिनमंदिर अने जिनपूजाना व्यापारना त्यागथी त्रण निसिहि थायछे. तेमा प्रथम जिनमंदिरना आ| गला वारणामां, गभारामां अने चैत्यवंदनने अवसरे एम त्रण निसिहि साचववी. // 8 // विस्तारार्थः-जे सावध व्यापारनो मन, वचन अने कायायें करी निषेध करवो, तेने निसिही कहीये, ते एक पोताना घरनां, बीजी जिनघर ते देरासरना, त्रीजी श्रीजिनेश्वरनी पूजानां जे व्यापार एटले ए त्रणना जे व्यापार तेने त्यागवाथकी नैषिधिकीत्रिक थाय, तेमां प्रथम निसिहि ते पोताना घर, हाट, परिवारादिक संबंधी जे सावद्य व्यापार ते सर्व निवर्ताववा माटे श्रीजिनमदिरने अग्रद्धारें कहे. एटले देरासरनां मूल बारणे दरवाजामां पेसतांज कहे, पण श्हां श्रीजिनघरने पूंजवा समारवा संबंधि तथा पूजा संबंधि सर्व व्यापार यादरे, तथा बीजी निसिही ते जिनघर संबंधी व्यापारथी निवर्त्तवा रूप देरासरनी मध्य गन्नारामां पेसतां कहे, तिहां देरासर पमथा श्राखमयानी चिंतानो तथा देरासरमा पूंजवादिकनो त्याग करीने अव्य पूजादिकनो प्रारंन करे, एम सर्व प्रकारनी प्रजा विधिसहित साचवी रह्या पनी त्रीजी मिसिहीजे जिनप्रजा संबंधि व्या DDHIDDEDoDaroPDADDDDD/05 For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMB/RBAR@Pramootaporate/OBamvad पारना त्याग रूप ले ते. जिनपूजा व्यापार त्याग तो चैत्यवंदन करवाना अवसरें कहे श्हां अव्य पूजा व्यापार सर्व निवर्तावीने कैवल्य नावपूजारूप चैत्यवंदन स्तवनादिकनो एकाग्र चित्ते करी पाठ करे, ए रीतेत्रण निसिही साचवे. - अथवा मन, वचन अने कायायें करी घर संबंधी व्यापार निषेधवारूप त्रण निसिही देरासरना अग्रद्धारमा कहेवी. अने तेज प्रमाणे मनादिक त्रणे योगें देरासर संबंधी व्यापार त्यागवा श्राश्रयी त्रण निसिही गन्नारामां कहेवी, तथा वली चैत्यवंदनादि कहेवाने अवसरें पण मन वचन कायायें करी जिनपूजा व्यापार त्यागरूप त्रण निसिही कहेवी, ए रीतें दरेक वखतें मन, वचन अने कायाना योगें करी त्रण त्रण निसिही कहेवी, अथवा दरेक वखतें एकज निसिही कदेवी. परंतु घर संबंधी देरा संबंधी अने जिनपूजा संबंधी व्यापार निषेध करीयें ये, एम स मजीने देरासरमा पेसतांज त्रणे निसिही कही देवी नहीं. ए तात्पर्य बे ए प्रथम निसिही त्रिक कधु // 7 // avaneseae/aAD/EDITORADABLEDARB/Sus/SUDARANVENTS For Personal Private Lise Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० चे०भा० Paneepavana SODarasandobapps/deomarwareaadam हवे बीजुं प्रदक्षिणात्रिकनुं नाम प्रथम सामान्य बही गाथामा कहेलु , तेनो प्रगट अर्थ बे, माटें जुडं वखाएयु नथी. तथापि चैत्यना दक्षिण नागथी त्रण प्रदक्षिणा देवी, एटले संसा रना नवन्त्रमण टालवारूप नावनायें श्रीप्रतिमाजी महाराजनी जमणी बाजुथी अनुक्रमें ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनी आराधना रूप त्रण फेरा फरवा, ए बीजु प्रदक्षणात्रिक कयु. हवे त्रीजुं प्रणामत्रिक कहे . अंजलिबंधो-अंजलिबद्ध पंचंगओ-पंचांग प्रणाम वा-अथवा नमणे-नमाडवेंकरी अद्धोणो--अर्धावनत तिपणामा-त्रण प्रणाम तिवारं-त्रणवार पणाम-प्रणाम अ-वली सम्वत्थ-सघले ठेकाणे सिराइ-मस्तकादि . | तियं-त्रिक अंजलिबद्धो अद्धो-णओ अ पंचंगओ अ तिपणामा // ma/aamrapapapasasur/ सवत्थ वा तिवारं, सिराइ नमणे पणामतियं // 9 // Dmase For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BramBaeBARDPapermanaparveNews शब्दार्थ-१ अंजलीबद्ध प्रगाम,२ अर्दावनत प्रणाम, अने 3 पंचांग मणाम ए त्रण प्रणाम जाणवा. अथवा सर्व प्रणाम करवाने वखते त्रणवार मस्तक नमावq ए पग त्रण प्रणाम जाणवा. // 9 // _ विस्तारार्थः-श्री जिन प्रतिमा देखी बे हाथ जोमी निवामे लगामी प्रणाम करीये ते प्रथम | अंजलिबंध प्रणाम कहीये, तथा कटिदेशथी उपरखं अर्धं शरीर तेने लगारेक नमामी प्रणाम करीये, अथवा ऊर्ध्वादि स्थानके रह्यां थकां कांइक शिर नमामीये, तथा शिर करादिकें करी नूमिका पादादिकर्नु फरस, ते एक अंगथी मामीने चार अंग पर्यंत नमाम ते बीजो अर्द्धावनत प्रणाम कहीयें, तथा वली बे जानु, बे कर अने पांच, उत्तमांग ते मस्तक, ए पांच अंग नमामी खमासमण थापीयें, ते त्रीजो पंचांग प्रणाम जाणवो. ए त्रण प्रणाम | जाणवा. अथवा सर्वत्र प्रणाम करवासमये त्रण वार मस्तकादिक नमामवे करीएटले शिर, कर | अंजली प्रमुखे करी जे त्रण वार नमन आवर्त करवं ते प्रणामत्रिक जाणवू. ए त्रीजुं प्रणा| मत्रिक कडं // ए॥ PAPGeranp/aatop/aANDOODaaom/aANDoapan Jan Education International For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० चै०भा० 0 Poonaware/amasamooo/VED/DRRBHease हवे चोथु पूजात्रिक कहे जे. | अंगग्ग-अंग अने अग्र पूजा | पुप्फाहार थुइहिं-पुष्प केसर| पंचोवयारा- पंचोपचार | सव्वो वयारा-सर्वोपचारा भाव-भाव पूजा आहार फल तथा स्तुति करवे अटोवयार-अष्टोपचार वा-अथवा भेया-भेद थको | पूयति-पूजात्रिक अंगग्गभावभेया, पुप्फाहारथुइहिं पूयतिगं // पंचोवयारा अठ्ठो-वयार सबोवयारा वा॥१०॥ शब्दार्थ-पुष्प केशरादिके करीने अंगपूजा, फलादि मूकबाथी अग्रपूना अने स्तुतिथी भावपूना एम जग जातनी | पूजा थायछे. अथवा पंचोपचार पूजा, अष्टोपचार पूजा अने सर्वोपचार पूजा ए पूनात्रिक थायछे. // 10 // विस्तारार्थः-थंगने अग्र एटले पहेली अंगपूजा अने बीजी बागल ढोवारूप अग्रपूजा, त्रीजी चैत्यवंदनरूप नावपूजा ए त्रण नेदथकी अनुक्रमें पुष्पाहारस्तुतिनिः एटले पहेलो Mala/are/app/B00am .no/paan For Personal Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || पुष्प केसरादिके अने बीजी श्राहार फलादि ढोकने तथा त्रीजी स्तुति करवे करीने पूजा त्रिक थाय बे. तेमां प्रथम अंगपूजा ते श्रीवीतरागनी पूजा अवसरे मनःशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, नीतिनुं धन, पूजाना उपकरणनी शुद्धि, नूमिशुद्धि, ए सातवानां शुद्ध करी धवल | निर्मल सुपोत धोतीयां पुरुष पहेरे, अने जेनो श्रापमो मुखकोश थाय, एहवी एक सामी उत्त. रासंगनी धरे, एवी रीतें पुरुषे पूजा अवसरे बे वस्त्र राखवां, अने स्त्रीने तो विशेष वस्त्रादिकनी शोना जोश्य, तथापि हमणां संप्रदायें त्रण वस्त्र पहेरी पूजा करे, ए रीते वस्त्र पहेरी श्राशातना | टालतो थको प्रथम पूंजणीयें करी श्रीजिनवित्रने पूंजे, पूंजवाथी मामी पर्वने विषे त्रण, पांच, सात, कुसुमांजलि प्रक्षेप करे. न्हवण, अंगलूहणां धरतो, विलेपन, भूषण, अंगीरचन, पुष्प च-|| मावतो जिनहस्तमां नारिकेरादिक धूपादेप, सुगंधवासदेपणादिक करतो पूजा करे. ए सर्व | || अंगपूजा जाणवी. SamvapmAROPEARasoiceptevar.BRDINAROI INDVDR/PABVPM/PR/09/RAS/DED/D-RamRMONDA For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 ०भा० N D/Basapaapasex बीजी अग्रपूजा; तेमां धूप, दीप, नैवेद्यादिशब्दे आहार ढोकन पुष्प प्रकर, गंथिम, वेढिम, पूरिम, संघातिमादि ने जल, लवणोत्तारण, आरती, मंगलदीपक, अष्टमंगलनरण, ए सर्व बीजी अग्रपूजा जाणवी. त्रीजीनावपूजामध्ये स्तुति, गीत, गान, नाटक, बत्र, चामर, विंजवादि तथा देवऽव्य व | धारवा प्रमुख सर्व नावपूजा:जाणवी. ए पूजात्रिक कद्यु. अथवा करवा, कराववा अने अनुमोदवारूप ए पण त्रिविध पूजा जाणवी. . अथवा एक विघ्नोपशामिनी, बीजी अभ्युदय साधनी, त्रीजी निवृत्तिदायिनी, ए पूजात्रिक जाणवू. यमुक्तं // विग्धोवसायिगेगा, अप्नुदयसाहणि नवे बीया ॥निव्वुश्करणी तश्या, फलयाउ जहब नामेहिं ॥१॥श्त्यावश्यकनियुक्तिवचनात् // अथवा पंचोपचारा पूजा ते 1 गंध, 2 माल्य, 3 अधिवास, 4 धूप, 5 दीप. अथवा 1 कु. सुम, 2 अक्षत, 3 गंध, 4 धूप, 5 दीप ए पांच प्रकारे पण प्रथम अंगपूजा जाणवी. DON D Ds. Vansom/avamuevanawanpanwerms/ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mavaavarsaasansoamasomesanevanm/wazameena बाज। अष्टोपचार एटले 1 कुसुम 2 स्कह 3 गंध 4 पश्व 5 धूव 6 नेवेक जल 7 फ-| लेहि पुणो, // अविह कम्म महणी, अछुवयारा हवश पूया // 1 // इति आवश्यकनियुक्तिवचनं ए आठ प्रकारें पूजा जाणवी.. त्रीजी सर्वोपचारा एटले सर्वोपचारपणे पूजा ते प्रणाम मात्रादिक सर्व लोकोपचार विनय | ते सर्वपूजा जाणवी. अथवा जेटली वस्तु मले तेणे करीने पूजा करवी, ते सर्वोपचारपूजा जाणवी. | तिहां 1 न्हवण, 2 विलेपन, 3 देवकुष्यवस्त्र, तथा चकुयुगल, 4 वासपूजा, 5 फूलपगर, 6 फूल- | माल, 7 बूटां फूल, चूर्णघनसारादि, तथा श्रांगी रचनादि, ए ध्वजारोपण, 10 आनरण, 11 फूलघर, 15 फूलनो मेघ, 13 अष्टमंगल रचना, 14 धूप दीप आरती मंगल दीपादिक नैवेद्य ढो. कन, 15 गीतगान, 16 नाटक, 17 वाजित्र. ए सत्तर प्रकारें पूजा, तथा वली 1 प्रकारें पूजा, तेनां नाम कहे . 1 स्नात्र, 2 विलेपन, 3 जूषण, 4 फल, 5 वास, 6 धूप, दीप, G फूल, ए| तेंदुल, 10 पत्र, 11 पूगी, 12 नैवेद्य, 13 जल, 14 वस्त्र, 15 उत्र, 16 चामर, 17 वाजिंत्र, 17 PDotoanus/app/ARasanaDasivaba/80saaND D inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ /amscandARTeam चि०भा० चै०भा० DDDDD/auceraBRUD/anus/miance/ गीत, १ए नृत्य, 20 स्तुति, 1 देवऽव्यकोशवृद्धि, एवं एकवीश नेद, तथा एकशो आठ प्रकारादि ए सर्व बहुविध पूजा जाणवी. ए रीतें पंचोपचार, अष्टोपचार अने सर्वोपचार मलीत्रण नेदें पूजा जाणवी. ए चोथु पूजात्रिक कर्वा // 10 // हवे पांचमुं, अवस्थात्रिक कहे बेःभाविज्ज-भाव्य पयथ्थ-पदस्था अवस्था केवलितं केवलज्ञान अवस्थायें तस्सथ्यो-ते पिंढस्थादिक प्रण अवथ्थतियं-त्रण अवस्था रूबरहियत्तं-रूपरहित सिद्धत्तं-सिद्धपणानी अवस्थायें अवस्था नो अर्थ जाणवो पिंडथ्थ-पिंडस्थावस्था छउमथ्थ-छद्मस्थावस्थायें चेव निचे भाविज्ज अवत्थतियं, पिंडत्थ पयत्थ रूवरहियत्तं // छउमत्थकेवलितं, सिद्धत्तं चेव तस्सत्थो // 11 // NDJORISARO/ARO/Aravartie/aMcDaaorre // 11 // शब्दार्थ हे भव्य जीव : तुं भगवंतनी पिंडस्थादि जग अवस्था भाव्य. तेमां पिंड स्थावस्थाने छद्मस्थावस्थाये, पदस्थावस्थाने केवल ज्ञानावस्थाये अने रूपरहितावस्थाने सिद्धावस्थाये भाववी, एज निश्चे तेनो अर्थ छे. // 11 // Daupane For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Amavamsagar/B0/29/09/arwasvavaanee विस्तारार्थः-हे नव्यजीव ! तुं नाव्य. श्री नगवंतनी त्रण अवस्था प्रत्ये एटले त्रण श्रव| स्थानी नावना नावियें, ते कहे . प्रथम पिंमस्थावस्था नावीयें, बीजी पदस्थ अवस्था नावीयें, त्रीजी रूपरहितत्वं एटले रूपरहित एवी रूपातीत अवस्था नावीयें, तिहां जे पिंमस्थावस्था ते उद्मस्थावस्थायें नावियें, तीर्थंकर पदनां पिंम जे शरीर तीर्थंकर नाम कर्मयोग्य , ते पिंमस्थावस्था डे अने पदस्थावस्था ते केवलझान अवस्थायें नावीयें एटले केवलान पाम्या पली प्रनु | पदस्थ थया ते, तथा रूपातीतावस्था ते सिद्धत्वं एटले सिझपणानी अवस्थायें नाववी, कारण | के सिद्धपणुं जे . ते रूपथकी अतीत बे, माटे सिद्धरूपपणुं नावतां रूपातीत नावना कहीये. ए निश्चे ते पिंमस्थादिक त्रण अवस्थानो अर्थ जाणवो // 11 // ॥ढवे एत्रणे अवस्था क्या क्या नाववी? तेनां गम कहे जे. ण्हवणच्चगेहि-न्हवण पूजा नखत केवलियं-केवलीपणानी अव-| उस्सग्गेहि-काउस्सग्गीयाने | जिणस्स-जिननें छउमथ्यवथ्य-छद्मस्थावस्था स्था भावीये आकारें भाविज्ज-भाववी पडिहारगेहि-पातिहार्य करी / पलियंक--पलांठीवालीने बेठेला य-वली सिद्धत्तं-सिद्धपगानी अवस्था DaDEBERDASBrance/sANDONDOORDARVara Tin E cation International For Personal & Private Use Only ww.alby Dig Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० 12 // च.भा. PRB0BVAADHA-3/RBT avast- 0 ण्हवणच्चगेहिं छउम-त्थवत्थ पडिहारगेहिं केवलियं // पलियं कुस्सग्गेहि य, जिणस्स भाविज सिद्धत्तं // 12 // शब्दार्थ-जिनराजनी न्हवण, पखाल अने पूजा अवसरे छद्मस्थावस्था भाववी; आठ प्रातिहार्ये करीने केवली अवस्था भाववी अने पलोंठीवालीने काउस्सग्गने आकारे देखीने सिद्धावस्था भाववी. // 12 // विस्तारार्थः-सपनार्चकैः एटले न्हवण, पखाल, अर्चादि पूजाना अवसरें, पूजा करनारा, पूजक पुरुषोयें श्रीजिनेश्वरनी बद्मस्थावस्थाने नाववी, ते बद्मस्थावस्थाना त्रण नेद , एक जा न्मावस्था, वीजी राज्यावस्था अने त्रीजी श्रमणावस्था, तेमां प्रजुने न्हवण अर्चादिक प्रदालन करतां जन्मावस्था नाववी, अने मेरुपर्वतनी उपर जे जन्म महोत्सव नाववो ते पण जन्मावस्थाज जाणवी. ___ तथा मालाधारादि, पुष्प, केशर, चंदन अने अलंकारादि चढावतां राज्यावस्था नाववी. ADVERDaasB/amAAMSAROJABARD/PrasRemed /984902 For Personal Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NB/RB/ /aEBARAHTRAID/9500/B/am/us/as | वली नगवंतने अपगत शिरकेश, शीर्ष, श्मश्रु कूर्च रहित एवा मुख मस्तकादिक देखीने श्रमपावस्थानी नावना नाववी. ए प्रथम उद्मस्थावस्था त्रण नेदें विवरीने कही. ___ तथा किंकली, कुसुमवृष्टि अने दिव्यध्वनि प्रमुख आठ महाप्रातिहार्ये करीने एटले प्राति| हार्य युक्त लगवानने देखीने बीजी पदस्थावस्था एटले केवलीपणानी अवस्था नावीयें. ___तथा पर्यंकासने करी सहित एटले पलोंठी वाळीने बेग एवा काउस्सग्गीयाने श्राकारे वली जिननुं बिंब देखवे करीने सिद्धत्व एटले सिद्धपणानी अवस्था अर्थात् रूपातीतपणानी अवस्था प्रत्ये नाववी. केम के ? केटलाएक तीर्थंकरो पर्यंकासने काउस्सग्ग मुझायें मुक्ति गया ले माटें ज्योतिरूप अवगाहना नाववी. या गाथामा नाविक ए क्रियापद सर्वत्र संगत करवू, ए पांच अवस्थात्रिक कयं // 15 // namvidaswamstvamaAANTI/Asm/apps/EENBHANDARVaneVAN avita For Personal Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भाव चै०भा० हवे बहुंत्रण दिशि जोवाथी निवर्त्तवानुं त्रिक कहे . // 13 // उड्डा-उर्व दिशि निररुखणं-जोवू दाहिण-जमणी दिशियें नथ्थ-स्थापी राखेली अहो-अधोदिशि चइज्ज-छांड बामण-डावी दिशाए | दिठि-दृष्टिने तिरिआणं-तिदिशि अहवा-अथवा जिणमुह-श्री जिनेश्वरना मु- जुओ-युक्त तिदिसाण-त्रण दिशिनुं पच्छिम-पाछली पूंठनी दिशियें खने विषे उड़ाहोतिरियाणं, तिदिसाण निरख्खणं चइज्जहवा // पच्छिम दाहिण वामण, जिणमुह नत्थदिहि जुओ॥१३॥ शब्दार्थ-उंचे, नीचे अने आडं अवलुंए त्रण दिशाए जोर्बु त्यजी देवू. अथवा पोतानी पाछल, जमणी बाजु अने II डावी बाजुए जोर्बु त्यजी दइ फक्त जिनेश्वरना मुखने विष स्थापेली दृष्टि युक्त वंदन करे. // 13 // विस्तारार्थः-श्री जिनप्रतिमा जुहारतां प्रनु उपर एकांत ध्यान राखवा निमित्ते एक ऊर्ध्व woSDDH/ BoaraaaaaaawanRRBE WEBEDDINDIBamDAND/DVDs/GDamasan For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NDODONDAD awan.maraPANI/999/09/200amavasae/aaw दिशि, बीजी अधोदिशि अनेत्रीजी तिहीं दिशि, ते थाथवर्तु एत्रण दिशिनुं जो बम एटले वर्जन करवं. अथवा पाबली पुग्नी दिशियें जमणी दिशियें तथा माबी दिशियें एटले जे | दिशायें श्री नगवंतनी प्रतिमा होय, ते दिशि टालीने शेष पुंनी बाजु तथा जमणी बाजु अने माबी बाजु, ए त्रण दिशायें जोवानुं वर्जन करवं, मात्र श्री जिनेश्वरना मुखनेविषे पोतानी दृष्टिने न्यस्त एटले स्थापी राखेली होय. तेणे करी युक्त एटले सहित एवो थको वंदन करे. एटले जिनप्रतिमा उपर पोतानां लोचन थापी एकाग्र मन करे, परंतु थामु अवतुं अरहुं परहुँ जुवे नहीं. ए बहुं त्रण दिशि निरखण वर्कवानुं त्रिक कर्वा // 13 // हवे सातमं पदनूमिप्रमार्जनत्रिक कहे , ते यावीरीतें केः-श्री जिनवंदनायें शरियावहि पमिकमतां तथा चैत्यवंदन करतां जीवयत्नने अर्थे रूके प्रकारें दृष्टिवके जोड्ने पद स्पापवानी | नूमि त्रण वार पुंजवी. तिहां गृहस्थ होय तो वस्त्रांचले करी पुंजे, अने साधु होय तो रजोहरणे करी पुंजे. ए सातमुंत्रिक थयुं. INDANDO Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० Vo@ADVERes ०भा० DaDEODars/ map/GD/ toreestauranco/anupasapute/0o हवे बाग्मुं बालंबनत्रिक अने नवमुं मुसात्रिकनुं स्वरूप कहे जे. वन्नतियं-वर्णत्रिक तु-वली | जिण-जिनमुद्रा / भेदे करीने वन्नथ्यालंबण-वर्णार्थालंबन | पडिमाई-पतिमादि मु त्तमुत्ती-मुक्ताशुक्तिमुद्रा मुद्दतियं-मुद्रात्रिक जाणवू आलंवणं-आलंबन जोग-योगमुद्रा / मुद्दाभेएण-योगमुद्रादिकना वन्नतियं वन्नत्था-लंबणमालंबणं तु पडिमाई // जोगजिणमुत्तसुत्ती-मुद्दाभेएण मुद्दतियं // 14 // शब्दार्थ-वर्णालंबन, अर्थालंबन, अने प्रतिमालंबन ए त्रण आलंबनत्रिक जाणवा. तेमा प्रतिमादिक शब्दथी भाव अरिहं. तादिनुं तथा स्थापनादिकनुं ग्रहण करयुं. वली योगमुद्रा, जिनमुद्रा अने मुक्तासुक्तिमुद्रा एवा मुद्राना भेदयी मुद्रात्रिक जाणवू. विस्तारार्थः-वर्णत्रिक कयु ते कहे . वर्णार्थालंबन एटले एक वर्णासंबन, बीजु अर्थालंबन, | तिहां नमोबुणादिक सूत्र नणतां तेमां आवेला जे हलवा नारे अक्षर ते न्यूनाधिक रहितपणे /sco/Bdoes For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ pamoBeansvaasDomamus/app/aavasavaasessed || यथास्थित बोलवा, तथा संपदा प्रमुखनु बराबर चिंतन राखवू, ते प्रथम वर्णालंबन जाणवू, अने| जे नमोचणं प्रमुख सूत्रो नणतां तेना अर्थ हृदयमां नाववा, ते बीजु अर्थालंबन जाणवू, तथा आलंबन ते वली शुं कहीयें तो के प्रतिमादि एटले जिनप्रतिमा तथा आदि शब्द थकी नाव | बारहंतादिकनुं तथा स्थापनादिकनुं पण ग्रहण करवं, तेनुं जे स्वरूप बालंबन धारखं, ते त्रीजं | प्रतिमालंबन जाण, ए आठमुं आलंबनत्रिक कछु. हवे नवमुं मुद्रात्रिक कहे . एक योगमुडा, बीजी जिनमुना अने त्रीजी मुक्ताशुक्ति मुद्रा, ए योग मुखादिकना नेदें करीने मुखात्रिक जाणवू // 14 // हवे प्रथम योगमुखानुं स्वरूप कहे - अक्षुण्णंतरि अंगुलि-बे हायनी नी पेठे पिहोवरि-पेट उपरे संठिएहिं-स्थापीने दशे अंगुलिने अंतरीत करीने दोहिहत्येहिं-बे हाथे करीने कुष्परि-कोणी जोगमुद्दत्ति-योगमुद्रा एवी रीते कोसागारेहिं-कमलना डोडा WooDadvaasB/GDadaBED/Davara Jain Education international For Personal & Private Use Only www.janesbrary Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० ०भा० // 15 // अन्नुण्णंतरिअंगुलि-कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं॥ पिट्टोवरि कुप्परि सं-ठिएहिं तह जोगमुद्दत्ति // 15 // Vapooooo/D/940avanaraswanavav शब्दार्थ-परस्पर बन्ने हाथनी दसे आंगुली अंतरित करेला कमलना डोहाना आकारवाला तेमज पेटनी उपर बन्ने कोणी भो मूकेली एवा वे हाथ करीने रहेवू. ते योगमुद्रा कहेवाय छे. // 15 // विस्तारार्थः-अन्योन्यांतरितांगुलि एटले बे हायनी दशे अंगुलिने अन्योन्य ते मांदोमादो अंतरित करी जिहां एवी अने कमलना मोमाने आकारें जोमीने कीधा एवा बे हाथे करीने, ते बेहु हाथ केवा ? तो के पेट उपरें कोणी ते संस्थित एटले रही जे जेनी एवा प्रकारें रहवे करी योगमुजा इति एटले योगमुडा एम होय. ए पहेली योगमुजार्नु स्वरूप कडुं // 15 // IS15 // हवे बीजी जिनमुखानुं लक्षण कहे . FARMethalavaneous/namasdeoparmanupamoove Jan Education international For Personal & Private Use Only www.janelby Dig Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तारि-चार अंगुलाई-आंगळर्नु पुरओ-आगल / ऊणाई-ऊणो | पायाणं-पगना | पुण-वली ... जत्थ-जिहां उस्सग्गो-काउस्सग्ग करीये | जिणमुद्दा-जिनमुद्रा पच्छिमओ-पाछलनी पानीनी एसा-ए प्रकारे | होइ-होय SBANDauDADGoodNDEDGUDD/aavavana चत्तारि अंगुलाई, पुरओ ऊणाई जत्थ पच्छिमओ॥ पायाणं उस्सग्गो, एसा पुण होइ जिणमुद्दा // 16 // शब्दार्थ-वली जेमा पगना आगला पहोंचाने परस्पर चार आंगलनो आंतरो राखीने अने पाछली पानीनी बाजुनो कांइ ओछो आंतरो राखीने जे काउस्सग्ग करवो ए जिनमुद्रा होय छे.. विस्तारार्थः-यत्र एटले जिहां पगना जे आगलनाअंगुलिनी बाजु तरफना पहोंचाने माहोमांहे चार आंगुलनो अांतरो राख्यो होय, अने पगना पाउलनी पानीनो बाजुना नागमा माहोमांहे चार आंगुलथी कांश्क कणो आंतरो राख्यो होय. ए रीतें पग राखीने काउस्सा करीये ए प्रकारे वली जिनमुखा होय // 16 // . Paom/wamava/Parmarwanamama//MDAST For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० विभा० // 16 // मुत्तामुत्ती-मुक्ताशुक्ति मुद्दा-मुद्रा जत्थ-जिहां समा-सरखा हवे त्रीजी मुक्ताशुक्तिमुखा कहे ले. दोवि-बेहु | लग्गा-लगाडीने गम्भिआ-गर्मित पुण-वली अन्ने-अन्य 'हत्या-हाथ निलाडदेसे-ललाटना मध्यमा अलग्गत्ति-अणलगाडया मुत्तासुत्तीमुद्दा, जत्थ समा दोवि गभिआ हत्था // ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गत्ति // 17 // PanevaaraNDare/awasaamaaaaas@a // 16 // __ शब्दार्थ-जेमा बन्ने हाथ सरखी रीते गर्मित राखी अने ते बन्ने हाथ ललाटना मध्ये लगाडवा होय ( अहिं कोई आचार्यने मते ) न लगाड्या होय तोपण मुक्ताशुक्तिमुद्रा कहेवाय छे. विस्तारार्थः-जिहां बेहुए पण हाथ ते सरखा बराबर गर्जितपणे राखी ते बे इस्त वली ललाटना देश एटले खलाटनां मध्य नागने विषे लगाम्या होय, वली अन्य एटले बीजा केटला For Personal Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक श्राचार्यों कहे डे के अलगाम्या होय एटले ललाट देशथी पुर राख्या होय. इति एटले ए। प्रकारे मुक्ताशुक्ति नामे मुडा कहीये. एमां अंगुलिनां बिछ विना जेम मोतीना बीपनो जोग खेलो होय, तेवा थाकारें हाथ राखवा, ए मुजार्नु ए बक्षण // 17 // हवे ए त्रण मुसा मांहेली कश् मुमायें कर क्रिया करवी. ते कहे बे. | पंचंगो-पंचांगे होइ-होय / वंदण-वांदणा प णिहाणं-प्रणिधान पणिवाओ-मणिपात जोग मुद्दाह-योगमुद्राये जिणमुद्दाए-जिन मुद्राये मुत्तमुत्तीए-मुक्ताशुक्तिमुद्राए // ययपाढो-स्तवन पाठ जिया एवाय Dow/D/EREGDragoaaspesaasBazaaran Sapanaaneous/app/enomwwwANDomawravasanmaaNE पंचंगो पणिवाओ, थयपाढो होइ जोगमुहाए॥ वंदण जिणमुदाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए // 18 // शब्दार्थ-जोगमुद्राये करीने पंचांग मणिपात अने स्तवपाठ थायछे जिनमुद्राये वंदन अने मुक्ताशुक्ति मुद्राये प्रगि. | धान यायछे. // 18 // // Inin Education internationa For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० / s ava/aANDAanevaanges/mad/es/potosa विस्तारार्थः-एक श्लामि खमासमणनो पाठ तेने पंचांग प्रणिपात कहीये. बीजो स्तवपाउ |||| ते श्रीजिनेश्वरना गुणनी स्तुति ते स्तवनादिनो पाठ करवो ते योगमुखायें करीने होय, तथा वां- || | दणा देवां अने कामस्सग्ग जे अरिहंतचेश्याणं इत्यादि सर्व जिनमुखायें करीने थाय, तथा जा- ||3|| | वंति चेश्याई, जावंत केविसाहु अने जयवीयराय ए त्रणे प्रणिधानसंझामां आवे. पण श्हां ते | | संप्रदायगत एकज जयवीयरायने कहीयें वैयें, ते मुक्ताशुक्ति मुखायें कहीयें // 10 // शहां श्रीसं| घाचार नाष्यमध्ये मुक्ताशुक्ति मुखाये स्त्रीने स्तनादिक अवयवो प्रगट देखाय तेम न थq जो-|| | श्ये, एवा हेतु माटे स्त्रीने उंचा ललाटदेशे हाथ लगामवा कह्या नथी. ए नवमुं मुांत्रिक कद्यु॥ | हवे दशमा प्रणिधानत्रिकनुं स्वरूप कहे . पणिहाण-प्रणिधान , . . पत्थणासरुव-मार्थना स्वरूप | काय-कायार्नु तियत्यो-त्रिकनो अर्थ तिगं-त्रिक एगत्तं-एकाग्र उ-बळी सेस-बाकी मुणिवंदण-मुनिवंदन वय-वचननुं पयडुत्ति-प्रगट छे er der de चेइय-चैत्य वा-अथवा मण-मनन winter in Education International For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणिहाणतिगं चेइय-मुणिवंदण पत्थणासरूवं वा॥ मण वय काएगत्तं, सेस तियत्थो उ पयत्ति ॥१९॥दार 1 // शब्दार्थ-चैत्यवंदन, मुनिवंदन अने प्रार्थनास्वरूप एग प्रणिधानत्रिक जाणवू. अथवा मन, वचन अने कायान | एकाग्रपणुं करवू ते पण प्रणिधानत्रिक कहेवाय. बाकी बीजा अने सातमा त्रिकनो अर्थ तो प्रगटज छे. // 19 // विस्तारार्थः-प्रणिधानंत्रिक, ते कयुं ? ते कहे . तिहां जावंति चेश्याई ए गाथा चैत्य वां|| दवारूप ते प्रथम प्रणिधान जाणवू. तथा जावंत केविसाहु ए गाथा मुनि वांदवा रूप, ते बीजें का प्रणिधान जाणवू. तथा जयवीयराय आनवमखमा पर्यंत ए गाथा प्रार्थनास्वरूप ते त्रीजु प्रMणिधान जाणवू. अथवा एक मननुं बीजुं वचनअने त्रीजु कायार्नु एकत्व एटले एकाग्रपणुं ते ||| पण प्रणिधानत्रिक कहीये. इहां शिष्य पूजे ले के चैत्यवंदनायें प्रणिधान आवे , अने बीजी शेष | वंदना तो प्रणिधान विनाज थाय डे, तिहां ए बोल सचवाता नथी ते केम ? तेने गुरु कहे जे के Doaawaranwemamawesom/samaa ParuwaDADRAMDoman.anWOODow/DAYS For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० Dovasvarumsamasti/DDED/anasaDABADS || तिहां मन, वचन अने कायानी एकाग्रता जे ए मुख्य प्रणिधान ले ए दशमुं प्रणिधान त्रिक कयु. हवे शेष रह्या जे त्रिक एटले अहीं गाथायें करी जेनुं स्वरूप नही वखाएयु एवं बीजुं अने सातमुं त्रिक, तेनो अर्थ ते वली प्रकट , माटे तेनुं स्वरूप मूल गाथामां लख्यु नथी, एम जा. एवं. तथापि बालावबोधकर्तायें ते त्रिकोना अनुक्रमें संदेप अर्थ ते ते स्थानके लख्या , एटले दश त्रिकनुं ए प्रथम मूल घार थयुं अने उत्तर बोल त्रीश थया // 1 // हवे बीजुं पांच प्रकारना अनिगमर्नु छार कहे . सचित्तदव्यं-सचित्त द्रव्य | अणुजणं-अण छांडq उत्तरासंग-उत्तरासंग | सिरसि-मस्तकने उज्जणं-छांडq मणेग-मन- एकाग्रपणुं | अंजलि-वे हाथ जोडीने जिणदिठे-श्री जिनेश्वरने देखीने अचित्त-अचित इगसाडि-एकवडुं वस्त्र सचित्तदवमुजण-मचित्त मणुजणं मणेगत्तं // इगसाडिउत्तरासं-ग अंजलि सिरसि जिणदिवें // 20 // PAREVED/appeanutOfPPGD 18 // MIN Jan Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a pUDAEDESI/dio/anemom /D/ANSODE शब्दार्थ-१ सचित्त द्रव्यनो त्याग, 2 अचित्त वस्तुने न तजवानी अनुज्ञा, 3. मन, एकाग्रपणुं, 4 एकसाडी उत्तरासंग अने 5 जिनेश्वरनां दर्शन धये माथा उपर अंजलि जोडवी. ए पांच अभिगम जाणवां. // 20 // .. विस्तारार्थः-चैत्यादिकने विषे प्रवेश करवानो विधि तेने अनिगम कहीये. ते पांच प्रकारे |. तिहां देहरे जातां सचित्त अव्य जे पोताना अंगे आश्रित कुसुमादिक, फलादिक होय, तेनुं बांबुं, ते प्रथम अनिगम, तथा अचित पदार्थ जे अव्यनाणादिक तथा आनरणादिक वस्त्रादिक | वस्तु तेनुं अणबांझq एटले पोतानी पासें राखवानी अनुज्ञा ते बीजो अनिगम. तथा मननुं ए. काग्रपणुं करवू, ते त्रीजो अनिगम. तथा एकपहुं वस्त्र बेहु डेमायें सहित होय तेनो उत्तरासंग करवो, ते चोथो अनिगम. तथा श्रीजिनेश्वरने दूर थकी नजरें दीठे थके बे हाथ जोमीने मस्तकने विषे लगामवा एटले अंजलिबद्ध प्रणाम करवो, ते पांचमो अनिगम जाणवो // 20 // मुच्चंति-मुके छत्त-छत्र चपरे-चामर . पंचविहाभिगमो-पांच प्रकारे रायचिन्हाई-राजानां चिन्ह | उवाणह-पगनी मोजडी अ-अने अभिगम खगं-खड्ग मउडं-मुकुट पंचमए-पांच अहवा-अथवा Domes/p/seas/anasanasopoD/DPuna For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० चै०भा // 19 // इय पंचविहाभिगमो, अहवा मुच्चंति रायचिन्हाई॥ / खग्गं छत्तोवाणह, मउडं चमरे अ पंचमए // 21 // postRDPREVIma-RANDame/SsPMTMAIPUDAapan शब्दार्थः-ए पूर्व कहेला पांच प्रकारना अभिगम देवगुरु पासे आवतां साचवा. अथवा राजचिन्ह त्यनी देवां. ते राजचिन्ह आ प्रमाणे. 1 खड्ग, 2 छत्र, 3 मोजडी, 4 मुकुट, अने 5 चामर. // 21 // विस्तारार्थः-ए पूर्वली गाथामांकह्या जे पांच प्रकारें अनिगम ते देव तथा गुरु पातें श्रावतां साचववा अथवा वंदना करनार श्रावक जो पोते राजादिक होय तो ते ए पांच अन्निगम साचवे, अने वली बीजां राजानां पांच चिह्न जे ते प्रत्ये मूके एटले डांमे तेनां नाम कहे , एक खड्ग, वीजें बत्र, त्रीजुं उपानह एटले मोजमी, चोथो माथानो मुकुट अने पांचमुं चामर, ए पण पांच | अनिगम जाणवां // 31 // एटले पांच अनिगमनुं बीजं घार पूर्ण थयु // उत्तर बोल पांत्रीश थया. हवे बे दिशिनुं त्रीजु द्वार, तथा त्रण अवग्रहनुं चोद्वार कहे बे॥ 18HD Mostestrarapes/et/p/PDai. 19 // inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदंति-वांदे जिणे-श्री जिनने दाहिण-दक्षिण .. ठिया-रहीने पुरिस-पुरुषो. वामदिसि-डावे पासे नारी-स्वीजन नवकर-नव हाथ जहन्नु-जघन्य सठिकर-साठ हाथ | जि-उत्कृष्ट मज्झुग्गहो-मध्यम अवग्रह सेसो-शेष दिसि-दिशाए MosAp/anyavaaranasacootv900/06/seasee वंदंति जिणे दाहिण-दिसि ठुिआ पुरिस वामदिसि नारी॥ नवकरजहन्नु सठ्ठि-करजिट्ट मझुग्गहो सेसो // 22 // दारं॥३-४॥ rawanpasans/mapsOSDADAJDoooomasan शब्दार्थ-जिनेश्वरनी दक्षिण दिशा एटले जमणी वाजुये उभा रहीने पुरुषो वंदना करे अने वामदिशा एटले डावी वाजुए उभा रहीने स्वीयो वंदना करे. प्रभुथी नवहाथ दूर रहेवाथी जवन्य, साठ हाथ रहेबाथी उत्कृष्ट अने नव तथा साठनी अंदर उभा रहेवाथी मध्यम अवग्रह थाय छे. // 22 // विस्तारार्थः-श्रीजिनने दक्षिणदिशिस्थिता एटले मूल नायकनी जमणी दिशायें रह्या थका पुरुषो वांदे एटले चैत्यवंदना करे, अने मूल नायकने माबे पासे रही थकी स्त्रीजन वांदे, एटले For Personal & Private Use Only www. by.org Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० भाल // 20 // || चैत्यवंदना करे. इहां चैत्यवंदना पूजाना अधिकार माटें प्रसंगथी जमणी पासें दीपक थापवो, अने मावी पासें धूपादिक नाणुं, फलादिक, जिन आगलें तथा हस्ते आपीयें. ए वे दिशिनुत्रीजु | छार थयु. अने उत्तर बोल सामनीश थया. हवे त्रण अवग्रहy चोथु द्वार कहे . तिहां नगवंतथकी नव हाथ वेगला रहीने चैत्यवं- | दना करवी, ते प्रथम जघन्य अवग्रह जाणवो. तथा नगवंतथकी षष्ठिकर एटले शाठ हाय वेगला रहीने चैत्यवंदना करवी, ते बीजो ज्येष्ठ एटले उत्कृष्ट अवग्रह जाणवो, अने शेष जे नव हाथथी उपर अने शाठ हाथनी मांहेली कोरें एटली वेगलायें रही चैत्यवंदना करवी, ते सर्व त्रीजो मध्यम अवग्रह जाणवो. तथा केटलाएक आचार्य बार प्रकारना अवग्रह कहे डे के // उकोस सहि पन्ना, चत्ता तीसा दसह पणदसगं // दस नव ति छ एगद्धं, जिणुग्गह बारसविनेयं // 1 // एटले 60, 50, 40, 30, 17, 15, 10, ए, 3, 2, 1, // ए बार अवग्रह थया एटले | | अर्द्धा हाथथी मामीने शाठ हाथ पर्यंत श्रीजिनगृहे तथा गृहचैत्यादिकें श्वासोडासादि आशा MaBABPDPapaate/D // 20 // /END/anusar in Education international For Personal & Private Use Only www janebryong Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कvie/PDATEG/ 4 GD तना वर्जवा निमित्तें ए अवग्रह जाणवा // 25 // ए चोथु त्रण अवग्रहनु घार कह्यु, श्हां सुधी सर्व मली उत्तर बोल 40 थया // 22 // हवे त्रण प्रकारें चैत्यवंदना करवी, तेनुं पांचमुं द्वार कहे . नमुक्कारेण-एक नमस्कारवडे | मझ-मध्यम | जुअला-युगल थय-स्तवने जहन्ना-जघन्य पण दंड-पांच दंडके पणिहाणेहिं-प्रणिधाने चिइबंदण-चैत्यवंदन थुइ-स्तुति थुइचउक्कग-स्तुति चतुष्क उकोसा-उत्कृष्टथी नमुक्कारेण जहन्ना, चिइवंदण मज्झ दंडथुइजुअला॥ पणदंड थुइचउक्कग-थयपणिहाणेहिं उक्कोसा // 23 // शब्दार्थ-नवकार बोली नमस्कार करवाथी जघन्य, अरिहंत चेइयाणंनुं युगल तथा चार स्तुति बोली नमस्कार करवाथी मध्यम अने पाच नमुत्थुगंरूप दंडक तथा आठ स्तुतिनां स्तवन अने त्रण प्रणिधाने करीने उत्कृष्ट चैत्यवंदना जाणवी.॥ 23 // SABGDRBANBadarasames/aADDDDand /DetaDENOVO For Personal & Private se Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चे.भा० चै०भा० 'DDEDIDOBORD/DBEDDEDGE विस्तारार्थः-एक नमस्कार श्लोकादिकरूप तथा नमो अरिहंताणं कहीने अथवा हाथ जोमी || मस्तक नमामवे करी अथवा नमो जिनाय कही नमवे करी अथवा एक श्लोकादि केहेवे करीअ थवा हमणां देहरे चैत्यवंदन कहियें बैयें, इत्यादि रूपें सर्वप्रथम जघन्य चैत्यवंदन जाणवू. तथा दंमक युगल ते अरिहंत चेश्याएंगें युगल तथा स्तुतियुगल ते चार थुश् एटले एक नमस्कार | श्लोकादिरूप कही, शक्रस्तव कही, उन्ना थर, अरिहंत चेश्याणं कही कानस्सग्ग करी, थुश कहेवी, ते बीजी मध्यम चैत्यवंदना जाणवी. तथा पांच नमोवुणा रूप पांच दंझके करी अने स्तुति चतुष्क एटले आठ थुये करीने, स्तवने करीने तथा जावंति चेश्या, जावंत केविसाहु अने जयवीयराय, एत्रण प्रणिधाने करीने त्रीजी उत्कृष्टी चैत्यवंदना जाणवी // 23 // अन्ने-अन्य जहन्न-जघन्य निगेण-त्रण चहि-चार विति-कहे छे वंदणया-चैत्य वंदना मज्झा-मध्यम पंचर्हि-पांच इगेणं-एक सकथएणं-शक्रस्तवे. / तंडुंग-तेबे उक्कोसा-उत्कृष्ट वा-अथवा Vas/9/09/29999999.00ava8/09/am // For Personal Private Use Only www.janelibrary.org Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्ने बिति गेणं, सकथएणं जहन्नवंदणया // तदुगतिगेण मज्झा, उक्कोसाचउहिं पंचहिं वा // 24 // दारं 5 VaierarsanaSROREma-opGO/Amawas शब्दार्थ-केटलाक आचार्यों एम कहे छे के, एकवार नमुत्थुगं बोलवाथी जघन्य, बे अथवा त्रणवार नमुत्थुणे बोलबाथी मध्यम अने चार अथवा पांचवार नमुत्थुगं बोलवाथी उत्कृष्ट चैत्यवंदन थाय छे. // 24 // विस्तारार्थः-अन्य एटले वीजा वली केटलाएक आचार्य एम ब्रुवंति एटले कहे बे के एकेन एटले एक शक्रस्तवें करीने देव वांदी ते जघन्य चैत्यवंदना जाणवी. अने तद्धिकत्रिकेण एटले तेहीज बे तथा त्रण शक्रस्त करी मध्यम चैत्यवंदना जाणवी. तथा चार शक्रस्तवें करी अयवा पांच शकस्तवें करीने प्रणिधान युक्त करीये ते उत्कृष्ट चैत्यवंदना जाणवी, अने नाष्यादिकने विषे स्तुति युगल कयां , ते त्रण थुइ स्तुतिरूप एक गणीय बैयें. अने चौथी थुइ शिक्षारूप समकेतदृष्टिनी सहायरूप जुदी गणी ते माटें स्तुति युगल कहे , तेनो विचार Mangalwal/BAnswarasvaruVampeama For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चे०भा भा० oasarae98/09/8/09/B/RS/ श्रावश्यकवृत्तियकी जाणवो // 24 // एटले त्रण नेदें चैत्यवंदनानुं पांचमुं हार कयु. सर्व मली उत्तर बोल तालीश थया // हवे बहुं प्रणिपातकार तथा सातमुं नमस्कार छार कहे . पणिवाओ-प्रणिपात उत्तमंग-मस्तक नमुक्कारा-नमस्कार तिग-त्रणथी पंचंगो-पांच अंग च-बली इग-एक जाव-यावत् दोजाणू-बे जानु सु-भला अहसयं-एकशोने आठ करदुग-बे हाथ महत्थ-मोटा अर्थशा पणिवाओ पंचंगो, दोजाणू करदुगुत्तमंगंच॥ दारं 6 // सुमहत्थनमुक्कारा, इग दुग तिग जाव अठुसयं // 25 // // 22 // शब्दार्थ-बे ढींचण ये हाथ अने मस्तक ए पांच अंग पृथ्वीने अडाडी नमस्कार करवा ते पंचांग प्रणिपात कहेवाय. तेमज एक, वे, त्रणथी मांडी एकसो आठ नवकार कहेवा ते नमस्कार कहेवाय. // 25 // ABGB/Sm/aa For Personal Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vaasa/om/aMDDseDom/mus/Saaaave विस्तारार्थः-जिहां प्रकर्षे करी नक्ति बहुमानपूर्वक नमवं तेने प्रणिपात कहीये. ते पांच | अंग नूमियें लगामवा रूप जाणवो, तेनां नाम कहे जे बे जानें एटले बे ढींचण, अने बे हाथ, वली पांच, उत्तमांग ते मस्तक, ए पांच अंग जिहां खमासमण आपतां नूमिये लागे, ते पंचांग प्रणिपात कहीये. एणे करी"छामि खमासमणो वंदिलं जावणिद्याए निसीहियाए मबएण वंदामि" ए पाठ कहे. ए बहुं प्रणिपात हार कद्यु. उत्तर बोल चुम्मालीश थया // हवे सातमुं नमस्कार द्वार कहे . नला एवा अत्यंत महोटा गहन अर्थ जे जेहना एटले | नक्ति, ज्ञान, वैराग्य दशाना दीपक एवा नमस्कार कहेवा ते एक तथा बे, तथा त्रणथी मामीने यावत् एकशो ने आठ पर्यंत कहे ॥ए सात, नमस्कार द्वार का. उत्तर बोल पीस्तालीश थया. हवे देववंदनना अधिकारें जे नवकार प्रमुख नव सूत्रां आवे , तेमने एक वारनां उच्चरयां हलवां तथा नारे मलीने सर्व गणी तेवारे 1647 अक्षर थाय अने 101 पद थाय तथा ए संपदा थाय, ए अदर, पद तथा संपदा मलीत्रणेद्वार एकां कहे बे. तेनी साथे संपदानां नाम WANDEEBAS//anoram/autour/are/aRO/aaaa - For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा० च०४ 23 // MAD/EMBEDIEVED// तथा अर्थ पण कहेशे. यद्यपि इछामि खमासमणो तथा जे अध्यासिनो ए गाथा तथा तस्स उत्तरी, अन्नब, इत्यादि अपर ग्रंथांतरें तो ए सूत्रमा संकलित नथी तथापि नाष्यमांदेला देववंदनाधिकारें बोल्या बे, अन्यथा जे पूर्वे उत्तर द्वार कयां, ते पूर्ण न थाय, ते माटें ते सर्व द्वार एकगं कहे . अडसहि-अडसठ सयंच-एकशोने | दो गुणतीस-बसें ओगणत्रीस | अइन उयसयं-एकशो अहाणुं अठवीसा-अठ्ठावीश दुसय-बसें दुसष्ठा-बसें शाठ दुवनसयं-एकशो बावन नवनउय-नवाणुं सगनउया-सताणु | दुसोल-बसें सोल अडसहि अठ्ठवीसा, नवनउयसयं च दुसयसगनउया // NagaNDawvaasanp/DD/app/ee/DD/oas /aus/app/oDamasase दोगुणतिस दुसग, दुसोलअडनउयसयदुवन्नसयं // 26 // 23 // शब्दार्थ-१ नंवकारना अडसठ, 2 इच्छामि खमासमगनां अहावीश, 3 इरिया बहियानां एकसोने नवाणु, 4 नमु For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marpavaAmavas/Bo8/02/mm/navaraaa त्थुगनां वसोने सत्तागुं, 5 अरिहंत चेइयाणंनां बसो ओगगत्रीस, 6 लोगस्तनां बसोने साठ, 7 पुख्खरवरदीनां बसोने सोल, 8 सिद्धाणं चुद्धाणंना एकसो अहाणु, 9 जावंति चेइयाई, जावंति केविसाहु अने जयवियराय ए रणना एकसो बावन अक्षर छे. सर्व मली 1647 याय छे. // 26 // विस्तारार्थः-१ प्रथम " पंच मंगल महासुयस्कंध" एहवं नाम नवकारर्नु , तेनां अदर अमसठ ते हवश मंगलं एवो पाठ नणतां थाय, केमके श्री महानिशीथ सूत्रमध्ये प्रकटारें हव मंगलं एहवो पाठ // यमुक्तं // पंच पयाणं पणतिस, वएणचूलाई वएण तित्तीसं // एवं सम्मे समप्पश्. फुम मरकर महसहीए // इति // 1 // ते माटें जो नमस्कारनो एक अक्षर उडी करे, तो चोसठ विधाने नमस्कार साधवो ते न्यून थाय, तेथी छाननी श्राशातनानो अतिचार | लागे, एवं श्रीनप्रवाहुस्वामी नमस्कारकल्पें प्रकाश्युं बे, माटें हवश् मंगलं एवो पाठ कहेवो. 2 बीजु “प्रणिपातं" एवं नाम श्वामिखमासमणर्नु बे, ते थोनसूत्रमा गुरुवंदनाधिकारें वां| दणामां आवशे, पण श्हां चैत्यवंदन माटें नेबु कथु बे. तेना अक्षर अद्यावीश जे. varsa/Amavasame/.moeopaaDADVERN For Personal Private Use Only www.sanelibrary.org Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बै०भा० // 24 // @aveDAVIANDID /09/ 3 त्रीजु " पमिकमणा सुयस्कंध” एबुं नाम इरियावहियानुं बे, ते सूत्रना श्वामि पमिक| मलं श्हांथी मामीने यावत् गमि काजस्तग्गं लगें श्रदर एकशोने वली उपरें नवाणुं बे. 4 चोधुं "शक्रस्तव” एवं नाम नमोबुणंखें बे. तेना अदर बशें ने सत्ताणुं जाणवा. 5 पांचमुं “चैत्यस्तव" ए नाम अरिहंत चेश्याएंगें . तेना श्रदर बशें ने उगणत्रीश जे. 6 बहुं " नामस्तव " एq नाम लोगस्सर्नु , वर्तमान जिन चोवीशीना नामर्नु गुणोत्की रूप तेना अदर बशे ने शाप बे. 7 सातमुं " श्रुतस्तव” एवं नाम पुकरवरदीनु बे तेना अकर बशेने सोल ले. 7 आठमुं " सिद्धस्तव” एवं नाम सिद्धाणं बुद्धाणंनुं जे तेना अदर एकशो ने अट्टाणुं . ए नवमुं “प्रणिधान त्रिक” एवं नाम जावंति चेश्याई, जावंत केवि साहु अने सेवणा आनवमखंमा पर्यंत जयवीयराय ए त्रणेनुं . तेना अक्षर एकशो ने बावन बे.॥२६॥ BYONDVDesaVIAS/Pom/aimswatan 0/0DaseDow/ODAI // 24 // For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ hine PAavaraa/waan नवकार-नवकार खमासण-खमासमण इरिअ-इरियावहिना सकत्थ-शक्रस्तव आइ-आदि / देडेमु-दंडकने विषे वना-अक्षर पणिहाणेमु-मणिधानने विषे | सोलसयसीयाला-शोलसेंने | अदुरुत्त-बीजी वार अणउचर्या / सुडतालीश इअ नवकारखमासण, इरियसकत्थआइदंडेसु // पणिहाणेसु अ अदुरु, त्तवन्नसोलसय सीयाला // 27 // B/SAMANDVANDNAGems i V95//aruaaivaraanwave शब्दार्थ-ए प्रमाणे नवकार, खमासमण, इरियावहि, शक्रस्तवादि दंडकमां अने प्रणिधानमा एम सर्व मली फक्त एकवार उच्चार करेला अक्षरो सोलसोने सुडताली थाय छे. // 27 // विस्तारार्थः-ए पूर्व कह्या जे अदर ते अनुक्रमें अमश अदर नवकारने विषे जाणवा, अट्ठावीश अदर खमासमणने विषे जाणवा, तथा एकशो नवाणुं अदर शरिया वहियाना गमि काउस्सग्गं खगें जाणवा. 1200 अदर शकस्तवादिक पांच दमकने विषे अनुक्रमें जाणवा. imaevanaDVANDAR/De/ inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा DOOGagaoooore चै०भा० 25 / / s/s/sos/PaRIEVED तेमां नमुत्थुणंना सत्वे तिविहेणवंदामि लगें श्ए, तथा अरिहंतचेश्याणंना अप्पाणं वोसिरामि लगें शए, तथा लोगस्सना सवलोए लगें 160, तथा पुरस्करवरदीना सुअस्सनगव लगें 16, तथा सिद्धाणं बुद्धाणंना वेश्रावच्चगराणं, संतिगराणं, सम्मदिहि समाहिगराणं लगें १ए, ए सर्व मली पांच दंगकना 1200 अक्षर थया. तथा 152 अक्षर जावंति चेश्या, जावंत केवि साहु अने जयवीयराय सेवणा श्रानव मखमा लगें ए त्रण प्रणिधानने विषे जाणवा. ए रीतें ए नव सूत्रांना अदरो एका करिये. त्यारे अद्विरुक्त एटले बीजी वार अण उच्चरया एवा वर्ण एटले अदर ते सर्व मली सोलरों ने सुमतालीश थाय // 27 // ॥हवे पदसंख्या कहे . // नव-नव तिचत्त-तेंतालीश वीसपय-वीशपद सक्कत्थयाइसु-शक्रस्तवादि बत्तीस-बत्रीश अडवीस-अठ्ठावीश मंगल-नवकार ___ पांच दंडके तित्तीसा-तेत्रीश सोल-शोल | इरिया-इरियावहि | इगसीइसयं-एकशोने एक्याशी DARED POWe/amasRER/AUDIADVODom/oDB00 // 25 // inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवबत्तीसतित्तीसा, तिचत्तअडवीससोलवीसपया // ___ मंगलइरियासक, त्थयाइसु इगसीइसयं // 28 // yavasass90030030/0BAAJDOBasa शब्दार्थ-नवकार, इरियावहि अने नमुत्थु गादि सात मूत्रमा नव, चत्रीश, तेत्रीश, तेंतालीश, अट्ठावीश, सोल अने वीश एटलां पदो होय छे. सर्व मलीने एकसो एकाशी पद थाय छे. // 28 // विस्तारार्थः-नवकारनां नव पद , रियावहिनां बत्रीश पद, नमोन्नुर्णनां तेत्रोश पद, अ-|| | रिहंतचेइयाणंना तालीश पद, लोगस्सनां अठावीश पद, पुरकरवरदोनां सोल पद, सिद्धाणंबुद्धाएंनां वीश पद, एम नवकार, शरियावहि अने शक्रस्तवादिक पांचे दमक ए सात सूत्रांने विषे सर्व मली एकशो ने एक्याशी पदनी संख्या जाणवी. अने प्रणिपातनां पद तो वांदणां नेलां गुरु वंदनमां कहेशे, तथा प्रणिधानत्रिकनी पद संपदा अनुक्रमें , ते माटें न कयु “वारिऊर" त्यादि गाथा नक्तिनी योजना , ते इहां गणी नही // 2 // DABADRIPEDIAroteam-DinesaneryoDNPeBox For Personal & Private Use Only www jainelibrydig Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा Paasaras // 26 // सगनई-सत्ताj VeuBADwage/900/DP/2688/GDSDes // हवे संपदानी संख्या कहे . // अठ्ठ-आठ अवीस-अट्यावीश वीसामा-वीसामो लेवानुं स्थान| इरिया-इरियावहि नव-नव सोलस-सोल कमसो-अनुक्रमे सक्कथयाइसु-शकस्तवादिक य-वली वीस-वीस मंगल-नवकार अठठ नवठ्य अतृ वी, स सोलसय वीस वीसामा // कमसो मंगल इरिया, सक त्थयाईसु सगनउई // 29 // शब्दार्थ-नवकार, इरियावहि अने नमुत्युगादिक सात सूत्रमा अनुक्रमे आठ, आठ, नव, आठ, अठ्ठावीस, सोल अने वीश एटला विसापा एटले संपदा होय छे. सर्व मलीने सत्ताणुं थाय. // 29 // विस्तारार्थः-प्रथम नवकारनी आठ संपदा, तथा इरियावहिनी आठ संपदा, तथा नमोत्थुणंनी नव संपदा, तथा अरिहंत चेश्याएंनी बाठ संपदा, वली लोगस्सनी अठ्ठावीश संपदा, तथा पुस्करवरदीनी सोल संपदा, वली सिद्धाएंबुद्धाणंनी वीश संपदा जाणवी. ए लगारेक रहे w atianewsaapD9/DIPoe // 26 For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ desbe Davar p/oRARuwao/raETERING वानुं स्थान तथा अर्थनो वीसामो लेवानुं स्थान तेने संपदा कहीये, ते अनुक्रमें नवकारने विषे, शरयावहिने विषे अने शक्रस्तवादिक पांच दंगकने विषे ए सर्व मली सात सूत्रांने विषे सर्व संपदा सप्तनवति एटले सत्ताणुं थाय // ए॥ ॥हवे नवकारना अक्षर तथा पद अने संपदा विवरी देखा जे.॥ वण-वर्ण, अक्षर अट्ठ-आठ | पयतुल्ला-पदनी तुल्य | दुपया-बे पदनी असहि-अडसठ संपया-संपदा सतरख्खर-सत्तर अक्षर नवख्खर-नव अक्षरनी नवपय-नवपद तथ्थ-त्यां अहमी-आठमी छही-छठ्ठी संपदा नवकारे-नवकारने विषे सगसंपथ-सात संपदा वण्णसटि नव पय, नवकारे अठ संपया तत्थ // सग संपय पय तुल्ला, सतरख्खर अठुमी दु पया॥३०॥ नवरकर अहमी उपय उही // इत्यन्ये GARDarosavespranaero DaNews/ wse in Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० शब्दार्थ-नवकारमा अडसठ अक्षर, नव पद तथा आठ संपदा होय छे. तेमां सात संपदा तो सात पदनी छे अने सत्तर अक्षरनी आठनी संपदा छेक्षा वे पदनी छे. // 30 // चि०भा० // 27 // yaaropas/ADVarnamama/astDARPREVIDED विस्तारार्थः-नवकारने विषे अमस वर्ण होय, तथा नमोअरिहंताणं आदिक पद ते नव होय, अने संपदा तो श्राप होय, तिहां ते आठ संपदामांहे प्रथमनी “सवपावप्पणासणो” सुधी | नी जे सात संपदा , ते तो पदने तुल्य जाणवी एटले जेटला पद तेटली संपदा पण जाणवी. तथा आठमी संपदा तो "मंगलाणं च सवेसिं" पढमं हवश् मंगलं ए बे पदने एक कहीयें माटे ए बे पदनी जाणवी, तथा अन्य केटलाएक आचार्य एम कहे बे, के “पढ़मं हवमंगलं" ए नव अक्षरनी थामी संपदा तथा " एसोपंच नमुक्कारो, सबपावप्पणासणो" ए बे पदनी अने सोल अदरनी बही संपदा जाणवी // 30 // operawdeos SITUADGarmaerarpaRASA // 27 ॥हवे प्रणिपात खमासमणना अदर तथा पद अने संपदा विवरी देखा // For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 700/ DABASANDPas/aruwaow/DD पणिवाय-पणिपात ।तहाय-तेमज अख्खर-अक्षर अख्खराई-अक्षर छे इरियाए-इरियावहिने विषे / सयं-सो संपया-संपदा अहावीसं-अठ्यावीस नव नउअं-नवाणु | दुतीस-बत्रीस | अ-आठ पणिवाय अख्खराइं, अठ्ठावीसं तहाय इरियाए॥ नव नउ अ मख्खर सयं, दुतीस पय संपया अठ॥३१॥ इच्छामिखमासमणना अक्षर अहावीश तेमज हरियावहिना एकसो नवाणुं अक्षर, वत्रीश पर अने आठ संपदा छे. // 31 // _ विस्तारार्थः-प्रणिपात दमकने विषे अहावीश अक्षर , तथाच एटले तेमज वली शरियावहिने विषे नवनवति अक्षरशतं एटले नवाणुये अधिक एकशो श्रदर जाणवा अर्थात् एर नवाएं अक्षर जाणवा, तथा बत्रीश पद जाणवां अने संपदा आठ जाणवी॥३१॥ - // ए थाठ संपदाना पदनी संख्या तथा संपदाना आदि पद कहे . // Dom/mo/Sporno/meaniB/. कशोने /goopamvam For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्द०भा० कारण // 28 // VIRREVRDI90/9500-000-10/NBRasPress दुम-वे पदनी च्छग-छ पदनी ... / इच्छा-इच्छाकारेण जेमे-जेमे जीवाविराहिया इग-एक पदनी इस्यि-इरियावहिनी - इरि-इरियावहियाए एगिदि-एमिंदिया चउ चार पदनी . पण-पांच पदनी' सपासपदाआना गम-गमणा गमणे / अभि-अभिहया इगार-अगीयार पदनी. | आइपया-प्रथमना पद पाणा-पाणकमणे तस्स-तस्सउत्तरी दुग दुग इग चउ इग पण, इगार च्छग इरिय संपयाइपया // इच्छा इरि.गम पाणा, जे से एगिदि अभि तस्स // 32 // शब्दार्थ-इरियावहिनी आठ संपदाना अनुक्रमे बे, बे, एक, चार, एक, पांच, अगीयार अने छ एटलां पदो जाणवां | अने आदि पद तो इच्छाकारण, इरियावहियाए, गमणागमणे, पाणक्कमणे, जे मे जीवा, एगिदिया, अभिहया अने तस्स उत्तरी ए आठ जाणवा. // 32 // विस्तारार्थः-पहेली संपदा बे पदनी, बीजी संपदा पण बे पदनी, त्रीजी एकपदनी, चोथी चार पदनी, पांचमी एकपदनी, बही पांच पदनी, सातमी अगीयार पदनी, आठमी उ पदनीजाणवी॥ PaavaavarooperaD/ODHPrasaare // 28 // Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NDow/Om/anupaDPeacadrasoooo/avar हवे ए शरियावहिनी सर्व संपदार्जना आदि पद एटले प्रथमनां पद जे संपदाना धुरियां ते कहे . तिहां प्रथम श्छाकारेण ए पहेली संपदानुं पहेऱ्या पद, इरियावहियाए ए बीजी संपदानुं | पहेलुं पद, गमणागमणे एत्रीजी संपदानुं पहेलुं पद, पाणकमणे ए चोथी संपदानुं पहेलु पद, जेमेजीवाविराहिया ए पांचमी संपदार्नु पहेलं पद, एगिंदिया ए बही संपदार्नु पहेलु पद, अ. निहया ए सातमी संपदार्नु पहेलु पद, तस्सउत्तरी करणेणं ए आठमी संपदा, पहेवू पद जाणवू. | // हवे ए शरियावहिनी आठ संपदानां नाम कहे . // अभ्भुवगमो-अभ्युपगम * | इअरहे उ-इतर (विशेष) हेतु | जीव-जीवसंपदा | भेयउ-ए भेदथी निमित्तं-निमित्त संपदा संगहे-संग्रह संपदा विराहण-विराधना संपदा तिनि-त्रण उद्दे-ओघ संपदा पंच-पांचमी पडिक्कमण-प्रतिक्रमग चूलाए-चूलिकारूप - - कळD/DouwastDoDNDow/DD/Program/ANDU अप्भुवगमो निमित्तं, उहेअरहेउसंगहे पंच // जीवविराहण पडिक्कमण, भेयउ तिन्नि चूलाए॥३३॥ / inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०भा० च०भा० Namana/ARO/ARIT GRO/parvatogeni emaraDARSe/PwDawaivasa शब्दार्थ-अभ्युपगम, निमित्त, ओघ, इतरहेतु अने पोचमी संग्रह वली जीव, विराधना अने प्रतिक्रमणएवा भेदथी इरियावहिनी आठ संपदा छे. तेमा प्रथमनी पांच मूलसंपदा अओ पाछलनी त्रग चूलिका संपदा जाणवी. // 33 // विस्तारार्थः--अच्युपगम एटले अंगीकार कर ते अहीं पापना गर्नु जे आलोचना लक्षण | कार्य तेनो अंगीकार करवो ते स्वरूप एटला माटे श्वामि पमिकमि ए बे पदनी प्रथम अच्युपगम संपदा जाणवी. 2 ते अंगीकारकृत वस्तुने उपजाववाना कारण रूप इरियावहियाए विराहणाए वे पदनी बीजी निमित संपदा जाणवी. 3 सामान्य प्रकारे प्रायश्चित्त नबजाववारूप गमणागमणे ए एक पदनी त्रीजी घ एटले सामान्य हेतु संपदा जाणवी. ए जीवहिंसा उपजाववानो सामान्य हेतु गमनागमन बे. ___जीवहिंसाना विशेष हेतुरूप पटले विशेषपणे प्राण बीजादिक आक्रमणरूप ते पाणकमणे बीयकमणे, हरियकमणे, नसा ननिंग पाणग दगमट्टीमकमा संताणा संकमणे, ए चार पदनी am00r a ternantarwasna For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vaaaaaaaaaPow/D || चोथी इतरहेतु एटले विशेष हेतु संपदा जाणवी. जे सामान्यथी इतर ते विशेष होय; माटे वि| शेष हेतु एवं नाम जाणवू. 5 समस्त जीवना परितापरूप जीवविराधना संग्रहरूप ते जे मे जीवा विरहिया ए एक है || पदनी पांचमी संग्रह संपदा. 6 एप्रियादिक पांच जीवने देखामवारूप जीवनेद 563 प्रमुख कथनरूप एगिदिया बेइंदिया, तेइंदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया ए पांच पदनी बही जीव संपदा जाणवी. .ते जीवादिक नेदने परितापना विराधना रूप ते अनिहयाथी मामीने तस्त मिछामि मुक्कम लगें अगीयार पदनी सातमी विराधना संपदा जाणवी. प्रायश्चित्तविशोधनकरण रूप ते तस्सउत्तरी करणेणंथी मामीने गमि काउस्सगं खगें उ पदनी थामी प्रतिक्रमण-संपदा. 'ए नेदथकी. ए मांहे प्रथमनी पांच संपदा ते इरियावहिनी मूल संपदा जाणवी, अने पा BAND INS/ADMAAVAS/PS Da/RBoaaMBAIDAN owaaaaa sinin Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OTTO // 30 // बलनीत्रण संपदा ते इरियावहिनी चूलिकारूप जाणवी // 33 // हवे नमुनुणंनी प्रत्येक संपदाना पदनी संख्या तथा आदिपद कहे . सक्कथय-नमुथ्थुणंने विषे आइग-आइगराणं धम्म-धम्मदयाणं ति--प्रण संपया-संपदा पुरिसो-पुरिमुत्तमाणं अप्प-अप्पडिहय चउ-चार पण-पांच आइपया-प्रथमनां पद लोग-लोगुत्तमाणं जिण-जिणाणं तिपय-त्रण पदनी नमु-नमुथ्थुगं अभय-अभयदयाणं सव्वं-सव्वन्नूगं NiVisusaravasasaram/ avavaNESDaaraaro/aavases/8D/EDABG दुतिचउपणपणपणदुच-उतिपयसकत्थयसंपयाइपया // नमुआइगपुरिसोलो-गअभयधम्मपजिणसव्वं // 34 // u/amasarB/G/PDAAG // 30 // - शब्दार्थ-नमुत्थुणनी नवसंपदामा अनुक्रमे बे, त्रण, चार, पांच, पांच पांच, बे, चार अने त्रण एटला पदनी संख्या होयछे. तेमां दरेकर्नु आदि पद, नमुत्युणं, आइगराणं, पुरिसुत्तमाणं, लोगुत्तमाणं, अभयदयाणं, धम्मदयाणं, अपीडहयवरनाण, जिणाणं, सव्वनणं. सव्वदरिसिणं ए जाणवां. // 34 // For Personal Private Use Only www.janelibrary.org Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Haram mamm //mavasaava/anwarok विस्तारार्थः-पहेली बे पदनी, बीजीत्रण पदनी, त्रीजी चार पदनी, चाथी पांच पदनी, पाचमी पांच पदनी, बढी पांच पदनी, सातमी बे पदनी, श्राठमी चार पदनी श्रने नवमी त्रण पदनी ए नमुत्थुम्ने विषे संपदानां पद कह्यां, ते सर्व मली तेत्रीश जाणवां. . हवे नमुबुनी संपदानां आदिनां एटले पहेला धुरियांनां पद कहे . नमुचणं ए पहेली | संपदानुं प्रथम पद जाणवु, थाइगराणं ए बीजी संपदानुं प्रथम पद, पुरिसुत्तमाणं. ए.त्रीजी | संपदानुं प्रथम पद, लोंगुत्तमाणं ए चोथी संपदानुं प्रथम पद, अन्नयदयाएं ए पांचमी संपदार्नु प्रथम पद, धम्मदयाएं ए नही संपदानुं प्रथम पद, अप्पमिहयवरनाणदंसणधराणं ए सातमी संपदानुं प्रथम पद, जिणाणं जावयाणं ए बाग्मीसंपदार्नु प्रथम पद, अने सम्वन्नूणं सबदरिसिणं ए नवमी संपदानुं प्रथम पद.. हवे ए शक्रस्तवनी नव संपदाउँनां नाम कहे ... Deparineeran/santa/80/30/D P /are For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै० भाग तक जारी BODB/neouVaoamvareplacease/aNDANDARVeos थोअवसंपया-स्तोतय संपदा उवओग-उपयोग प योग हेतु संपदा | संपदा उह-ओघ संपदा | तद्धेऊ-तत् हेतु, उपयोग हेतु सरुषहेउ-स्वरूप हेतु संपदा | मुख्खे-मोक्ष संपदा | इयरहेऊ-विशेष हेतु . सविसे सुत्र उग-सविशेष उ- | नियसमफलय-निज समफलद थोअव्वसंपया उह-ईयरहेऊवओगतद्धेऊ॥ सविसेसुवउगसरूव-हेऊ नियसमफल मुखे // 35 // शब्दार्थ-स्तोतव्य संपदा, सामान्य हेतु संपदा, विशेष हेतु संपदा, उपयोग संपदा, तहेतु संपदा, सविशेषउपयोगहेतु संपदा, स्वरूपहेतुसंपदा, निजसमफलदसंपदा अने मोक्षसंपदा, ए नमुत्युगनी नव संपदानां नाम कया. // 35 / / विस्तारार्थः-श्रीअरिहंत नगवंत ते विवेकी जनोयें स्तववा योग्य ले एटला माटे न नुत्यु अरिहंताणं, नगवंताणं ए वे पदनी पहेली स्तोतव्य संपदा जाणवी. पडी ते स्तवधा योग्यतुं | सामान्य हेतु कहेवा माटे आगराणंथी मामीने सयंसंबुद्धाणं लगें त्रण पदनी बोजी उघ एटले | सामान्यहेतु संपदा जाणवी. पडी ए बीजी संपदाना अर्थने विशेषे दीपावे ते माटेसामान्यहेतुयी PANDHINDowanpramoDanemom/meanse Jain Education internation For Personal & Private Use Only www jainelibrydig Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BIOGRADHVIRMIDDOOGDRoome/RBANDAINVI इतरहेत ते विशेष हेतरूप त्रीजी संपदा जाणवी, पठी आद्य संपदाना अर्थने विशेषे दीपावे एटले सामान्य स्तवनानो उपयोग तेनुं कहे, ते चोथी उपयोग संपदा जाणवी. | पड़ी ए उपयोग संपदानाज अर्थने हेतुलनावें करी दीपावे ते पांचमी तत् हेतु संपदा जाणवी, अथवा उपयोग हेतु संपदा जाणवी, पछी एज उपयोग हेतु संपदाना अर्थ गुण दीपाववा निमित्तें अर्थ विशेषे जणावे एटले कारण सहित स्तववा योग्यतुं स्वरूप कहेवु ते ही सविशेष उपयोग हेतु संपदा जाणवी, पत्री ययार्य पोताना स्वरूपन हेतु प्रकटार्य देखावारूप सातमी स्वरूप हेतु संपदा जाणवी, तथा पोताने समान फलदायक प्रकटार्थ रूप एटले स्तवना करनारने आपतुल्य करे एवी परम फलदायिनी एटले पोतानी समान परने फलनुं करण एटला माटे श्रापमा निजसमफलदनामे संपदा जाणवी, तथा मोद स्वरूप प्रकटार्थ रूप मोक्षपदन स्वरूप, एटला माटे नवमी मोद संपदा जाणवी. जे माटे कयु डे के " सवन्नूआई पढमो, बी सिवमयल माइ लावो // तन नमोजिणाणं जिय जयाणं तन्निदिहो // 1 // इत्यावश्यके // 35 // कanuarAmADVERam/aagaawaranaDARET/aula For Personal Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HTO Ma/DDADang चै०भा०. हवे नमोत्थुणंना अक्षरादिकनी एकंदर सरवाले संख्या कहे जे. दोसग नऊआ-बसें ने सत्ताणु पयतित्तीस-पद तेत्रीस / अठ्ठ संपय-आठ संपदा दुसय-बसें / वणा-वर्ण, अक्षर सकथए-शक्रस्तव. तिचत्तपय-तेंतालीस पद गुणतीप्ता-ओगणत्रीस नवसंपय-नव संपदा . . चेइयथय-चैत्य स्तक दोसगनऊआ वण्णा, नवसंपय पय तित्तीस सक्कथए। चेइयथयसंपय, तिचत्तपय वण्णदुसयगुणतीसा // 36 // शब्दार्थ-नमुत्थुणमा सर्व मली बसोने सता' अक्षर, नव संपदाअने तेत्रीश पद जाणवां. वली अरिहंत चैइयाणंमां सर्व मली आठ संपदा, तालीश पद अने बसोने ओगणत्रीश अक्षर जाणवा. // 36 // विस्तारार्थः-शस्तव जे नमत्थणं तेने विषे सर्व मलीने बशेने सत्ताणु वर्ण जाणवा अने || नव संपदा जाणवी, तथा पदं तेत्रीस जाणवां. हवे चैत्यस्तव एटले अरिहंत चेश्याणंने विष सर्व मली आठ संपदा जाणवी अने तेंता ranaaaaaaaavane/OS9/09/ /aaDODARDamas400/ h33 Rowatavaasaraavan DNDvaas For Personal & Private se Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Barwaavatsanst/30002SADVEMBVPREVEAD/as | लीश पद जाणवां, तथा वर्ण एटले अक्षर ते बरों ने गणत्रीश जाणवा // 36 // हवे चैत्यस्तव जे अरिहंत चेश्याणं तेनी प्रत्येक संपदाना पदनुं मान तथा प्रत्येक संपदाना आदिपद एटले धुरियां कहे जे. चउ-चार पया-पद मुहुम-मुहुमेहिं अंगसंचालेहि छ-छ छप्पय-छ पदनी अरिहं-अरिहंत चेइयाणं | एव-एवमाइहें आगारेहिं सग-सात चिइ-चैत्य स्तवनी वंदण-वंदण बत्तियाए जाव-जाव अरिहंताणं नव-नव संपया-संपदानां सिद्धा-सिद्धाए ताव-ताबकायं तिय-प्रण पढमा-प्रथमनां | अन्न-अन्नथ्य उससिएणं / दुछ सग नव तिय छ चउ, छप्पय चिइ संपया पया पढमा॥ अरिहं वंदण सिद्धा, अन्न सुहुम एव जा ताव // 37 // 2//Baa/DD/ABDe/6Vre/RDABE/areaN sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Romwomeopom/DD/ M शब्दार्थ-आठ संपदामा अनुक्रमे पहेलेथी बे, छ, सात, नव, त्रण, छ, चार अने छ एटलां पदो होय छे. तेमज तेनां | अरिहंत चेइयागं, वंदग वत्तियाए, सद्धाए, अन्नत्य उसणिएगं, सुहुमेहिं अंगमंचालेहि, एवपाइएहिं, जाव अरिहंताणं अने | तावकायं. ए नव आदि पदो जाणवां. // 37 // - विस्तारार्थः-पहेली बे पदनी, बोजी उ पदनी, त्रीजी सात पदनी, चोथी नव पदनी, पां| चमी त्रण पदनी, बही न पदनी, सातमी चार पदनी, आठमी ब पदनी जाणवी. ___ हवे ए चैत्यस्तवनी प्रत्येक संपदानां प्रथमना एटले आदिनां धुरीयांनां पद कहे . तिहां | अरिहंत चेश्याणं ए पहेली संपदानुं प्रथम पद, वंदणवतियार ए बीजो संप दानुं प्रथम पद, सि द्धाए ए त्रीजी संपदानुं प्रथम पद, अननससिएणं ए चोथो संपदानुं प्रयम पद, सुहुमहिं अं| गसंचालाह ए पांचमी संपंदानुं प्रथम पद, एवमाएहिं आगारहिं ए ही संपदानुं प्रथम पद, जाव अरिहंताणं ए सातमी संपदानुं प्रथम पद, तावकार्य ए बाउमी संपदानुं प्रथम पद॥३७॥ हवे ए चैत्यस्तवनी संपदानां नाम कहे . wwwomaavaromapadiya.madarase/taaran o(r)(r)/06a 33 // Jan Education international For Personal & Private Use Only www jainelibrydig Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VarianaPER/Pawantwaa/a/SER/B/RBana अभ्भुवगमो-अभ्युपगम / इग-एक वचनांत आगार | आगंतुग आगारा-आगंतुका वधी संपदा निमित्तं-निमित्त बहु वयंत आगारा-बहु व- गार संपदा सरुव-स्वरूप हेउ-हेतु चनांत आगार / ऊस्सगावहि-कायोत्सर्गा / अठ्ठ-आठ अप्भुवगमो निमित्तं, हेउ इग बहु वयंत आगारा // आगंतुग आगारा, उस्सग्गावहि सरूवठ् // 38 // ' शब्दार्थ-अभ्युपगम संपदा, निमित्त संपदा, हेतु संपदा, एक वचनांत आगार संपदा, बहु वचनांत आगार संपदा, आगंतुक आगार संपदा, कायोत्सर्गावधि संपदा अने स्वरूप संपदा ए अरिहंत चेइयाणंनी आठ संपदाओ जाणवी. // 38 // | विस्तारार्थः-जे अंगीकार करवं तेने अच्युपगम कही माटे यहां अरिहंत वांदवानी अंगीकाररूप प्रथम अच्युपगम संपदा जाणवी, तथा काउस्तग्ग कया निमित्तें करी करीये? ते | बीजी निमित्त संपदा जाणवी. तथा श्रद्धादिक हेतु वधते करी करीए केमके श्रद्धादिक कारण manom/aaraamamausamparametes For Personal Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा वि०भा० 34 // Mamaeemama/aom/wa00NDAGES/NG ED | विना निष्फल थाय माटें त्रीजी हेतु संपदा जाणवी. तथा आगार राख्या विना निरतिचारपणे | काउस्सग्ग न थाय, एटला माटें आगार राखवानी अन्नबससीएणं इत्यादि उवासादिकने क| रखे करी चाथी एकवचनांत आगार संपदा जाणवी. तथा "सुहुमहिं अंगसंचालोहिं " एटलेन / है। सूक्ष्म नेत्रादिक फुरकवादि मात्र आदिकें करी पांचमी बहु वचनांत आगार संपदा जाणवी. || श्हां आगारा पद बेहुने जोम, तथा एक सहज बीजो अल्पबाहुल्य एटले एवमाश्एदि एणे, है करी अग्निस्पर्श, पंचेंप्रिय बेदन, चौरादिन्नय, सर्पादि, कदाचित् आवी मले तो इत्यादि आगार || कह्यां, माटें बहु हेतु आगंतुक नावरूप अथवा अग्न्यादिक उपघातरूप बही आगंतुकागार सं-|| | पदा जाणवी. तथा जाव अरिहंताणं इत्यादिक काउस्सग्गनों अवधि मर्यादारूप जे संपदा, ते || सातमी कायोत्सर्गावधि संपदा जाणवी, तथा कायोत्सर्गर्नु यथावस्थारूप स्वरूप ते आठमी स्वरूप संपदा जाणवी. ए आठ संपदानां नाम कह्यां // 30 // हवे नामस्तव एटले लोगस्सादिकने विषे पद आदिकनी संख्यादिक कहे . Devarsmaratememwaleval // 34 // nin Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M विषे MDAaogaoककककक/g/Basa नामयाइसु-नामस्तवादिकने पयसम-पद समान समान | बीस-वीस दोसह-बसेंने साठ अडवीस-अव्यावीस कमा-अनुक्रमें दुसय सोल-बसेंने सोल . | संपय-संपदा सील-सोल | अदुरुत्त बीजीवार अणउच्चर्या | अनउअसयं-एकसोन अठाणु नामथयाइसु संपय, पयसम अडवीस सोल वीस कमा॥ अदुरुत्त वण्ण दोसठ्ठ, दुसय सोलह नउअ सयं // 39 // शब्दार्थ-नामस्तवादिकने विषे पद समान अठ्ठावीस, सोल अने वीस अनुक्रमे संपदा जाणवी. तेमन बीजीवार नहि Sil उचरेला अक्षरो बसो साठ, बसो सोल अने एकसो अठाणुं अनुक्रमे जाणवा. // 39 // ... विस्तारार्थः-नामस्तवादिकने विषे एटले नामस्तव लोगरस तथा श्रादिशब्दथकी पुरकर|| वरदी ते श्रुतस्तव जाणवू अने सिद्धस्तव ते सिद्धाणं बुद्धाणं जाणवू. ए त्रण सूत्रने विषे पद स|| मान संपदा जाणवी. एटसे जेटखां ए सूत्रोनां पद , तेटलां विशामानां स्थानक जाणवां. तिहां || लोगस्सनां पद पण अष्ठावीश अने संपदा पण अहावीश जाणवी. अने पुरस्करवरदीनां पद पण सोल - anwaeeMD/Om/oD9Apsamana For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० चै०मा० अने संपदा पण सोल जाणवी. तथा सिद्धाणं बुद्धाणंना पद पण वीश अने संपदा पणवीश जाणवी. ||8| // 35 // | ए अनुक्रमें संपदा तथा पद कहेवां, तथा लोगस्सने विषे बीजीवार अणउच्चरया एवा, बशेने शाप |||| | वर्ण एटले अक्षर जाणवा. तथा पुरकरवरदीना सुअस्स नगव पर्यंत बशें ने शोल अक्षर जा| णवा, अने सिद्धाणं बुद्धाणंना करेमि कालस्सग्गं पर्यंत एकशो ने अठाणुं अदर जाणवा // 3 // पणिहाण-प्रणिधान नि-त्रण गुणतीस-ओगणत्रीस | इगतीस-एकत्रीस दुवनसयं-एकसोने वाचन चवीस-चोवीश अठवीसा-अठ्यावीस बार-बार कमेण-अनुक्रमे सग-सात तित्तीसा-तेत्रीश चउतीस-चोत्रीस अक्षर / गुरुवण्णा-गुरु वर्ण पणिहाण दुवन्नसयं, कमेण सगति चउवीस तित्तीसा॥ गुणतीस अठवीसा, चउतीसिगतीस बार गुरुवण्णा // 40 // 35 // दारं // ७-ए-१० // ABOND/app/B009/04 NEVEMBERaarapusdovosonam G abarB/ ate/INDIM /push inin Education international For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ABE/amaravasaeosapanavaraaya शब्दार्थ-मणिधान सूत्रमा एकसो पावन अक्षरो जाणवा. हवे नवकारमा सात, खमासमणमा त्रग, इरियावहिमा चोवीस नमुत्थुणमा तेत्रीस, अरिहंत चेइयाणंमा ओगणत्रीस, लोगस्सयां अष्टावीश, पुरुखरवरमा चोत्रीस, सिद्धार्णमां एकश्रीस अने प्रणिधान त्रणमां बार गुरु अक्षर जाणवा.॥ 40 // विस्तारार्थः-हवे जावंतिचेश्या तथा जावंत केविसाह अने सेवणा श्रानान वालों ज. | यवीयराय ए त्रण प्रणिधान सूत्र , तेने विषे एकशो ने बावन अदर जाणवा. | हवे अनुक्रमें संयोगीया गुरु एटले नारे अदर सर्व सूत्रांना कहे जे. तिहां प्रयम नवकारने | | विषे द्धा, पा, ब, हू, का, व, प्प, ए सात अदर गुरु एटले नारे जाणवा. तथा खमासमणने विषे छा, जा, छ, ए त्रण अदर गुरु जाणवा. तथा इरियावहिने विषे || बा, क, क, क, क, ति, हि, क, ति, टि, द, स्स, छा, क, स्त, त्त, लि, त्त, ली, म्म, ग्घा, हा, || स्त, ग्गं, ए चोवीश अदर गुरु जाणवा. . तथा नमुत्थुणंने विषे त्थु, ब, द्धा, त्त, लि, त्त, जो, कु, ग्ग, म्म, म्म, म्म, म्म, म्म, क, DEVanavaimavasaaraaaaaaaaaa00amayaBABA For Personal Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 36 // MeavavaniaDD/Docom/s/TROP/BmwomaaaaRABINE ही, प्प, ह, न्ना, दा, ता, व, न्नु, ब, के, बा, ति, द्वि, त्ता, द्वा, स्सं, ह, बे, ए सेत्रीश अक्षर | ०भा० गुरु जाणवा. केटलाएक उमाणं पदना बकारने गुरु कहेता नथी अने केटलाएक दृछ, म्म, ए त्रणने गुरु गणीने तेत्रीश गुरु बदर करे. तिहां चूलिकानी गाथा गुरु नथी गणता. इत्यादिक बहु मतांतर बे, पण शहां तो संप्रदायागत एक टकार नारे गणीयें छैयें.. .. . तथा अरिहंत चश्याणं रूप चैत्यस्तवने विषे स्स, गं. त्ति, त्ति, का. त्ति. म्मा. त्ति. त्ति. ग्ग, त्ति, द्धा, पे, ह, स्स, ग, न, ब, , गे, त, छा, 6i, ग्गो, जि, स्स, ग्गो, का, प्पा, ए जंगणत्रीश अदर गुरु डे. तथा लोगस्सरूप नामस्तवने विषे स्स, जो, म्म, ब, त्त, स्सं, प, प्प, फ, ऊ, ऊं, म्म, लिं, |व, 5, द्ध, छ, ति, स्स, त्त, का, ग, त्त, म्म, चे द्धा, द्धि, व, ए अहावीश अक्षर गुरु जाणवा. || तथा पुरस्करवरदीरूप श्रुत स्तवने विषे स्क, ढे, म्भा, धं, रस, स्स, स्स, प्फो, स्स, स्स, ला, स्क, रस, चि, रस, म्म, रस, प्र, द्धे, न; न्न, रस; प्न; चि; 8; 16; क; चा; म्मो; ट; म्मु; त्त; ट; ooooooo/aucearea/aada For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ permanasenavedowwwwcomaavaomwapdoewapMAS |स्स; ए चोत्रीश अदर गुरु.जाणवा..... . तथा सिद्धाएं बुद्धारूप सिद्ध स्तवने विषे द्धा, द्धा, ग्ग, छ, डा, का, का, स्स, छ, स्स, किं, स्का. स्स. म्म..हि. हत्ता , ह, बी, हिहा, द्धा, चिं. च, म्म.हि, हि, स्स, ग्गं, ए एकत्रीश अकर गुरु ...... ___तथा प्रणिधान त्रिकने विषे टे; वा; ; वे, ग्गा; छ; द्धि; छ; चा; छ; व; ए बार गुरुवर्ण ए|टले नारे अदर जाणवा // | , एटले वर्ण संख्या, पद संख्या अने संपदा मली त्रण द्वार कह्यां, तेनी साथे पूर्वे कहेला || सात द्वार मेलवतां मूल दश द्वार कहेवाणां, अने उत्तर नेद 10 थया. ए सूत्रांना अर्थ सर्व |श्री आवश्यक नियुक्तिनी वृत्तिथी जाणजो. श्हां घणो ग्रंथ वधे माटे अर्थ लख्यो नथी॥ 40 // PARVANDAmarvasanaposdome /eGo/Acto/ twaespe For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चे चभ 297 229 ranavimuavitawARVAINMEVARDARDARVASURamautistia ए बाठमो. नवमो अने दशमो मलीत्रण द्वारना यंत्रनी स्थापना. सूत्रोनां नाम. पदसंख्या. संपदा सर्वाकर. | गुरु थ लघुथ नवकार. पंचमंगलसुअ० इच्छामिखमासमण प्रणिपातत्योभमूत्र. इरियावहि. पडिक्कमणासूत्र. नमोत्थुणं. शक्रस्तव. अरिहंतचेइयाणं. चैत्यस्तवाध्ययन. लोगस्स. नामस्तव. पुख्खरवरदीवडे. श्रुतस्तव. सिद्धाणबुद्धाणं. सिद्धस्तव. जावंतिचेझ्याई. प्रणिधानत्रिक. अनुक्रम. जावंतकेविसाहु. जयवीयराय. | 152 12 / 140 सर्वे मली सरवाले ..... .... 11 ए 1647 201 1446 VAREDDREAM/BVmDosarvamaABAtEssage // 37 // For Personal Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AWONDoup/taru/ 0/04/AV/AIDERARMWARED/900/ इरियावहिनीसंपदा.संपदानांपद-धुरियानांपद. | चत्यस्तवनीसंपदा.संपदानां पद धुरियानां पद. 1 अभ्युपगम संपदा. 5 श्छामि. 1 अन्युपगमसंपदा. 2 अरिहंतचेश्याणं. 2 निमित्त संपदा. 1 रियावहियाए. | निमित्तसंपदा. 6 वंदणवत्तियाए. 3 उघसंपदा. 1 गमणागमणे. 3 हेतुसंपदा. सिद्धाए. 4 इतरहेतुसंपदा. | एकवचनांतसंपदा. ए अननससीएणं. ५-संग्रहसंपदा. 1 जेमेजीवाविराहिया 5 बहुवचनांतसंपदा. 3 सुहुमेहिंअंगसंचालहि / 6 जीवसंपदा. 5 एगिदिया. |6 आगंतुगागारसंपदा. 6 एवमाश्एहिंथागारेहिं 7 विराधनासंपदा. 11 अनिया. | कायोत्सर्गावधिसंपदा. जावअरिहंताणं. पमिकमणसंपदा. 6 तस्स उत्तरि. स्वरूपसंपदा. 6 तावकायं. Pappup/deoaisesdemo/AMDEVADEEDEDiarana in Education national For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्रस्तवनी संपदा. संपदानां पद. धुरियांनां पद. शक्रस्तवनी संपदा. संपदानां पद. धुरियांनां पद. | iVANUARVaiserie9Duistiamge/Anaspapersonawane 1 स्तोतव्य संपदा. 2 नमोबुणं. 6 सविशेषोपयोगसंपदा. 5 धम्मदेसियाणं. 2 उघ संपदा. 3 आगराणं. 4 पुरिसुत्तमाएं. स्वरूपहेतुसंपदा. 3 इतरहेतुसंपदा. 5 अप्पमिहयवरण 4 उपयोगसंपदा. 5 लोगुत्तमाणं. | निजसमफलदसंपदा. 4 सवन्नूणं० 5 तद्धेतुसंपदा. 5 अन्नयदयाणं. ए मोक्षसंपदा. 3 जिणाएंजावयाणं. . हवे अगीयारमुं पांच दंगकनुं दार अने बारमुं पांच दंम्कने विषे देव वांदवाना जे बार अधिकार बे, तेनुं हार कहे . पणदंडा-पांचदंडक सुअ-श्रुतस्तव दो-बे अहिगारा-अधिकार सक्कथय शक्रस्तव सिद्धयय-सिद्धस्तव इग-एक बारस-बार चेइअ-चत्यस्तव नाम-नामस्तर | इथ्य-ए पांच दंडकने विषे | पंचय-पांच कमेण-अनुक्रमें PAGauBARGopmeVIEDAGOdeatsas/GDS e/AD/EY // 38 // inin Education international For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Viane - Repairavaate/te पणदंडा सकत्थय, चेइअ नामसुअ सिद्धत्थयइत्थ॥तारं 11 // दो इग दोदो पंच य, अहिगारा बारस कमेण // 41 // शब्दार्थ-शक्रस्तव, चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव अने सिद्धस्तव ए पांच दंडक छे. तेमां बे, एक, बे, बे अने पांच अनुक्रमे सर्व मलीने बार अधिकार छे. // 41 // विस्तारार्थः-पांच दंगकनां नाम कहे . तेमां पहेद्यं नमोत्थुणंने शक्रस्तव दंगक कहिये. बोजु अरिहंत चेश्याणंने चैत्यस्तव दंगक कहिये. त्रीजुं लोगस्सने नाम स्तव दंगक कहिये. चोथु रवरदीने श्रुतस्तव दंगक कहियें. पांच, सिद्धाणंबद्धाणंने सिद्धस्तव दंगक कहियें. ए पांच दंगकना नामर्नु अगीयारमुं धार कडं. सर्व मसी उत्तर बोल रए७५ थया // हवे ए पांच दमकने | विषे देव वांदवाना बार अधिकार बे; तेमनुं बारमुं द्वार कहे . तिहां प्रथम शक्रस्तब मध्ये बे अधिकार तथा बीजा अरिहंतचेश्याणरूप चैत्य स्तवमध्ये aveeermudesaweshwesteDecemRRER/G/06/ - goatosavetasis/aaaaavenuevarwa Jan Education International For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ चै०भा० चै०भा० AGanapancer // 39 // villevarayavatmavimetANDOMVeap/item/oneiveterievanage/IRG/easee / एक अधिकार जे; तथा रोजा नामस्तव एटले लोगस्सने विषे बे अधिकार बे; तथा चोथा श्रुतस्तव मॅध्ये बे अधिकार जे; पांचमा सिद्धस्तव मध्ये पांच अधिकार ले. ए अनुक्रमें कहेवा. मली चैत्यवंदनने विषे बार अधिकारो ने // 4 // ____ हवे ए बार अधिकारनां धुरियानां पद एटले आद्यनां पद कहे . नमु-नमुथ्थुणं सन्ध-सब्बलोए जो देवा-जो देवाणवि देवो वेभावच्चग-वेभावच गराणं जेइअ-जे अइया सिद्धा पुख्ख-पुरुखरवरदि उज्झि--उज्झित सेलसिहरे अहिगार-अधिकार अरिहं-अरिहंत चेइयाणं तम-तमतिमिर चना-चत्तारि अट्ठ पढम पया-पहेलो पद लोग-लोगस्स | सिद्ध-सिद्धाणं नमु जेइअ अरिहं, लोग सब पुख्ख तम सिद्ध जोदेवा // उज्झि चत्ता वेआ, वच्चग अहिगार पढमपया॥ 42 // /DarsanamaATEGO/AROWININ Jan Education internation For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vaneousanamavasaram. VIATC/navsa/ARave शब्दार्थ-नमुत्थुणं, जे अहा, अरिहंत चेइयाणं, लोगस्त, सबलोए, पुरूखरवर, तपतिमिर, सिद्धाणं बुद्धाणं, जो | देवा, उशित, चत्तारि अह, वेयावच गराणं, ए बार अधिकारना प्रथम पद जाणवां // 42 // विस्तारार्थः-नमोत्थणं ए पहेला अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू; जेथ अईया सिद्धा ए बीजा अधिकारनुं प्रथमपद जाणवं. तथा अरिहंत चेश्याएं एत्रीजा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवं, लोगस्स उङोयगरे ए चोथा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू. सबलोए अरिहंत चेश्याणं ए पांचमा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू; पुरकरवरदीव ए बट्टा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू; तमतिमिर पमल विज्ञसणस्स ए सातमा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू, सिद्धाणं बुद्धाणं ए आठमा अधिकार- प्रथम पद जाणवू, जो देवाणविदेवो ए नवमा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू, उचिंत सेल सिहरे ए दशमा अधिकार- प्रथम पद जाणवु चत्तारि अट्ठ दस दोय, एअगीयारमा अधिकारर्नु प्रथम पद जाणवं; वेयावच्चगराणं ए बारमा अधिकारनं प्रथम पद जाणवू; ए बार अधिकारोना पहेलां पद एटले आदिनां पद धुरियां जाणवां // 45 // weemaanavareADAAIORAJanamaARDARNEVIEWore/as Jain Education international For Personal & Private Use Only www jainelibrydig Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० // 40 // asnawi/AAMDARAGAVADVAontestant/G/m ए बार अधिकार मांहेला कया अधिकारें कोने वांदवा ? ते कहे . पढम-पेहेला ... भावजिणे-भाव जिनने | इगचेइय-एक चैत्यना | चउध्यमि-चोथा अहिगारे-अधिकारने विषे . बीयएउ-बीजा अधिकारमा ठवणजिणे-स्थापना जिनने नामजिणे-नामजिनने वंदे-वांदुं छ | दवजिणे-द्रव्य जिनने / तइय-त्रीजा पढम अहिगारे वंदे. भावजिणे बीयएउ दवजिणे // इगचेइय ठवणजिणे, तइय चउत्थंमि नामजिणे // 43 // शब्दार्थ-प्रथम पदना अधिकारमा भावजिनने, बीजा अधिकारमा द्रव्यजिनने, जीजा अधिकारमा एक चैत्य स्थापना जिनने अने चोथा अधिकारमा नामजिनने वांदु छ. // 43 // विस्तारार्थः-नमुछुपंथी मामीने जियत्नयाणं पर्यंत पहेला अधिकारने विषे जे तीर्थकर थया || | केवलझान पाम्या . एवा नावजिनने एटले नावतीर्थकरने हुँ वांडं बु, तथा जे अश्रा सिद्धा ए गाथायें बीजो अधिकार , तेने विषे वली जे आगल थाशे एवा व्यजिनने हुँ वांदुं बुं. ए imaanwa/AAGAMAnmotsavocDanemaDeoecompose // 40 // in Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAREERaavanivaareePapayaawwaliNVERNMyIme बे. अधिकार नमुत्थुणना जाणवा. तथा त्रीजां अधिकारे एक चैत्यना स्थापनाजिनने हूं वांदं वं, एटले एक देरासर मांहेली सर्व प्रतिमाने वंदन करवू ए अरिहंत चेश्याणंने पाठे जाणवो. ए सूत्रांमां एकज अधिकार . तथा लोगस्त उकोयगरे रूप चोथा अधिकारने विषे श्री षन्नादिक नाम जिनने हुं वां, ढुं॥४३॥ तिहुअण-त्रण भुवन / विषे / | सत्तमए-सातमा अधिकारमा | सव्व-सर्व हवणजिणे-स्थापना जिन | विहरमाण-विहरमाण / | सुयनाणं-श्री श्रुतज्ञान मत्य सिद्ध-सिद्धनी पुण-वली जिण-जिन मत्ये . | अट्ठमए-आठमामां थुइ-स्तुति पंचमए-पांचमा अधिकारने छठे-छहा varnamaARAMMRATANDONaware/a/amvariseasesever तिहुअणवण जिणे पुण, पंचमए विहरमाण जिणछठे॥ सत्तमए सुयनाणं, अठमए सब्ब सिद्ध थुई // 44 // sinin Education national For Personal & Private Use Only www jane yg Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० AMBABAMBAHANIVAARE/ATINDotoi/50/ शब्दार्थ-वली पांचना अधिकारमा ग भुवनना स्थापना जिसने, छहा अधिकारमा विचरता जिनने, सातमा अधिकारमा श्रुतज्ञानने अने आठमा अधिकारमा सर्व सिद्धनी स्तुति जाणवी. // 44 // विस्तारार्थः-वली सवलोए अरिहंतचेश्याएंरूप पांचमा अधिकारने विषे स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल रूप त्रण जुवनने वषे जे शाश्वता अने अशाश्वता एवा स्थापना जिन जे ते प्रत्यें हूं वांदुं. तथा पुरकरवरदीवमेनी पहेली गाथा रूप बहा अधिकारने विषे अढी द्वीपमध्ये श्रीसीमंधर स्वाम्यादि विचरता नाव जिनप्रत्ये वां, बु. तथा तमतिमिरपाल इहांथी मामीने सुअस्सलगव पर्यंत सातमा अधिकारने विषे श्रीश्रुतज्ञानप्रत्ये हुं वांदु. तथा सिद्धाणं बुद्धाणं ए गाथा-| रूप थाउमा अधिकारने विषे तीर्थ अतीर्थादिक पन्नर नेदवाला एवा सर्व सिद्धनी स्तुति जाणवी // 4 // तिथ्याहिब-तीर्थना अधिपति दसमे-दसमा अबायाइ अष्टापदादिकनेविषे सुर-देवताने बीर-वीर भगवाननी अ-वली इगदिसि-अगीआरमा समरणा-स्मरण करवा थुइ-स्तुति उज्झयंत-गीरनार पर्वत मुदिहि-सम्यदृष्टी चरिमे-छेल्ला बारमा नवमे-नवमा | थुइ-स्तुति a/ I/AAAID/ // 42 // MBASI/AAI www.by og For Personal & Private Use Only Jain Education international Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mwanada d a तित्थाहिव वीरथुइ, नवमे दसमे य उज्झयंतथुई // अठ्ठवायाइ इगदिसि, सुदिहि सुरसमणा चरिमे // 45 // शब्दार्थ-नवमा अधिकारमा तीर्थपति श्री वीरप्रभुनी स्तुति अने दशमा अधिकारमा रेवताचलनी स्तुति जाणवी. तथा अगीयारमा अधिकारमा अष्टापदादिकनी अने छेला अधिकारमा सुदृष्टि देवताना स्मरणरूप स्तुति जाणवी. // 4 // विस्तारार्थः-तथा जोदेवाणविदेवो भने कोविनमकारो ए बे गाथा रूप नवमा अधिकारने विषे आ वर्तमान तीर्थना अधिपति गकुर जे श्री वीरनगवान् तेनी स्तुति जाणवी. तथा जतिसेलसिहरे ए गाथा रूप दशमा अधिकारने विषे वली श्रीरैवतकाचल पर्वतने विषे श्रीनेमिनाथ नगवाननी स्तुति जाणवी. तथा " चत्तारि अहदस दोय वंदिया” ए गाथा रूप अगी | यारमा अधिकारने विषे अष्टपादादिकने विषे श्रीनरतेश्वरें करावेली चोवीश जिन प्रतिमानी स्तुति जाणवी. तथा वेयावच्चगराणं ए गाथारूपलेला बारमा अधिकारने विषेसम्यग्दृष्टि देवताने RAPranamaAVAG anesamayanavinaceav/savete / / inin Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .भा. चै०भा० // 42 // VINN स्मारूप स्तुति जाणवी // 45 // था ठेकाणे अगीयारमा अधिकारने विषे चत्तारिश्रहदस इत्यादि गाथामां घणा प्रकारे देव वांद्याचे ते मांडेला केटला एक इहां लखीयें .यें. संन्नवादिक चारजिन दक्षिण दिशें, तथा सुपादिक आठ जिन पश्चिम दिशे, तथा धर्मादि दशजिन उत्तरदिशे, तथा श्रीषन अने अ. जित ए बे जिन पूर्व दिशे. एवं चोवीश जिन वांद्या , तथा बीजे अर्थे प्रथमना चारने आठ गुणा करीये तेवार बत्रीश थाय. अने वचला दशने वे गुणा करिये, त्यारे वीश थाय. ए बे यांक | मेलवीये तेवारें बावन थाय, ते बावन चैत्य, नंदीश्वरही बे, तेने वांद्या बे. तथा त्रीजे अर्थे गंमया ने वैरी जेणे एवा अहदस एटले अढार अने बे पाबला मेलवीयें त्यारे वीश तीर्थंकर थाय ते श्रीसमेतशिखरे सिद्ध थया तेने वांद्या. अथवा विचरता जिन उत्कृष्ट कालें एक समये जन्मथी वीश होय तेमने. वांद्या.' _ तथा चोथे अर्थे आमने दश अढार थाय, तेनी साथें वीशनो चोथो नाग पांच थाय ते मे Pawaapaswandeydouwwdodo/onweatrapaGRAPaaaaeesaa/Reewan / // 42 // WANI For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पाया. potowweacepacardaavartootouetoodiaNP लवीयें, तेवारें त्रेवीश थया. ते एक श्रीनेमीश्वर विना वीश जिन श्रीशत्रुजये समवसरयाने, माटें तेने वांद्या. पांचमे अर्थे दशने पार गुणा करीये, तेवारें एंशी थाय, तेने बमणा करतां एकशोने साउ थाय, ते उत्कृष्टकालें पांच महाविदेहें विचरे, तेने वांद्या. के अर्थे श्राप अने दश मली अढार थाय, तेने चार गुणा करतां बहोतेर थाय. ए त्रैका- | लिक त्रण चोवीशीनरतादिक द्वनी वांदी. ___ सातमे अर्थे चारने श्राप युक्त करीयें, तेवारें बार थाय तेने दश गुणा करीयें, तेवारें एकशोने वीश थाय, तेने बमणा करता बशें ने चालीश थाय ते नरतादिक दश क्षेत्रनी दश चोवीशी वांदी. - आग्मे अर्थे मूल चार , तथा वली आठ ने आठ गुणा करतां चोस थाय, तथा दसने ||| दस गुणा करतां एकशो थाय, तेनी साथें पागला बे मेलवतां 170 जिन थाय. ते उत्कृष्ट कालें विचरता ।जनने वांद्या. VsaVANGMANDopanasvandanasamadsecrease For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० // 43 // Ne/0BATANTRIANDIGe/ चै०भा० DP/IAS/ नवमे अर्थे अनुत्तर, अवेयक, विमानवासी अने ज्योतिषी ए चार स्थानक ऊर्ध्वलोके ले तिहांनां चैत्य तथा आठ व्यंतरनिकाय, दशनवनपति, ए अधोलोकनां चैत्य तथा मनुष्यलोकमां तो शाश्वती अने अशाश्वती प्रतिमा ए त्रण लोकनां चैत्य वांद्यां. एवी रीते ए गाथा मध्ये सर्व तीर्थवंदना लक्षण अर्थ घणा , ते सर्व वसुदेवहिंग प्रमुख ग्रंथोथी जो लेवा. अहींयां विस्तार घणो थाय माटे लख्या नथी॥४५॥ नव- नव ल लिअविथ्थरा-ललित विस्तरा| तिण्णि-त्रण दसमो-सदमो अहिगारा-अधिकार वित्तिआइ-वृत्ति आदिकना | सुयपरंपरया-श्रुतनी परंपराथी| इगारसमो-अगीआरमो अणुसारा-अनुसारे . --- | बीयउ-चीजो | आवस्सय-आवश्यकनी नव अहिगारा इह ललि-अवित्थरा वित्तिआइ अणुसारा॥ तिण्णि सुयपरंपरया, बीयउ दसमो इगारसमो // 46 // AutDARDAMBAAD/AAMVAADAARADATANDARVARDARDAN D/08/RSD/MARATDAEEV // 43 // For Personal Private Lise Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaAMERA/AAVAILAB शब्दार्थ-ए बार अधिकारमा १-३-४-५-६-७-८-९-१२-ए नव अधिकार ललित विस्तरा नामनी भाष्यनी वृत्ति आदिना अनुसार जाणवा अने 2-10-11, ए त्रग श्रुतनी परंपरायी जाणवा. // 46 // __ विस्तारार्थः-ए वार अधिकारमाथी पहेलो, त्रीजो, चोथो, पांचमो, बहो, सातमो, श्राठमो, नवमो, अने बारमो, ए नव अधिकार ते ललितविस्तरा नामें नाष्यनी वृत्ति आदिकना अनुसार थकी जाणवा. अने बीजो अधिकार, जेथ अश्या सिद्धा तथा दशमो अधिकार उकिंतसेल ए गाथोक्त तथा अगीयारमो अधिकार चत्तारि अठ्ठ दस ए गाथोक्त एटले जेथ अईया, उद्यंत अने चत्तारि, ए त्रण अधिकार, ते श्रुतनी परंपराथो एटले जेम सिद्धांतनुं व्याख्यान दे, तेम तथा गीतार्थ संप्रदायथी जाणवा // 46 // चुण्णिए-चूर्णिने विषे / सेसया-शेष उज्झताइवि-उजितादिक पण सुयमया-श्रुतमय जाणवा जं-जेम जहिच्छाए-यथेच्छाए अहिगारा-अधिकारो चेव-निश्चे भणियं-कडं छे . | तेणं-ते कारण माटे navimumative/ OJaa/Am/teace/sG/tamuna Jan Education international For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० // 44 // आवस्सय चुण्णीए, जं भणियं सेसया जहिच्छाए॥ तेणं उज्झंताइवि, अहिगारा सुयमया चेव // 47 // Saptasareasai शब्दार्थ....जेम आवश्यक मूत्रनी चूर्गीने विवे कह्यु छे ते उझितादि शेष अधिकार इच्छा प्रमाणे जाणवा. ते कारण माटे उज्झित सेल इत्यादिक गाथाथी पण ते सर्व अधिकार निश्चे श्रुतमय जाणवा // 47 // विस्तारार्थः-जेम यावश्यक सूत्रनी चीने विषे तथा प्रतिक्रमण चूर्णीमध्ये का जे जचिंतादिक शेष अधिकार ते यथेछायें जाणवा. ते कारण माटें ए उद्यतसेलसिहरे इत्यादिक गाथाये पण जे अधिकारो ते सर्व श्रुतमय जाणवा. चकार पादपूर्णार्थ डे अने एव शब्द निश्चय वाचक // 47 // . बीओ-बीजो व निओ-वर्णव्यो छे सक्कथ्थयंते शक्रस्तवना अंते | वांदवाना अवसरें सुयथ्थयाइ-श्रुतस्तवादि | तर्हि-तेज पदिओ-को छ पयडथ्थो -प्रगटार्थ अथ्थओ- अर्थ थकी | चेव-निश्चे दव्यारिहवसरि-द्रव्य अरिहंत ntaineaawaravasaavada/IAS/S भा॥४४॥ For Personal Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ anda बीओ सुयत्थयाइ, अत्थओ वनिओ तहिं चेव // सक्कत्थयंते पढिओ, दवारिहवसरि पयडत्थो॥४८॥ शब्दार्थ-बीजो श्रुतस्तवादि अधिकार अर्थथी श्रुतस्तवमान वर्गव्यो छे. वली शक्रस्तवना अंते जे कहेलो छे ते द्रव्य अरिहंतने वांदवाना अवसरे प्रगट अर्थपणे जाणवो. // 48 / / विस्तारार्थः-अने “जे अश्यासिद्धा जे नविस्तति" श्यादि गाथायें जे अव्य जिनवंदन रूप बीजो अधिकार ते पण श्रुतस्तवादि एटले श्रुतस्तवनी आदिमां आवेली पुस्करवरदी नामनी गाथाने विषेले ते अर्थथकी तो ते श्रुतस्तव मांहेज निश्चे श्रीयावश्यक चूर्णीने विषे वर्णितो एटले वर्णव्यो . जेमके नकोसेणं सत्तरिएणं जिणयरसयं जहन्न एणं वीसं तियराए, एताय, एगकालेणं नवंति अश्या अणागया अणंता ते तिबयरा नमसंति // ए पाठ . अहीं कोई शंका करे, के त्यां नखे तेम जपो; परंतु यांही लखेला पाठे करीने शुं? तो त्यां कहे , के शकस्त SMSDESel/oDA-PRAD/AADIBa/Det/AMDASED/Rave www.janelibrary.org sain toucation international For Personal Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० // 45 // VANDAmusemaanaaaaaaaa-MEANINDAVARINA वना अंतने विषे जे पवितः एटले कह्यो डे अर्थात् पूर्वाचार्योयें शक्रस्तवना अंतमा स्थापन करेलो , ते ऽव्य अरिहंत वांदवाना अवसरें एटले नाव अरिहंत वंदनानंतर अव्य अरिहंत वं. दनानुं अनुक्रमें प्राप्तपणुं बे, माटें ए आद्य अधिकारमा पण नवमी संपदाने विषे कांश्क नण वाथकी तेनुं विस्तारार्थपणुं ने तेम प्रगटार्थो एटले प्रगटार्थ जाणवो माटे ए पण श्रुतमय जाणवा. श्रा प्रकारें नियुक्ति अने चूर्णीनां वचन ते प्रमाण न , जे माटें कयु डे // 4 // असढाइन-पंडित पुरुषोए आ- अबारियं-नहि वारेली / आयरणावि-आचरणापण / इतिवयणी-एq वचन छे अणवजं-पाप रहित [चरेलु इति-एवा हु-निश्चे सु-भला गीअथ्य-गोतार्थ मज्झथ्या-मध्यस्थ आण-आज्ञा बहुमन्नति-घणुं माने असढाइन्नणवज्झं, गीअत्थ अवारिअंति मज्झत्था॥ आयरणावि हु आण, त्ति वियणओ सु बहु मन्नंति॥४९॥ autammePDABARDIBADDCATM/ A8088000 // 45 For Personal Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दार्थ-"पापरहित अने गीतार्थोए नहि वारेली, एवी मध्यस्थ पंडित गीतार्थ पुरुषोए करेली अचरणा पण निश्चे भगवंतनी आज्ञा जाणवी." एवां वचनथी भला पुरुषो ते आचरणाने बहु माने छे. // 49 // . विस्तारार्थः-जे आचारणा अनवद्य होय एटले पापरहित होय, अने वली ते गीतार्थे अवारित होय एंटले बीजा कोश् गीतार्थ पुरुषे तेने वारी नहीं होय एवा मध्यस्थ राग केष रहित अशठ पंमित, गीतार्थ पुरुषो तेणे जे आचरयो होय तो तेवा गीतार्थनी करेली जे थाचारणा ते पण निश्चे श्री अगवंतनी थाझाज कहीयें एवं वचन , ते माटे सुष्टु एटले जला अथवा सुविहित अशठ गीतार्थनी करेली आचरणाने पण गीतार्थ जन घणुं माने // 4 // ए बार अधिकारनुं बारमुं द्वार कह्यु, श्हां सुधी उत्तर बाल ए७७ थया // - हवे चार वांदवा योग्यतुं तैरमुं आदे देश्ने बीजां पण द्वार कहे. चउर्वदणिज-चार वांदवा / सुय-श्रुत सिद्धांत सरणिज्जा-स्मरवा योग्य / ठवण-स्थापना जिन योग्य सिद्धा-सिद्ध भगवान् | चउहजिणा-चार प्रकारना दव्य-द्रव्य जिन' जिण-जिन भाव-भावजिन मुणि-मुनिराज | सुराइ-देवता प्रमुख ... नाम-नाम जिन जिणभेएणं-जिननाभेदे करीने vdop/etsavtarinantarawatacarnata/AAVatanavtatesma For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / ०भा० // 46 // Rasaisapataemoctoaoratamame/etouvetivaratatvataravate चउ वंदणिज्जा जिणमुणि, सुयसिद्धा इह सुराइ सरणिज्झा 1०भा० चउह जिणा नाम ठवण,दब्वभावजिण भेएणं॥५०॥दारं 13-24 | शब्दार्थ-जिन, मुनि, श्रुत अने सिद्ध ए चार वांदवा योग्य छे अने ए जिनशासनना अधिष्टायक सम्यकदृष्टि देवता स्मरण करवा योग्य छे. वली नाम, स्थापना, द्रव्य अने भाव एवा जिनना भेदे करीने जिनेश्वरना चार भेद छे. ___ विस्तारार्थः-चार वंदनीयक एटले चार वांदवा योग्य कह्या बे, ते कया कया? तेनां नाम कहे . एक जिन तीर्थंकर अरिहंत, वीजा मुनिराज साधु, त्रोजो श्रुत सिद्धांत प्रवचन अने, चोथा सिद्ध नगवान् जे मोक्ष प्राप्त थया ते जाणवा. ए चार वंदनीकनुं तेरभु द्वार कह्यु. उत्तर बोल रएए१ थया // 13 // 10 // 46 // ___ हवे एक स्मरवा योग्यतुं चौदमुं दार कहे . ए श्री जिनशासनमांहे सम्यग्दृष्टि अधि-|| ष्टायिक देवता. प्रमुख स्मरणीय डे एटले स्मरवा योग्य जाणवा. ए स्मरवा योग्यतुं चौदमुंद्रार || ORana/AADEMOGO/RS/ARvaevan/ For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDIAN कडं. उत्तर बोल रएएए थया // 14 // हवे चार प्रकारना जिननुं पन्नरमुं द्वार कहे . चार प्रकारना जिम का बे. एक नामजिन, बीजा स्थापना जिन,त्रीजा ऽव्यजिन, चोथा नावजिन ए चार जिननानेदें करीने चार जिन जाणवा // 50 // हवे ए चार प्रकारना जिननुं स्वरूप चार निदेपे कहे . नामजिणा-नामजिन पुण-वली | दवजिणा-द्रव्य निन' / समवसरणथ्था-श्री समवसरजिणनामा-नामथी जिन जिणंदपडिमाओ-श्री जिनेंद्रनीः जिणजीवा-जिनमा जीव णने विषे. बेठेला ठवणजिणा-स्थापना जिन | : प्रतिमाओ / भावजिणा-भावजिन VewsMeanayanepanapaalanavaasanapaparivat नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणंदपडिमाओ दवजिणा जिणजीवा,भावजिणा समवसरणत्था॥५१॥दारं 15 Jan Education International For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० चि०भा० // 47 INNOVAPMRATANDARVAtewafaVOTERANARASHTRAMANANDRAPRIYANANER शब्दार्थ-जिनेश्वरना नाम ते नामजिन, जिनेश्वरनी प्रतिमा ते स्थापनाजिन, जिन नामकर्म बांधनारा जीवो द्रव्य जीन अने समवसरणमां विराजित थयेला भावजिन जाणवा. // 51 // विस्तारार्थः-प्रथम श्री षनादिक जिननां जे नाम ले तेमने ते ते नामें बोलावीये बैये तेने नाम थकी जिन कहीयें, वली बीजा श्री जिनेंनी जे शाश्वती अशाश्वती प्रतिमा तथा पगला ले ते सर्वने स्थापना जिन कहीये, त्रीजा जेणे तीर्थंकर नाम कर्म बांध्यु बे एवा श्रीकृष्ण, श्रेणिकादिक ए सर्व तथा जे तेज नवमां तीर्थंकर पदवी पामशे पण दीक्षा लश्ने ज्यां सुधी केवलज्ञान नथी पाम्या त्यां सुधी तेपण जिनना जीव कदेवाय, तेने व्यथकी जिन कहिये. 'चोथा जे केवलज्ञान पामीने श्रीसमवसरणने विषे स्थित थया, बेठा थका धर्मोपदेश आपे तेने नावथकी जिन जाणवा // 51 // ए चार प्रकारे जिनना नामर्नु पन्नरमुं द्वार कह्यु. उत्तर बोल रएए६ थया.॥ हवे चार थोयोनुं शोलमुं द्वार कहे जे. // 47 // For Personal Private Lise Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहिगयनिण-अधिकृत जिन | सव्वाण-सर्व तीर्थंकरोनी पढमथुइ-प्रथम स्तुति तइअ-श्रीजी बीया-बीजी नाणस्स-ज्ञाननी वेयावच्चगराण-वैयावच करनार उवओगथ्य-उपयोग अर्थे तु-चली चउथ्यथुइ-चोथी स्तुति vavindeoponsesanavandanaause अहिगयजिण पढमथुई, बीया सव्वाणतइअ नाणस्स // वेयावच्च गराण उ, उवओगत्थं चउत्थत्थुई // 52 ॥दार 16 // - TRYAMVARDARBatopam/Mara/ARDAROAnaranp/AND . शब्दार्थ-रुषभादि मुख्य अधिकृत जिनेश्वरनी प्रथम स्तुति, सर्व जिनेश्वरोनी बीजी स्तुति, ज्ञाननी श्रीजी स्तुति अने शासननी वैयावच करनारा सम्यक् दृष्टि देवोनी उपयोगने अर्थे चोथी स्तुति जाणवी. // 5 // / विस्तारार्थः-जेनी श्रागल देव वांदीयें एवी जे नामे मूलनायकनी प्रतिमा होय एटले प्रस्तुत अंगीकरयो जे चोवीश जिन मांहेलो को श्रीषन्नादिक एक जिन तेने अधिकृत जिन कहीये तेनी प्रथम स्तुति ते एक जिननीज जाणवी. तथा बीजी स्तति तो सर्व तीर्थंकरोनी सा For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० // 4 // DARGAOGERTAITRVATARIANDRODrametootnavisaavatsANAND धारण नक्तिरूप जाणवी तथा त्रीजी स्तुति ते ज्ञाननी एटले श्रुत सिद्धांत प्रवचननी जाणवी. तथा श्री जिनशासनना रखवाला वैयावृत्त्यना करनार एवा सम्यग्दृष्टि देवताउनी वली उपयोग मनःस्मरणने अर्थं चोथी स्तुति जाणवी // 55 // ए चार शुश्र्नु शोलमुं द्वार का // उत्तर बोल 2000 थया // पाव-पाप | वंदणवत्तिआइ-वंदण वत्तियादि पवयणसुर-प्रवचनना अधि-| उस्सग्गो-काउस्सग्ग। खवणथ्य-खपाववाने अर्थे / छ-छ टायक देवता इरिआई-इरियावहि निमित्ता-निमित्ते / सरणथ्र्थ-स्मरवाने अथेंनिमित्तह-निमित्त आठ पावखवणत्थ इरिआइ, वंदणवत्तिआइ छ निमित्ता॥ पवयणसुरसरणत्थं, उसग्गो इअ निमित्त // 53 // दार 17 // शब्दार्थ-पाप खपाववाने अर्थे इरियावहिया पडिक्कमवी ए प्रथम निमित्त, वंदगवत्तियादि छ निमित्त अने प्रवचमना देवताना स्मरणने अर्थे कायोत्सर्ग ए' सर्व मलीने आठ निमित्त यया. // 53 // Bantawasnainderandancer/DIVISAVARoasm ee For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - PMVAANVARGatewD/ weets/Res/are/caree/cna/car/notictoresmistiaWAS / विस्तारार्थः-गमनागमनथी उपना जे पाप ते खपाववाने अर्थे शरियावहि प्रथम पमिकमवी ते प्रथम निमित्त जाणवु. तथा श्री तीर्थकरने बंदणवत्तियादि ब निमितें काउस्सग्ग करवो, जेम के प्रथम वंदणवत्तिश्राए एटले श्रीजिनराजने वांदवाथी जे लान थाय, ते काउस्सग्गमां मुजने लान था. बीजो पूअणवत्तियाए एटले केशर चंदनादिक धूप प्रमुखें परमेश्वरने पूजवाथी जे | खान्न थाय, ते मुजने कानस्सग्गमा लान था. बीजो सक्कार वत्तिाए एटले सत्कार ते श्री जिनेश्वरने बानरणादि चढाववाथी जे लान थाय, ते मुजने काउस्सग्गमा लान था. चौथो सम्माणवत्तियाए एटले सन्मान ते श्रीजिनना स्तवनगुण कहेवाथीजे लान थाय, ते मझने काउस्सग्गमा लान था, पांचमो बोहिलान वत्तियाए एटले आगले नवे समकेतनो लान्न थाय, ते निमित्तें कालस्सग करूं. हुं निरुवसग्ग एटले निरुपसर्ग ते जन्म जरा मरणादि उपसर्ग टालवा निमित्ते कानस्सग्ग करूं. ए ब निमित्त अने एक प्रथम कर्वा एवं सात थयां. तथा आठमुं प्रवचनना अधिष्ठायक सुर एटले देवता तेने स्मरवाने अर्थे एक नवकारनो काउस्सग्ग devotio/teapedaMS/RADE For Personal Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ चै०भा० // 49 // चैत्यवंदनने विषे करवो ए निमित्त आठ जाणवां. ते देववंदनने विषे होय. ए आठ निमित्तनुं सत्तरमुं द्वार पूर्ण थयु. उत्तर बोल 2007 थया // 53 // हवे बार हेतुर्नु अढारमुं धार कहे . चउ-चार | पमुह-प्रमुख पणहेउ-पांच हेतु तस्स-ते सद्धाइआ-श्रद्धादिक वेयावच्चगरत्ताई-वेयावच्चग- हेउ-देतु उत्तरीकरण-उत्तरीकरण य-वली . तिनि-त्रा [राणं इत्यादीक बारसगं-बार चउ तस्स उत्तरीकरण-पमुह सद्धाइ आय पण हेउ॥ वेयावच्चगरताइं, तिन्नि इअ हेउ बारसगं // 54 // नारंर॥ शब्दार्थ-ते पापनो नाश करवा पाटे उत्तरीकरण विगेरे चार छ भने श्रद्धादिक हेतु पांच छे. वली वैयावचगराणं इत्यादि रण हेतु छे. ए सर्व मली बार हेतु चैत्यवंदना थाय छे. // 54 // patauDRED/PareeDom/aamaHAMDARD/4/ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घicatoudacance/temp/GO/ARG/G9GVAGanesama विस्तारार्थ-तिहां प्रथम देव वांदतां पाप टले ले ते पाप टालवाना उत्तरीकरण प्रमुख चार || बे, ते कहे जे. एक तस्सउत्तरीकरणेणं एटले पापने बालोववे करीने अर्थात् पापकर्म निर्घातन करवे करी, बीजो पायबित्तकरणेणं एटले अनिहया पदथी उपन्यु जे प्रायश्चित्त ते लेवे करी, त्रीजो विसोहिकरणेणं एटले राग द्वेषनुं टालवू अतिचार टालवानी विशुद्धि करवे करी, चोथो विससी करणेणं एटले माया मात्सर्यादि वर्जवे करी मन वचन कायानी निःशस्यत्व त्रिकाल | अतीत अनागत वर्तमानने विषे अरिहंतादिक षट्पद साथें पापकर्म टालवे कानस्सग्गनुं फल आपे ए चार उत्तरीकरणादि निमित्त कह्यां तथा श्रद्धादिक वली पांच हेतु डे तेनां नाम कहे , सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए; एटले एक श्रद्धा, बीजी मेधा एटले बुद्धि, त्रीजी | धृति एटले चित्तस्वस्थता, चोथी धारणा ते यथाकिंचित् शिक्षा ग्रहणता, पांचमी अनुपेक्षा ते | तदेकाग्रता, ए सर्व पांचे वानां वधते थके पांचहेतु जाणवा तथा वेयावच्चकरत्वादिक वेश्रावच्चगराणं संतिगराणं, सम्मदिति समाहिगराणं ए त्रण हेतु करे, ते कहे जे. एक वैयावच्चकर सम्य dewwwdo/howdodcom/avoupARODE For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० // 50 // चि०भा० ग्दृष्टि देव, बीजो संतिगराणं एटले सम्यक्दृष्टिने रोगादिकनी शांति करवे करीने, त्रीजो समादिगराणं एटले सम्यक्दृष्टिने समाधि उपजाववे करीने ए त्रण हेतुयें देव संन्नारवा एटले चार उत्तरीकरण तथा पांच श्रद्धादिक अने त्रण वैयावच्चकर ए द्वादशकं एटले बार हेतु चैत्यवंदनने विषे जाणवा एटले बार हेतुर्नु अढारमुं हार पूरुं थयुं अने उत्तर बोल 2020 थया // 55 // हवे शोल श्रागारनुं उगणीशमुं हार कहे जे. अन्नथ्ययाइ-अन्नथ्थादि एवमाइयाचउरो-एवमादिक अगणि-अग्निनो बोहिखोभाइ-बोधिक्षोभादि बारसआगारा-बार आगार . चार पणिदिछिंदण-पंचेंद्रि छेदन | डकोय-डख अन्नत्थयाइ बारस, आगारा एवमाइया चउरो // अगणिपणिंदि छिंदण, बोही खोभाइ डकोय ॥५५॥दार 981698510865MUSIVEShuvanepaalystessetseiivdsViPEverest // 50 // Jain Education international For Personal & Private Use Only . Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wasase/aVIEWaseemedieAB/Re/ शब्दार्थ-अन्नत्यादि बार आगार अने एप्रमादिक चार आगार, ते चारमा 1 अग्रिनो, 2 पंचेंद्रिच्छेदन, 3 बोधि क्षोभादिक अने 4 सर्पख विगेरे जाणवा. // 55 // विस्तारार्थः-अन्नछयादि बार आगार एटले अन्नबउससिएणंथी मामीने सुहुमेहिं दिहिसंचालहिं पर्यंत बार आगार जाणवा. तेनां नाम कहे . पहेलो उँचो श्वास लेवे, बीजं नीचो श्वास लेवे, त्रीजु खांसी ऊध्रस थावे, चोथु बींक थावे, पांचमुं बगासुं श्रावे, हुं उमकार ते ऊर्ध्ववात श्रावे, सातमुं अधोवात आवे, आठमुं नमरि थावे, नवमुं वमन पित्त मूर्खा आवे, दसमुं सूक्ष्म अंगस्फुरकणथी, अगीयारमुं खलसिंघाण नामक मेल संचारथी, बारमुं दृष्टि प्रमुख संचारथी काउस्सग्ग न नांगे. तथा एवमादिक चार आगार कहे जे एक अग्निनो उपऽव उपने थके तिहांथी पूंजतो अलगो जाय अथवा दीवा प्रमुखनी उजेई थातां तथा अग्निनो स्पर्श थतो होय तेवारें काजस्सग्गमांहे कपमाथी शरीर ढांके, अथवा पंजतो अलगो जश रहे, बीजं पंचेंशियबिंदन पंचेंजि totravesaHIVasaamaanevanaVIDEnavaravasavita /PRASHAN Jain Education international For Personal & Private Use Only . Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NAAMRAVEvacenterna/doc/docs/80/9iwetedievasana यर्नु बेदन यतुं होय अथवा मूषकादिक पंचेंछिय जीव, ते स्थापनाचार्य अने पोतानी वचमां जाता होय, तेवारें पूंजतो अलगो जश् रहे, तो काउस्सग्ग नंग न थाय. त्रीजु बोधि दोनादि ते जिहां राजा अथवा चोरादिक मनुष्य तेना परान्नवें करी धर्मनी दोनणा थाय माटें काजस्सग्गमांहे तिहाथी अलगो जश रहे तो काउस्सग्ग नंग न थाय, चोथु मक ते साप प्रमुखना मंकना न करी अथवा साप प्रमुख पासें आवतो होय तो तेना नयथ। अलगुं जq पमे, तेथी कानस्सग्ग नंग न थाय, ए शोल आगारनुं उंगणीशमुंहार थy. उत्तर बोल 2036 थया // 55 // हवे काउस्सग्गना उगणोश दोष त्यागवा, तेनां नामनुं वीशमुं हार कहे . घोडग-घोटक उद्धी-उधि : | बहू-वधू भमुहंगुलि-भमुहंगुली लय-लता नियल-निगड लंबुत्तर-लंबुत्तर खंभाइ-स्तंभादि सबरि-भीलडी थण-स्तन कवि-कपिथ्थ खलिण-खलिण / संजइ-संयति WAVANEVERamanuevanaopac/aonetersyasaemaeesavane वायस-वायस माल-माल inin Education international For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BaaVANDANDEVI vashields/store/DERABVeta-GORGET/GRAAVAJVasa घोडग लय खंभाई, मालुद्धी निअल सबरि खलिण वह // लंबुत्तर थण संजइ, भमहंगलि वायस कविठ्ठ॥५६॥ शब्दार्थ-अश्व, लता, स्तंभ, माल, अधि, निगड, शबरि, खलिण, वधू, लंबूत्तर, स्तन, संयति, भमुहंगुली, वायस अने कपित्थ दोष. // 56 // विस्तारार्थः-प्रथम घोमानी पेठे एक पग उँचो राखे, वांको पा राखे, ते घोटक दोष, बीजो | जेम वायराथी वेलमी कंपे तेम शरीरने धूणावे, ते लता दोष, त्रीजो यांना प्रमुखने लिंगे रहे, | ते स्तंनादि दोष, चोथो मेमा उपरने माले माथु लगावी रहे ते माल दोष, पांचमो गामानी | ऊंधिनी पेरें अंगुठा तथा पानी मेलवी पग राखे ते उधि दोष, बहो नेजलमां पग नाख्यानीपरें | पग मोकला राखे, ते निगम दोष, सातमो नागो निबमोनो पेरें गुह्यस्थानकें हाथ राखे ते शबरि | दोष, आठमो घोमाना चोकमानी परें हाथ रजोहरणे राखे, ते खलिण दोष, नवमुं नवपरिणीत /AAGR//ARODeupanRVAIRED/ook For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० 1989 // 52 // वदनी पेरें माथु नीचे राखे ते वधूदोष, दशमो नालिनी उपरें अने ढींचणथी नीचे जानु उपरें / चै०भा० लांबु वस्त्र राखे ते लंबुत्तर दोष; ए दोष यति श्राश्रयी जाणवो. केमके कुंटीथी चार अंगुल नीचे अने ढींचणथी चार अंगुल उपर यतिने चोलपट पहेरवो कह्यो . अगीयारमुं मांस मसाना नये अथवा अज्ञानथी लजायी स्त्रीनी पेरें हैजु ढांकी राखे; हृदय आबादे; ते स्तनदोष; बारमा शीतादिकने नये साधवीनी पेरें बेहु खंना ढांकी राखे एटले समग्र शरीर आबादी राखे ते संयतिदोष, तेरमो आलावो गणवाने अर्थे संख्या करवाने अंगुली तथा पापणना चाला करे, ते | नमुहंगुली दोष, चन्दमो वायसनी पेरें आंखना मोला फेरवे, ते वायस दोष, पंदरमो पहेरेलां वस्त्र ते यका तथा प्रस्वेदें करी मलिन थवाना नयने लीधे कोनी पेरें बुगडं गोपवी राखे ते कपित्र दोष // 56 // सिरकंप-माथु धुणावे ते | वारुणि-मदिरा | इति-ए प्रकारे दोस-दोष मूअ-मूक दोष | पेह-प्रेष्य | चइज्ज-छांडे / उस्सग्गे-काउट्सग्गने waWAMBevasaetNATOAAN/Anmovessanties/P / et/ PE A MIRE/AONE R / For Personal Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ste/ Pouces t 940060/ODecVasanautoclarePMIDADASEAN लंबुत्तर-लंबुत्तर न-नहोय समणीण-श्रमणीने, साध्वीने| बहु-वधू थण-स्तन दोस-दोष स-सहित सहीण-श्राविकाने संजइ-संयति सिरकंप मूअ वारुणि, पेहत्ति चइज दोस उस्सग्गे // लंबूत्तर थण संजइ, नदोस समणीण सवहुसढीणं॥५७॥दारं५० ___ शब्दार्थ-शिरकंप, मूक, मही। अने प्रेष्य ए ओगणीस दोष कायोत्सर्गमा त्यनी देवा; पण लंबूत्तर, स्तन अने संयति ए त्रण दोष साध्वीने न होय. वली वधु दोष सहित उपर कहेला त्रग दोष अर्थात् चारे दोष श्राविकाने न होय. विस्तारार्थः-शोलमो यदावेशितनी परें माथु धूणावे, ते शिरःकंपदोष, सत्तरमो मुंगानी पेरें हू हू करे, ते मूकदोष, अढारमो आलावो गणतो थको मदिरानी पेरें बमबमाट करे, ते मदिरा है। दोष, उंगणीशमो वानरनी पेरें अरहुं परहुं जोवे, उष्ट पुट चलावे, ते प्रेष्य दोष ए प्रकारें ए ea au avbeste For Personal Private Lise Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि. // 53 // Maana/SP/-R/ARAMDHURevengeleaseemieranuaVIANDARI गणीश दोष ते काजस्तग्गने विषे जाणवा. तेने बांम. ए जंगणीश दोषमा केटखाएक नमूह अने अंगुली बे जूदा दोष करे , तेवारें वीश थाय, तथा एक लंबुत्तर, बीजो स्तन अने त्रीजो संयति ए त्रण दोष ते श्रमणीने न होय, केमके एनुं वस्त्रावृत शरीर होय, पण एटबुं विशेष जे साध्वी प्रतिक्रमणादि क्रिया करते मस्तक उघाउँ राखे एटले शोल दोष साधवीने लागे, अने ए त्रण दोषने वधू दोषे करी सहित करिये तेवारें लंबुत्तरादि चार दोष थाय. ते श्राविकाने न होय, शेष पंदर दोष श्राविकाने लागे ए सर्व दोष टालीने कानस्सग्ग करवो एटले कानस्सग्गना दोषनुं वीशमुं द्वार थयु. उत्तर बोल 2055 थया // 7 // इरिउस्सग्ग-इरियावहिना / पणवीसुस्सास-पचीस श्वा- | सेसेसु-शेष काउस्सग्गमा / महथ्थजुतं-महा अर्थ युक्त काउस्सग्गर्नु सोश्वासन गंभीर-गंभीर हवइ-होय पमाणं-प्रमाण अट्ठ-आठ .. महुरसई-मधुर शब्द थुत्तं-स्तवन हवे कालस्सग्गना प्रमाण- एकवीशमुं धार तथा स्तवननुं बावीशमुं हार कहे जे. PARVARiteralVaaDAADAABARDancoup/toup/itemasum For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरिउस्सग्गपमाणं, पणवीसुस्सास अठ्ठ सेसेसु // दारं 1 // गंभीर महुरसह, महत्थजुत्तं हवइ थुत्तं // 58 // दार 25 swaruwarta veaawaranamamaeaamavaraprasanneVitaWAawal शब्दार्य-इरियावहिना काउस्सगर्नु प्रमाण पच्चीश श्वासोचासनुं जागवू. बाकीना काउस्तगर्नु आठ श्वासोश्वास प्रमाण जाणवू. वली मेघनी पेठे गंभीर, मधुर शब्दवाला तेमन महा अर्थवाला प्रभुनां स्तवनो होय छे. // 58 // विस्तारार्थः-इरियावहिना कालस्सग्गनुं प्रमाण पश्चीश श्वासोवासनुं जाणवू. एटले संप्रदायें "चंदेसु निम्मलयरा” पर्यंत यावत पच्चीश पदन काउस्सग कराय , अने शेष काजस्सग्ग जे देव वांदता स्तुति काउस्सग्ग ते आठश्वासोवास प्रमाण जाणवो. केम के संप्रदायें एक नवकारनी संपदा था माटें. ए कानस्सग्ग प्रमाणन एकवीशमुं द्वार थयु. उत्तर बोल 2056 थया. .. NPAPERATOPatesette/teatentANDANAME For Personal Private Use Only www.janelibrary.org Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वै०भा० भा० // 54 // HAMARTHATANTVederatisaweRADESeasonRAATMASwaves हवे श्रीवीतरागनुं स्तवन केवा प्रकारे कहेवु ? तेनुं बावीशमुं द्वार कहे . मेघनी पेरें / गंजीर अने मधुर शब्द डे जिहां अने वली महा अर्थयुक्त नक्ति, ज्ञान, वैराग्य अने आत्मानंदादि दशायुक्त एवं श्रीवीतरागर्नु स्तुत एटले स्तवन होय. ए स्तवन नणवानुं बावीशमुं हार थयु. उत्तर बोल 2057 थया // 57 // हवे चैत्यवंदन एक दिवसमा केटलीवार करवू ? तेनुं त्रेवीशर्मु कार कहे . पडिकमणे-प्रतिक्रमण / चरिम-पाछले दीवसे / पडिबोहे-जाग्या पछी / जइणो-यतिने.. चेइय-दहेरामा पडिक्कमण-प्रतिक्रमण . चिइवंदण-चैत्यवंदन सत्तउवेला-सात वेला जिमण-जमती वखते मुअण-मृती वखते इअ-ए | अहोरत्ते-एक अहोरात्र मध्ये पडिकमणेचेइयजिमण, चरिमपडिक्कमणसुअणपडिबोहे॥ चिइवंदण इअ जइणो, सत्तउवेला अहोरत्ते // 59 // awaavanavamiANWADIOUPARBeteesaAWAasatsan 54 // For Personal Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MASANIVASwatavasacretsavdaeo/asavasasavarawasawal शब्दार्थ-प्रभातना पडिक्कमण बखते, देहरे, भोजन वखते, भोजन करथा पछी, सांजना पडिक्कमण वखते मूति बखते, पाछली रात्रीये जाग्या पछीः एम रात्री दिवस मली साधुने सात वखते चैत्यवंदन करवू. // 59 // विस्तारार्थः-एक प्रन्नातने पमिक्कमणे पच्चरकाण करतां देव वांदवाने विषे विशाल लोचन कही चैत्यवंदन करे, बीजु चैत्यगृहमां नगवंत श्रागले चैत्यवंदन करे, त्रीजुं जमती वखत पञ्चकाण पारे, तेवारें चैत्यवंदन करे, चो) बेहेलो जमीने उग्या पली एटले आहार करी रह्या पली दिवसचरिम पञ्चरकाण करतां चैत्यवंदन करे, पांचमुं संध्याने पमिकमणे नमोस्तु वर्द्धमानादि चैत्यवंदन करे, ब्लुं सूती वखतें शयन संथारा पोरिसी नणावतां चैत्यवंदन करे, सात, पाली रात्रे जाग्या पडी कुसुमिण दुसुमिणकाजस्सग्ग करया पडी किरियानी वेलायें चैत्यवंदन करे, ए कह्यां जे सात वखतनां चैत्यवंदन करवां, ते एक अहोरात्रमध्ये यतिने होय // 5 // हवे श्रावकने एक अहोरात्रमा केटलां चैत्यवंदन होय.? ते कहे . पढिकमिउ-पडिक्कमणुं | सगवेला-सातबार | पूआसु-पूजाने विषे तिवेला-त्रणवार गिहिणोवि-गृहस्थने पण पंचवेल-पांचवार तिसंझ्झासु-त्रण संध्याये जहन्नेणं-जघन्यथी हु-निश्चे इअरस्स-इत्तर REVAINS/MDEVasom/wawotivationa/RTEVANAGIVAwain For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० च: भा पडिक्कमिउ गिहिणोवि हु, सगवेला पंचवेल इअरस्स // पूआसु तिसंझासु अ, होइ तिवेला जहन्नेणं // 6 // dovai/ARGADGEOREpisadivat शब्दार्थ-पडिकमण करता एवा गृहस्थने पण सात वखत अने न करनाराने पांच वखत चैत्यवंदन करवू. वली जघन्यथी तो त्रणे संध्याये पूजाना अवसरे त्रण वखत चैत्यवंदन करवू. // 60 / / विस्तारार्थः-एक प्रनाते अने बीजो सांके ए वे वार परिक्कमणुं करता एवा गृहस्थने पण निश्चे यतिनी पेरें सात वार चैत्यवंदन थाय. तथा जे एक वार पमिकमणुं करता होय एवा गहस्थने पांचवार चैत्यवंदन थाय; तेमां एक पोरिसि सांजलता; एक क्रिया करतां अनेत्रणवार देव वांदता मली पांच घाय. अने तेथी इतर एटले जे पमिकमा नथी करता एवा गृहस्थने तो प्रनात; सांऊ अने मध्यान्हे ए त्रण संध्याये जाने विषे ए जघन्यथपण गृहस्थने माटें व्रण शर चैत्यवंदना होय. ए सात प्रकारना चैत्यवंदन-वीशमंदार पूर्ण श्रद्यु. उत्तर बोल 2064 थया॥६॥ -17 For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Perman en हवे ए पूर्वोक्त सर्व. बोल. जो आशातनानो. परिहार करे, तो सफल थाय; माटे चोवीशमुं दश आशातनानुं द्वार कहे . तंबोल-तांबूल मेहुण-मैथुन मुत्त-मात्रा / बजे-वर्जवां पाण-पाणी सुअण-सुबुं उच्चारं-वडी नीति जिणनाह-जिननाथ भोयण-भोजन निठवणं-धूकवू जूअं-जूवर्ल्ड जगई-जगतोने विषे वाणह-खासडां draprastreetsavdhaavavetaste तंबोल पाण भोयण, वाहण मेहुन्न सुअणनिठ्ठवणं // मुत्तुच्चारं जुअं, वज्झे जिणनाह झगईए // 61 // VAANBRavatpavavinavratreptempetrataavraat शब्दार्थ- तंबोल खावू, पाणी पीg, भोजन करवू, जोडा पहेरवा, कामचेष्टा करवी, शयन करवू, थुकवू, लघु नीति | करवी, वडीनीति करवी अने जूपटुं रमवू, ए दश आशातना जिनमदिरमा त्यजवी.। 61 // विस्तारार्थः-प्रथम याशातना शब्दनो अर्थ करे जे. जे ज्ञान: दर्शन अने चारित्रनो श्राय Inn Education international For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा चै०भा० एटले लान तेनी शातना एटले खंगना करवी तेने आशातना कहीये ते जिनघरमां न करवी ते आशातना जघन्यथी दश प्रकारें दे; तेनां नाम कहे . प्रथम तांबूल ते सोपारी; नागरवसोना पान अने पंचसुगंधादिकनुं खाईं; वीजी पाणी पी; त्रीजी नोजन करवू चोथी उपानह एटले मोजमी पगरखादिक पहेरवां; पांचमी मैथुन ते कामचेष्टा करवी; बही सुबुं ते शयन करवू; सातमी श्रृंक श्लेष्म नाखवू आग्मी मात्रा एटले लघु नीति करवी; नवमी नचार ते वहीनीतिनं करवू दशमी जूवटे रमवू; ए दश याशातना ते जिननाय एटले नगवानना देरासरनी कोटमी मांदे पेसतां ए दश वानां वर्जवां ए जघन्यथी दश आशातना महोटी के तेनां नाम कह्यां // 1 // दवे उत्कृष्टथी चोराशी आशातना त्यजवी जोश्य तेनां नाम इहां प्रसंगे लखीय बैयें. 1 खेलश्लेप्म, 2 यतादिक्रीमा, 3 कलह, 4 धनुर्वेदादिक कला, 5 कोगला नाखवा, 6 तांबूल पूगी फल पत्रादि नक्षण, तांबूल खावाना कूचा, तथा उजार नाखवो, गालो देवी, विरुद्ध वोलवू, ए लघनीति वमीनीति करवी, वातनिर्गमनादि पवित्र करणादि, 10 शरीर धोवन, 11 केश स For Personal Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pavtanaavisadewaseerame/D/DREAMVANAMAVAMAND मारवा, 12 नख समारवा, 13 रुधिरादि नाखवां, 14 शेकेला धान्य प्रमुख खावां, 15 त्वचाचा गदिक नाखवां, 16 औषधादिकें करी पित्त वमन करे, १७.वमन करे; 10 दंतधावनादि करे; १ए वीसामण करावे; 20 बकरी; गज; अने अश्वादिकनुं दमन बंधन करे; 21 दांत; 25 श्रांख; 23 नख, 24 गंगस्थल, 25 नासिका, 26 कान, 27 मस्तकादिक, ते सर्वनो मेल मे, 20 सवे, २ए मंत्र नूतादि ग्रह तथा राजादि कार्यना आलोच विचार करे, 30 वृद्ध पुरुषनो समुदाय तिहां श्रावी मले, 31 नामां लेखां करे, 35 धनना नाग प्रमुख माहोमांहे वहेंचे, 33 पोतानुं अव्य- | नंमार करी तिहां थापे, 34 पग उपर पग चमावीने बेसे, 35 बाणां थापे, 36 वस्त्र सुकवे, 37 | दाल ढंढणीयादिक उगवे, 30 पापम शालेवां करे, ३ए वमी आदि देश कचर चीनमी प्रमुख सर्व शाक जाति उगवे, 40 राजादिकना नयथी देरासर मध्ये नासीने बुपी रहे, 41 शोकादिक रुदन | थाक्रंद करे, 42 स्त्री, नक्त, राज्य, देशादिकनी विकथा करे, 43 शर, बाण, तथा बीजा पण अधिकरण शस्त्र घमे, 44 गाय, वलद, प्रमुख थापे, 45 टाढें पीड्यो अग्नि सेवे, 46 अन्नादि VPNaDayawa/AROJavetaED/ARO/AR a sapotraVIRVAINM For Personal Private Lise Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० चलम कनुं रांधवू करे, 47 नाणादिक पारखे, 47 अविधिये निसिही कह्या विना प्रवेश करे, ४ए उत्र, 50 उपानह, 51 शस्त्र, 55 चामर न मूके. एटले ए चार वानां साथें लइ प्रवेश करे, 53 मननी एकाग्रता न करे, अभ्यंग एटले शरीरें तैलादिक चोपमे, 55 सचित्त पुष्पफलादिक न मूके, 56 अजीव वस्तु जे हार मुसादिक वस्त्रादिक ते बाहेर मूकी कुशोनावंत थर देरासरमां प्रवेश करे, 57 नगवंत दीठे अंजलि न जोमे, 57 एक शाटक उत्तरासंग न करे एए मुकुट मस्तकें धरे, 60 मौली उपर वस्त्र बोकानी घोस पेच प्रमुख न बोमे, 61 कुसुमना सेहरा, बोगां प्रमुख माथाथी न मूके, 65 होम पामे, 63 गेमीदमे रमत करे, 65 प्राहुणादिकने जुहार करे, 65 नाम चेप्टा, गाल; काख़ पूंठ वजावे, 66 रेकार तुकारादि तिरस्कारनां वचन बोले, 67 लेवा देवा आश्रयी धरणुं मां, 6 रणसंग्राम करे, ६ए वाल बूटा होय ते समा करे, जूश्रा करे माधुं खणे, 70 पलांठी पग बांधे, 71 चांखमीयें चमे, 72 पग पसारी बेसे. 73 पुम्पुमी देवरावे, 14 पगनो मेल जाटके, 35 वस्त्रादिक जाटके, 16 माकम यूकादिक वोणे, तथा तेने त्यांज नाखे, // 5710 Jin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w are/Resivateerentiavatasoomvets 17 भैथुनक्रीमा करे, 77 जमण करे, ७ए व्यापार क्रयविक्रय करे, 70 वैषु करे, 1 शय्या समारे, 72 गुह्य लिंगादिक उघामे, तथा समारे, 73 बाहुयुद्ध करे तथा कुकमादिकना युद्ध करावे, 74 वर्षाकालादिकने विषे प्रणालीथी पाणी संग्रह अंघोल स्नान करे, तथा पाणी पीवाना जाजन मूके, ए उत्कृष्टथी चोराशी श्राशातना जिन जुवनमा वर्जवी. हवे मध्यम बहेंतालीश आशातना वर्जवी तेनां नाम कहे जे. 1 मूत्र, 5 पुरीष, 3 पाणी, 4 जपानह, 5 शयन, 6 अशन, 7 स्त्रोप्रसंग, तंबोल, ए थंकवु, 10 जूवटुं रमई, 19 जूवटादि कनुं जोवू, 12 पलांगी वालवी, 13 पग पसारवा, 14 परस्पर विवाद, 15 परिहास, 16 मत्सर, 17 सिंहासन परिनोग, 10 केश शरीर विनूषा, १ए बत्र 20 खऊ, 21 मुकुट, 22 चामरनुं राखवं, 23 धरणुं करवु, 24 हास्यादि विलास परिहास, 25 विटसाथे प्रसंग करवो, 26 मुखकोश न करवो, 27 मलिन शरीर राखे, 27 मलिन वस्त्र पहेरे, श्ए अविधियें पूजा करे, 30 मननु SenteaenasamasteARDAawatase/s/AAAMRONIINDIAN ananewwetwasana inin Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० ०भा० // 5 // Parashu/0/600/AAVAVARReviecems एकाग्रपणुं न करे 31 सचित्त अव्य बाहिर न मूकी आवे; 32 उत्तरासंग न करे; 33 अंजलि न || करे 34 अनिष्ट, 35 दीन, कुसुमादि पूजोपकरण राखे, 36 अनादर करे, 37 जिनेश्वरना प्रत्यनीकने वारे नही, 36 चैत्यव्य खाय, ३ए चैत्यद्रव्यनी उपेक्षा करे, 40 बती सामर्थं पूजावंदनादिकें मंदता करे, 41 देवव्यादि नक्षक साथें व्यापार मित्राश् सगाई करे, 42 तेहवा व रानी मुख्यता करे, तथा तेनी आायें प्रवतें, ए बहेंतालीश मध्यम आशातना वर्जवी. एटले ए चोवीशमुं श्राशातनानुं हार थयुं // उत्तर बोल 2074 पूर्ण थाय // . हवे देव वांदवानो विधि कहे बे. इरि-इरियावहि थुई-स्तुति थुइ-बीजी स्तुति जावंति-जाति चेइआई नमुक्कार-नमस्कार लोग-लोगस्स पुख्ख-पुरुखरवदी थय-स्तवन नमुथ्थुण-नमुथ्थुणं सव्व-सब्बलोए अरिहंत चे- सिद्धा-सिद्धाणं बुद्धाणं जयवी-जयवीयराय अरिहंत-अरिहंत चेइमाणं ! इआणं | वेआ-वेयावचगराणं vatiovativitiaVERNMAMAmavasnaveevelowevtanaweseway /oceetaves For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इरि नमुकार नमुत्थुण, अरिहंत थुई लोग सव्व थुइ॥ पुख्ख थुइ सिद्धा वेआथुइ, नमुत्थ जावंतिथय जयवी॥ 62 // G/ARO/ARO/AMAND Yaadiao/6/area/Novesyoup/ शब्दार्थ-इरियावहि, नवकार, नमुत्थुगं, अरिहंत चेइयाणं, कही एक स्तुति कहेवी. पछी लोगस्स, सबलोए कही स्तुति कहेवी. पछी पुख्खरसर अने स्तुति कहवी पडी सि दागं बुद्धागं, वेयावच्चगराणं अने सुति कहेवी. पछी नमुत्थुणं, जाति चेइयाई अने स्तुति कहाने छेवट जयवीयराय पूर्ण कडेवा. / / 62 / / विस्तारार्थः-प्रथम इरियावहि संपूर्ण पमिकमि पनी चैत्यवंदननो श्रादेश मागी नमस्कार कही पली नमुन्नणं कहे. पनी उन्नो थर अरिहंत चेश्याएं कही कानस्सग्ग करी एक तीर्थकरनी स्तुति कहे. पली लोगस्स कहीयें पड़ी सबलोए अरिहंत चेश्याएं कही कानस्सग्ग करी सर्व तीर्थकरनी बीजी स्तुति कहियें, पडी पुरकरवरदी कही कामस्सग्ग करी श्री सिद्धांतनी त्रीजी स्तुति कहेवी परी सिद्धाएं बुद्धाएं बेयावच्चगराणं इत्यादिक कही काजस्सग्ग करी अधिष्ठायिक | देवोनी चोथी स्तुति कही पड़ी नीचें बेसीने नमुन्नणं संपूर्ण कहीने जावंति चेश्याजावंत केवि VAauVARUPAANDMANTDADAWARAGe/a VIANS/DGANESS / Inn Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vitnestostetvon Voctore/apost/ANVARD/ साहु कही नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुन्यः कही स्तवन कहीने, संपूर्ण जयवीयराय कहीये. ए देव वांदवानो विधि कह्यो // 6 // __हवे यद्यपि कोई प्राणी एटला बोल तथा एवो विधि न जाणतो होय तो पण आ कहेला आठ बोल तेमां होय तेने नक्तिवंत कहीये. जे माटे संबोध प्रकरणमध्ये काले ॥न्नत्ति बहुमाणोवण्ण, संजलण श्रासायणा परिहारो // परिणीय संगवळण, सइ सामवेतनणणं // 1 // विहिरॉजण मस्स वण,मवही वायाण विहि पमिसेहो।सिद्धाए श्य अमगुण,जुत्ता संपूरण विहिजुत्तो।। . एबे गाथानो नावार्थ कहे . एक नक्ति ते अंतरंग राग, बीजु बहुमान ते बाह्य लोकोपचार विनयादि गुण. त्रीजो वर्णवाद यशोवादनुं बोलवू. चोथो आशातनादिकनो परिहार, पांचमो तेमना प्रत्यनकनी साथे संग वर्कवो. बछो बती सामर्थ्य विघ्ननुं टालवं. सातमो बागलाने विधिमां जोमवं, याठमो अवर्णवाद न सांजलवापर्वक अविधिनोनिषेध करवोअन विधिनो प्रतिसेवन करवो, एवा आठ गुण विशुद्धयुक्त ते सर्वोपाधि विशुद्ध संपूर्ण विधि युक्त कहोये / / PGDEVGDainiPORG/ de.AGG.. // 59 // JainEducation intematic For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ hwasanawanlievaaTVerHIVES DIAREAD/CREATMERVORMD/MM/aal सव्वोवाहि विसुद्धं-सर्वोपाधि बंदर-वांदे - देविंद-देवना इंद्र परमपयं-मोक्षरूप पद विशुद्ध सया-सदा विंद-समूह पावइ-पामे एवं-प्रम देव श्री देवाधिदेवने महिअं-पूज्यु लहुसो-शीघ्र, उतावलो ... सबोवाहिविसुद्धं, एवं जो वंदए सयां देवे // - देविंदविंदमहिअं, परमपयं पावइ लहुसो // 63 // शब्दार्थ-आ प्रमाणे सर्व उपाधिथी रहित एवो जे माणस निरंतर अरिहंत देवनी बंदना करे छ ते इंद्रोना समूहे पूजेला परमपदने तुरत पामे छे. // 6 // विस्तारार्थः-एम सर्वोपाधि विशुद्ध जेम होय एम एटले सर्व श्री जिनधर्म संबंधिनी चिंत्ता तेणे करी निर्दोष प्रकारें शुद्ध श्रद्धायें करी जे नव्य प्राणी श्रीदेवाधिदेवने सदा सर्वदा वांदे ते नव्य प्राणी नवनयरूप पद जिहां नथी एवो परमपद एटले मोक्षरूप पद ते प्रत्ये शीघ्र उता awanavaitanARRORANGE/9VARERVASER/wwsite For Personal Private Lise Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चै०भा० PawanviwwmuTVAASARDARJASIANTRVAANTRVASVIRaavitav वलो पामे. ते परम पद कहेवू डे ? तो के देवना इंऽ तेमना समूह एटले इंसोने समूहें जेने अर्चितं एटले पूज्यु एबुं बे. एमां ग्रंथकर्ता श्रीदेवें सूरिये पोतानुं नाम पण सूचव्युं डे ए श्रीचैत्यवंदन नाष्यनुं वार्त्तिक संदेपथी कद्यु, अने विस्तारथी तो श्री श्रावश्यकनियुक्त तथा प्रवचन सारोद्धारनी वृत्त्यादिकथी जाणवू. इति श्रेयः // इति श्री देववंदनन्नाष्यं बालावबोधसहितं संपूर्णम् // 63 // हवे ए श्री देवाधिदेवने विधि वांदवाना फलना कहेवावाला ते श्रीगुरु डे माटे तेमने पण नक्ति विनये करीविधि पूर्वक वंदना करवा थकी सकल आगमनां रहस्य पामीये. ए श्रीगुरुनें वांदवानां पण घणां फल श्रागममांहे कह्यां // यमुक्तं // वंदणएणं नंते जीवे किं जण, गोयमां वंदणएणं जीवे नीयागोयं खवेइ, उच्चागायं णिबंध. साहगंचणं अपमिलेहियं श्राणाफलं निविते दाहिण नावच जणय इति // तेणे प्रसंगें श्राव्यो जे गुरुवंदनाधिकार ते हवे कहे . stVietneaitapmanuVARDHANDANDE For Personal Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ anertiaNAGAs/ // अथ श्री बालावबोध सहित // // श्रीगुरुवंदन भाष्य प्रारंभः // DARMEDARVAD//goo गुरूवंदणं-गुरुवंदन अह-अथ तिविहं-प्रण प्रकारे तं-ते फिट्टा-फेटा वंदन वादिकने विषे छोभ-योभ पढम-प्रथम बार सावत्तं-द्वादशावर्त वंदन पुण्णं-पूर्ण सिरनमणाइसु-मस्तक नमाड ख मासमण-खमासमण दुगि-वे बीयं-बीजुं IvanavamavtaarAIVARIVARA गुरुवंदण मह तिविहं, तं फिट्टा छोभ बारसावत्तं // सिर नमणाइसु पढम, पुण्णं खमासमण दुगि बीअं // 1 // /apnaD Tin E cation International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मु०भा० गु०भा. // 6 // LAGTEAMVanavareeRANJIRANGARGEORGETERNERMA शब्दार्य-हवे गुरुवंदन त्रण प्रकारे छे. ते फेटा वंदन, योभ वंदन अने द्वादशावर्त वंदन. तेमा मस्तकने नमाववादिकथी पहेलं, अने पूर्ण पंचांग बे खमासमण देवाथी बीजुं वंदन थाय छे. // 1 // विस्तारार्थः-अथ शब्द ते मंगलाधिकारें, तथा प्रथम प्रारंजने कारणे अथ शब्दें करी चत्यंवदन नाष्य कह्या पठी हवे गुरुवदंन नाष्य कहीयें बैयें. ते गुरुवंदन त्रण प्रकारे तेमां पहेलुं फेटा वंदन, बीजु थोनवंदन, त्रोटें हादशावर्त्तवंदन, तिहां मस्तक नमामवादिकने विषे आदि शब्द थकी अंजलिकरण ते हाथ जोमवादिक जाणवा. ते पहेढुं फेटा वंदन जाणवु तथा पूर्ण पंचांग बे खमासमणा देवे करीने एटले बे हाथ, बे गोठण अने एक मस्तक ए पांच अंग नमाववा रूप ते वीजें थोनवंदन जाणवू // 1 // हां शिष्य पूजे के थोनवंदने तथा छादशावर्त वंदने प्रथम एक वार वांदीने फरी | बीजी वार शे हेतुयें वांदीए यें ? त्यां श्राचार्य उत्तर आपे . zain Eaucation international For Personal Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HBADD/ जह-जेम दुओ-दुत रायाणं-राजाने नमिर्च-नमिने कर्ज-कार्य निवेइ-निवेदन करे | पन्छा-पाछो वीसजिओवि-विसर्यो थको | ए मेव-एनीपेरे वंदि-वांदीने [पण इथ्थ-इहां गच्छइ-जायं | दुर्ग-द्वीक s/top/AAGDefen/ne/ATGAVADIRE) जह दूओ रायाणं, नमिउं कज्झं निवेइडं पत्था // वीसज्जिओवि वंदिअ, गच्छइ एमेव इत्थदुगं // 2 // शार्थ-जेम दूत 'प्रथम राजाने नमस्कार करीने कार्य निवेदन करे छे अने पाछो राजाए रजा आपाथी ते दूत फरी नमस्कार करी जायछे तेम आ देववंदना पण बेवार वंदना जाणवी. . विस्तारार्थः-जेम दूत पुरुष डे ते राजाने नमिने कार्य निवेदन करे वली पालो राजायें | विसयों थको पण वांदीने जाय एनी पेरें श्हां गुरुवंदनने विषे पण वंदननुं छिक जाणवू // 2 // अने हादशावर्त्तवंदने तो बेहु वांदणे मलीने आवश्यक आवर्तादि बोल नीपजे डे, ते माटे बेहु / वांदणानी जोमी एकज वंदन कहेवाय // 0/9aptemposit0900/4990/9/9ap/top/sease Pavitrucian/ For Personal & Private se Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० 2 // गुलभ हवे वांदणां देवानुं कारण झुं? ते कहे . गुणवओ-गुणवंतनी |विहिवंदणाओ-विधियें करीने इमो-आ अ-वली वार सावत्ते-द्वादशा वर्त्तने पडिवत्ती-सेवा विहि-विधि सा-ते आयरस्स-आचार उ-वली मूलं-मूल विणओ-विनय छे ___ वांदवाथी विषे Samsatop/1060/1088/05/demo/supadeusAAND/APNVacoustan /ARO/AAm/node/mAnco mmance आयरस्सउ मूलं, विणओ सो गुणवओ अ पडिवत्ती॥ सा य विहिवंदणाओ, विहि इमो बारसावत्ते // 3 // शब्दार्थ-आचारनुं मृल विनय छे अने ते विनय गुणवंतगुरुनी सेवा करवायी थाय छे. वली ते सेवा विधियुक्त वंदनाथी थाय छे. ते विधि आ आगल द्वादशावर्त वंदनने विषे कहेशे // 3 // विस्तारार्थः-जे माटे श्री सर्वज्ञप्रणीत जे आचार तेनो वली मूल जे , ते विनय ते विनय केवी रीते होय ? ते कहे . गुणवंत गुरुनी वली प्रतिपत्ति एटले सेवा करवी जाणवी ते HDMAdevanao Jan Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DavaravanastraMetava नक्ति वली विधियें करीने वांदवाथकी थाय ते विधि आ आगल बादशावर्त वंदनने विषे कद्देशे. // 3 // - हवे एत्रो छादशावर्त वंदन कम होय ? तें कहे डे तइयं-त्रीजुं मिहो-मांहो मांहे पयहिआगं-पदप्रतिष्ठित तु-वली आइमं आदि दसणीण-दर्शनीनेज च-निचे छंदणदुगे-बे वांदणा देवे करी सयलसंघे-स्मस्त श्री संघे / तइयं-त्रीजु तथ्य-तेमां | बोयं-बोर्जु VasapadivasiseDaias/ तु-वली य-च nmeetsavtARIANTAsavanee तइयं तु छंदण दुगे, तत्थमिहो आइमं सयलसंघे॥ बीयं तु दंसणीण य, पयठिआणं च तइयं तु // 4 // p/08/0Batabast शब्दार्थ-त्रीजुं द्वादशावर्त वंदन तो बे वांदणा देवायी थाय छे. ते पूर्व कहेला त्रण वंदनमां पहेलुं फेटावंदन चतुविध संघे परस्पर तेवा तेवा अवसरे करी शकाय अने बीजं योभवंदन गुणवंत मुनिने कराय अने श्रीजुं द्वादशावर्त वंदन Jan Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० BANSARAuraut/AADIMANDAai/AGRANDMAANDOLD/DDNA तो आचार्यादि पद प्रतिष्ठित मुनिने करायः // 4 // गु०मा० विस्तारार्थः-त्रीजु छादशावर्त वंदन ते वली बे वांदणां देवे करीने होय, एटले बे वांदणां देवे करी थाय, शहां बंदण शब्द वंदनवाचक जाणवो. ते पूर्वोक्त त्रण वांदणांमां यादिम एटले पहेलु फेटावंदन जे बे, ते साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकारूप चतुर्विध समस्तश्रीसंघे मली मिथो एटले माहोमांहे परस्पर तेवा तेवा अवसरने विषे करवं होय त्यारें थाय, अने बोजु जे थोनवंदन , ते निश्चें वली सुसाधु एवा दर्शनीयनेज अर्थे होय, एटले एक गबगत, बोजो अनुयोगी, त्रीजो अनियतवास), चोथो गुरुसेवी, पांचमो आयुक्त जे संयममार्गमा सावधान एवा गुणवंत यतिने ए वांदणुं देवाय, तथा चकारथी, तथा विधिविशिष्ट कार्यने विषे लिंगमात्रधारी पण जो सम्यक्त्वदर्शनवंत होय, तो ते पण बोनवंदने वंदनीय होय. तथा त्रीजुं द्वादशावर्त वंदन Ish63 // जे जे ते वली श्राचार्य, उपाध्याय, गुणवंत गीतार्थादिक एवा पदप्रतिष्ठित जे दोय तेमने निश्चे होय.॥४॥ vavm/surendraMVARD/amsteARC/Item/team/MVADAM sain Toucation international For Personal Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pawaravasavitae/aEVANI हवे ए वांदणांनां पांच नाम ले. ते कहे जे. चंदण-वंदन कर्म | पूभाकम्म-पूनाकर्म | कायव्वं-करतुं चिइ-चिति कर्म च-वली कस्स-केने अर्थे / किइकम्म-कृति कर्मविणयकम्म-विनयकर्मव-वली / केणवावि-कहने वांदणां देवां काहेव-केवारे | कइरुखुत्तो-केटलीवार वंदन चिइ किइकम्म, पूआकम्मं च विणयकम्मं च॥ कायव्वं कस्स व के-णवावि काहेव कइख्खुत्तो॥५॥ VitanavamitpMR.HI/tamitraa/80/Aasavitavaana/MAVAN /staMARRIANMOMANIVAARVAIN शब्दार्थ-दनकर्म, चित्तिकर्म, कृतिकर्म, पूजाकर्म अने विनयकर्म. ए पांच प्रकारे वंदन करतुं ते कोने अर्थे ? अने कोणे कर ? वली क्यारे अने केटलीवार ? // 5 // विस्तारार्थः-एक वंदन कर्म ते शनिवादन स्तुतिरूप, अविनतकाय करवी, ते शरीर मस्तकादि अवनत तथा कर्मथकी जला कर्म बंधाय एटला माटें बीजु चितिकर्म, त्रीजुं कृतिकर्म वांदणुं, वलीनला मन, वचन अने कायानी चेष्टानुं जे कर्म करवू, ते माटें चोथु पूजाकर्म For Personal & Private se Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाभा० गुरूभाग कहिये, तथा विनयन कर ते माटें पांचमुं विनयकर्म कहीये, ए पांच प्रकारें वंदन वली करखं एटले पांच प्रकारे वांदणां देवां ते केने अर्थे देवां? वली केहने वादणां देवां ? अपि शब्द निश्चयार्थमां ले. केवारें वांदणां देवां ? केटली वार वांदणां आपीयें ? // 5 // कइओणयं-केटला अवनत | काहि-केटला | परिसुद्धं-परिशुद्ध | किइकम्म-कृति कर्म करवा कइसिरं-वंटलीवार मस्तक व-बलो कइदोस-केटला दोषे कीस-शा माटे नमावq आवस्सएहि-आवश्यके करीने विप्पमुकं-रहित कीरइ-करीए MovuARIVeteatertatvatastropsaraswitam/tPERVISARDARotaves AINEDARDEEWAGDAET/om/separaavarti/RaP/ कइओणयं कइसिरं, कइहि व आवस्सएहिं परिसुद्धं // कइदोसविपप्पमुकं, किइकम्मं कीस कीरईवा // 6 // // 14 // शब्दार्थ-केटलीवार नमवू ? केटलीवार मस्तक नमावबुं ? वली केटला आवश्यक करी शुद्ध थर्बु ? केटला दोषथी मुक्त थर्बु ? अने कृतिकर्म शा माटे करवू ? // 6 // /ne For Personal Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P tom/awwapevanasas/assaootaJatavesw/DEOAMRAVASWAMNON विस्तारार्थः-वांदणाने विषे केटला अवनत करवा, केटलीवार मस्तक नमाम्वु, केटला वली आवश्यकें करीने परिशुद्ध थको तथा केटला दोषे करी विप्रमुक्त एटले रहित थके शामाटें करी कृतिकर्म वांदणां दीजें ? वा शब्द पुनर्वाचक // 6 // ए पांचमी श्रने नही बे गाथा आवश्यक नियुक्तिमां कही ले ते शहां कही। हवे त्रण गाथायें करी वंदनानां बावीश द्वार कहे जे. पणनाम-पांच नाम जुम्गपण-योग्य पांच चउदाय-चार दाता पणाहरणा-पांच उदाहरण चउअणिसेह-चार अनिषेध अजुग्गपण-अयोग्य पांच | चउअ दाया-चार अदाता | पणनिसेहा-पांच निषेध अट्ट कारणपा-आठ कारण पणनामं पणाहरणा, अजुग्गपण जुग्गपण चउअदाया॥ appeDERaptiSande/89/09/24:/AMR/es/dp/dom/ow चउदाय पणनिसेहा, चउअणिसेह छ कारणया॥७॥ inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B सु०भा० गु०मा // 65 // RAININVARVINosteopoem/m/ASIVASINIVAMRAVASuva शब्दार्थ- बंदणाना पांच नामनुं द्वार, 2 पांच उदाहरगर्नु, 3 पासत्यादि पांच अयोग्यर्नु, 4 आचार्यादि पांच योग्यतुं, 5 चार वांदणा देवराववाने अयोग्यनु, 6 चार देवराववाने योग्यतुं, 7 पांच स्थानके वांदणानो निषेध तेनु, 8 ': चार स्थानके वांदणाना अनिषेधनु, 9 वांदणानां आठ कारणर्नु // 7 // विस्तारार्थः-मूलधारनी गाथा जाणवी. पहेलु वांदणांनां पांच नामकहेशे, बीजू वांदणांनां पांच आदरण एटले वांदणांनां पांच उदाहरण दृष्टांत अव्य अने नावथी कदेशे; त्रीजें वांदणां देवाने अयोग्य एवा पांच पासबादिक कदेशे, चोथं वांदणां देवाने योग्य एवा याचार्यादिक पांच कदेशे, पांच, जेनी पासें वांदणां न देवरावीयें एवा चार जण वांदणांना अदाता कहेशे, नवं जेनी पासें वांदणां देवरावीयें एवा चार वांदणांना दातार कहेशे, सात, पांच स्थानकें वांदणानो निषेध करवो एटले वांदणां न देवां ते कदेशे, यापमं चार स्थानकें वांदणानो अनिषेध करवो एटले चार स्थानकें वांदणां देवां ते कहेशे, नवमुं वांदणां देवानां आठ कारण कहेशे॥७॥ आवस्सय-आवश्यक पणिस-पच्चीस गरुटमण- दुछवीसख्खर-वशेने छब्बोश मुहणंतय-मुहपत्तिनी पडिलेहणा दोप्स बत्तोसा-वत्रीश दोष / अक्षर तणुपेह-शरीरनी पडिलेहणा दुगुण-छा गुणाश दोष छगुण-छ गुण दुग्गह-बे अवग्रह गुरुपगीसा-गुरु अक्षर पञ्चीश || // 65 // in Education Internati For Personal & Private Use Only www.ebay.co Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सय मुहणंतय, तणुपेह पणिस दोस बत्तीसा॥ छ गुण गुरुठवण दुग्गह, दुछवीसख्खर गुरुपणीसा // 8 // ViaNVARVINANIWavedavAVANAGANVaasawaaaaaa शब्दार्थ-१० आवश्यकनं. 11 मुहपत्तिनी पडिलेहणानु, 12 शरीरनी पडिलेहगार्नु, ए त्रग पच्चीश पचोश करवार्नु, 13 बत्रीस दोषमुं, 14 छ गुणर्नु, 15 गुरु स्थापनानु, 16 बे अवग्रहनुं अने 17 बसो छवीस अदंरमां पच्चीस गुरु वणर्नु // 8 // ___ विस्तारार्थः-दशमुंवांदणाने विषे आवश्यक साचववां, अग्यारमुं मुखनंतक एटले मुहपत्तिनी पमिलेहणा करवी, बारमुं शरीरनी पमिलेदणा करवी, एत्रणे वानां पच्चीश पच्चीश करवां ते कदेशे, पणिस शब्द सर्वने जोमवो. तेरमुं वांदणां देतां बत्रीश दोष टालवा ते कदेशे, चौदमुं वांदणां देतां गुण उपजे ते कद्देशे, पन्नरमुं वांदणां देवामां सादात् गुरु न होय तेवार सजाव अने असनाव रूप गुरुनी स्थापना करवी ते कद्देशे, शोलमुं वांदणां देतां बे अवग्रह साचववा, ते कहेशे; सत्तर वांदणाना सूत्रने विषे बशें नेब्बीश अदर, तेमां गुरु अक्षर पञ्चोश बे ते कहेशेण Ma/tas/PAawatamaate/AADI/AADIVAMNIAMAAMAU sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गु०म Poswwapipaas DIEE HI a vetate/teaserpetratakoAAMS पयअडवन-पद अठ्ठावन | आसायण तिचीसं-तेत्रीश | दुवीसदारेहिं-बावीश द्वारे | बाणउद-बाणुं छठाणा-छ स्थानक आशातना करीने ठाणा-स्थानक छगुरुवयणा-छ गुरुना वचन | दुविहि-वे विधि चउसया-चारसें पय अडवन्न छ ठाणा, छ गुरु वयणा आसायणतित्तीसं // दुविहि दुवीसदारेहिं, चउसया बाणउइठ्ठाणा॥९॥ शब्दार्थ-२८ अहावन पदनु, 19 छ स्थानक, 20 छ गुरुवचनन, 21 तेत्रीस आशातनानुं अने 22 वे प्रकारना विधिनुं द्वार. ए सर्व बावीस द्वारे करीने चारसो वाणुं स्थानक छे. // 9 // विस्तारार्थः-अढारमूं वांदणानां सूत्रांने विषे पद अहावन लेते कहेशे, उंगणीशमूं वांदणां देतां शिष्यने प्रश्न प्रलवालक्षण वीशामानां स्थानक ते कशे. वीशमं वांदणां देतां प्रश्नोत्तर रूप ब गुरुनां वचन , ते कद्देशे, एकवीशमुं वांदणां देतां गुरुनी तेत्रीश बाशातना न करवी Bavisavanasapnaomsease/tsaveta/taavat90/980a // 66 // For Personal & Private se Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marawadeiGaavaastaavitaanaashaitANVARUNSEE तेनां नाम कहेशे, बावीश, वांदणाने विषे बे प्रकारनो विधि कहेशे. एम वांदणाना बावीशहारें करीने सर्व मली चारशेने बाणुं स्थानक थाय // ए॥ थंक. मूलधारनां नाम. उत्तर नेद. शरवालो. अंक. मूलधारनां नाम. उत्तर नेद.शरवालो. 1 वंदननाम. 5 ए वांदणांना कारण. G 45 2 दृष्टांत. 10 आवश्यक. 250 3 वांदवाने अयोग्य..., 15 11 मुहपत्ति पमिलेहण. 25 एए वांदवाने योग्य. शरीर पमिलेहण. 5 वांदणांना अदाता.. 13 वांदणांना दोष.. 35 155 6 वांदणांना दाता. 14 वांदणांना गुण. 6 150 7 निषेधनां स्थानक. 5 33 15 गुरु स्थापना. 1 एए 7 अनिषेधनां स्थानक. 4 37 / 16 अवग्रह. 2 . 161 VaastatementARVAamvaastamitatauntoue/top/NAMINANTRVAIN 12 शर Inn Education international For Personal Private Use Only wwwny Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गुभा. // 67 // awasapueVARDARBara/RRE/APNWARVADEEP 17 अक्षरनी संख्या. 26 3720 वांदणांमां गुरुवचन. 6 457 10 पदनी संख्या. 57 445 - 1 गुरुनी आशातना. 33 ४ए रए स्थानक. 6 451 5 विधि. ४ए हवे पूर्वोक्त बावीश धारमा पहेयुं पांच नामनु द्वार कहे डे. वंदणयं-वंदनकर्म विणयकम्म-विनयकर्म चिइकम्म-चितिकर्म पणनामा-पांच नाम दुह-बे प्रकारे पूअकम्म-पूजाकर्म किइकम्म-कृतिकर्म गु रुवंदग-गुरुवांदणां द वेभावे-द्रव्य अने भावे ओहेणे-सामान्य प्रकारे RAprivanaPMEDABADWABE/ वंदणयं चिइकम्मं, किइकम्मं विणयकम्मपूअकम्मं // गुरुवंदणपणनामा, दब्वे भावे दुहोहेणं // 10 // waaort08/04/05 // 17 // For Personal Private Use Only www.janelibrary.org. Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NAVANANDANBAROVAVIDAANVARV शब्दार्थ-१ वंदनकर्म, 2 चितिकर्म, 3 कृतिकर्म, 4 पूजाकर्म अने 5 विनयकर्म. गुरुदननां आ पांच नाम, द्रव्य अने भाव एम बे प्रकारना सामान्यथी जाणवा. // 10 // द्वा. 1 . विस्तारार्थः-प्रतिहारनी गाथा कहे . प्रथम वंदनकर्म ते अनिवादन स्तुति रूप जाणवू बोजु चितिकर्म ते रजोहरणादि उपकरण विधि सहितपणे कुशलकर्मन कर जाणवं. त्रीजु कृतिकर्म ते शरीर मस्तकादिकें अवनमन करवू. चोथु पूजाकर्म ते प्रशस्त मन, वचन अने काय चेष्टा रूप जाणवं. पांचमुं विनयकर्म ते पूर्वोक्त चार प्रकारें विशेष उद्यमपणुं जाणवू. ए गुरु वांदणांनां पांच नाम ते वंदनाना पर्याय पाणवा. ए एक व्ययकी वांदणां अने बीजां नावथकी वांदणां एम बे प्रकारे उधेन एटले सामान्य प्रकारे जाणवां // 10 // ___हवे पांच दृष्टांतोनुं बीजु झार कहे . सोयलय-शीतलाचार्य | कन्हे-कृष्णमहाराज / संबे-शाम्बकुमार दिलंता- दृष्टांत ख्खुडुए-क्षुल्लकाचार्य सेवगदु-राजाना बे सेवकनो पंचे-पांच किइकम्मे-वांदणाने विषे वीर-वीराशालवी पालए-पालक | ए-ए | दबभावेहि-द्रव्य भावें करीने VaavaAMAVARGI/AAGRemotecomc/BG0/20Geotanicataste/teatta A a/AMMARIVARIVAJIRANIVAARY For Personal Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pa मु०भा० गु०भा० t // 68 // सीयलय ख्खुडुए वी-र कन्ह सेवगदु पालए संबे // पंचे ए दिलुता, किइकम्मे दवभावहिं॥११॥ दारं // 2 // de S शब्दार्थ-वंदनकर्म उपर शीतलाचार्यनो, चितिकर्म उपर क्षुवकाचार्यनी, कृतिकर्म उपर वीरा शालवीनो अनेकप्णनो, पूजाकर्म उपर राजाना बे सेवकनो अने विनयकर्म पर पालक तथा शांचनो दृष्टांत जाणो. आ पांच दृष्टांत कृति कर्म उपर द्रव्य अने भावी जाणवा. // 11 // द्वा. 2 विस्तारार्थः-प्रथम वंदन कर्म उपर अव्यवंदन अने नाववंदन आश्रयी शीतलाचार्यनो दृष्टांत, बीजा चितिकर्म उपर कुखकाचार्यनो दृष्टांत जाणवो. त्रीजा कृतिकर्म उपर वीरा शालवी नो अने कृष्ण महाराजनो दृष्टांत जाणवो. चोथा पूजाकर्म उपर राजाना बे सेवकोनो दृष्टांत जाणवो. पांचमा विनयकर्म उपर श्री कृष्णमहाराजना पुत्रपालक अने शाम्बनो दृष्टांत जाणवो ए पांच दृष्टांत ते कृतिकर्म एटले वांदणाने विषे अव्यन्नावें करीने जाणवा / / 11 // हवे ए पांचे itSHURAapaliDARUDASEDinanataapital/RLDolasavets 68 // PA For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ memadravanaaenyeJADAVaavaasaeaaaaaaaa दृष्टांतोनी कथा कहे बे. ___ हविणार नयरना वज्रसिंह राजानी सोनाग्यमंजरी राणीने शीतलनामा पुत्र हतो, अने शृंगारभंजरी नामे पुत्री हती. ते कंचनपुरनगरें विक्रमसेन राजाने परणावी, अनुक्रमें शीतलपुत्र || राजा थयो, तेणें धर्मघोषसूरि पालेंथी दीक्षा लीधी, पनी विज्ञातसिद्धांत गीतार्थ यज्ञ, श्राचार्यपद | पाम्या. हवे तेनी नगिनीने चार पुत्र सकलकलामां निपुण थया जाणी तेमनी मातानिरंतर पोताना पुत्र आगल नाश्नी प्रशंसा करे अने कहे के धन्य कृतपुण्य पृथिवीमाहे एक तमारो मातुल बे, के जेणे राजन्नार बांमी दीक्षा लीधी ! एवी प्रशंसा सांजली ते चारे पुत्र संवेगपणुं पाम्या. पनी स्थविरपासें दीदा लश् बहु श्रुत थ गुरुने पूर्वी पोताना मामा शीतलाचार्यने एक पुरे श्राव्या सनिली तेने वांदवाने अर्थे गया. तिहां जातां विकाल वेलाये गाम बाहेर एक देवलमा रह्या. माहे पेसतां एक श्रावकने जणाव्युं के अमारा मातुलने कहेजो जे नाणेज साधु आव्या बे. हवे ते चारे नाणेजने रातें शुलध्यानथी केवलज्ञान उपज्यु. प्रनाते तेमनुं अनागमन Me/amoup/aouratoutsoleuangdom/us/ARDAstroV9 / Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MU मु०भा० Awaaaaves/mavida गु०भा० v aaTVVIE/AAMWe/tanaaye | जाणी मातुल आव्या, तेहने अनादर करता जाणी कषाय दमकमां आवते दंगक थापी इरि यापथिका प्रतिक्रमी व्यथी वंदन कीधुं, तेवारे ते बोख्या अहो ऽव्यवंदन कषाय कंमक वधते वांद्या, परंतु नाववंदने कषायोपशांतियें वांदो, ते सांजली मामोजी बोल्या तमें केम जाण्यु ? तेवारें नाणेज बोल्या के अमें अप्रतिपाती ज्ञानें करी जाण्यु. ते सांजली मामोजो मनमा विचारवा लाग्या के अहो में केवलीनी आशातना करी, एम विचारी कषायस्थानकथी निवर्त्या अने ते चारे केवलीने वांदवा लाग्या, अनुक्रमें चोथा केवलीने वांदतां मामाने पण केवलज्ञान उपमुं. ए शीतलाचार्यने प्रथम व्यवंदन पनी नाववंदनकर्म थयु. ए प्रथम उदाहरण // हवे वीजा चितिकर्म उपर छलकनो दृष्टांत कहे ते. जेम एक कुखक नला लक्षणवालाने, आचार्य अंत समयें पोताने पदें स्थाप्यो, गीतार्थ साधु पासें नणे, ते पण विशेषथी नक्ति साच वे. एकदा समयें मोहनीय कर्मना उदयथी नग्न परिणामी थयो; पठी साधु निदायें गये थके वाहेर नूमिने विष निकल्यो पली एक वनने विषे एक दिशें जातां थकां, तिलक, अशोक चंप V ADING/satraheta/INVITAMANG in Education national For Personal & Private Use Only www any Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ new.vawwwkwa/AAVATMEROHongeantervatsitesamata/SHRAIN कादि विविधवृक्ष तिहां हता तेम बतां एक शमी एटले खीजमीनो वृद तेनु कोश्क पूजन करतो हतो ते देखपूजक प्रत्य पूज्युं, के तमे ए कंटकवृदनें केमं पूजो बो ? तेणे कयु के अमारा बमिलायें पूर्वे ए वृदने पूज्यु ले माटे अमे पण पूजीये ये. ते वचन सनिलोने खुलके विचारयुं जे आ शमी एटले जांखरांना वृक्ष सरिखो हुँ बुं; तेने उत्तम वृद समान गुणवंत लोक पूजे बे. अने महारामां श्रमणपणुं नथी; मात्र रजोदरणादि चितिकर्मगुणे करी मुजने पूजे डे, एम विचारी, पालो श्रावी, साधुनी पासे आलोयणा लई, उजमाल थयो. एम एने पूर्वे ऽव्य चितिकर्म हतुं, पबनावचितिकर्म उत्पन्न थयु. ए बोजु उदाहरण जाणवू. हवे त्रोजा कृतिकर्म उपर वोरा शालव अने श्रीकुश्मन उदाहरण कहे . श्रीनेमिनाथ नगवान् छारिकाये समोसरया तेवारे श्रीकृश्ने सर्व साधुउने द्वादशावर्त वांदणे वांद्या, एने नावकृतिकर्म कहीये, असे श्रीकृश्नने रूहुं मनववाने अर्थे वीराशालवीये पण वांद्या एने अव्य कृतिकर्म कहीये. एना संबंधनो विस्तार आवश्यकवृत्तिथी जाणवो. एत्रीजु उदाहरण जाणवू. PaavaruwarutvaaVANAGAVARANAVARGONEmaeateVARE/APNNews For Personal Private Lise Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गु०भा० // 70 // हवे चोथा पूजाकर्म उपर बे सेवकनो दृष्टांत कहे जे. जेम एक राजाना बे सेवक दता ते | गामनी सीमा निमित्ते विवाद करता राजपंथे जाता हता, मार्गमा साधु देखीने प्रशस्त मन, वचन अने कायायें करी एके कयु के " साधौ दृष्टे ध्रुवा सिद्धिः” एटले साधु दिठे बते निश्चयें कार्यसिद्धि थाय, एमां संशय नथी, एम कही एकाग्र चित्ते साधुने वांद्या. अने बोजे सेवके उलटी हांसी रूपें व्यवहार मात्र तेने अवनमन करयुं, पनी राजकारें गये थके पहेला सेवकनो जय थयो, अने वीजानो पराजय थयो एम एकनें अव्यथी पूजाकर्म अने वीजाने नावथी पूजाकर्म थयु; ए चोथु उदाहरण. हवे पांचमा विनयकर्मने विषे पालक अन्नव्य अने सांवनो दृष्टांत कहे . श्रीनेमिनाथ नगवान् द्वारिका नगरी समोसरया, तेवारें श्री कृष्ण बोल्या के जे श्रीनेमीश्वर नगवान सर्वथी पहेलु जई वंदन करशे, तेने महारो पट्ट तुरंगमविशेष थापीश, ते सांनलो तुरंगमने लोने प्रथम रात्रि बतां पण पालकें श्रावीने वांद्या, ते अव्यथकी वंदन जाणवू. अने त्यां शांब VIEWEREDMIVisueue/a/RS/SAMVatasava in Education national For Personal & Private Use Only www janeiro Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ savitappamousafeMaths/deo/navavantants/ कुमारें नावथकी वांद्या जे, ते नाववंदन जाणवू. ए पांचमुं उदाहरण कद्यु. ए पांच दृष्टांतनुं बीजं दार थयुं, उत्तर बोल दश थया // 11 // हवे पासबादिक पांच अवंदनीकनुं त्रीजु द्वार कहे . पासथ्यो-पासथ्यो / संसत्तओ-संसक्त / ति-त्रण अवंदणिज्जा-अवंदनीय उस्सनो-उस्सनो, प्रमादि | अहाछंदो-यथाछंदो दुग-वे जिणमय मि-श्री जिन मतने विषे कुसील-कुशालीभो / दुग-ये | अगविहा-अनेक प्रकारे / पासत्थो उसन्नो, कुसील संसत्तओ अहाछंदो॥ दुग दुगतिदुगणेगविहा,अवंदणिज्झा जिणमयंमि॥१२॥दारं 3 // शब्दार्थ-पासत्छो, उसनो, कुसीलीयो, संसक्तो अने यथाछंदो ए पांचना अनुक्रमे वे, वे, ऋग, बे अने अनेक भेदो छे. जिन मतमा ते पांच अवंदनीय जाणवा. // 12 // द्वा. 3 PatsanmanasamataoBERVAtamasana/M/RA Jan Education international For Personal & Private Use Only www. by.org Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaaavoup/moon गु०भा० // 71 // SODEapanasp/sosoradotectetapravivatimetasote G/RDER/tag/ * विस्तारार्थः-जे ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनी पासे रहे ते प्रथम पासबो जाणवो तथा जे |||गु०भा० साधु सामाचारीने विषे प्रमाद करे ते बीजो उस्सन्नो जाणवो. तथा जे ज्ञान, दर्शन अने चारि. वनी विराधना करे ते त्रीजो कुशीलीयो जाणवो. तथा जे वैरागी मले तो तेनी साथे पोते पण वैरागी जेवो बनी बेसे अने जो अनाचारी मले तो तेनो साथे पोते पण अनाचारी बनी बेसे, ते चोथो संसक्त जाणवो, तथा जे श्रीतीर्थकरनी आज्ञा विना पोतानो श्छायें प्रवर्ते, पोतनी श्छायें | प्ररूपणा करे, ते पांचमो यथाउंदो जाणवो. ए पोताने बंदे प्रवर्ते माटे एने बंदो कहीये. तिहां एक देशथ। बीजो सवेथी मली बे नेद पासबाना, तथा एक देशयी बीजो सर्वथी मली बे नेद उस्सन्नाना, तथा ज्ञानकुशील; दर्शनकुशील अने चारित्रकुशाल मली त्रण नेद कुशीलीयाना, तथा संक्लिष्ट चित्त अने असंक्लिष्ट चित्त मली बे नेद संसक्तना, तथा अनेक प्रकार, बंदाना जाणवा, एटले यथाबंदा अनेक नेदना थाय ने ए पासबादिक पांच जे कह्या ते श्रीजिनमतने विषे अवं // 7 // दनीय जाणवा // 12 // DATEGosactivatsupvtomo/ inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Nawaanwaewwesaaucravdeavate/PGD/ हवे ए पांचवें कांश्क विशेष स्वरूप लखीये बैये. तिहां मिथ्यात्वादिक बंध || हेतुरूप पास तेने विषे जे रहे, तेने पासबो कहीयें. अथवा झानादिकनें पोतानी पासें करी मिथ्यात्वादिक पासमा रहे एटले ज्ञानादिकने पासे राखे पण सेवे नही, अथवा पासनी पेरें पोतानुं | पासुं मलिन राखे ते पासबो कहीये. तेना के नेद -एक देश पासबो अने बीजो सर्वपासलो. तेमां जे कारण विना शय्यातर पिंक, अन्याहृत एटले साहामो आण्यो पिंक, राज्यपिम, नित्यर्पिम अने || अग्रर्पिमादिक नुंजे. तथा गाम, देश, कुल श्रावकनीममता मांझे, जेम के "था महारा वासितना व्या 3" ते कुलादिकनी निश्राये विचरे, तथा गुर्वादिकने जे विशेष नक्तियोग्य रहस्यनूत थापना | कुल , ते कुलमांदे निष्कारणे प्रवेश करे, तथा "नित्यप्रत्ये तमने एटवू देश्शुं तमे नित्य आवजो" | एवीरीतनी जे निमंत्रणा करे तेनी पासें ते पिंमलीये तेने नित्य पिंक कहीये. तथा नाजनमांदेथी वापरया विना उंदन नक्तादिकनी शिखा उपरितन नाग लक्षण लीये, तेने अप्रपिंम कहिये. के. टलाएक एम कहे जे के कारण विनाप्रधान सरस आहार लोये तेने अप्रपिंकहिये.तथा बहेंतालोश Sardaaivatego/anilevateerwasanaoncotes/tract/ARNDI mawara For Personal & Private Use Only www.alby Dig Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WatAGurindava ०भा० सु०भा० // 72 // dase/OD65DIADDEDi | दोष आहारना न राखे, वारंवार आहार लीये तथा जमणवार, विवाह अने प्राहणामां शिखंमि जोतो फरे, थाहारनी लालचे मुखें कहे. तिहां निमित्त दोष न होय, सूजतो होय ते माटें| तथा सूर्य श्राथमता उगताथी मामी जमे, मांगलीये आहार न करे, सन्निधि राखे, पोतानी | निश्रायें औषधादिक अलगु गृहस्थने घरे मूकावे, अव्यादिक सहित विचरे, तथा ज्ञान | अव्यादिक मिषे करी स्वनिश्रायें ज्ञानादि मारनां नाम लेई, पुस्तकादि संग्रहे, व्यादि सहित विचरे, मुखे कहे अमे निग्रंथ बैये पूर्व साधु समान गर्व राखे. इत्यादिक अनेक प्रकारे साधु लक्षणथी विपरीत होय ते देश पासबो जाणवो.. तथा जे सर्वथा ज्ञान, दर्शन अने चारित्रथी अलगो रहे, केवल सिंगधारी, वेषविमंबक, | गृहस्थाचार धारी होय, ते सर्वथी पासबो जाणवो.. . बीजो जे क्रियामार्गने विषे शिथिलता करे, अथवा खेद पामे तेने उस्सन्नो कहीयें; तेना | बे नेद ले. एक देशथी अवसन्नो अने बीजो सर्वथी अवसन्नो, तिहां जे आवश्यक, प्रतिक्रमण, a SEVasavarEANSamaveena S72 // STATIPetoots inin Education international For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T IAN h NavivapuwainmenamvasawateATEmwatsawitraa/ देववंदनादि, सकाय ते पठन पाठनादि, पमिलेहण, मुखवस्त्रिका, वस्त्रपात्रादि, निदा ते गोचर कालादि, ध्यान ते धर्मध्यानादि, अन्नक्तार्थ ते तप नियम अन्निग्रहादि, आगमन ते बाहेरथी उपाश्रयमा प्रवेशलक्षण, निसिहिया ते पग पूंजवादि, निर्गमन ते प्रयोजनबिना उपाश्रय थी बाहेर निकलवा लक्षण, स्थान ते कायोत्सर्गादि, निषोदन ते वेसवं, तुयठण ते त्वग्वर्तन एटले शयन इत्यादिक, दशविध चक्रवाल साधु समाचारी, तथा उघ पद विन्नाग सामाचारी प्रनुख विधि संयुक्त न करे, अथवा उठी अधिकी करे अथवा कषाय कंमक सहित करे. अथवा राजवेपनी पेरे करे, नय मानीने करे, तथा गुर्वादिकना वचन सांजली दुमणो थश्ने वचन खंमन करे, आक्रोश करे, इत्यादिक लक्षणे करी देश अवसन्नो जाणवो. अने सर्वथकी अवसन्नो तो चोमासा विना शेषकालें पाट, बाजोग, निष्कारण संथारे, | सेवे, स्थापनामि जमे. संथारो पाथरयो राखे, प्रानृतिकादि दोष जमे. इत्यादिक लक्षणे सर्व अवसन्नो जाणवो. - apolitate/09/mo/soratadpatti/state / inin Education international For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WANER) भा // 73 // PARNAMAANyahimerabw/AROVImavtea/twiewvisew/ त्रीजो जेनु कुत्सित, निंदनीय मातुं शील एटले आचार होय, तेने कुशीत कही. तेना त्रण नेद . ज्ञानकुशील, दर्शनकुशील अने चारित्र कुशीन, तिहां ज्ञानकुशील ते अकाल, अविनय, अबहुमान, गुरुनिन्हवता. योग उपधान हीन, सूत्र, अर्थ अने तदुनय हीन, इत्यादिक आशातनायुक्त थको ज्ञान नणे तथा आजीविकातें पठन पाठन संन्नलाव, लखवं, लखावq, नंमार कराववा, नंदी समारचनादि स्वार्थना उपदेश देवा, तथा श्राजीविका हेते धर्मकथा कहे, नणे, घर घर धर्म संनलाववा जाय, पोताना थवाने हेतें स्त्री बाळकादिकने नणावे, अनेरा झानना नंमार उलवे, ज्ञानने उलवे, लखवां लखाववां, क्रयविक्रय पुस्तकादिकोनो करे, करावे, इत्यादिक लक्षणे ज्ञानकुशोल जाणवो. बोजो दर्शनकुशील ते शंका काक्षा विचिकित्सा व्यापन्न, दर्शननिन्दव, अहाउंदा, कुशीलिया वेषविलंबनादिक साथे परिचय करे, एटले तेनी साथै बालाप संलाप पठनादिक करे, ते दर्शनकुशील जाणवो. NDERINDAVARVAREERAVatsasiatvaateevrawnomen For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VAR/SIMRAVAARAMBINEDOS/ / त्रोजो चारित्रकुशील ते ज्योतिष, निमित्त, अदरकर्म, यंत्र, मंत्र, नूत कर्म, बलिपिक, उ. ऊणी, दानादि, सोनाग्य दो ग्यकारी, जमी, मूली, विद्यारोहणादिक, पादलेप, आंख अंजन, चूर्ण, स्वप्नविद्या, चिपुटीदान प्रमुख, अतीत अनागत वर्तमान निमित्तकयन, पोतानी जाति कुल विज्ञानादिक स्वार्थकार्य प्रकाश करे, नख, केश, शरीर, शोना करे, वस्त्र पात्र मादिक बहु | मूल्यवाला सुंदर सुकोमलनी वांबा करे, शिष्यादिक परिग्रहनी विशेष तीवता धरे, निष्कारण | अपवाद पद सदूषण मार्ग प्रकाशे, तया सेवे, श्यादिक लक्षणे चारित्रकुशील जाणवो. ' चोथो संसक्त, ते पासबा अथवा संविझादिक जन जेवानी साथे मले त्यां तेवो थई प्रवर्ते, अथवा मूलोत्तर गुण दोष सर्व एका प्रवर्त्तावे, जेम गायनी आगल सुंमलो मूक्यो होय तेमां सरस, नीरस, कपाशिया, खोल, घृत, मुग्धादिक एक मेब्यु होय तो ते सर्वने एकगंज खाई। जाय पण तेनुं विवेचन न करे. तेम ए पण गुण अने दोष सर्वने एका प्रवर्तीवी देखामे तेने संसक्तो कहीये, ते एक संक्लिष्टचित संसक्तो अने वीजो असंक्लिष्ट चित्तसंसक्तो एवा ANVEERIEVARJATARIRAMPS/AAGJaaaaa 0/0 / B/STANTRVASNASE a aaatanAIPUR For Personal Private Lise Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गुम 74 // COMMetroienominatom/itosicJAISAPatrisatasaputveis | बेनेदें जाणवो. तिहां जे प्राणातिपातादिक पांच आश्रवनो सेवनार, द्धिगारव; रसगारव श्रने शातागारव पत्रण गारवें करी सहित, स्त्रीगृहादिक सेवनने विषेप्रसक्त, अपध्यानशील, परगुणमत्सरी, इत्यादि गुण युक्त ते संक्लिष्ट चित्तसंसक्तो जाणवो. तथा पोताना आत्माने जेबारे जेवो प्रसंग मले ते वारे तेवो थाय एटले प्रियधर्मी साधु मले ते वारे साधुना आचार पाले अने अप्रियधी पासबो मले तेवारे तेवो थाय, लिंबूना पाणीनी पेरे तद्रूप थ जाय ते असंक्लिष्ट चित्तसंसक्तो जाणवो. इति // पांचमो यथावंदो ते यथा रुचियें प्रवत्तें, यथा तथा लवे, उत्सूत्र नाषे, पोताना स्वार्थना नपदेश आपे, स्वमति विकल्पित करे, परजातिने विपे प्रवर्ते, पारकी तांत करे, उपकारी धर्माचार्यादिकनी हेलना करे, आचार्य उपाध्यायना अवर्णवाद बोले, जेनाथी ज्ञानादिक पामे तेवा बहुश्रुतनी निंदा करे, गारव प्रतिबंधि होय, कारण विना विगय खाय, श्यादिक अनेक नेदे यथाउँदो जाणवो. ए पांचेनां विशेष लक्षण श्रीप्रवचनसारोद्धारवृत्ति तथा आवश्यकवृत्ति तथा - Jan Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BHAVaanavanaavanMRAJNAAREE/AVEtate/NAT/araavana उपदेशमालावृत्ति प्रमुख ग्रंथोथी जाणवा. ए पांचने अवंदनीय जाणवा. एमने वांदवाथी कर्मनिऊरा न थाय, केवल क्लेश अने कर्मबंध उपजे तथापि ए कहेला लक्षणवालो जो शान, दर्शन | श्रने चारित्रना सहाय कारणे सेव्यो होय तो वंदनीय जाणवो. जे माटे श्रीश्रागममांहे कडं डे | के पासादिक चारित्रना असंन्नवी होय पण दर्शनना असंन्नवी न होय ते कारणे ते सेव्य जा. णवा पण श्हां तो चारित्रीयो वंदनीय कह्यो डे ते अधिकार माटे चारित्रवंत ते वंद्य बे अन्यथा जो श्रचारित्रीयाने वंद्य कहीये तो जेटलां तेनां प्रमादनां स्थानक बे ते सर्व अनुमोदनीय थाय तेथी तेने वांदतो थको प्रवचन बाधाकारी थाय. ए रीते वांदणां देवाने पासबादिक पांच अयोग्य तेमनुं त्रीजु छार का. उत्तर बोल पन्नर थया // 1 // " हवे पांच वांदवाने योग्य तेमनुं चोथु छार कहे . आयरिय-आचार्य / थेरे-थिविर किइकम्मं-कृतिकर्म कायब्वं-करवू उवज्झाए-उपाध्यायजी तहेव-तेमज पवत्ति-प्रवर्तक | गयणिए-गुण रत्ने अधीक निजरट्टा-कर्मनिर्जराने अर्थे इमेसिपंचन्ह-ए पांच क/ALIVANTARVANANJitertavita/AAGD/MVAANVAtret-JAN sinin Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० ०भा० // 75 // PathartsupAANIAnovocessitivevasaetoutopesasur आयरिय उवज्झाए, पवत्ति थेरे तहेव रायणिए॥ किइकम्मनिज्जरठ्ठा, कायब मिमेसि पंचन्हें ॥१३॥दारं // शब्दार्थ-भाचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर तेमज रत्नाधिक. निर्जराने अर्थे ए पांचने कृतिकर्म (वंदन) करवं. विस्तारार्थः-पहेला ज्ञानादिक पांच आचारे करी युक्त ते श्रीश्राचार्य कहीये, बीजा श्रीउपाध्यायजी, त्रीजा जे तप संयमने विषे प्रवर्तीवे, गझनी चिंता करे ते प्रवर्तक कहीये, चोथा जे चारित्रयी पमता होय तेने प्रतिबोध श्रापीने पाला ठेकाणे थाणे तेने थिविर कहीये तथैव एटले तेमज वली पांचमा गलने अर्धे क्षेत्र जोधा माटे विहार करे, सूत्र अर्थना जाण तेने रत्नाधिक गणाधिप कहीये, ए कडा जे आचार्यादिक पांच जण तेने कृतिकर्म एटले वांदणार्नु कर्म कर, एटले वांदणां देवां ते केवल कर्मनिर्जराने अर्थे जाणवू // 13 // ए श्राचार्यादिक पांचवें कांश्क विशेष स्वरूप नीचे लखीये बैये. maavarateGVANVAGOVAVaavamahatseen inin Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAMMEANINEMANTRVASNEPuwasantvNANJAspatra/mVIORN श्राचार्य ते सूत्र ने अर्थ उन्नयना वेत्ता, प्रशस्त समस्त लक्षणे लक्षित, प्रतिरूपादि गुणयुक्त शरीर होय, जाति कुल गांनीर्य धैर्यादि अनेक गुणमणियुक्त, अाठ प्रकारनी गणिसंपदायें करी युक्त, पंचाचार पालक, पलाववाने समर्थ. बत्रीश बत्रीशी गुणें करीबिराजमान आर्य पुरुर्षे सेवा योग्य, गबमूलस्तंननूत गडचिंतारहित अर्थनाषी, एटले जेमांगठचिंता न उ. पजे एवा अर्थ नाषे एवा गुणयुक्त ते आचार्य जाणवा. तथा उपाध्याय ते जेनी पासें अगीयार अंग, बार उपांग, चरणसित्तिरी, करणसित्तिरीनणीये, आचार्यने यूवराज समान, शान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयी युक्त, सूत्र अर्थना जाण, आचार्यने हितचिंतक, ते उपाध्याय. तथा प्रवर्तक ते यथोचित्त प्रशस्त योग जे तप संयम तेने विष साधुसमुदायने प्रवर्त्तावे, गलने योगक्षेम करवानी योग्यतानी संन्नालना करनार जाणवा. तथा शिविर ते ज्ञानादिक गुणोने विषे सिदाता साधुने इहलोक तथा परलोकना IVANAVOND INDIAN For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गु०मा० // 76 AatviaVe/otsavitaanusavtate/ Ae/atesanetse/M अपाय दृष्टांत देखामी संयममार्गमां स्थिर करे; ते स्थविर त्रण प्रकारें . एक शाठ वर्षना ते वयःस्थविर; बीजा वीश वरसदीदा पर्याय जेने थयां होय ते पर्यायस्थविर; त्रीजा जे निशीथादिक छेदग्रंथना रहस्य जाणे; जघन्यथी समवायांगादि श्रुत जाणे; ते श्रुत स्थविर पण श्हांतो जेने आचार्यादिकें स्थविर कीधा होय ते स्थविर जाणवा. तथा रत्नाधिक ते गबने काय शिष्य उपधिप्रमुख लाननें अर्थे विहार करण शील सूत्रार्य वेत्ता एजें गणावछेदक एवं पण नाम कहीयें एवा गुणवंत ते पर्यायें ज्येष्ठ अथवा लबु होय तो पण तेने रत्नाधिक कहीयें. एटले पांच वंदनिकनुं चोयुं हार थयु. उत्तर बोल वीश थया // 13 // हवे चार जण पासे वांदणां न देवरावां तेनुं पांच, हार तथा चार जण पासे प्रायः . वांदणां देवरावेवां; तेनुं हुं धार; ए बे छार साथे कहे जे. माय-माता | अउमावि-वयादिके लघु होय किइकम्म-वांदगां कुणंति-करे पिअ-पिता | तहेव-तेमज [पण न कारिजा-नकरावे . पुणो-वली निभाया-महोटोभाइ सवरायणिए-सर्व रत्नाधिक चप्समणाई-चार श्रमगादिक dahavivaasiVAHANIWatewiveDANG/RADAINIVITANOAtAasANGANA For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I माय पिअ जिठ्ठभाया, अउमावि तहेव सव रायणिए॥ किइकम्म न कारिजा, चउसमणाई कुणंति पुणो॥१४॥दारं५.६॥ det vasawasavasawasa/sawasasaassastemaamam शब्दार्थ-माता, पिता, म्होटो भाइ तेमन वयथी न्हाना पण ज्ञानादिकथी मोटा. ए चार पासे वांदणां देवराववान न करवू. वली चार श्रमणादिक वांदणा आपे. // 14 // द्वा.५-६ विस्तारार्थः-एक पोतानी माता; बीजो पोतानो पिता; त्रीजो पोतानो ज्येष्ठ नाइ एटले मोहोटो नाश् चोथो वयादिके लघु होय एटले वय प्रमुखें तो यद्यपि पोताथी न्हानो होय तो पण तेमज एत्रणेनी परें ते सर्व रत्नाधिक एटले सघला पर्यायें करी ज्येष्ठ होय ज्ञान दर्शन अने चारित्रं करी अधिक होय ए चारनी पासें प्रायः वांदणां देवराववानुं न करावे. ए विधि | साधुने जाणवो; अने गृहस्थ पासे तो वंदन देवरावे. ए पांचमुं द्वार थयु. उत्तर बोल चोवीश थया.॥ t e/e / For Personal & Private se Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नु०भा० गु०भा० // 77 // Varawataapanajarsdraatsapwapsowaupasanasomamera तथा वार श्रमणादिक एटले साधु साध्वी; श्रावक अने श्राविका ए चार जण ते कृतिकर्मने वली करे एटले ए चार जण वांदणां आपे. ए ब वांदणां देवा योग्य चार जण तेनुं द्वार थयु. उत्तर बोल असावीश थया // 14 // _ हवे पांच स्थानकें वांदणां न देवां, तेनुं सातमुं हार कहे . विख्खित्त-विक्षिप्त | गाकयाइ वंदिज्जा-क्यारे पण | नीहार-नीहार | कामे-कामना, इच्छा पराहुत्ते-परागमुख चांदवा नहि कुणमाणे-करता होय अ-वली पमत्ते-प्रमादी आहारं-आहार | काउ-करवानी REACTIVIRAGYAmateuteritocraNAAGINORMATINESe/4OM/Aadiwan विख्खित्त पराहुत्ते, पमत्ते मा कयाइ वंदिजा॥ आहारं नीहारं, कुणमाणे काउ कामे अ॥ 15 // दारं / / शब्दार्थ-गुरु व्यग्र चित्तवाला, बीजी बाजु मुख करी बेठेला, क्रोधवाला अथवा मूतेला, तेमन आहार अने नौहार करता होय अथवा करवानी इच्छा करता होय तो न वांदवा. For Personal & Private Use Only www.ebay.co Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Daveaawaauswanawasatewatastawragopatnaspatane विस्तारार्थः-एक विदित गुरुथके एटखे जेवारें धर्मकथा करवामां व्यग्रचित्त होय, बीजो | कार्यादिकें करीने पराङ् मुख होय एटले संमुख बेग न होय पण उपरांग बेग होय; त्रीजें प्रमादी थका होय एटले क्रोधादिकें अथवा संथारवादिके प्रमाद सेवता होय; निमाबु थका होय; चो\ आहार पांचमुं नीहार एटले लघुनीति अथवा वमीनीति प्रत्ये करता होय; अथवा करवानी कामना एटले बांबना करता होय वली करवा जता होय एटले स्थानके केवारे पण गुरुने वांदवा नही. अहीं माशब्द निषेधवाचक डे // 15 // ए सातमुं द्वार थयु. उत्तर बोल तेत्रीश थया. // 33 // . हवे चार स्थानके वांदणां देवां; तेनुं आठमुं द्वार कहे जे. पसंते-प्रशान्त / उपसंते-क्रोधादिके रहित | तु-वली | किइकम्म-वांदणां आसणथ्ये-आसने बेठा होय उवठिए-उपस्थित मेहाची-पंडितजनो पजई-उयम करे अ-वली | अणुनवि-आज्ञा मागीने /AANDANDAtomsas/40/Alavwatestha/Amavataaya awom For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Na/Aana ०भा० गु०भा० 78 // RAMIVitamate/ evastati tisavitaets/AN पसंते आसणत्थे अ, उवसंते उवठ्ठिए॥ अणुनवि तु मेहावी, किइकम्मं पउज्जई // 16 // दारं // ___ शब्दार्थ-शांत चित्तवाला, आसन उपर बेठेला, क्रोधादि रहित अने छदेण इत्यादि कहेवा तैयार होय एवा गुरुने बुद्धिमान पुरुषोए आझा मागवा पूर्वक वांदणा देवाने उयम करे. // 16 // द्वा.८ विस्तारार्थः-प्रशांतचित्त व्यापरहित गुरु होय, बीजु आसनस्थ एटले पोताने आसने | बेग होय, वली त्रीजु उपशांतचित्त एटले क्रोधादिकें रहित होय, चोथु उपस्थित होय एटले | बंदेण इत्यादिक कहेवाने संमुख उजमाल थया होय, एवा गुरु आदिकने वांदणां देवानी अनुझा | मागीने वली वांदणां देवाना विधिना जाण एवा मेधावी एटले पंमितजनो ते कृतिकर्म एटले वांदण देवा प्रत्ये प्रयुंजे एटले उद्यम करे॥१६॥ए आठमुंहार थयु.उत्तर बोल सामंत्रीश थया.॥ हवे श्राउ कारणे वांदणां देवां, तेनुं नवमुं द्वार कहे . MM/ NutanRRADIOBelovanisturasRADAMDAtiva // 78 // For Personal & Private Use Only Join Education international www.janesbrary Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAMVAANWAR/aNaIANAVIGO/AROVARANutantraMANM/ AM पडिक्कमणे-प्रतिक्रमणने विषे अवराह-अपराध | संवरणे-पच्चख्खाण करते / य-वली सज्जाए-सज्जाय भणती वखते पाहुणए--पाहुणा मुनि आवे | उत्तमद्वे-उत्तमार्थे वंदणयं-बांदणां देवाय . काउस्सग्ग-काउस्सग्ग / आलोयण-आलोचना पडिकम्मणे सज्जाए, काउस्सग्गे वराह पाहुणए // आलोयण संवरणे, उत्तमठे य वंदणयं // 17 // // दारं ए // -- शब्दार्थ-प्रतिक्रमणमां, स्वाध्यायमां, कायोत्सर्गमां अने अपराध खमाववामां वांदणा देवा. वली नवा आवेला साधुने आलोचनामां अने मासखमणादि तपरूप संवरमा तथा अंत सैलेखना करता एम आठ कारणे वांदणा देवा. // 17 // विस्तारार्थः-एक प्रतिक्रमणने विषे सामान्य प्रकारे वांदणां देवाय, बीजा स्वाध्यायवाचनादि लक्षण तथा सजाय पढाववाने विषे विधिवांदणां देवाय, त्रीजा पच्चरकाण करवाना कायोत्सर्गने विर्षे एटले आचाम्लादि योगादि पारणे परिमितविगय विसर्जामणी विगयपरिनोगनी sasarvanawanawaranp/etoutAGDARPANDHIM inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुभा० Dow गुभा० // 79 // vaaaaaaaaaaaawessorangememamava आज्ञा रूपें वांदणां देवाय, चोथा अपराध एटले गुरुनो विनय उसंघवा रूप पोतानो अपराध खमावतां वांदणां देवाय, पांचमा प्राहुणो महोटो यति आवे तेवार तेमने वांदणां देवाय, एटले माहोटाना समागमने वांदणां देवाय. बहा गुरुनी पासें बालोचना लेवाने अर्थे एटले वालोचना विहारादि समाचारी पद निन्न हुँते थके वांदणां देवाय, सातमा पच्चरकाण करतां अथवा मासखमणादिक विशेष तपरूप संवरने विषे वांदणां देवाय, आठमा उत्तमार्थे एटले अंतसमये अनशन करवाने विषे संलेषणाने विषे वली वांदणां देवाय, अथवा वांदवू थाय. ए आठ कारणे वांदणां देवाय, तेनुं नवमुं हार थयु. उत्तर बोल पिस्तालीश थया. // 17 // हवे अवश्य साचववा माटे आवश्यक कहीयें, ते वांदणां देतां पच्चीश 'श्रावश्यक सचवाय, तेनुं दशमुं द्वार कहे . . दोवणयं-बे अवनत / बार-बार दुपवेस-द्विपवेश ] आवसय-आवश्यक चसिर-चारवार शिर नमाडवू इगनिख्खपण एकवार नीकलq किडकम्मे-वांदणाने विषे आवता-आवर्त 1 तिगुत्त-प्रण गुप्ति - पणवीसा-पच्चीस DADIBUDDupataavaastuA3/9OR sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / Wareuds or asted today दोवणयं महाजाय, आवत्ता बार चउसिर ति गुत्तं // दुपवेसिग निख्खमणं, पणवीसावसय किइकम्मे // 18 // शब्दार्थ-वेवार अवनत, एकवार यथानात, बारवार आवर्त, चारवार शिरनुं आना, त्रण गुप्ति, बेबार अवग्रहमा प्रवेश करवो अने एकवार निकलवू. ए पच्चीस आवश्यक वांदणामां होय छे. // 18 // द्वा. 9 विस्तारार्थः-बे अवनत वांदणाने विषे जाणवां एटले बेवार नपरितन शरीर नाग नमाम्वो तिहां एक तो जेवारें "श्वामि खमासमणो वंदिलं जावणिजाए जिसीहियाए' एम कहीने नमे तेवारे बंदेणनी अणुजाण एटले आशा मागतो शरीरनो उपरितन नाग नमामे त्यारे गुरु बंदेण कहे. ए एक अवनत थयु, एम बीजीवार वांदणां देतां बीजो अपनत थाय. ए बे अवनत रूप बे आवश्यक थया. तथा एक यथाजात एटले जे रूपें दीक्षानो जन्म थयो हतो अर्थात् रजोहरण, मुहपत्ति avatARVatatemapeeAAVAteejartseite/AAGHVAMVE w inin Education international For Personal & Private Use Only www.alby Dig Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सु०भा० RNMDARuwatcURAwapsavita चोलपट्टमात्रपणे श्रमण थयो हतो तेटलाज नेला थई हाथ जोमेअथवा योनिथी बालक नीकलते जेम रचितकर संपुट होय तेम करसंपुट करया हाथ जोमेलाने ललाटे लगामे ते यथाजात कहीयें एम बे अवनत अने त्रीजु यथाजात मलीत्रण आवश्यक थयां. बार थावत्ते सूत्रानिधान गर्मित कायव्यापार विशेष जाणवां. तेमा प्रथम वांदणे व आवर्त थाय, ते श्रावो रोते:-प्रयम त्रण आवर्त तो "अहो” " कायं" “काय" ए बेबे अकरें नीपजे एटले पोताना हाथनां तला बे बंधां गुरु चरणे लगामे तथा उत्तान हाथे पोतानो ललाटदेश फरसे अने "1 अहो 2 कायं 3 काय संफासं” कहेतो मस्तक नमामे, तेवार पठी “खमणिजोथी मांमोने वश्कतो" पर्यंत यावत् करसंपुटे कहीने वली त्रण आवर्त्त त्रण त्रण अदरना कहे, तेमां एक अदर गुरुचरणे हाथ लगामतां कहे, बीजो अक्षर उत्तान हाथे वचाले विशामा रूप कहे अनेत्रीजो अदर ललाट देशे हाय लगामतां कहे, जेम "ज त्ताने" "ज वणि" " ऊंचने" एवा त्रण आवर्त त्रण त्रण अकरना कहेतो खामेमि waavawaruwaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaman E 80 amentarotamiVARGOV For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ st/ONLINN / / खमासमणो कही बीजी वार मस्तक नमाझे. ए रीतें ए प्रथम वांदणे उ थावर्त थयां तेम वली, बीजे वांदणे पण एज रीते ब आवर्त्त थाय, बे वार मली बार आवर्त रूप बार आवश्यक थाय. | सर्व मली पंदर थयां.. ____तथा चतुःशिरः एटले चार वार शिर नमाम तिहाँ पहेले वांदणे बे वार मस्तक नमामवं अने बोजे वांदणे पण बे वार मस्तक नमामबु मली चार वार शिर नमन थाय. एवं अंगणीश आवश्यक थयां. तथा त्रण गुप्ति ते मन, वचन अने काया ए त्रणने अन्यव्यापारथी गोपवी राखे ए त्रणने अव्यथी तथा नावथी अयत्नायें न प्रवर्त्तावे, एवं बावीश यावश्यक थयां. तथा द्विप्रवेश एटले बे वार आवश्यकें बे वार गुरुनी आज्ञा मागी अवग्रह मांहे प्रवेश करवा रूप बे आवश्यक अने एक वार अवग्रहथी बाहेर निकले एटले पहेले वांदणे आज्ञा मागी निसीहि कहेतो पग पूंजतो थको एकवार अवग्रह मांहे प्रवेश करे अने पड़ी आवस्तियाए क Vandanadiaodneedodasisamaaaaaavat / / / For Personal & Private Use Only www.alby Dig Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jana/ गुभा ADMINMaawinANWARRBonapart/swevarvawice हेतो पाउल पूंजतो एकवार पहेले वांदणे अवग्रहथी बाहेर निकले, अने बीजा वांदणामा प्रवेश करे पण फरी पाने बाहेर निकले नही, माटे बे वार पेसवु अने एकवार निकलवं मली त्रण थावश्यक थयां ते प्रर्वोक्त बावीश साथें मेलवतां पच्चीश श्रावश्यक ते कृतिकर्म करने विषे थाय // 10 // किइकम्म-कृतिकमने नहोइ-न थाय पणवीसा-पच्चीश हाणं-स्थानक पि-पण निजरा-निर्जरा अन्नयरं-अनेरुं एक पण विगतो-विराधतो कुणंतो-करतो छतो भागी-संविभागी साहु-साधु किइकम्मपि कुणंतो, नहोइ किइकम्मनिज्जरा भागी॥ पणवीसामन्नयरं, साहुठाणं विराहतो // 19 // दारं 10 शब्दार्थ- पचीस आवश्पकमांना एकनी पण विराधना करतो एवो साधु, कृतिकर्म करतो छतो पण ते कृतिकर्मनी निर्जर नो भागी यतो नथी. // 19 // द्वा. 10 // VisapatnaeemaDolenteers/AADIVASItaasses For Personal & Private se Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwse/dmVIAGEMARVARD/Masabanavtartoon विस्तारार्थः-हवे ए पच्चीश आवश्यक जे , तेमां अनेरुं एक पण स्थानक प्रत्ये विराधतो एवो जे साधु तेमज साधवी श्रावक, श्राविका होय, ते कृतिकर्मने करतो तो पण एटले वांदणां देतो बतो पण कृतिकर्म थकी जे कर्मपरिशाटनरूप निर्जरा थाय तेनो संविन्नागीन थाय एटले ते वांदणांनुं जे निर्जरा रूप फल, ते न पामे // 15 // ए दशमुंहार थयुं उत्तर बोल सित्तर थया। . यंत्र स्थापना. अवनत नमवू यथाजात मुजा. श्रावत. शिरो नमन.| गुप्ति / प्रवेश. | निकलवं. 11 4 3 हवे मुहपत्तिनी पच्चीश पमिलेहणानुं अगीयारमुं हार कहे . दिछि पडिलेह-दृष्टि पडिलेहणा) वृपष्फोड-उंचापखोडा अंतरिआ-एकेकने अंतरे | नव-नव एगा-एक तिग-त्रण अख्खोड-अख्खोडा मुहपत्ति-मुहपत्तिनी | ति-प्रग पमज्जणया-प्रमार्जना पणवीसा-पच्चीश pavasavatamawom/satsaamaanaantwasanay क For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमा/ दिठिपडिलेह एगा, छ उड्ढपप्फोड तिग तिअंतरिया // अख्खोड पमज्जणया, नव नव मुहपत्ति पणवीसा॥२०॥ /am/ NaamtvtaasDESHVAND98/09ER/1056/BSE/RE/APA/AINME शब्दार्थ-एक दृष्टि पडिलेहण, छ उंचा पख्खोडा, त्रण अखोडा, त्रण प्रमार्जना. ए छेला बे त्रगने गवार अंतरित करतां एक एकना नव नव भेद थाय. सर्व मली मुहपत्तिनी पच्चीस पडिलेहणा यइ. // 20 // द्वा 11 _ विस्तारार्थः-प्रथम मुहपत्तिने पहेले पासे सूत्र अने बीजे पासें अर्थ तेनुं तत्त्व, सम्यक् प्रकारे हृदयने विषे धरूं, एमचिंतवीने महपत्ति उखेली तेनां बेहु पासां सर्वत्र दृष्टियें करी जोबां ते दृष्टि पमिलेदणा एक जाणवी. तेवार पली उंचा पखोमा करवा एटले मुहपत्तिने फेरवी बे हाथें साहीने एकेका हाथें नचायवा रूप त्रण त्रण जंचा पखोमा करवा तिहां माबे हाथे करतां सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय अने मिथ्यात्वमोहनीय एत्रण मोहनीय परिहरु एम चिंतवीयें तथा जमणे हाथे करतां कामराग, स्नेहराग अने दृष्टिराग, ए त्रण राग परिदलं. एम a/twiVARANAAGI/AAMSAMVAANAADARVADIVAS S80 www.jainelibrary.DIO For Personal & Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vinayasoosic/togo/ARO/As/stacles/appDocMAGAANDAN चितवीयें ए ब खंखेरवा रूप उ पमिलेहणा थइ तेनी साथे प्रथमनी एक दृष्टि पमिलेहणा मेलवीये तेवारे सात थाय. तेवार पड़ी त्रण अस्कोमा अने त्रण प्रमाऊना एटले पूजq ते अनुक्रमे एक बीजा के त्रणवार एकेकने अंतरे करवा एटले मुहपत्तिये एक पम वाली मुहपत्तिना त्रण वधूटक करी जमणा हाथनी अंगुलीना अांतरानी वचमां नरावीने त्रण अस्कोमा पसली नरीये, त्रणवार मूहपत्ति जंची राखी मावा हाथना तलाने अण लागते खंखेरीये पण हाथने तले लगामीये नहीं; पबी त्रण प्रमार्जना पशलीमांहेथी घसी काहामीये एम एकेकने श्रांतरे त्रण वार त्रण त्रण अकोमा करवा अने त्रण वार त्रण प्रमाऊना करवी. एवी रीतेत्रण वार करतां नव अखोमा खंखेरवा रूप थाय. अने नव परकोमा प्रमाऊना एटले पूंजवा रूप थाय मली अढार पमिलेहणा थाय तेनी साथे पूर्वोक्त सात मेलवीये, तेवारे सर्व मली मुहपत्तिनी पमिलेरणा पच्चीश थाय // 20 // हवे अढार पमिलेहणा करतां एकेका त्रिके शुं शुं मनमां चिंतविये ? ते कहे . anwomencompaptance/node/apootoco/geomewaves For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभा गु०भा० VOMEvamantavastavAMDEVaadvanta/ AMIVamvasaa/AANAVITA पहेला त्रण अस्कोमामां सुदेव, सुगुरु अने सुधर्म, ए त्रण तत्व श्रादर्स, पबीत्रण प्रमाऊनामां कुदेव कुगुरु अने कुधर्म, ए त्रण परिहरु, बीजा त्रण अस्कोमामां ज्ञान, दर्शन अने चारित्र, एत्रण आदलं, पडी त्रण प्रमाऊनामां छानविराधना, दर्शनधिराधना अने चारित्रविराधना, ए पण परिदलं, त्रीजात्रण अस्कोमामां मनोगुप्ति, वचनगुप्ति अने कायागुप्ति ए त्रण गुप्ति आदरं, पली त्रण प्रमार्जनामां मनोदम, वचनदंम अने कायदंम, ए त्रण दंग परिहएवी रीतें मनमां चिंतव, ए क्रिया करवानी मुहपत्ति एक वेंत ने चार अगुंल आत्म प्रमाणनी जोश्ये अने रजोहरण तथा चरवलो बत्रीश अगुंलनो जोश्ये तेमां चोवीश अंगुलनी दांमी अने आठ अंगुलनी दशी जोश्ये अथवा न्यूनाधिक करी होय तो पण सरवाले बत्री अंगुल जोश्य, ए पच्चीश पमिलेहणा स्त्री पुरुष बेहुयें करवी. ए अगीयारमुं धार थथु, अने उत्तर बोल पञ्चाएं थया // हवे शरीरनी पच्चीश पमिलेहणानुं बारमुं द्वार कहे बे. MINSEVAAGwseemGADGE/touertenmastavasanv 83 // Jan Education in For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पायाहिणेण-प्रदक्षिणाये तियतिय-त्रण अणवार वाम-डावी इअर-जमणी / बाहु-बाहुये, भुजाये सीस-मस्तके मुह-मुखे हियए-हैयाने विषे अंसुट्टाहो-वे खभानी उपर तथा नीचे पिठे-पिठे चउ-चार छप्पय-छ पडिलेहण पगनी देह-शरोरनी पणवीसा-पच्चोस Newtaww/taTVVVarows/tamaraavanantaraasanasavivaan पायाहिणेण तिअ तिअ, वामेअर बाहु सीस मुह हियए। अंसुढाहो पिठे, चउ छप्पय देह पणवीसा // 21 // BahuvetouTVASAVasecondama/NERAGOVING/AM शब्दार्थ-प्रदक्षिणाये करीने डाबी अने जमणी बाहुये, मस्तके, मुखे अने हृदये. ए पांच ठेकाणे त्रण त्रणवार; खभानी उपर अने नीचे, तेमज बे पीठ उपर अने छ बन्ने पग उपर एम सर्व मली शरीरनी पच्चीश पडिलेहणा थाय. 21 विस्तारार्थः-प्रदक्षिणायें एटले प्रदक्षिणावर्ते करी एक माबे बाहये अने बीजं इतर ते जमणे बाहुयें तथा त्रीजु मस्तके, चो) मुखे अने पांच, हीयाने विषे ए पांच गमे त्रण त्रण For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAMBANVA ०भा० गुरुभा 84 // a raswatsupatavinasanaprasai/900/mavatin वार पमिलेदणा करवी एटले मुहपत्तिने वधूटकनी पेरे ग्रहण करीने वामनुजादिक पांच स्थानके फेरववी तेवारे पन्नर पमिलेहण थाय, अने अंसुम एटले बे खंन्नानी उपर, अने बे खन्नानी अहो एटले नीचे काखमां, पिठ एटले वांसानी बाजुयें चार पमिलेहण करवी एटले बे खंना उपर अने बे काखने विषे, एमज पमिलेहण बे पगनी उपर करवी तेमांत्रण वाम पगे अने त्रण दक्षिण पगे करतां बथाय, एवी रीते सर्व मली शरीरनी पमिलेहणा पच्चीश थाय. // 1 // 5 शहां यद्यपि श्रीयावश्यकवृत्ति तथा प्रवचन सारोद्धारादिकें पमिलेहणानो विशेष विचार कह्यो नथी पण इहां परंपराथी संप्रदाय समाचारीयें स्त्रीनुं शरीर वस्त्रे आवृत होय माटे एने शरीरनी पमिलेदणा पच्चीशमांथी त्रण मस्तकनी, त्रण हृदयनी अने बे पासाना खंनानी चार, एवं दश पमिलेहणा न होय शेष पन्नर होय तथा वली साध्वीने तो उघामे माथे क्रिया करवानो व्यवहार के माटें तेने मस्तकनी त्रण पमिलेहणा होय शेष सात न होय वाकी अढार पमिलेहणा होय. . . NDARVARDAapac/BUDATE/teac/temponenep/2009/MEEWAN // 84 // Jan Education internation For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Paravaasanasasantasantaaoser/awawe ए पमिलेहणा जे , ते यद्यपि जीवरक्षानी. कारणनूत जव्य जीवनें वे एम तीर्थंकरनी थाना ले तो पण मनरूप मांकमाने नियंत्रवा सारु बोल धारीये ते यद्यपि आवश्यकवृत्ति तथा प्रवचनसारोद्धारादि ग्रंथें कडं नथी तोपण अल्पमतिने मन स्थिर राखवा माटें “सुत्तच तत्तदिहि" इत्यादि पांच गाथा- कुलक कडु दे, ते यहां वांदणामां अधिकार नथी तोपण ते पांच गाथानो अर्थ खखीयें बैयें.. जमणा फेरथी मुहपत्तिने वधूटकनी पेरें ग्रहण करीने पमिलेहण करीये ते कहे . माबा हाथनी जुजायें त्रण वार पुंजिये त्यां हास्य, रति अने अरति, ए त्रण परिहरं. एम चिंतवीयें. जमणा हाथनी नुजायें त्रण वार पुंजीये त्यां नय, शोक अने उगंठा, ए त्रण परिहरु, एम चितवीये. मस्तक त्रण वार पुंजीयें तेमां कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण माठी लेश्या बांहुँ, एम चिंतवियें. मुखनी त्रण पमिलेहण करीये त्यां झद्धिगारव, रसगारव अने शातागारव, ए त्रण परिहरु, एम चिंतवीये. हृदयनी त्रण पमिलेदणा करीये त्यां मायाशब्य, नियाणाशस्य अने www jainelibrary.org inin Education international For Personal & Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 गुभा -185 PED/DVDastawe00/SI/ROUNDAARODAMOGoa मिथ्यात्वशस्य एत्रण शल्य बांसु, एम चिंतवीये मावा खंना अने जमणा खन्नानी नीचे उपर बे पासानी पमिलेहणा चार करीये त्यां क्रोध, मान, माया ने लोन ए चार कषायने बांसु एम चीतवीये. माबे जमणे पगे अनुक्रमे त्रण त्रण पमिलेहणा करीये, तिहां अनुक्रमे पृथ्वीकाय, अपकाय, तेनकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय अने त्रसकाय, ए काय जीवोनी रक्षा करूं. एम चीतवीये.॥ तथा वली पमिलेदणना अधिकार माटे वस्त्र, पात्र, पाट, बाजोग, पायावाला पाटला पाटली, स्थापनाना मबा, ढांकणां, अने नाजन प्रमुखनी पञ्चीश पमिलेहण तथा कणदोरा, मांझा अने मांझीनी दश पमिलेहण तथा थापनानी तेर, पायानी तेर इत्यादिक सर्व परंपरागते जाणवी. // 1 // आवस्सएसु-आवश्यकनेविषे | पयत्तं-प्रयत्न ग तिविहकरण-त्रिविधकरण | तहतह-तेमतेम जहजह-जेमजेम अहोण-हीन नही उच उत्तो-शुद्ध उपयोगी थयो से-ते कुणइ-करे | अइरित्तं-तेम अधिक नही / थको / निज्जराहोइ-निर्जरा होय 98/8RRARAHEBDeceavitawaata/80/900/N 85 // For Personal Private Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवस्सएसु जहजह, कुणय पयत्तं अहीण मइरित्तं // तिविहकरणो व उत्तो, तहतह से निजरा होई // 22 // vipasa . vaiAEJOREA i visioteAII/AtravelViewivisiMAaravaad S शब्दार्थ-आवश्यकादिमां जेम जेम प्रयत्नथी ओछो अधिक न थयो छतो मन, वचन अने कायाये उपयोग राखी करे तेप तेम ते करनारने निर्जरा थाय छे. // 22 // द्वा. 12 विस्तारार्थः-ए आवश्यकने विषे तथा महपत्ति अने शरीरनी पमिलेरणाने विषे जेम जेम उजमाल चित्त थको प्रयत्न एटले उद्यमप्रत्ये हीन नहि परंतु जेम कह्यो ले तेमज करे, पण तेथकी लंबो करे नही तेमज अतिरिक्त ते तेथकी जूदो एटले जेम हीन न करे, तेम अधिक पण न करे एवीरीते नली बुद्धिये सहित थको त्रिविध करण ते मन, वचन अने काया, " त्रण करणे करी उपयुक्त थको एटले शुद्ध उपयोगी थयो थको एकाग्रचित्त बतो करे तेम तेम ते उद्यम करनार पुरुषने विशेषे कर्मोनी निर्जरा थाय अने जो अविधिये प्रतिलेखनादिक करे EVARVaa// Bas s For Personal Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मु०भा० गु.भा. तो ते न कायनो विराधक कह्यो बे. एटले पमिलेहणानुं बारमुं दार थयु. उत्तर बोल एकशो वीश थया.॥२॥ हवे चार गाथाये करी वत्रीश दोष त्यागवानुं तेरमुं हार कहे जे. दोस-दोष अपविद्ध-अपविद्ध दोष , / ढोलगइ-ढोलगति दोष / मच्छुव्वत्त-मत्स्योदर्न दोष अणाडिय-अनादृत परिपिडियं-परिपिंडित दोष | अंकुस-अंकुश दोष दोष मगपउट्ठ-मन: दुष्ट दोष थडिप्र-स्तब्ध दोष च-वली कच्छभरिंगीय-कच्छभरिंगित AGaddrdaastaina/esasarosasraeloadAMERARAME0/08 BABAPadtetram/deterruarGau/eter/newsmpAmavasy दोस अणाडिअ थड्डिअ-पविद्ध परिपिंडिअंच ढोलगई // अंकुस कच्छभरिंगिअ, मच्छुव्वत्तं मणपउटुं // 23 // २.ब्दार्थ-(१) अनादृतदोष, (2) स्तब्धदोप, (3) अपविद्धदोप, (4) परिपिंडितदोप, (5) ढोलगतिदोप, (6) अंकूशदोप, (7) कच्छभरिंगितदोष, (8) मत्स्योद्वर्तदोप, (9) मनःमदुष्टदोप. // 23 // विस्तारार्थ:-जे अनादर पणे संत्रांत थको वांदे, ते पहेलो अनाहत दोष. तथा जे जात्या Inn Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Swaraamareteenetseiticitate/A/AROVANVAROVARSAMrin | दिके करी धीगे थको स्तब्धपणुं राखतो वांदे, अथवा अन्य लावादिक चउन्नंगीये करी स्तब्ध थको वांदे ते बीजो स्तब्ध दोष. तथा जे वांदणां बापतो नामुतनी पेरे तुरत नासे, अथवा वां-| दणां देतो अरहो परहो फरे ते त्रीजो अपविद्ध दोष. तथा जे घणा साधु प्रत्ये एकज वांदणे | वांदे अथवा आवर्त्त, व्यंजन, अने आलाप ए सर्व एका करे, ते चोथो परिपिमित दोष वली जे तीमनी पेरे उबलतो एटले उपमी उपमी विसंष्टुल वांदे, ते पांचमो ढोलगति दोष. तथा जे | अंकुशनी पेरे रजोहरणने बे हाथे ग्रहीने वांदे ते हो अंकुश दोष. तथा जे काचवानीपेरे रिंगतो | रिंगतो वांदे, ते सातमो कबनरिंगीत दोष. तथा जे उन्नो थर बेसीने जलमांदेला माउलानीपरे एकने वांदीने उतावलो बपी फरी बीजाने वांदे, अथवा पाठ प्रबन्न करे अथवा रेचकावर्ते अनुलोम प्रतिलोम वांदे, ते आठमो मत्स्योछर्त दोष. तथा कोइ साधु पोताथी एकादे गुणे हीन होय | ते दोषने मनमां चिंतवतो ईर्ष्या सहित थको वांदे, ते नवमो मनःप्रमुष्ट दोष जाणवो // 23 // wwANVIViralega/AAMR/itme/a/Ram avaVAMVAR / sain toucation international For Personal Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० वेइयबद्ध-वेदिकाबद्ध दोष | मित्त-मित्र दोष भयंतं-भजंत दोष कारणा-कारण दोष भष-भय दोष तिनं-स्तैन्य दोष .. गारव-गारव दोष 'पडिणीय-प्रत्यनोक दोष गु०भा० रुह-रुष्ट दोष -तज्जिय-तर्जित दोष सह-शठ दोष / हीलिय-हीलित दोष विपलियचिअयं-विपलियचित्त दोष SwamacREWEDDtaSamaARMPARAVAKAMANAGamaya वेइयबद्ध भयंतं, भय गारव मित्त कारणा तिन्नं // पडिणीयरुठ्ठ तज्जिअ, सहीलिअ विपलिय चिअयं 24 / / wasanaD/OOGondeeveedom/empAmaD/DP/0wanciana/app/ शब्दार्थ-(१०) वेदिकारद्धदे.ष, (11) भनंनदोष, (12) भयदोष, (13) गारवदोष, (14) मित्रदोप, (15) कारप्रदोष, (16) सैन्यदोष, (17) प्रत्यनिकदोष, (18) रुटदोष, (19) तर्मितदोष, (20) शठदोष, (21) हिलितदोप (22) विपलितचितदोष. // 24 // विस्तारार्थ-तथा जे बे ढींचणनी उपर तथा देठे हाथ राखीने अथवा बे हाथ विचाखे बे ढींचण राखीने अथवा वे हाथनी वचमां एक ढींचण राखीने अथवा खोले हाथ मूकीने वांदे, ते दशमो 1187 w ati For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vivartamavesupcaustouNIPAVAGDVARDANAVARANAGANAM वेदिकाबद्ध दोष जाणवो. तथा ए कांक अमने नजशे एटले विद्यामंत्रादिक शीखवशे इत्यादिक लालचनी बुद्धिये वांदे, अथवा नही वांदीश तो रीश करशे एवं जाणीने वांदे; ते अगीयारमो नजंत दोष जाणवो. तथा एमने नही वांदीश तो मुजने गछादिकथी बाहिर काढी मूकशे, अथवा शापादिक आक्रोश करशे, इत्यादिक नयें करी वांदे, ते बारमो नयदोष जाणवो. तथा जो हुँ नली रीते वांदीश तो सर्व एम जाणशे जे ए सामाचारीमा कुशल बे, माह्यो ने, विधिप्रवीण बे, एवी रीते जाणपणाना गारवे करी वांदे, ते तेरमो गारव दोष जाणवो. तथा एमनी साथे महारे पूर्व मित्रा , एवं जाणी मित्रादिकनी अनुवृत्तिये वांदे, ते चौदमो मित्रदोष जाणवो. तथा जे ज्ञानदर्शनादिक कारण विना बोजा अन्य कारण जे वस्त्रादिक पदादिक मुझने देशे, एम | उद्देशीने वांदे, ते पन्नरमो कारण दोष जाणवो. तथा जे चोरनी पेरे बानो रह्यो थको वांदे | एटले परथी पोताना आत्माने बानो राखे, रखे कोश् मुझने उलखी लेशे तो माहारी लघुता थशे. | || एवी रीते पोताने बुपावतो वांदे, ते शोलमो स्तन्यदोष जाणवो. तथा थाहारादिकनी वेलाये MIVasantaJANAJAROPHIVAJaneesavisaveteameementiaVITA Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मु०भा० ANDANVana गु०भा० // 88 // | प्रत्यनीकपणे अनवसरे वांदे, ते सत्तरमो प्रत्यनीक दोष जाणवो. तथा क्रोधे धमधम्यो थको वंदना करे, अथवा क्रोधांत प्रत्ये वांदे, ते अढारमो रुष्टदोष जाणवो. तथा जे घणीये वार वांद्या, तो पण प्रसन्न थता नथी तेम कोपमां पण थता नथी काष्ठनी पेरे देखाय बे, एम तर्जना करतो वांदे, अथवा तर्जनी अंगुलियादिके तर्जना देतो थको वांदे, एटले कहे के एने रूषेथी शुं ? अने तुथी पण शं ? एम तर्जतो थको वांदे, ते उंगणीशमो ताऊँत दोष जाणवो. तथा जे मायादिक कपटें करी वांदे, अथवा ग्लानादिक व्यपदेश करी सम्यक् प्रकारे न वांदे, ते वीशमो शठ दोष जाणवो. तथा हे गणि ! हे वाचक ! तमने वांदवाथी शुं फल थाय ? एवी रीते जात्यादिकनी हेलना करतो थको वांदे, ते एकवीशमो दिलित दोष जाणवो. तथा अद्धी वांदणां देश्ने वचमां वली देशकथादिक विकथा करतो करतो अनिमाने वांदे, ते बावीशमो विपलितचित्तकं एटले विपलितचित्त दोष जाणवो // 24 // /item/occana/ AnANDowVANDARMED/Neutamc/aosvatatvaartaantavita GP/Aawatasanatantasical in Education Intern For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARaatevecetic/ARTD/Metpawaranaar दिद्यमदिह-द्रष्टाद्रष्ट दोष / तमोअण-तन्मोचनदोष उणं-उण दोष ढदुर - ढठ्ठर दोष सिंग-श्रृंग दोष अणिदणालिद्ध-आश्लिष्ट ना उत्तरचुलिअ-उत्तरचुलिका चुडलियं-चुडलिक दोष कर-करदोष ' श्लिष्ट दोष अं-मूक दोष दोष . च- वली दिठ्मदिठं सिंगं, कर तंमोअण अणिद्धणालिद्धं // ऊणं उत्तर चूलिअ, मूअं ढढ्ढर चूडलिअं च // 25 // ____ शब्दार्थ-(२३) द्रष्टाद्रष्टदोष, (24) शृंगदोष, (25) करदोप, (26) तन्मोचनदोष, (27) आश्लिष्टानाश्लिष्टदोष, (28) ऊणदोष, (29) उत्तरचूलिकादोष, (30) मूकदोष, (31) ढळूरदोष, (32) चुडलिकदोष. // 25 // _ विस्तारार्थः-जे मुंगो रही बानो मानो वेसे तेने कोइ बीजो जाणी जाय जे आ बानो वेसी रह्यो अपरनुं वचमां अंतर बते न वांदे, एम दीवं अणदी व दीवं, कोश्ये न दी एम लाजतो थको अंधारामां वांदणां आपे, ते त्रेवीशमो दृष्टादृष्ट दोष Nayawwesapotomaavatore/asaveleaseeDesser/s/98D/ // नंता वांद नशा कोपया ani - -- ने कांग्य एटस का२१ PROIRAAND// D For Personal & Private Use Only www.ebay.co Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S०भा० शु०मा० // 89 vlvis called sta || जाणवो. तथा जे पोताना मस्तकने एक देशे करी एटले मस्तक, एक पासुं गुरुने पगे लगामे || तथा मुसाहीन पणे धर्मोपकरणादिक विपरीत पणे राखतो बतो वांदे, ते चोवीशमो शृंग दोष जाणवो. तथा जे राजादिकना कर वेपनी पेरे जाणीने वांदे, पण कर्मनिर्धाराने अर्थे वांदे नही, ते पच्चीशमो करदोष जाणवो. तथा जे गुरुने वांदणां दीधा विना बुटको नथी, केवारे एथी बुटगुं? || एम चिंतवतो वांदे, ते बीशमो तन्मोचन दोष जाणवो. तथा सत्तावीशमा आश्लिष्टानाश्लिष्टदोषनी चउन्नंगी थाय ते आवी रीते के, हाथे करी रजोहरण अने मस्तक फरसे ए प्रथम नांगो ते शुद्ध जाणवो. तथा रजोहरणने हाथ लगामे पण मस्तके हाथ न लगामे, ए बीजो नांगो, तथा मस्तके हाथ लगामे पण रजोहरणे हाथ न लगामे ते त्रीजो नांगो, तथा रजोहरण अने मस्तक बेहुने हाथ फरसे नही एटले लगामे नहीं, आश्लेषे नही, ते चोथो नंग जाणवो. ए In89 // चार नांगामा प्रथम नांगो शुद्ध डे अने पाडला त्रण नांगा अशुद्ध दोषावतार जाणवा. ए त्रण t est test. Inin Education in For Personal & Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vimsarsatnamavasnavaracancernetreetica/MAHarau नांगे करी वंदन करे ते सत्तावीशमो याश्लिष्टानाश्लिष्ट दोष जाणवो. तथा जे श्रावश्यकादिके पाठ आलावा असंपूर्ण कहतो थको वांदे, ते अहावीशमो ऊण दोष जाणवो. तथा जे वांदणे वांदीने पड़ी महोटे शब्दे करी ‘मबएण वंदामि' एम कहे, ते उंगणत्रीशमो उत्तरचूलिका दोष जाणवो. तथा जे आलाप आवर्तादिकने मूकनी परे अणउच्चरतो वांदे, ते त्रीशमो मूकदोष जाणवो. तथा जे आलावाने अत्यंत महोटे स्वरें उच्चार करतो वांदे, ते एकत्रीशमो ढडर दोष जाणवो. तथा जे अंबुअमानी पेरे रजोहरण हमे ग्रहण करी रजोदरणने नमामतो थको वांदणां श्रापे, ते वली बत्रीशमो चुमलिक दोष जाणवो // 25 // बत्तीसदोस-वत्रीश दोष / जो-जे / अचिरेण-योडा काळमा परिसुद्धं-निर्दोषपणे पउंजइ-आपे . पावइ-पामे विमाणवास-वैमानिक देवपकिइकम्म-वांदणा 'मुरुण-गुरुपत्ये ... | निब्वाण-निर्वाण ...... वा-अथवा णाने SAMVitamiVANVAIMANDARD/user /AADAMItAwar For Personal & Private Use Only Jain Education international wwwneby og Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुभा गु०भा० VIANDEReciaDIANRAINIVaavathame बत्तीस दोसपरिसुद्धं, किइकम्मं जो पउंजइ गुरुणं // सो पावइ निवाणं, अचिरेण विमानवासं वा ॥२६॥दा // 13 // शब्दार्थ-जे माणस ए उपर केहेला वत्रीस दोष रहित गुरुने बांदणा आपे छे ते थोडा कालमां मोदने अथवा तो / देवपदने पामे छे. // 26 // द्वा. 13 विस्तारार्थः-ए पूर्वोक्त बत्रीश दोष तेणे करीने रहित थको परिशुद्ध निर्दोषपणे कृतिकर्म जे वांदणां तेने गुरुना चरण प्रत्ये जे नव्य प्राणी प्रयुंजे, एटले आपे जे ते प्राणी थोमा कालमां निर्वाण एटले कर्मरूपदावानलनो उपशम जे मोद ते प्रत्ये पामे अथवा वैमानिक देवपणाना वास प्रत्ये पामे // 26 // एटले ए तेरमुं बत्रीश दोषy छार पूरुं थयुं, उत्तर बोल 155 थया // हवे वांदणां देतां न गुण उपजे, तेनुं चौदमुं हार कहे . // 9 mantra/ For Personal & Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // iseavarayeshaamanaparaceta/80/naantasoothavanMMEIN | गुणा-गुण, गुरुपूभा गुरुनापूजा / सुअधम्मा-श्रुतधमेनी छ-छ विणओवया .....चार तिथ्ययराणय-श्री तीर्थकर- | आराहणा-आराधना च-बळी माणाइभंग-मा...दिकनो भंग आणा-आज्ञा देवनी | अकिरिा-सिद्धपणुं इह छच्च गुणा विणओ-वयारमाणाइभंग गुरुपूआ // तित्थयराण य आणा,सुअधम्माराहणा किरिया॥२७॥दा॥१४॥ शब्दार्थ--ए वांदणामा छ गुणो उपजे छे. तेमा 1 विनयनो उपचार, 2 मानादिकनो नाश, 3 गुरुपूजा, 4 तीर्थकरनी ज्ञानु पालन 5 श्रुतधर्मनी आराधना अने 6 मोक्ष. ए छ गुण उपजे. // 27 // विस्तारार्थः-ए वांदणाने विषे उ क्ली गुण उपजे ते कहे . तेमां एक तो विनयोपचार. करवो ते गुण उपजे एटसे जे विशेषे करी सर्वकर्मनो नाश करे तेने विनय कहीये. तेहिज उपचार एटले आराधवानो प्रकार जाणवो. बीजो पोताना अनिमानादिकनो नंग थाय एटले wwwIVIANEVIDOAGARIVARImeagerativitieATTA For Personal Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ resents a गुभाग गुभा. VAARRPotassadn0ORADAAGDROINotsaas पोताना माननुं गालवु थाय. त्रीजो गुरु जे पूज्यजन तेमनी पूजा सेवा लक्तिनुं साचव, थाय. चोथो समस्त कल्याणर्नु मूल रूप एवी श्रीतीर्थंकर देवनी आज्ञा तेनु थाराधन थाय एटले आज्ञानुं पालQ थाय केमके नगवंते विनय मूल धर्म कह्यो , तथा पांचमो श्रुतधर्मनी आराधना श्राव, केमके श्रुतज्ञान जे गुरु पासेंथी नणदुं ते पण वंदन पूर्वक नण, कयु ले. तथा बहो गुण तो परंपरायें एथी अक्रियारूप फल एटले सिद्धपणुं पामीयें ए ब गुण वांदणां देवाथी उपजे, | तेनुं चौदमुं द्वार पूर्ण थयुं, उत्तर बोल 157 थया // 27 // . .. हवे त्रय गाथायें करी गुरुस्थापना- पन्नरमुंद्वार कहे ... गुरु-महोटो | गुरूं-गुरुने | तथ्य-तत्र, ते उविज-स्थापीने गुणजुत्तं-गुणेकरी युक्त गविजा-स्थापन करीने | अरूखाई-अक्षादिक | सख्खं-साक्षात् तु-निश्चे / अहव-अथवा नाणाइतियं-ज्ञानादि त्रण / गुरुप्रभावे-गुरुना अभावे Varuaamaagesranamasat al // 12 // Mail For Personal & Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANDAMAED/IN/MVAAD गुरुगुणजुत्तं तु गुरुं, ठाविज्जा अहव तत्थ अख्खाई॥ अहवा नाणाइतिअं, ठविज सख्खं गुरुअभावे // 28 // Danapa शब्दार्थ-म्होटा गुणे करीने युक्त एवा गुरुने स्थापन करवा. अथवा साक्षात् गुरुनो अभाव होय तो तेमने ठेकाणे थापनाचार्य स्थापन करवा. कदापि स्थापनाचार्य पण न होय तो ज्ञान, दर्शन अनेचारित्रनां पुस्तकादि उपकरण स्थापवां.२८ विस्तारार्थः-महोटा विशेष प्रतिरूपादिबत्रीश गुणे करी युक्त एवा निश्चे गुरुने स्थापन करीने तेनी आगल प्रतिक्रमणादि क्रिया करीये अथवा साक्षात् पूर्वोक्त गुणयुक्त एवा गुरुनो अन्नाव बते तत्र एटले ते गुरुने स्थानकें अदादिक स्थापीने तेनी आगल क्रिया करीये ते दक त्रण एटले एक शान, बीजु दर्शन, त्रीजु चारित्र, एत्रणेना उपकरण जे पोथी नोकरवाली प्रमुख ले तेने स्थापीने तेनी आगल क्रिया करीये. परंतु अगुरुने विषे गुरुबुद्धि आणीने तेनी आगल क्रिया करवी नहीं. केमके आगममा अगुरुने /IAS/ 0/BMRAPav Jain Education international For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०भा० गु.भा. PGADAadpavita/VaJitensis/angavatpAGVARVANGYAN विषे जे गुरुबुद्धि आणवी तेने अत्यंत आकरुं लोकोत्तर मिथ्यात्व कडं . // 27 // अख्खे-अक्ष कहे-काष्ट | चित्तकम्मे-चित्रकर्म गुरुठवणा-गुरुना स्थापना वराडए-वराटके पुथ्ये-पुस्तक सभ्भावं-सद्भाव इत्तर-इत्वर वा-अथवा अ-वलो | असम्भावं-असद्भाव / जावकहा-यावत् कथिका अख्खे वराडए वा, कढ़े पुत्थे अचित्तकम्मे अ॥ सप्भावमसम्भावं गुरुठवणा इत्तरावकहा // 29 // ___ शब्दार्थ-अक्ष, ( स्थापनाचार्य ) कोडा, डांडा, पुस्तक अथवा गुरुमूर्तिनी स्थापना करवी. स्थापना बे प्रकारनी छे. एक सद्भाव अने बीजी असद्भाव. गुरुस्थापना पण बे भेदे छे. तेमां एक इत्वर एटले पुस्तक आदि थोडा कालनी अने बीजी यावत्कथिका एटले मूर्ति विगेरे बहुकालनी. // 29 // विस्तारार्थः-अदादिक ते कया? ते कहे जे, एक अद ते चंदन प्रसिद्ध मालानी स्थापना Upsc/stroGAAMRAPRADAprivatemeanormom/ / / 92 Tin Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ te/AMBARAGenet/30/AADIV/AIDMAAVAVIINDIANS/IN जाणवी, तेना अन्नावे वराटके एटले त्रण खींटीना कोमानी स्थापना करवी, अथवा काष्ठ मांमा मांमी प्रमुख चंदनादिकनी पाटी आदिकनी स्थापना करवी, पुस्तकनी स्थापना करवी, वली तेना अनावें चित्रकर्म ते गुरुनी मूर्तिनां चित्राम आलेख, अथवा गुरुनी काष्ठनी प्रतिमा ए पाठ श्री अनुयोगहार सूत्रथी लखीयें यें, " से किंतं ठवणाणुण्णा जणं वा अरके वा वरामए वा कहकम्मे वा पोचकम्मे वा लेपकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिकम्मे वा वेढिकम्मे वा पूरिकम्मे वा संघातिकम्मे वा एगे अणेगे वा समान वा असताउ वा ग्वणा विऊत्ति // एवी रीतें गुरुनी स्थापना करवी. ते बे प्रकारे जाणवी ते कहे . एक सद्नावस्थापना अने बीजी असद्नाव स्थापना तिहां गुरुनी मूर्ति तथा प्रतिमादिकनी श्राकार सहित जे स्थापना ते सन्नाव स्थापना जाणवी, श्रने आकार विना अदादिकनी जे स्थापना करवी ते असनाव स्थापना जाणवी, वली गुरुनी स्थापना ते एक श्वर अने बीजी यावत् कथिका तेमां श्वर ते थोमा काल लगें स्थापना रहे, जेम नोकरवाली अने पुस्तकादिकनी जे स्थापना , ते स्थापना क्रिया करवाने वखतें थापे , माटें VAMInteATRAINS/RATORAGidateJAGRAMMARIVAR/I /क For Personal Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० गु०भा० / 93 // Racetametarvasnasesvasabasuvanswastesaeonawareitrawas ज्यां सुधी ते क्रिया करीयें, तिहां सुधी ते स्थापना रहे, जो दृष्टि तिहांनी तिहां राखीयें, तो रहे, नही तो वली फरी बीजी स्थापना स्थापवी पमे, ते श्वर कालनी स्थापना जाणवी. अने बीजी यावत्कथिक स्थापना ते घणा काल पर्यंत रहे, ते प्रतिमादिक तथा अदादिकनी बे प्रकारनी स्थापना करीयें बैये. ए स्थापनानी आशातना पण गुर्वा दिकनी पेरें टालवी // 5 // गुरुविरहंमि-गुरुनो विरह / दसणथ्य-देखाडवाने माटे / विरह छता | आमंतणं-आमंत्रण ठवणा-स्थापना च-वळी जिणविंब-जिनाव सहलं-सफल गुरुपएसोव-गुरुनो उपदेश | निगविरहंमि-श्री निनेश्वरनो सेवण-सेवा / गुरुविरहमि ठपणा, गुरुवएसोव दंसणत्थं च // जिणविरहंमि जिण बिं-ब सेवणामंतणं सहलं // 30 // शब्दार्थ-गुरुनो अभाव होय त्यारे गुरुनो उपदेश देखाडवा माटे स्थापना छे. जेम हमणां जिनेश्वरनो विरह छतां VasavamVANEEYAaweavenawatiseasotawinoatmavitagrams // 93 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Wardevanawatmavatavanemap/eenaDIAsaratientistice जिनबिंपनी सेवना करी आमंत्रण करवू ते सफल थाप छे तेम. // 30 // विस्तारार्थः-हवे स्थापना शा कारण मात्रै स्थापती ? ते कहे . जेवारें सादात् गुणवंत गुरुनो विरह एटले अन्नाव होय, तेवारें गुरूपदेशोपदर्शनने अर्ये एटले गुरुनो उपदेश देखामत्राने माटें स्थापना स्थापवी जोश्य हां नावार्थ ए जे जे. स्थापनानी आगल क्रिया करता ते एवं जाणे जे गुरुज मुझने आदेश थापे , ते महारे श्लाकारि कही प्रमाण करवू. केम के, गुरुना अनावे जे धर्मानुष्ठान करवं, ते शून्यन्नाव गणाय. हवे दृष्टांत कहे जे. जेम हमणां श्रीजिनेश्वरनो विरह बतां श्री तीर्थकरना बिंब एटले प्रतिमानुं सेवन करीने आमंत्रण कर. जे हे नगवंत! तमे मुजने संसार समुज्थकी तारो, मोक आपो इत्यादिक जे कहे, तेसफल थाय जे. ए ह शहां पण श्रीगुरुना विरहें. गुरुनी स्थापना पण सफल होय . ए गुरुस्थापनाना एकज बोलनुं पन्नरमुंहार थयु. उत्तर बोल १५ए थया // 30 // हवे बे प्रकारना अवग्रहर्नु शोलम छार कहे . Amai/emVita/paratisemVARGVEDANEVOncentiment inin Education international For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भा० गुरुमा चदिसि-चार दिशा अहु-साडात्रण गुरुग्गहो-गुरुथकी अवग्रह / तेरस-तेर इह-ए | करे-हाथर्नु सपरपरूखे-ख अने परपक्ष | नकप्पए-न कल्पे अणणुनायस्स-गुरुनी अनुज्ञा तथ्य-तेटला सया-सदा लीधा वीना पविसेउ-प्रवेश करवाने 94 // VanessaGSamaydeasoomv चउदिसि गुरुग्गहो इह, अहुट्ट तेरस करे सपरपख्खे // अणणुन्नायस्स सया,न कप्पए तत्थ पविसेउ॥३१॥दारं॥१६॥ PresenteSMARVADODARVAGAus/avenawarjaRRI शब्दार्थ-आ जिनशासनमां गुरुथी अवग्रह चारे दिशामा पुरुष पुरुषने अने पुरुष तथा स्त्रीने साडा त्रण हाथ अने तेर हाथ जाणवो. ते अवग्रहमा प्रवेश करवाने आज्ञाविना क्यारे पण न कल्पे. // 31 // विस्तारार्थः-ए श्रीजिनशासनमांहे गरुथकी अवग्रह चारे दिशाने विषे व अने परपद थाश्रयी अनुक्रमे केटलो केटलो होय, ते कहे . तिहां एक सामा त्रण अने बीजो तेर हाथनो है ISM94 // जाणवो. तेमां स्वपद ते पोतामां साधु साधुमां अने बीजा श्रावक जाणवा. तथा परपद ते साधु || in Education in For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOVO verde श्रने साध्वी तथा श्राविका जाणवी. तेमां साधु साधुने तथा श्रावकने मांदोमांहे सामा त्रण हाथ गलो अवग्रह होय अने गुर्वादिकथी साध्वी तथा श्राविकाने तेर हाथ वेगलो अवग्रह होय. तेमज साध्वी तथा श्राविकाने माहोमांहे सामा त्रण हाथनो अवग्रह होय तेटला अवग्रहमांहे गुरुनी अनुज्ञा लीधा विना सदा निरंतर प्रवेश करवाने वली न करपे. ए बे अवग्रहनुं शोलमुं द्वार थयु. उत्तर बोल 161 थया // 31 // हवे कांदणांना सूत्रांना अदरनी संख्यानुं सत्तरमुं हार तथा पदनी संख्यानुं अढारमुं द्वार कहे बे. पण-पांच चउरो-चार गुणतीस-ओगणत्रीस सब-सर्वे तिग-त्रणछहाण-छ स्थानकने विषे / सेस-शेष पय-पद बारस-बार पय-पद आवस्सयाई-आवस्सिाएथी| अहवना-अहावन इगुणतीसं-ओगणत्रीस VARIVARJAAAAPress/up/santasantitatus For Personal Private Lise Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० Q4 // गु०भा० armanavaranteessettasAANDHARWADI पणतिग बारस दुगतिग, चउरो छठाण पय इगुणतीसं॥ गणतीससेस आव-स्सयाइ सवपय अडवन्ना॥३२॥दा॥१७॥१७ शब्दार्थ-(प्रथम वंदनक सूत्रना अक्षर 226 छे तेमां लघु अक्षर बसो एक अने गुरु अक्षर पच्चीस छे.) पांच, त्रण, बार, वे, त्रण अने चार. एम छ स्थानकमां ओगणत्रीस पद छे. बाकीना ओगणत्रीस पद आवस्सियाएथी जाणवा. सर्व है मली अहावन पद थीय छे. विस्तारार्थः-प्रथम वंदनक सूत्रना अक्षर ( 256) जे. तेमां लघु अक्षर (201 ) , अने गुरु अदर तो श्वामिथी मामीने बोसिरामि पर्यंत पच्चीश ले ते लखे डे, बा का ग्ग को प्प कं त्ता ऊं क कत्ती न बा क क क व व लो व म्मा क स क प्पा. ए पचीश अदर गुरु जाणवा है। एटले सत्तरमुं वंदनक सूत्रना अदरोनुं द्वार थयु. उत्तर बोल (377 ) थया.. हवे अढारमुं वंदनक सूत्रना पदनी संख्यानुं हार गाथाना अर्थे कहे . तिहां विन in Educale For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vacaomparedwatego/ARO/ARO/ARASWARG/sairaute तवंतं पदं' एटले विज्ञक्ति जेना अंतमा होय तेने पद कहीये ते श्हां वंदनक सूत्रना उ स्थानक मध्ये सर्व मली अहावन पदनी संख्या बे, तिहां प्रथम स्थानकमा छामि, खमासमणो वंदिलं, जावणिकाए, निसीहियाए, ए पांच पद जाणवां. तथा बीजा स्थानकमां अणुजाणह, मे, मिनग्गरं, एत्रण पद जाणवां, तथा त्रीजा स्थानक | मध्ये निसीहि, अहो, कायं, काय संफासं, खमणिको, ने, किलामो, अप्पकिलंताणं, बहुसुनेण, ने, दिवसो, वश्कतो. ए बार पद जाणवां, तथा चोथा स्थानकमां जत्ता, ने, ए बे पद जाणवां. तथा पांचमा स्थानकमां जवणिज, च, ने, ए त्रण पद जाणवां, तथा बहा स्थानकमा खामे मि, खमासमणो, देवसियं, वश्क्कम, ए चार पद जाणवां, एम स्थानकने विषे उंगणत्रीश पद जाणवा. तथा शेष रह्यां जे गणत्रीश पद ते आवस्सिाएथी मामीने वोसिरामि पर्यंत थाय, | तेवारें सर्वे मलीने पद असावन्न थाय डे. हवे ए पाबला उगणत्रीश पद कही देखामे . आव RANDARINonvevasanawadewaseeMORAJanames Jan Education International For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० Patidarenyasia/en/ गु०भा० p/name/es/nepalp/ स्सियाए पक्किममामि खमासमणाणं देवसियाए थासायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिन्छाए मणदुक्कमाए वयदुकमाए कायदुक्कमाए कोहाए माणाए मायाए लोनाए सबकालियाए सबमिछोवयाराए सबधम्माश्क्कमणाए थासायणाए जो मे अश्यारो कतस्सं खमासमणो पमिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि. ए गणत्रीश पद थयां. आ ठेकाणे कटलाएक जंकिं चिमिछाए ए एक पद माने जे तथा केटलाएक आवस्सियाए ए अनिष्ठित पद डे माटे नथी गणता. तेमाटे बहुश्रुत कहे ते प्रमाण जाणवू. ए अहावन पदर्नु अढार, छार थयु. उत्तर बोल 445 यया // 32 // ... . हवे वांदणांना दायकना स्थानक, उंगणीशमुं हार कहे . इच्छाय-इच्छामि खमासमणो। च-वळी | वालाना अणुनवण्णा-अणुजाणह जत्त-जत्ता मे खमावq. छठाणा-छ स्थानक अव्वाबाई-अव्याबाध | जवणाय-जवणिज्जं चभे | बंदणदायस्स-वांदणा देवा ParacetsappuonmetasotopesawarsapaneDVtoanter WAlon For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A AMR/item/aucrateItAIVE D EKAAMVasaviMVAMBeatsaveventiaWARVINAGVANIAMENTANDROME इच्छाय अणुन्नवण्णा, अबाबाहं च जत्त जवणाय // अवराहखामणाविय, वंदणदायस्य छठ्ठाणा॥३३॥दार॥१९॥ शब्दार्थः-इच्छामि खमासमणी आदि पांच पदनुं प्रथम स्थानक, अणुजाणहमे मिउग्गह, एत्रण पदनुं बीजुं स्थानक " निसीही" आदि बार पद त्रीजुं स्थानक जत्ता ए वे पदनुं चोथु स्थानक “जवणिजंचभे" ए त्रण पदनुं पांच मुं स्थानक " खामेमिखमाप्तमणो" आदि चार पदनुं छटुं स्थानक ए वंदननां दायकनां छ स्थानक जाणवां // 33 // विस्तारार्थः-छामि खमासमणो वंदिउ जावणिकाए निसीहियाए लगे पांच पदनुं प्रथम स्थानक जाणवू, तथा अणुजाणह मे मिनग्गरं ए त्रण पदनुं बीजुं स्थानक, तथा अव्याबाध एटले निराबाध पणुं पूबवा अर्थे निसीहिथी मामीने दिवसो वश्कतो पर्यंत बार पदोनुं त्रीजु स्थानक जाणवू, तथा जत्ता ने ए बे पदोनुं चो, स्थानक, तथा जवणिकं च ने ए त्रण पदनुं पांचमुं स्थानक, तथा अपराध- खमावq एटले खामेमि खमासमणो देवसियं व कम्म ए चार an GAANDowwjanavar For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tod गभा० शु०भा० 9 VatatvasacotNARMERALDROIVataBOANDROGRADE/ES पदोनुं हुं स्थानक जाणवू. थपिच एटले वली ए वांदणानो देवावालो तेनां स्थानक जाणवां. // 33 // ए स्थानकनुं जंगणीशमुं छार थयु // उत्तर बोल 451 थया. - हवे ए ब स्थानकमां ब गुरु वचन होय तेनुं वीशमुं हार कहे . छुदेण-छंदेण / तुजंपि-तुमने पण अहमवि-हुंपण वयणाइ-वचन अणुजाणामि-आज्ञा आपुंछ वट्टए-वर्ते छे खामेमि-खमावु वंदण-वांदणा तहत्ति-तथेति, तेमन एवं-एमन तुम-तुम प्रत्ये आरिहस्स-आचार्यादिकता छंदेणणुजाणामि,तहत्ति तुप्भंपि वट्टए एवं // अहमवि खामेमि तुमं, वयणाई वंदणरिहस्स // 34 // aeatispanacapsutroyeeDammamaeeM/SA शब्दार्थः- उदेण, अणुनाणामि, तहत्ति, तुभ्पंपिवट्टए, एवं, अहमवि खाममि तुमं. ए छ वचन वांदणा देवा योग्य गुरुना जाणवां // 34 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BABDesawa/indedaseetaavaadess/devotevarsawa विस्तारार्थः-जिहां इवामि खमासमणो वंदिलं जावणिकाए निसीहियाए एटलो पाठ | शिष्य कहे, तेवारे गुरु जो वांदणां देवरावे तो बंदेण ए पाठ कहे, अने वांदणां न देवरावे तो | "तिविदेण" एवो पाठ कहे, ए प्रथम गुरुवचन जाणवू, तथा 'अणुजाणह मे मिउग्गहं' ए पाठ शिष्य कहे, तेवारे गुरु कहे आज्ञा आपुं बुं. ए बोनुं गुरुवचन जाणवं, तथा निसीह इत्यादिक जेवारे शिष्य कहे, तेवारे गुरु कहे तथेति ए त्रीजु गुरुवचन जाणवू, तथा जेवारे जत्ता ने इत्यादि शिष्य कहे, तेवारे गुरु कहे तुमने काजे पण वर्ते जे ? ए चोथं गुरुवचन जाणवं, तथा जे वारे जवणिऊं च ने शिष्य कहे तेवारे गुरु कहे एमज, तुं पूछे डे तेमज, ए पांचमुं गुरुवचन जाणवं. तथा जेवारे खामेमि खमासमणो शिष्य कहे, ते वारे गुरू कहे हुँ पण खमा लु तुम प्रत्ये. ए ब्लु गुरूवचन जाणवू. ए ब वचन ते वांदणां देवा योग्य आचार्यादिकनां जाणवां, एटले वीशमुंब गुरुना प्रतिवचन- झार पूर्ण थयु. उत्तर बोल 457 थया // 34 // हवे त्रण गाथाये करी तेत्रीश आशातनानुं एकवीशमुं हार कहेले. तिहां प्रथम आशातना POARAS/IAS/PGDAMBARDARGoveraEDAARVAS/06 For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गु०भा० // 98 // VeeGADHIVARAVAIRAVPawariyana शब्दनो अर्थ करे बे. जिहां शान, दर्शन श्रने चारित्र तेनो लान थाय ते लानने पाम, नाश करवो तेने याशातना कहिये ते शहां शिष्यादिक जो अविनयथी प्रवर्तता होय, तो गुरू थादिकनी श्राशातना करे, ते तेत्रीश प्रकारे जे तेनां नाम गाथाना अर्थथी कहं . पुरओ-आगल चालतां | चिट्ठणं-उभो रदेवाथकी आलोयण-आलोये पुवालवणेय-पहेलो पोते परूख-पडखे निसिअणा-बेसताथका अपडिसुणणे-सांभळनां छां बोलावे आसनेगंता-अडकतो चाले / आयमणे-आचमने जवाब न आपे आलोर-आलोचे wviaasanapatansVARTAVAapa/IASAMVAS/Saawaz पुरओ पख्खासन्ने, गंता चिठ्ठण निसिअणाय मणे // आलोयण पडिसुणणे, पुवालवणे अ आलोए // 35 // 987 YADRIVavitaSto/ शब्दार्थ:-१ गुरुनी आगल चाले, 2 पडखे चाले, 3 पछवाडे अडकतो चाले, वजी एची प्रग आशतना गुरुनी, तेटली भूमि भागे उभा रहेवाथी थाय अने बेसवाथी पण थाय एम 9 आशतना जाणवी, 10 थंडिले प्रथम पाणी ले, For Personal Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sapweredavetitivistorivowwsavitabaseenawal 11 गमणागमण पहेलं आलोवे, 12 बोलाव्या छतां न बोले, 13 कोइने गुरुनी पहेला बोलावे, 24 गुरु छ ना बीजा | पासे भिक्षादि आहार आलोवे. // 35 // विस्तारार्थः-प्रथम गुरुने बागल चालतां शिष्यने विनयनंगादिक लागे माटे ए अकारणे आशातना थाय परंतु जो मार्गादिकनी विषमता होय अथवा गुरुने मार्ग देखावा माटे जो गुरुथी आगल चालवू पमे तो ते अकारणमां गणाय नही. बोजी गुरुने पमखे बेहु पासे गमन करे गुरुनी बराबर चाले तो श्राशातना थाय, त्रीजी एमज गुरुने आसन्ने एटले अमकतो गंता एटले चाले पबवामे दूकमो चाले तो श्वास, बींक, श्लेष्म, उध्रसादि दोष रूप आशातना थाय, एम ए त्रण आशातना जेटले नूमिन्नागे गुरुनी साथे चालतां थकां थाय, तेटलेज नूमिनागे गुरुनी पासे उन्ना रदेवाथकी पण पूर्वोक्त त्रण आशातना थाय. एम त्रण स्थानके गुरुनी पासे बेसता थकां पण पूर्वोक्त त्रण आशातना थाय. एवं नव थ. दशमी आचमने एटले गुरूनी साथे जच्चार नमिये गयां थकां शिष्य जो याचार्यथकी पहेला आचमन लोये अथवा गुरूनी RAND/MaavatparanMeGODOGo/ UtAGDMame/te For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ or s शु०भा० गु०भा०||8|| पहेलां चलु करे अथवा हायवाणी लीये तो श्राशातना थाय. अगीयारमी उच्चारादिक बहि- ॥१९॥र्दिशी गुर्वा दिक साथे आव्या पडी गमणागमणाथी जो गुरूथकी प्रथम बालोये, तो आशातना | थाय, बारमी गुर्वादिक वमेरा तथा रत्नाधिक जे होय ते रात्रिये बोलावे जे कोण सूतो ? कोण जागे ? एम वचन सांजलतो जागतो थको पण अण सांजलतानी पेरे पालो प्रत्युत्तर नहीं आपे तो आशातना थाय, तेरमी गुरू श्रादिकने आलावा वोलाववा योग्य एवा को श्रावकादिक आव्या होय अथवा श्रावेला ने तेने आवर्जवा माटे गुरु बोलाव्यानी पूर्वेज पोते बोलावे तो आशातना थाय, वली चौदमी अशन पान खादिम स्वादिम ए चारे थाहार रूप जे निका आणी होय ते प्रथम को बोजा शिष्यादिक आगल थालोश्ने पनी गुरू श्रागले आलोचे तो थाशातना थाय // 35 // तह-तेमज निमंतण-निमंत्रण | आयणेण-सरस आहार पोते | तहा-तेमज उपदंस-देखा खड़-खबरावे जमे | अपडिसुणणे-अप्रतिश्रवणे DAANDARWADIO/amasomaorse/cao/ N VAIReverestraitreena-00-70G/resses actase/aMustan JainEducation.im For Personal Private Use Only www.sanelibrary.org Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wasnawadesesuraneouTPS/aspressonsaimam खति-कठीणवचन कि- तज्जाय-तर्जनाकरे | तथ्यगए-त्यांथीज - तुम-तमे | नोसुमणे-सुमनो न याय तह उवदंस निमतण, खद्धा ययणे तहा अपडिसुणणे॥ खद्धत्ति य तत्थगए, किं तुम तज्जाय नो सुमणे // 36 // शब्दार्थ:-तेमज 15 आहारादि बीजाने देखाडे, 16 बीना साधुने प्रथम बोलावीने पछी गुरुने बोलावे, 17 गुरु विना बीजाने मिष्ट खपरावे, 18, पोते मिष्ट खाय, तेमज 19 गुरु बोलावे छता, न सांभले, 20 गुरुने कठण वचन बोले, 21 पोताने संथारे बेठो उत्तर आपे, 22 शुं कहो छो ? एम कहे, 23 तमे करो, एम कहे, 24 तिरस्कार करे, 25 गुरुनो धर्मोपदेश सांभली हर्षित मनवालो न थाय. // 36 // विस्तारार्थः-पन्नरमी तेमज वली अशनादिक चार जे लाव्या होय ते प्रयम बीजा यतिने | देखामीने पनी गुरूने देखामे तो बाशातना थाय, शोलमी तेमज अशनादिक चार लाव्या होय Vancouvewadiuotaawarwwestaemarvatsarvoterstar For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गुलभ WastawitaMMARVatsapMRAAGVta | तेनी प्रथम बीजा यतिने निमंत्रणा करे के या नात पाणी लेशो ? पढी गुरूने निमंत्रणा करे तो आशातना थाय. सत्तरमी अशनादिक चार सूरि प्रमुख साथें निदायें आणीने पनी गुर्वादिकने पव्या विना जेनी साथे पोतार्नु मन माने तेने मधुर जाणीने खवरावे तो अाशातना लागे, अढारमी गुर्वादिक तथा रत्नाधिक साथे जमतो थको अशनादिक स्निग्ध सरस होय ते पोतेज वावरे, ते आशातना जाणवी. यमुक्तं दशाश्रुतस्कंधसूत्रे // सहेअसणं वा राक्षणिएसेहिं जुजमाणे तवं | सेहे खर्फ खद्धं मायं मायं उसढं जसद्वं मणुएणं मणुएणं मणामं मणामं निद्धं निद्धं लुरकं सुरकं हारित्ता हवर थासायणा सेहस्सत्ता // तेमज उंगणीशमी गुरू जे वारे साद करे तेवारे अप्रतिश्रवणे एटले अणसांनलतानी परें गुरूने पालो जुवाब आपे नही, ते.आशातना जाणवी. ए श्राशातना पर्वे कही बे, परंतु ते रात्रिसंबंधी शयन करवा पनीनी जाणवी, अने या ते दिवस संबंधि धिपणे तथा अनाजोग पणे जाणवी. वीशमी रत्नाधिक तथा गुर्वादिक जेवारे साद करे, तेवारे तेने खर एटले अत्यंत कर्कश महोटे स्वरे करी पमुत्तर घणा वाले, कहे के अरे // t estwavimuntal For Personal Private Lise Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VarmonicodeG008G wawww/asavasaacsew/asarasveeeesavetsavetaavatsar ना खाधो रे नाइ खाधो ! केम के मूकता नथी. इत्यादिक कठिन वचन बोले, अथवा आ|| क्रोश गाढस्वरादिक गुरूने करावे. ते याशातना जाणवी, वली एकवीशमी गुर्वादिके बोलाव्यो थको त्यांथीज एटले पोताने ठेकाणे वेगे थकोज उत्तर आपे, परंतु गुरूनी समोपे आवीने | जवाब न आपे तो आशातना थाय. बावीशमी वली गुर्वादिकें बोलाव्यो थको कहे के झुंडे ते ? तमें कहो. कोण कहेवरावे ले ? शुं कहो बो ? इत्यादिक विनयहीन वचन बोले, ते आशातना जाणवी, तथा त्रैवीशमी वली गुर्वादिके बोलाव्यो थको कहे के तूंज का नथी करतो? एवी रीते पोताना पूज्यने एक वचनांत बोलावे अथवा कहे के तमे कोण थकामुजने प्रेरणा करो बो ? || इत्यादिक वचन कहे ते आशातना जाणवी. चोवीशमी गुर्वादिक तथा रत्नाधिक शिष्यने कहे के तमें समर्थ बो, पर्याये लघु बो, माटे वृद्धन तथा ग्लान- वैयावच्च करो तवारे ते पाडो जवाब आपे के जो तमेज लान जाणो दो, तो तमे पोते केम नथी करता ? तथा तमारो बीजो पण || शिष्यादिकनो बहु परिवार ने ते शुं लाननो अर्थी नथी ? तो तेमनी पासे करावो. तेवारे वली BaraeatingAAVe/08/ For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० ग० // 10 // asavetsevereasesas/ गुर्वादिक तेने कहे के हे शिष्य ! तमे बालसु न था. ते वारे वली गुरूने कहे के तमे ते | अमनेज दीठा ले ? एवी रीतनां वचन बोलीने गुरूनी तर्जना करे ते श्राशातना जाणवी. पच्चीशमी गुर्वादिक धर्मकथा कहेता होय तेवारे शिष्य उमणो थाय परंतु सुमनो न थाय, गुर्वादि. कना गुणनी प्रशंसा करे नही अने कहे के तमे गृहस्थने विशेष प्रकारे समजावो डो, ते रीते अमने समजावता नथी अथवा गुर्वादिक तथा रत्नाधिकनो जे रागी होय तेने देखीने दुमणो थाय ते आशातना जाणवी // 36 // .. नोसरसि-नयी सांभरतो | अणुद्धिा -अणउठेथके . थारे पग लगाडे समासणेयावि-गूरुने सम ना कहच्छित्ता-कथानो च्छेद करे| कही-कहे चिठ्ठ-वेसे आसने वेसे परिसंभित्ता-सभानो भंग करे | संथारपायघट्टण-गुरुना सं- उच्च-उंचे आसने BREVEDOBJasaviROVEDVDIA/same/SAN PANDEReseaw नो सरसि कहं च्छित्ता, परिसंभित्ता अणुट्टियाइ कहे॥ संथार पाय घट्टण, चिठ्ठच्च समासणे आवि ॥३७॥दार॥११॥ 10 For Personal & Private se Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दार्थ:-२६ तमने नथी सांभरतुं ? एम कहे, 27, कथानो च्छेद करे, 28 सभानो भंग करे, 29 गुरुये कहेली वात फरी पोते कहे, 30 गुरुना संथारे पग लगाडे, 31 गुरुनी शरपा संथारा के आसन पर बेसे, 32 गुरुथी उंचा आसने बसे, 33 गुरुना समान आसने चेसे. // 37 // SVANIN VataryamarateavenaSaveDARATVIRPATANJEEDOM विस्तारार्थः-बबीशमी जेवारे गुरू कथा करता होय ते वारे कहे के तमने ए अर्थ नथी सांनरतो ? था अमुकनो अर्थ एम न होय. एवी रीते कहेतां आशातना लागे. सत्तावीशमी गुर्वादिक कथा करता होय तेनी वचमां पोतार्नु माहापण जणाववाने अर्थे सन्य लोकने कहे के ए कथा हुं तमने पनी समजावीश एम कही कथानो छेद करे, ते आशातना जाणवी, अहावीशमी गुरू कथा कहेता होय अने तेने सन्य लोक हर्षवंत हृदयथी सन्निलतां होय ते सत्य जनोने देखतां उतां गुरूने कहे के एवमी शी कथा कहो बो? हमणां निदानो अवसर , नोजनवेला पोरिसि वेला डे, एम कही पर्षदानो नंग करे तो आशातना थाय, उंगणत्रीशमी गुर्वादिक धर्मकथा कही रह्या पनी पर्षदा अपनवे थके तेज कथाने पोतानुं माहापण जणाववाने NDON Jan Education international For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभा० गुरुमा 11.2 // Vaamaniawaaoraswamvas/AR हेतुये जे गुरूये अर्थ कह्यो होय तेहिज अर्थ वली विशेषथी विस्तारी चर्ची देखामीने कहे तो श्राशातना काय, त्रीशमी गुरूनी शय्या तथा संथाराने पोताना पादादिके करी संघ तेने खमावे नही तो आशातना थाय, श्हां शय्या ते सर्वांग प्रमाण जाणवी, अने संथारो ते अढी हाथ प्रमाण जाणवो, अथवा शय्या ते कर्णादिवस्त्रमय जाणवी, अने संथारो ते दर्नादिक तृणमय जाणवो. एक त्रीशमी गुरूनी शय्या संथारो तथा बेसणादिकने विषे तिष्ठेत् एटले बेसे, अथवा बालोटे असन्य शरीरने अवयवे करी फरसे, तो श्राशातना थाय, बत्रीशमी गुरूथी उंचे श्रासने बेसे, अथवा अधिक बेसणे बेसे तथा गुरू जेवां वस्त्र पहेरे, तेथकी अधिक मूल्यवाला वस्त्रादिकनो परिनोग करे, तो आशातना थाय, तेत्रीशमी गुरूने समान आसने बेसे, अथवा गुरूना जेवां वस्त्रादि होय, ते वांज समान वस्त्रादिकनो परिनोग करे तो आशातना थाय बे. इहां अपिशब्द निश्चयवाचक , तथा गुरूने आगल अने पाबल तथा बे बाजुये बेसवादिकनी अाशातना तो पूर्वे कहेली ए तेत्रीस आशातना टालतो थको शिष्य विनयी कहेवाय, ते शिष्य वांदणां देवा RavanaJAVARGONAu/tag/ranaswana/AVARGO/AROO asanaentertaiwasety // 202 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ whesariharanawatsartama/dore/astomyatrawasantaJN देवराववाने योग्य जाणवो, ए प्रवचनपात्र थाय // 37 // ए तेत्रीश आशातनानु एकवीशमुं हार | संपूर्ण थयु. सर्व बोल (40) थया // . हवे वे विधिनुं बावीशमुं हार कहे . एटले पमिकमj करवानी सामग्रीना अनावें तथा बे प्रतिक्रमण करणादि पर्याप्तिने अन्नावे प्रनातें अने संध्याये वांदणां बे देवां. ते बेहु विधिनो अनुक्रम जाणवो, ते कहे . इरिया-इरियावहि चिहवंदण-चैत्यवंदन आलोयं राइयं आलोए संवर-पच्चरुखाण करे कुसुमिणुस्सग्गो-कुसुमिणदु-पुत्ति-मुहपत्ति | वंदण-वांदणा चउथ्योभ-चारथोम वंदन सुमिपिनो काउस्सग्ग / वंदण-वांदणाआपे खामण-अभुठिोमिखामधुं दुसज्जाओ-बे सज्झाय इरिया कुसुमिणुस्सग्गो, चिइवंदण पुत्ति वंदणा लोयं // वंदण खामण वंदण, संवर चउ त्थोभ दुसज्जाओ॥३८॥ sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुभा० गुलभा VRD/D/awa/teamRWADISER/NIMosamwaraavan शब्दार्थः-१ इरियावहि, 2 कुमुमिण दुसुमिणनो काउस्सग्ग, 3 चैत्यवंदन, 4 मुहपत्ति पडिलेहग, 5 वे वांदणां, 6 राइयं आलोवे, 7 वे वांदणा, 8 खमासमण, 9 वांदणा 10 पचरूखाण, 11 चार खमासमण अने 12 वे सजाय, एम अनुक्रमे करे ते प्रभात वंदन विधि जाणवो. // 38 // विस्तारार्थः-तिहां प्रथम प्रनातनो वंदनक विधि कहे बे. इहां पहेली (१)इरियापथिकी प्रतिक्रमीने, पडी (2) कुसुमिण दुसुमिण उमाविणी निमित्ते चार लोगस्सनो काउस्सग्ग करे, ते वार पड़ी (3) श्रादेश मागीने, चैत्यवंदन करे, पडी (8) श्रादेश मागीने मुहपत्ति पमिलेहे पनी / (5) वांदणां वे आपे, तेवार पड़ी (6) राश्य आलोए, तेवार पड़ी (7) वे वांदणां आपे. पनी () | अप्नुहिनमि अप्रिंतर राश्यं खामे, पडी (ए) वेवार वांदणां श्रापे, पडी (10) पच्चरकाण करे, पनी (11) चार खमासमण पूर्वक नगवन् श्राचार्यादिक चारने थोन वंदन करे, पठी (12) सद्यायसं दिसाहुँ, सद्याय करूं, ए बे खमासमणे बे आदेश मागी सनाय करे. ए प्रनातवंदनकविधि जाणवो // 30 // // 10 Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साल PRAS/NVARMIVITAMARVasudanevana/MBE/Sawan हवे संध्यावंदनकविधि अथवा लघु प्रतिक्रमण कहे जे. इरियावहि-इरियावहि बंदणं-वांदणा खामगा-देवसियं खामधं करे| छित्तनो काउत्सग चिइवंदण-चैत्यवंदन च रिम-दिवस चरिम चउथ्योभ-चार खमासमग दुसज्झामो-वे सज्झाय पुत्ति-मुहपत्ति | आलोयं-देवसियं आलोए दिवसुस्सग्गो-देवसिय पाय- / | इरिया चिइ वंदणपु-त्ति वंदणं चरिमवंदणालोयं // वंदणखामणचउत्थो-भ दिवसुस्सग्गो दुसज्झाओ॥३९॥दारा॥२ / शब्दार्थ-१ इरियावहि, 2 चैत्यवंदन, 3 मुहपत्ति पडिलेहण, 4 वे वांदणा, 5 दिवस चरिम पच्चख्खाण, 6 वे वांदणा, 7 देवसि आलोवे, 8 वे वांदणा, 9 देवसिं खमावे, 10 चार खासण दइ भगवानादि चारने वांदे, 11 देवसिय | प्रायश्चित माटे वे लोगस्सनो काउस्सग्ग अने 12 वे सझाय. ए संध्यावंदन विधि // 39 // विस्तारार्थः-प्रथम (1) शरियावहि पमिकमीने पळी आदेश मागी (2) चैत्यवंदन करे, तेवार पड़ी (3) मुहपत्ति पमिलेहे, पनी (1) वे वांदणां देवे, ते देने पड़ी (5) दिवसचरिम पच्चरकाण PERSanses/SwaseenatanAm/nava For Personal & Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गु०भा० गु०भा० // 104 // assistant करे, पबी (6) बे वादणां देने (7) देवसियं आलोए. पनी (0) बे वांदणां देश्ने, (ए) देवसियं खामवू करे, पडी (10) चार खमासमणां देश नगवानादिक चारने वांदी पड़ी आदेश मागीने (11) देवसियपायबित्तविसोहण चार लोगस्सनो काउस्सग्ग करी आदेश मागीने (12) बे खमासमणे सद्याय करे, एटले एक खमासमणे सजाय संदिसाई, बीजे खमासमणे सहाय करूं. इति संध्यावं दनकविधिः समाप्तः ए बावीशमुं हार प्रान्नातिकवंदन तथा संध्यावंदन मली बे विधियें करी बे| प्रकारचें कडं. उत्तर नेद ४ए थया // 3 // एयं-ए जुजंता-प्रयुंजता आउत्ता-आयुक्त कम्म-कर्मने [ना संचित कि इकम्म-वांदणा चरणकरणं-चरणसित्तरी | साहू-साधु अणेगभवसंचिय-अनेक भवविहि-विधि __ तथा करण सित्तरि / खवंति-क्षयकरे अणंतं-अनंताकालना एयं किइकम्मविहिं, जुजंता चरण करण माउत्ता॥ साहू खवंति कम्म, अणेगभवसंचियमणंतं // 40 // // 104 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ awaravasaetaavasavinderatio/06801atanentative शब्दार्थ-ए प्रमाणे वांदणानी विधिने करता चरण सित्तरी अने करण सित्तरीए सहित एवा साधु भो अनेक भवमां मेलबेला अनंता कर्मने खपावे छे // 40 // विस्तारार्थः-ए पूर्वे कही श्राव्या जे बोल, तेणे करी कृतिकर्म जे वांदणां, तेनो जे विधि || जे व्यवहार ते प्रत्यें प्रयुंजतां थकां चरणसित्तरी अने करणसित्तरी तेना गुणे करी आयुक्त एटले | सहित एवा जे साधु निग्रंथ चारित्रीया ते अनेक नवनां संचित एटले कोटि जन्मनां उपार्जन करेलां अने जेनो दुरंत विपाक डे एटले अनंता काल पर्यंत नोगवाय एवां अबेहपणे रहेनारां जे कर्म अथवा अनंत कालनां उपार्जन करेलां एवांजे कर्म ले ते कर्मोप्रत्यें तुरत शिघ्रपणे केपवी निराकरण करे बे, अर्थात् क्ष्य पमामे // 4 // अप्पमइ-अल्पमति | विवरियं-विपरीतपणे मए-महाराथी गीयथ्या-गीतार्थ भव्य-भव्यपाणी च-बली बोहथ्य-बोधनेअर्थे - -जे तं-ते अणभिनिवेसि-अकदाग्रही भासियं-भाख्यु | सोहंतु-शोधजो अमच्छरिणो-मच्छररहित PAPERVatadantertavetineertismeeMPARVeeravinavianawan Jain Education international wwwneby og For Personal & Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Saamanaris गु०भा० गु०भा० // 105 // tmatertaiterautomaAswal अप्पमइभवबोहत्थं, भासियं विवरियं च जमिह मएं॥ तं सोहंतुंगीयत्था, अणभिनिवेसि अमच्छरिणो॥४१॥ - शब्दार्थ-अल्पमति एवा भव्य जीवोना बोधने अर्थे में अहिं जे कांड विपरीतपणे कहेलं होय तेने कदाग्रह रहित | अने मत्सर रहित एवा गीतार्थ पुरुषो सुधारी लेजो // 41 // विस्तारार्थः-आ वांदणांनो विचार ते अल्प डे मतिजेहनी एवा जे नव्य प्राणी तेमना बोध झानने अर्थे नांख्यो परंतु आवश्यक बृहकृत्यादिक ग्रंथने विषे एनो अत्यंत विस्तार बे. त्यांथी विशेषे जोवू, इहां संदेपथी कह्यो . ते मांहे जे अनानोगें विपरीतपणे वली जे ए नाष्यमांहे महाराथी कहेवाणुं होय तेने वली अकदाग्रही एटले हग्वादरहित एवा अने मत्सरपणाना परिणामें रहित, गुणना रागो एवा जे गीतार्थ एटले गीतना अर्थ तेना जाण, अर्थात् सूत्रार्थना जाण तथा निश्चय व्यवहारने विषे कुशल होय ते शोधजो, अर्थात् शुद्ध करजो. ए Ons het 3086/ in Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ww w VIRMIRVANAwasvansaAAVA32 mins नए वोलें करी श्रीगुरुने वांदणां देवानो विधि कह्यो / अाहीं "श्वामि खमासमणो वंदिलं जावणिज्जाए निसीहियाए” इत्यादिक गुरुवंदन सूत्र जो पण ग्रंथकारें मूल पाठमां गाथा रूपें | कडं नथी, तो पण प्रसंगथो तेनो अर्थ लखवो जोश्ये, परंतु प्रतिक्रमणने विषे सुगुरु वांदणांमां | ते अर्थ सविस्तर लखायेलो होवाथी था ठेकाणे लख्यो नथी. // इति श्री गुरुवंदनक नाष्य अर्थ | सहित सपूर्ण // 41 // |, हवे एवा गुणवंत गुरुप्रत्ये वांदणां देने तेमना मुखथी यथाशक्तिये पञ्चरकाण लेवं, केमके | |'ज्ञानस्य फलं विरतिः ' एवं वचन दे. वली आगम मध्ये कह्यु डे के, " पच्चरकाणेणं नंते जीवे किं जण पच्चरकाणेय य ासव दारानिम्नति” तेमाटे पञ्चरकाण करवानो महोटो लान जे. ते पच्चकाण शुं ? अने ते केटला प्रकारनां पच्चरकाणो ? इत्यादिक जाणवा माटे त्रीज | पच्चस्काण नाय कहे ... / / / / / For Personal & Private se Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० प० भी पस // अथ तृतीय पञ्चख्खाण भाष्य प्रारंभः॥ MORasaतिहां प्रथम पच्चरकाणनां नवहार एक गाथायें करी कहे . दस-दसमेदे | आहार-आहारना स्वरूपनुं दसविगइ-दशविगयर्नु | छसुद्धि-छशुद्धिनुं पच्चख्खाण-पच्चरूखाणर्नु दुवीसगार-बावीशआगार तीसविगइगय त्रीशनिवियातानुं फलं-फल .. चउविहि-चारमकारनाविधिनुं अदुरुत्ता-अणउच्चर्या दुहभंगा-चे प्रकारनाभांगानुं दस पच्चख्खाण चउविहि, आहार दुवीसगार अदुरुत्ता॥ दस विगइ तीस विगई, गयदुहभंगा छ सुद्धि फलं // 1 // 10 शब्दार्थ-१ दश पञ्चख्खाणनुं द्वार, 2 चार विधिनुं द्वार, 3 आहारनुं द्वार, 4 वीजीवार न कहेला बावीस अगा in Education international For Personal & Private Use Only www any Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aavanapdrawanawasana/ | रनुं द्वार, 5 दश विगयन द्वार, 6 त्रीस निवीयातानुं द्वार, 7 मूलगुण उत्तरगुगना भेदतुं द्वार, 8 छ शुदिनुं द्वार, 9 पचख्खाणना फलनु द्वार // 1 // विस्तारार्थः-प्रथम पञ्चरकाणना दश नेद , तेनुं द्वार कहेशे. बोजु पच्चरकाण करवाने विषे पाठ विशेषरूप चार प्रकारनो विधिले तेनुं हार कहेशे. त्रीजुं चार प्रकारना आहारना स्वरूपनुं धार कहेशे. चोथु पञ्चरकाणमां अद्विरुक्त एटले बीजी वारनां अण उच्चरयां अर्थात् | एकवार कह्यां तेनां ते फरी जुदां जुदां पच्चरकाणमां आवे, ते न लेवां एवा बावीश आगार हार कदेशे. पांचमं दश विकृति एटले दश विगयनी संख्यानं हार कदेशे. बत्रीश विकृतिगत | एटले ब मूल विगयना त्रीश निवीयाता थाय तेनी संख्यानुं द्वार कहेशे. सातमुं एक मूल गण पच्चरकाण तथा बीजं उत्तरगुण पञ्च रकाण एम बे प्रकारना नांगा पच्चरकाणना थाय, तेनुं द्वार कहेशे. आठमुं पच्चरकाणनी ब शुद्धिनुं स्वरूप निश्चेथी, कहे, तेनुं हार कहेशे. नवमुं पच्चरकाण | करयाथी इहलोक तथा परलोक मली बे ठेकाणे फल थाय तेनुं द्वार कहेशे // 1 // ए Entre/atestVARGIVacawo/tra dblesednapaalakatpatrNamah E EVANJetaMVAASANA For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० प० भा० // 10 // NarawaseepawantonneswapnaDAUNDAPawant मूल नवद्धारनां नाम कह्यां. एनां उत्तरहार थांही विवरयां नथी, पण ग्रंथांतरे ने कह्यां . | अने अहीं पण शरवालो आपतां नेतुं थाय बे, ते आगल विस्तारे कहेशे. इहां प्रथम पच्चरकाण शब्दनो अर्थ करे . तिहां एक प्रति, बीजु था, अनेत्रीजु आख्यान, एत्रण पद मलीने प्रत्याख्यान शब्द थयो . तेमां अविरतिपणानां स्वरूपप्रत्ये प्रति एटले प्रतिकूलपणे करीया एटले आगार मर्यादा करणस्वरूपे करी आख्यान एटले कहेवू कथन करवं ते जे जेने विषे, तेने प्रत्याख्यान कहीये. अथवा प्रति एटले आत्मस्वरूप प्रत्ये या एटले अनिव्यापीने करण एटले करवं एटले अनाशंसारूप गुण आत्माने उपजे एम करे तेनुं जे आख्यान एटले कथनरूप ते ने जेने विषे तेने प्रत्याख्यान कहीये. ___ अथवा प्रतिके० परलोके आके क्रिया योगार्थे शुनाशुन्न फल कथनरूप जेने विषे जे तेने प्रत्याख्यान कहीये. एम घणां व्याख्यान . SANSAVanavarcaneesavitateme/sweenawanwarse // 107 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Im/awaVIRavanaanwerestsARVEDANANVanvantauvalikasi ते प्रत्याख्यान एक मूलगुणरूप अने बीजुं उत्तरगुणरूप एवा बे नेदें . तेमां मूलगुणर्नु पच्चरकाण यतिने पंचमहात्रतादि रूप अने उत्तरगुण प्रत्याख्यान तो यतिने पिंमविशुद्धयादिक डे तथा श्रावकने मूलगुण तो पांच अणुव्रतादिकनुं ले थने उत्तरगुणनो शिक्षात्रतादिकर्नु बे. | तथा सामान्य प्रकारे जे अविरतिपणानुं प्रतिपक्ष ते सर्व पच्चरकाण कहीयें. - हवे प्रतिदिन उपयोगीपणा माटे उत्तरगुण प्रत्याख्यान दश प्रकारें होय, ते या ग्रंथना प्रथम द्वारना लेदर अणागयं-अनागत | नियंटि-नियंत्रित | निरवसेसं-निरवशेष संके-सांकेतिक अइकंत-अतिक्रांत अण्णार-अनागार | परिमाणकडं-परिमाणकृत / | अद्वा-काल कोडिसहि-कोटिसहित सागार-आगार सहित अणागय मइकंतं, कोडीसहियं नियंटि अणगारं // सागार निरवसेसं, परिमाणकडं सके अद्धा // 2 // निरवत NDVANDARVARDaowevanamom/anasanasantavastavavave Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प.भा. ब० 0 // 10 // aurIVANIVASINAVAIMERASHease/aNDas/asavaasasawaivet शब्दार्थ- कारणे आगलथी तप करवू, 2 पाछलथी करवू, 3 एकनी जोडे बीजुं करवू, 4 धारी राखेला दिवसे करचु, 5 आगार रहित करवू, 6 आगार सहित करवू, 7 चार आहारादिक- करवू, 8 वस्तु विगेरेनुं परिमाण करवं, 9 संकेते कर अने 10 काल पच्चख्खाण करवू // 2 // .. . विस्तारार्थः-प्रथम जे कारण विशेष बागलथी करे पण ते दिवसे न करी शके ते अनागत पच्चरकाण ते पर्युषणादिक पर्व श्राव्यानी पहेलांज एवं विचारे जे गुरु, ग्लान, शिष्य अने तपस्वी प्रमुखनुं वैयावच्च महारे कर, पमशे, तेवारे व्याकुलताने लीधे महाराथी अष्टम्यादिक तपश्चर्या यशकशे नही, तो मने लाननी हानि थशे माटे ते पर्व आव्यानी पहलाज गुरु पासे पच्चस्काण लश्ने तप करें ते अनागत नावी पच्चस्काण... वीजें अतिक्रांत पच्चरकाण ते पूर्वोक्त रीते पर्यु णादिक पर्व अतिक्रम्या पली तेहिज कार्यादिकने हेतुये जे पाउलथी अष्टम्यादिक तप गुरुपासे पच्चरकाण लश्ने करे, तेने अतिक्रांत अतीत पच्चस्काए कहीये. 108 For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / www.saelaeVitael/RGVANSOREPARAGawonloVANAGAR - त्रीजु कोटिसहित पञ्चख्खाण ते प्रनाते उपवास प्रमुख व्रत करीने वली बीजा दिवसना | प्रनात समये पण तेहिज उपवासादिकर्नु पच्चस्काण करे, एम हादिकनी पण कोटि एटले संधि | मेलवे एंटले उहादि एक पच्चरकाण पूर्ण थयानी वखतें बीजुं पच्चरकाण पञ्चरके. एवा कोटिक्रमें जे तप करवं, ते कोटि सहित तप अथवा नीवी, एकाशनादिकने विषे पच्चरकाण पारया पहेला | श्रांबिलादिक करवं ते, एटले एकनो अंत अने बोजा पच्चरकाणनो आदि ते कोटिसहित पञ्चकाण जाप.. . चोनियंत्रित तप ते पुष्ट नीरोगी तथा ग्लानपणे होय तो पण एवं चिंतवे जे अमुक दिवसे, मारे अमुक बह अहमादिक तप करवं. पडी गमे तेवु कारण उपजे तो पण ते निर्धारेला दिवसें | ते तप अवश्य करे, पण मूके नही. एम नियतकालें ते पञ्चख्खाण चौदपूर्वी दशपूर्वी, जिनकल्पीने विषे प्रथम वज्रषननाराच संहननने विषे हतुं. हमणां व्युछिन्न थयु ले थिविर पण ते वेलायें ते तप करता हता, परंतु हमणां ते पञ्चरूखाण नथी. ए नियंत्रित पञ्चख्खाण जाणवू... CatembeDREVAIRNEDABERJess/GOGODAug inin Education international For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०म प०भागाक पांचवें अनागार तप ते "अन्नलगानोगेणं" तथा " सहसागारेणं" ए बेथागार तो सर्वत्र होयज डे, परंतु महत्तरागारादिक आगार जे पञ्चख्खाणने विषे न होय, ते आगार रहित पञ्चख्खाण कही. ए पण पहेला संघयणनो साथै व्युछेद थयु. ___आगार सहित ते महत्तरागारादि आगारसहित पञ्चख्खाण करवं, ते आगार सहित पच्चरकाण जाणवू. ____ सातमु निरवशेष तप ते समस्त अशनादिक चार थाहार वस्तु अने अनादार वस्तु प्रमुख सर्वनुं पच्चस्काण करीये. ते निरवशेष पञ्चख्खाण जाणवू. आठम परिमाणकृत तप पच्चख्खाण ते दातीनी संख्या करे तथा कवलनी संख्या करे तथा | घरनी संख्या करे, एटले दातीर्नु परिमाण तेमज कोलीयानुं परिमाण तथा घरनुं परिमाण जे निदादिके करवं, अथवा मग अमद प्रमुख व्यादिकें जे निदानो परित्याग ते सर्व परिमाणकृत पच्चख्खाण जाणवू. Bavana/EING/RS/NepressaVERMANE 9998wD/AMBA/PGData/mo/AMD/60HVANAap 109 // inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ witwaaaaaaaaaaaaaa@avitaSaanwave नवमुं सांकेतिक पच्चख्खाण ते श्हां गृह तेणें करी जे सहित वत्तें तेने गृहस्थ कहीयें, ते || है संबंधी प्रायः ए पच्चस्काण गृहस्थने होय अथवा चिन्ह जे अंगुष्ठादिक तेणे करी होय ते संकेत || | कहेवाय. एटले कोइएक श्रावक पोरिसी आदिक पच्चरकाण करीने बाहेर कोई कामें अथवा | क्षेत्रादिके गयो होय तिहां पोरिसीनो काल पूर्ण थयो अथवा घरमांज बेगे अने पोरिसीनो काल पुर्ण थयो बे, परंतु नोजन सामग्री तैयार थ नयी ते वखत विचार करे जे एटलो काल | वचमां महारो अपच्चरकाणपणे रहेशे, ते श्रावकने योग्य नथी. एम चिंतव एक अंगुट सहिथं पच्चरकामि एटले जिहां सुधी मुगेमा अंशुगे रावू यां सुधी महारे पच्चरकाणनो सीमा . एमज बीजु मुट्ठसहियं पच्चरकामि एटले मुने बांधी राखुं तिहां सुधी. त्रीजु गंठसहियं पच्चरका| मि एटले गांठ बांधी राखुं तिहां सुधी. चोथु घरसहियं पच्चरकामि. पांचमुं प्रस्वेदसहियं ते ज्यां | सुधी अंगना परसेवाना बिंदु निकले, त्यां सुधी. बहुं उस्साससहियं पञ्चरकामि. सातमु थिबुक | सहियं पञ्चकामि एटले स्तिबुक ते ज्यां सुध पाणीना बिंया नाजनादिकें तथा करादिक सूके NAVAJAVeamvasaVERGROWAVARTAMARIVARVEER Jain Education international For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० ADVEMB/Saamsa प०भा० 1 " avanavaasanawwaavasavetnewsANGamvasaviSEBAAWAR | तिहां पर्यंत जाणवू. आठमुं जोरकसहियं पच्चस्कामि एटले ज्योतिष्क जे दीवा प्रमुखनी ज्योति | रहे तिहां सुधी संकेत करे. ए पाठ प्रकारे नवमुं सांकेतिक पच्चरकाण कहेवाय जे जे माटें का डे के // अंगुट मुट्टी गंठी, घर सेन उरसास थिबुक जो इको // पञ्चकाण विचाले. किच्च मण-| निग्गहे सुचियं // 1 // तथा कोइ पोरिसी आदि पच्चरकाण न करे अने केवल अन्निग्रहज करे | तो गांठ प्रमूख न बोमे त्यां लगें पञ्च रकाण तेने थाय, तेथी ए पच्चरकाण जेम बीजा पच्चरकाणोनी | वचमां थाय बे, तेम अन्निग्रहने विषे पण थाय . तथा साधुने पण कोश्क स्थानकें ज्यां सुधी मंझल्यादिकें गुर्वादिक न आल्या होय त्यां लगें अथवा सागारिकादिकनुं का कारण होय, तेवारें पण ए अनिग्रह संकेत पच्चकाण थाय. - दशमुं श्रद्धा ते काल मुहूर्त पौरुष्यादिक प्रमाणने पण उपचारथी जाणी लेवो. ते काल पच्चरकाण जाणवू // 2 // s aramrostsGwaswataa // 11 // / in Education national For Personal & Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवे ए दश. पच्चस्काण कह्यां, तेमां बेहडं श्रद्धा पञ्चस्काण कह्यु, तेना दश नेद ले. . ते एक गाथायें करी कहे . नवकारसहिय-नक्कारसहित | एगासण-एकासणुं | अभ्भत्तठे-उपवासन | अभिग्गहे-अभिग्रहनु पोरिसि-पोरिसि एमठाणे-एकलठाणुं च रिमेअ-दिवसचरिम विगइ-विगइ निविगइनुं पुरिमट्ट-पुरिमाई आयंबिल-आयंबिलन wesatsapRGANESeawaravdowwdo/amvarersareewww नवकारसहिय पोरिसि, पुरिमलेगासणेगट्ठाणे अ॥ आयंबिल अप्भत्तढे, चरिमेअ अभिग्गहे विगइ ॥३॥दारर SIVanavaraarroravelass-vetana. JPasara-Jitnarotharamanacease शब्दार्थ-१ नोकारसी, 2 पोरसीनु, 3 पुरीमढनु, 4 एकासणानु, 5 एकलठाणानु, 6 आंबील, 7 उपवासन, 8 दिवस चरिमनु, 9 आभिग्रह अने 10 विगइनु. ए दश काल पञ्चरूखाण छे. // 3 // विस्तारार्थः-प्रथम नवकारसहित एटले नवकार कहीने पारीये ते बेघमी प्रमाण नोकारसी For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० VODARDVANTAGupta/ANVERMAtai/AIAMONDAMAN पच्चरकाण कहीयें, बीजुं पहोर दिवससुधी पच्चखाण ते पोरिसि कहीयें, एमां साढ़पोरिसी सार्द्ध एटले दोढ पहोरनुं पञ्चरकाण पण जाणवू. त्रीजुं पुरिमार्द्ध, ते बे पहोर प्रमाणर्नु पञ्चख्खाण. चोथु | एकाशननुं पच्चरकाण अने पांच, एकलगणुं. जिहां मूख तथा एक जमणा हाथ विना बीजुं अंग हाले नही ते बहुं आयंबिल पञ्चरकाण. सातमुं अन्नक्तार्थ एटले उपवासर्नु पच्चरकाण. थाउमुं दिवसचरिम अथवा नवचरिमादिरूप जाणवु. नवमुं अनिग्रह पञ्चख्खाण ते अमूक वस्तु तेवारेज खाडं जेवारे अमुक करुं ? इत्यादिक अनिग्रह करे ते. तथा दशम विगई निविगर्नु पञ्चकाण जाणवू. ए दशे पञ्चस्काणोने कालनी मुख्यता डे माटे अद्धा पञ्चरकाण कहीयें // 3 // इहां शिष्य पजे ले के पोरिसी प्रमुखने काल पच्चरकाण का ते खरं पण नोकारसीनुं कालमान न का माटे नोकारसी जे डे, ते अनिग्रह पच्चरकाण कदेवाय पण काल पच्चस्काण | Saan | थर शके नहीं ? ___ त्यां गुरु उत्तर कहे बे. नवकारसहियं एमां सहित शब्द श्राव्यो माटे सहित शब्दे काल-! SR/19858051844010980PEDIADEODASERVIE/ALIBAB For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ awasavamaANGRAISeawasa.varuvewwwana प्रमाण जाणवं, अने अल्प आगार डे माटे अल्पकाल जाणवो. तेवारे शिष्य पूढे ले के पोरिसी तो एक प्रहर काल प्रमाण हे माटे ए नवकारसीने विषे महूर्तध्यादिक काल केम न लीधो ? केम के मुहूर्तध्यादिक काल पण पोरिसोथो अल्प डे माटे बे धमीज मान शा वास्ते लीधुं ? - गुरु उत्तर कहे , के हे शिष्य ! तें कडं ते सत्य बे, परंतु सर्वथी स्तोक काल श्रद्धापच्च. काणनो एक मुहूर्त्तज डे, मुहूर्त्तद्धा श्रद्धा इति वचनात् ते माटे एनुं एक मुहर्तज कालमान जाणq. __ हवे ए नवकारसी पच्चरकाण, सूर्योदय पहेलांज करवु अने नमस्कारे करी पारवं, अन्यथा नंग लागे, नोकारसी करया पनी आगल पोरिसीयादिक थाय, परंतु ते विना न थाय अने यद्यपि नोकारसी विना पोरिसीयादिक करे तो काल संकेत रूप जाणवो. तथा वली वृद्ध संप्रदाये एम कहे जे जे नोकारसी पञ्चकाण जे , ते रात्रे चविहारादिक पञ्चस्काणना तीरणरूप ले एटखे anwaVedoeasRANDVesawenaeementnaataavaameramsaviantava mewanawar inin Education international For Personal & Private Use Only www jainelibrydig Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पभा० प०भा० शिक्षारूप ले. इत्यादिक घणो विचार ले ते प्रवचनसारोद्धारग्रंथनी वृत्तिथी जाणवो. अहीयां | // 112 // विशेषे करी लख्यो नथी. ___हवे पुरुष प्रमाण बाया जेहने विषे थाय ते पोरिसी जाणवी “आसाढमासे उपया" | इत्यादिक पाठ श्री उत्तराध्ययनादि सूत्रथी जाणवो. ए रीते नोकारसी, पोरिसी, दिन- पूर्वाई ते पुरिमर, एकासण, एकसगणुं, आयंबिल, उपवास, दिवसचरिम, अनिग्रह अने विग एवंदश पच्चस्काणना नामर्नु ए प्रथमहार थयु. | उत्तर नेद दश थया // 3 // __ हवे बीजे द्वारें पच्चरकाण करवानो पाठरूप विधि चार प्रकारें कहे . उग्गएमरे-उग्गएसूरे नमो-नमोकार सहि पच्चख्ख-पच्चरूखाण [स्मिटुं अभत्तईपच्चख्खाइ-अभत्तई अ-वली | पोरिसि-पोरिसि / रेउग्मएपुरिम-सूरेउग्गएपु- | इति-एम 3 शत-एम [पचरुखाइ amavataemeAGaravasaneemuPARODAMROWAnavarN wwwwwwnalodahatavaastavaneseameramae 122 // For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उग्गएसूरे अ नमो, पोरिसि पच्चख्ख उग्गएसूरे // सूरे उग्गए पुरिमं, अभत्तडं पच्चख्खा इति // 4 // maavasuwanayesawarosavamevotswantiweomaasawaavan शब्दार्थ-नवकारसीना पञ्चख्खाणमा " उम्गए मरे नमोक्कार सहियं" एवो पाठ, ए प्रथम विधि. पोरसिना पच्च|| रूखाणमा " उग्गए सूरे पोरिसियं” एवो पाठ, ए बीजो विधि. पुरिमट्टना पच्चरूखाणमां " सूरे उम्गए पुस्मिट्ठ" एवो | पाठ, ए बीजो विधि, उपवासना पच्चरूखाणमां " अभत्त, पच्चख्खाइ" एवो पाठ भणवो. ए चोथो विधि // 4 // विस्तारार्थः-प्रथम नवकारसीनुं पच्चरकाण उच्चरी तेवारे जग्गए सूरे, वली नमुक्कार || सहिथं पच्चख्खाश् चनविहंपि थाहारं असणं पाणं खाश्मं साश्मं अन्नछणानोगेणं सहसागारेणं | वोसिरई ए उच्चार करवानो प्रथम विधि जाणवो. बीजो पोरिसीनुं बच्चखाण उच्चरीमे, तेवारे जग्गए सूरे पोरिसिय पच्चख्खाइ, उम्गए | सूरे चविहंपि आहारं असणं पाणं खाश्मं साश्म अन्नबणानोगणं सहस्सोगारणं ए उच्चार verwendet For Personal & Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० 1113 // प०मा० PARBATIMESSAWARDPuwan/NAGW/aaaaaaaaaaaaa/AMI करवानो बीजो विधि जाणवो. त्रीजो पूरिमार्द्धनुं पच्चख्खाण उच्चरीये तेवारे सूरे जग्गए पुरिम पच्चख्खाश् चविहंपि आहारं ए उच्चार करवानो त्रीजो विधि.. . चोथो अन्नक्तार्थ एटले उपवासर्नु पच्चस्काण उच्चरीये तेवारे अन्नत्तई पञ्चरुखाइ तिविहंपि पाहारं चउविहंपि आहार एम उच्चार करीये, ए चोथो विधि जाणवो. 1. अहींयां पुरिमार्द्ध ते दिवसर्नु पूर्वार्द्ध समजवु, एटले नोकारसी श्रादि पञ्चख्खाण जो पूर्व सूर्योदयथी न कयुं होय तो पण पुरिमझ थाय, एम उपवासादिक पण थाय. तथा सूर्योदयथी मामीने यावत् श्रागला दिवसनो सूर्योदय थाय, त्यां सुधी अन्नक्तार्थ एटले उपवासर्नु पञ्चख्खाण कहेवाय डे, एम जणाववाने तथा रात्रिनो चनविहार करयो होय अने बीजे दिवसे एक उपवासर्नु पच्चख्खाण करे, तेहने चोथन्नत्तनुं पच्चख्खाण थाय. तथा रात्रिय चविहारर्नु पञ्चख्खाण न answetnesiasaratiwsanemaARATARJInstage ॥११शा For Personal & Private se Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Rus/APoe Harinanvetawwawasthapaansaanawanevanaaaavaavaad कडं होय अने बोजे दिने उपवास करे, तेने अन्नत्तनुं पञ्चख्खाण कहीये, पण चोथन्नत्तनुं पच्चख्खाण न कहीये. थने उन्नयकोटि एकासणादिके तो चोयनत्तनुं पच्चख्खाण होयज. इत्यादिक जणाववा माटे चारे विधि देखाड्या // 4 // हवे बीजा पण चार विधि , ते देखा . | भणइ-भणे पञ्चरुखामि-पच्चख्खामि . | उपभोग-उपयोग न पमाणं-प्रमाण नथी गुरु-गुरु सीसो-शिष्य एव-एम इथ्य-इहां वंजण-अक्षर पुण-वली / बोसिरइ-वोसिरह पमाणं-प्रमाण छे | छलणा-स्खलना इति-एमकहे. भणइ गुरु सीसो पुण, पच्चख्खामिति एव वोसिरइ॥ उवओगित्थ पमाणं, न पमाणं वंजणच्छलणा॥५॥ tND/dp/JAANVEEDEVAGass For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sllo भा० म. भा० BAtom/RasEOGRAATMapanasamaceourve शब्दार्थ-प्रथम पच्चरुखाण करावनार गुरु " पच्चरुखाइ" एम कहे ए प्रथम विधि. वली पच्चख्खाण करनार शिष्य " पच्चख्खामि" एम कहे, ए बीजो विधि. पछी गुरु "वोसिरह" एम कहे ए बीजो विधि. शिष्य "वोसिरामि" एम कहे, ए चोयो विधि. आर्हि धारेलो उपयोगज प्रमाण छे; परंतु अक्षरनी स्खलना प्रमाण नथी. // 5 // _ विस्तारार्थः-प्रथम गुरु जे पञ्चख्खाणनो करावनार होय, ते पञ्चख्खाइ एम नणे, एटले कहे; ए प्रथम विधि जाणवो. वली शिष्य जे पचख्खाणनोकरनार होय तेपच्चरकामि एम कहे. ए बीजो विधि जाणवो. अने एम संपूर्ण पञ्चख्खाणे गुरु वोसिरई कहे. ए त्रीजो विधि जाणवो अने शिष्य है| जे पञ्चख्खाणनो करनार होय ते वोसिरामि कहे, ए चोथो विधि जाणवो. ए चार विधि कह्या. हां पञ्चख्खाणने विषे करतां तथा करावतां थकां पोताना मननो जे उपयोग एटले मननी धारणा ले तेज प्रमाण जे एटले मनमांहे जे पच्चख्खाण धायुं होय तेज प्रमाण ले. परंतु अदर तेनी बलना ते एटले स्खलना बे. अर्थात् अनानोगने लीधे धारेला तिविहार पच्चख्खाणथी वीजो को चनविहार पच्चख्खापनोज पाठ उच्चरीये, ते वंजण बलना जाणवी ते प्रमाण नथी॥५॥ PARGADARGAivamwasnaviYENGJawri-ena/ARO/ARE 14 // For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवे तेहीज उच्चारनो विशेष विधि कहे जे. / पदमे ठाणे-प्रथम स्थानके / तिमिओ-त्रण ... | पाणस्स-पाणस्सना देसवगासाइ-देशावकाशकादि सेरस-तेर तिगाइ-विकादिक | चउथ्यमि-चोथा स्थानके . पंचमए-पांचमा स्थानके बीए-बीजा तइयंमि-बीजा स्थानके पढमे ठाणे तेरस, बीए तिनिओ तिगाइ तइअंमि // पाणस्स चउत्थंमि, देसवगासाइ पंचमए // 6 // Braanus/8600PAADAADDAMDAR शब्दार्थ-पहेला स्थानकमां नवकारसिआदि तेर, बीजा स्थानकमा विगइ विगैरे त्रण, श्रीजा स्थानकमा एकासणादि त्रण, चोथा स्थानकमां पाणस्स लेवेणवादि छ आगार, अने पांचमा स्थानकमां देशावकाशादि पच्चरुखाण जाणवां॥६॥ . विस्तारार्थः-हवे एनां पांच स्थानक तेमां, प्रथम स्थानकने विषे कालपच्चख्खाणरूप नोकारसी प्रमुख तेर पच्चख्खाण जाणवां, तेनां नाम आगली गाथाये कहेशे, तथा बीजा स्थान DANAND For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० पभा WRawa/awanSSIBawaom/asaaraavaaaaaa कने विषे विग, नीवी अने आयंबिल ए त्रण पच्चख्खाण जाणवां. तथा त्रीजा स्थानकने विषे त्रिकादिक एटले एकासण, बीयासण ने एकलगणादिक, एत्रण पच्चख्खाण जाणवां, तथा चोथा स्थानकने विषे पाणस्स लेवेण वा अलेवेण वा इत्यादि अचित्त पाणीना श्रागार जाणवा, तथा पांचमा स्थानकने विषे देशावकाशिकादि पच्चख्खाण जाणवां // 6 // ए पांच स्थानक मांहेला प्रथमादि स्थानकना पृथक् पृथक्नेद कहे . नमु-नमुक्कारसी / अबढ़-अवठ्ठ, त्रण पहोर | निवि-निवी | दु-बेआसणुं: पोरिसि-पोरिसि अंगुठमाइ-अंगुष्ट सहितादिक विगइ-विगइ इगासण-एकासगुं सट्टा-सार्द्ध पोरिसि, दोढपहोर अड-आठ . अंबिल-आयंबिल एगठाणाइ-एकलठाणादिक पुरिम-पुरिमट्ट, बे पहोर तेर-तेर। तिय-त्रण // 115 // नमु पोरिसी सट्टा, पुरिम वढ अंगुठमाइ अडतेर // निवि विगइ अंबिलतिय, तिय दुइगासण एगठाणाई॥७॥ in Education national For Personal & Private Use Only www any Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ yavaranasesuvassacramaaas शब्दार्थ-नमुकारसी, पोरसी, सार्द्धपोरसी, पुरिम, अबढ अने अंगुहसही विगेरे वीजा आठ, ए सर्व मली प्रथम || स्थानकना तेर भेद थाय, बीजा स्थानकना निवि, विगइ अने आंबीक ए त्रण भेद जाणवा. त्रीजा स्थानकना वेसणु, एकासगुं अने एकलठाणुं एत्रण भेद जाणवा // 7 // __विस्तारार्थः-प्रथम स्थानकें तेर नेदनां नाम कहे . एक नमुकारसी, बीजु पोरिसि, त्रीजें | साईपोरिसि ते दोढ पहोर पर्यंत, चोथु परिमर ते बे पहोर, पाचमुं अव ते त्रण पहोरनु पञ्चख्खाण. ए पांचनी साथे पुर्वोक्त अंगुष्ट सहितादिक आठ नेद मेलवीये तेवारे तेर नेद थाय. || तथा बीजा स्थानके एक निवी, बीजुं विग अने त्रीजुं आयंबिल ए त्रण पञ्चख्खाण जाणवां, || तथा त्रीजा स्थानकने विषे एक बेथासणुं, बीजें एकासणुं अने त्रीजु एकलगणादिक ए त्रण | पञ्चख्खाण जाणवां // 7 // हवे वली प्रकारांतरे उपवासादिक विधिये उपवासने दिवसे पांच स्थानक केवी रीते करवां ? ते कहे . PEBOOV/DAmetNDAANDARDancemeIMI/AAMRATAPipes sinin Education national For Personal & Private Use Only www jane yg Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० // 116 // प०भा० पढमंमि-पहेले स्थानके बीयंमि-बीना स्थानके / देसवगासं-देसावगासिकर्नु / जह संभव-यथा संभवे चउथ्थाइ-चोथादिक तइय-त्रीजा तुरिए-चोथा नेयं-जाणवू तेरस-तेर | पाणस्स-पाणस्स | चरिमे-दिवसचरिमं पढमंमि चउत्थाई, तेरस बीयंमि तइय पाणस्स // देसवगासं तुरिए, चरिमे जह संभवं नेयं // 8 // शब्दार्थ-पहेले स्थानके चोथ विगेरे, बीजे स्थानके नवकारसी विगेरे तेर, श्रीजा स्थानके पाणीना छ आगार, चोथे स्थानके देसावगासि आदि अने पांचमे दिवस चरिमादि जेम घटे तेम जाणवू. // 8 // विस्तारार्थः-पहले स्थानके चोथादिक एटले एक उपवासथी मामीने चोथ बह इत्यादि यावत् चोत्रीश नक्त पर्यंत पच्चरकाण करवां, तथा बीजा स्थानकने विषे नोकारसी, पोरिसी, साईपोरिसी, पुरिमढ़, अवह अने गंठसहियं, मूहसहियं, अंगुठसहियं, घरसहियं, प्रस्वेदसहियं, wvanayanepAANDATINDAIANDramasomeVitatvBitrate/AIDABADES DAN in Education international For Personal & Private Use Only www janebryong Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CD/EDGODAVAASARDApanp श्वासोबाससहियं, जलबिसहिय, दीपसहियं, ए तेर पच्चख्खाण माहेबुंदरको पच्चरकाण करवं, | तथा त्रीजा स्थानकने विषे पाणीना आ आगारनुं पञ्चख्खाण करतुं तथा चोथा स्थानकने विषे | देसावगासिकनु पच्चख्खाण करवु तथा पांचमा स्थानकने विषे नेहेमानुं पच्चरकाण जे दिवसच | रिमं एटले रात्रिनुं पच्चरकाण तेने विषे दुविहार, तिविहार, चनविहार पाणहार प्रमुखनु पञ्चकाण ते यथासंनवे जे पोताने करवानी श्छा होय ते यथाशक्तियें करवु तथा नवचरिमादि जे बे, ते पण यथासंन करवं. एम जाणवू. ए पांच मांदेडुं जे कोश् करवं ते पञ्चरखाण कहीये - वली ए पञ्चख्खाण करवाना पाउनोज विशेष विधि कहे . तह-तथा | नपिहु-वारंवाह न कहेवो / करणविहीओ-करवानो विधि आवसीयाइ-आवस्सियाए मज्झपचरूखाणेसु-मध्य पञ्च- | सूरुग्गयाइ-सूरेउग्गे विगइओ| नभण्णइ-नथी भणता बियछंदे-बीजा वांदणाने विषे रूखाणने विषे | बोसिरइ-वोसिरामि / जहा-जेम necretaarateasaneemuPawasana /apDASAIAD/कर /DEODERBER inin Education international For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w 11 तह मज्झपचख्खाणे-सु नपिहु सूरुग्गयाइ वोसिरइ // करणविहीउ न भन्नइ, जहावसीयाइ बियछंदे // 9 // a शब्दार्थ-तेमज मध्यना पचख्खाणमा “सूरे उग्गे विगइओ" इत्यादि पाठ वारंवार न कहेवो ते वोसिरे' ए पाठ पण वारंवार न कहेवो, एटला माटे करवानी विधि आचार्योंए कही नथी. जेम 'आवस्सियाए' ए पाठ बीजा वांदणामां कहेता नथी तेम. // 9 // विस्तारार्थः-तथा ए पद विशेष देखामवावाची बे. मध्यनांबे स्थानक जे विगइ, नीवी अने आयंबिलनुं तथा एकासण, बियासण अने एकलठाणानुं ए बेनांब पच्चख्खापोने विषे पृथक् पृथक् पञ्चख्खाणे सूरे जग्गए विग पञ्चख्खा इत्यादिक पाठ वारंवार न कदेवो, एटले प्रथम जे पच्चख्खाण मांझे, तिहां सूरे जग्गए कहेवो, परंतु पञ्चख्खाण पच्चख्खाण प्रत्ये न कहेवो, तेमज वोसिर तथा वोसिरामि ए पाठ पण अंतने विषे एकवार कहीये, पण वारंवार न कहीये. ए nVINDIVINE // 117 // For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ samvaadataavaavawa/dpotaweRAPASER/News करवानो विधि एटले पुर्वाचार्य परंपराये एमज कहेता श्राव्या , करवानो एहज विधि बे; माटे महोटा पुरुषः पण नथीलणता. जेम आवस्सियाए ए पाठ बीजा वांदणाने विषे कहेता नथी, ए पण पुर्वाचार्यनी परंपरा में तेम इहां पण जाणी लेईं // 5 // तह-तेमन / भमंति-भणे छे | दुविहाहारे-दुविहारना पच्च- तहय-तेमन तिविह-तिविहारना पाणग-पाणस्सना रूखाणे फासुजले-फासुपाणी पञ्चलखाणे-पञ्चस्खागमा / छ आगारा-छ आगार / अचित्तभोइणो-अचित्त भोजीने ... IN/ Aavatigeawayamayan तह तिविह पञ्चख्खाणे, भन्नंति अ पाणग छ आगारा // दुविहाहारे अचित्त-भोइणो तहय फासुजले // 10 // DAAGVdeusaNDanie/a/ चली दुविहार पचरूखाणमां अचित्त भो. D वमनातावहारना पचरूखाणभां पाणीना छ आगार को 'ना अने प्रामुक पाणीना छ आगार कहे छे. // 10 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० भा० पभ // 118 MINDIVIDU विस्तारार्थः-तेमज वली तिविहारना पच्चख्खाणने विषे तथा एकासणादि पञ्चख्खाणे प्रासुक निर्जीव जलपान संबंधि पानक एटले पाणीना आगार नणे ले कहे . तेनां नाम क | पाणस्सलेवेण वा, अलेवेण वा, अछेण वा, बहुलेवेण वा, ससिनेण वा, असिबेण वा. एब यागारनां नाम जाणवां. तथा विविधाहार पच्चख्खाणने विषे श्रचित्तन्नोजी होय सचित्तमोज्य परि हरे तेने तथा तेमज जे एकासणा बियासणाविना फासु पाणी लेतो होय एवा सचित्त परिहारीने पण पच्चख्खाणने विषे पाणीना आगार कहेवा. ए प्रथम विकल्प.. ... तथा अचित्तनोजी होय अने फासु निर्जीव पाणी पीतो न होय तेने पाणस्सना आगार न कहेवा. ए बीजो विकरूप. तथा जे सचित्तन्नोजी होय पण फासु पाणी पीये जे तो तेने पापस्सना आगार ब कहेवा. ए त्रीनो विकल्प तथा सचित्तनोजी डे अने फासु पाणी पीतो नथी तो तेने पाणस्सना आगार न कहेवा. तथा सचित्तनोजी बे अने केवलखादिम, अशन अने स्वादिम रूप त्रण आहारना पच्चख्खाणने उद्देशे रात्रिप्रमुखे तिविहार करे , तिहां पण ARWamananedeseemaDesearcomaaaaa AL For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Napavasaanevaaaaaaaaaaaaawaooo//ANImaavapes पाणस्सना श्रागार न कहेवा. ए चोथो विकल्प. ए चार विकल्प श्रागारना कह्या, अहीं तथा शब्दथी विशेष जाणवू // 10 // इतुच्चिय-एटलाज माटे / विषे / तु-बली . पच्चख्खंति-पच्चरूखाण करे खवण-उपवासने विषे फासुयं-अचित्त सट्टावि-श्रावक पण . तेवारे अंबिल-आयंबिलने विषे चिय-निश्चय थकी / पियंति-पीये अ-वली निवियाइसु-निवि आदिकने जलं-जल तहा-तेमज तिहाहारं-तिविहार इत्तुच्चिय खवणंबिल, निवियाइसु फासुयं चिय जलंतु // - सट्टावि पियंति तहा, पच्चख्खंति य तिहाहारं॥११॥ Papanasanvaasanaompanp/PGDMAAVANDA शब्दार्थ-एटलाज माटे उपवास, आंबिल अने निविआदिकमां श्राव कोए पण साधुनी पेठे निश्चे प्रामुक पाणी पीवं अने तिविहारनुं पच्चख्खाण करवू. // 11 // For Personal Private Lise Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० प०भा० NIVONIVG NE N PoarnsouTWEAasandsomeranpanuareADHETAVANIva विस्तारार्थः-एटलाज माटे अचित्तनोजी होय तेने पण एटले उपवासने विष श्राय- | | बिलने विषे, तथा निवि श्रादिक एटले निवि एकासणादिक तिविहार पच्चख्खाण तथा आदि-| शब्दथी सचित्त परिहारने विषे निश्चयथकी फासुक अचित्त जल ते जेम यति फासुक निर्जीव | पाणी पीये तेनीपेरे श्रावक पण फासुक पाणी पीये तेने पण एहिज आगार कहीये, परंतु ते वली तिविहार पच्चख्खाण पच्चख्खे सचित्तनोजीने पण उपवास आयंबिल, निविर्नु पच्चख्खाण तिविहारें होय ते नष्ण पाणी पीये अने एकासणादि पचख्खाणनो नियम नथी. एमां तो सुविहार, तिविहार, चनविहार यथासंभवे होय // 11 // चउहाहारं-चउविहारोज़ / मुणीण-मुनिने निसि-रात्रिनुं पञ्चख्खाण | सट्टाण-श्रावकने अर्थे तु-वली सेस-शेष पोरिसि-पोरिसिनु दुतिचउहा-दुविहारे, तिविनमो-नोकारसीनुं तिहचउहा-त्रिविहारा तथा / पुरिम-पुरिपट्टनु हारे, चउविहारे रतिपि-रात्रिनु पण चउविहारा एगासणाइ-एकासणादिक // 119 // DE VIVIM / Inn Education international For Personal & Private Use Only www iny ong Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Na चउहाहारं तु नमो, रत्तिंपि मुणिण सेसतिहचउहा // निसिपोरिसि पुरिमे-गा सणाइ सट्ठाण दुतिचउहा॥१२॥ /DON शब्दार्थ-नोकारसीन अने रात्रीचें पच्चख्खाण मुनिने चउविहारुंज होय. तथा बाकीनां पोरसी आदि तिविहारां तथा चउविहारा होय. वली श्रावकने रात्रीनु, पोरसीनु, पुरिमट्टर्नु अने एकासणादिकर्नु पच्चख्खाण दुविहार, विहार अने | चउविहारे होय. // 12 // विस्तारार्थः-नोकारसीनु पञ्चख्खाण तथा रात्रिनु पञ्चख्खाण पण मुनिने, यतिने वली नि| यमा चविहारज होय अने शेष पोरिसी श्रादिक पञ्चख्खाए ते मुनिने तिविहारा तथा चनवि हारा यथासंनवे होय. हवे श्रावक श्राश्रयी कहे . रात्रिनुं पञ्चरकाण, पोरिसीनुं पञ्चख्खाण, | पुरिमडुर्नु पञ्चख्खाण अने एकासणादिक पच्चख्खाण जे . ते श्रावकने विहार, तिविहार अने | चनविहार, ए त्रण प्रकार यथायोग्य होय, तिहां नवकारसी तो श्रावकने चनविहार पख्वखाणेज NEVNDINA detastatn NIE es Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jang Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N प० प. // 12 // होय, अने शेष पोरसी पुरिमट्ठादि पच्चस्काण तथा रात्रिनुं दिवस चरिमादि पच्चस्काण ते ऽविहार तिविहार थने चलविहारे यथायोग्य होय,. परंतु ग्रंथांतरें एटलो विशेष जे जे एकासणादि तिविहार पञ्चकाणीने रात्रे पाणहार होय अने विहार पच्चख्खाणे एकासणादिकने विषे रात्रे चनविहार होय तथा केटलाएक स्थानके श्रावकने पण पोरिसी तिविहारें बोली . अने दुविहार पच्चख्खाणे रात्रे तिविहार होय परंतु ते कारणिक जाणवू, व्यवहारे समजवू नही. इत्यादि बीजी विशेष वात ग्रंथांतरथी जाणवी, एटले चार विधिन बीजु द्वार पूर्ण थयु. उत्तर बोल चौद थया // 12 // // हवे चार प्रकारना थाहारनुं त्रीजुं द्वार कहे जे. खुइपसम-भुखने उपशमावाने एइ-आवे एवा ख्यो थको पण ज-जे खम-समर्थ देइ-आपे एगागी-एकाकी सायं-स्वाद प्रत्ये खिवइ-क्षिपति, क्षेपवे, नांखे पंकुवम--पंकोषम, कादवनी पेरे आ हारिव-आहारने विधे खुहिओवि-धुधितोपिभ. कुठे-कोठामा आहारो-आहार avasusawa/AAAAAAADODARASitemapeeleramanue 12 AV For Personal & Private Use Only www.pinelibrary.org Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BoomavsWass खुहपसमखमेगागी, आहारिव एइ देइ वा सायं // खुहिओ वि खिवइ कुठे, जं पंकुवमतमाहारो॥१३॥ शब्दार्थ-भूखने समाववाने समर्थ एवो एकज आहार, आहारमा आवता एवा लवणादि अथवा स्वाद आपनारा हिंग विगेरे, वली जे भूख्यो छतो पण पेटमां नाखे एवो कादवना सरखो होय ते आहार कहेवायः॥ 13 // / विस्तारार्थः-प्रथम सामान्य प्रकारे थाहारनुं लक्षण कहे . जे दुधाने उपशमाववाने अर्थे | समर्थ होय एवो जे एकाकी ऽव्य होय तथा वली याहारने विषे एति एटले आवे एवा लवण हिंग्वादिक, वली जे आहारमांहे स्वाद प्रत्ये आपे ते, वली जे पंकोपम एटले कादवनी पेरे असार होय कादवनी उपमा धारण करे एवं कादव सरखं अव्य होय परंतु कुधितो एटले कुधित थको कोगमा उदरमा दिपति एटले देपवे ने तो ते सर्व आहार जाणवो // 13 // हवे ए श्राहारना मूल चार नेद , ते कहे . vasaetaassaaseemaDecemAJPG/98060/4 samvaaWARNavavasarape For Personal & Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० प०भा० // 12 // DDDDDI08.258090amavama/ असणे-अशन मुग्ग-मगादिक... | ओयण-मोदन, भात सत्तु-साधुओ. . मंड-मांडा विगेरे कंदाइ-कंदादिक पय-ध विगेरे ... पाणे-पानने विषे. | खज्ज-खाजा पकवान विगेरे | कंजिय-कांजीनुं | रब्ब-राबडी जव-यवर्नु कयर-केरनु कवडोदग-काकडी विगेरेनुं पाणी ' मुराइजलं-मदिरादिकनुं पाणी | असणे मुग्गोयणस-त्तु मंड पय खज्ज रब्ब कंदाइ॥ पाणे कंजिय जय कयर, कक्कडोदग सुराइजलं // 14 // MamaaaaaaaaaaaNESEDIOmeenwermewanapa *. शब्दार्थ-अशनमा मग, भात, सत्यु, मांडा, दुध, खाजु, राव अने कंद विगेरे जागवा. तेमज पानमां कांजीन, जवर्नु, केरनुं अने काकडीनुं धोवग तथा मदिरानुं जल जाणQ. // 14 // विस्तारार्थः-तिहां एक अशन ते, आशु एटले शीघ्र जे दुधाने उपशमावी नाखे तेने अ |शन कहीये, तेने विषे मगादि सर्व कठोल जाति जाणवी. तथा उंदन ते चावल नात प्रमुख सर्व नंदन जाति जाणवी. तथा साथुठे मामा, रोटली, पक्कान, रोटला पूमा प्रमुख. दूध, दही, घत, 121 // /AMVADMAVAawa/NDED erapan Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nup/companieuwaamerimepasa | तेल. माखण विगयादि प्रमुख, खाजलां पक्वान खीर सुकुमारिका लापसी दहीथरां प्रमुख पक्वान. राबमी घेस प्रमुख कंदादिक ते सूरणकंदादिक जाणवां. तथा तेमज, तुलसी नागरवक्ष्यादि पत्र विना सर्व जातिनां फल फूल पत्र सर्वकंद सर्व वनस्पतिविकार शाकादि कूलरी चूरिम पर्पटिकादि सर्व वस्तुनी जाति अशनमांहे आवे, तथा लवण, हिंग, सूया, अजमो, वरीयाली, धा. | णादिके तट्यां एक वेसण पण अशनमां आवे, इत्यादि सर्व अशनजाति समजवी. हवे बोजो पानने विषे तिहां जेने पीजीये ते पाणी कहीये तेमां अप्काय ते नदी, तलाव, अह, समुप श्यादि पाणीना आश्रय संबंधि सर्व स्थलोनुं पाणी जाणवू. तथा कांजीन पाणी बासनी आग, तथा यवन धोयण, केरनुं धोयण, अांबलादिकनुं धोयण, पादनुं धोयण, तथा काकमी प्रमुख सर्व फलनां धोयणर्नु उदक एटले पाणी, तथा सुरादि जल ते मदिरादिकनां पाणी | जाणवां, ए अन्नक्ष्यमा नले ले. एमां आदि शब्दथी साक्षादिकना आसव, नालिकेरादिकनां पाणी, | | क्षुरस, सौवीर, तक्र ते बाश इत्यादि सर्व पदार्थ पाणीने विष कल्पे डे, तथापिश्दुरस, तक ते बास PRANKantip/emp/aneparavaameemaDADAAMRAPAane Pavanaemplemmovie/A inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० WANNEN प०भा / 122 // अने मदिरादि तथा नालिकेरादिकनां जलने सांप्रत जितव्यवहारे अशनमां गणीये बैये // 14 // . हवे त्रीजो खादिम आहार कहे . खाइमे-खादिमने विषे साइमे-खा दिमने विषे मह-मध अणाहारे-अनाहारने विषे भत्तोस-भक्तोष, शेकलां सुंठि-मूठ धान्य विगेरे जीर-जीरं | गुड-गोल मोय-लघुनीति फलाइ-फलादिक | अजमाइ- अजमादिक . / तंबोलाइ-तंबोलादिक निवाइ-निंबादिक ___ खाइमे भत्तोस फलाइ, साइमे सुंठि जीर अजमाइं॥ ___मह गुड तंबोलाइ, अणाहारे मोय निंबाई ॥१५॥दारं 3 // शब्दार्थ-खादिममा शेकेला धान्य तथा फलादि जाणवां. अने स्वादिममा सुंठ, जीरूं, अजमो विगेरे, वली मध, गोल अने नागरखेलना पानादि जाणवा. तेमज अनाहारने विषे मात्रु तथा लींबडानी सळी प्रमुख जाणवा // 15 // विस्तारार्थ:-हवे त्रीजो खादिम थाहार कहे . आकाश एटले मुखनुं विवर कहिये. तेने पूरे, लगारेक नूख मात्र नांजे, पण अन्नादिकनी पेरे तप्ति न करे, परंतु काइएक अशनसमान amuavanamasanaposseeneuvenue/app/0/ // 122 // VANN For Personal Private Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YING/RavanitariaVEREJARADARAS/RAS/INVITARVAS थाय ते खादिम वस्तु कहीये. ते खादिमने विषे तिहां प्रथम नक्तोष एटले शेकेलां धान्य चणा प्रमुख तथा अखोग सुखाशिका सर्व जाणवा, तथा यांवा केलां प्रमुख सर्व फलादिक जाणवां, | | तथा फलजातिनी सुखमी मेवा सर्व कयरी पाकादिकनी जातियो, गुंदपाकादिक, जाद, चारोली। प्रमुख मेवा जातिनुं सर्व पक्वान्न तथा खांम शाकरादि तेना विकार जे खांम कातली प्रमुख ते सर्व | | खादिमने विषे लीधा कहपे. परंतु जीतव्यवहारे प्रसिद्ध पणे अशन मध्ये लेपकृत्य उत्तम | अव्यमां गण्या बे. परंपराये इत्यादिक सर्व खादिम " नत्तोसं दंताई, खजुर नासिकेर आई दख्खाई॥ ककमि अंबग फणसार, बहुविहं खाश्मेनेयं // 1 // इत्यादिक विचार सर्व प्रवचनसारोद्धार ग्रंथथी जाणवो // एत्रीजो खादिम आहार कह्यो / ___हवे चोथा स्वादिमने विषे शुं कटपे ? ते कहे . तिहां प्रथम ते जे आखादे करी लश्ये अथा आहारादिक जे कीधां होय ते सर्व तेना स्वादमां विनाश पामे, लयलीन थाय ते स्वादिम कहीये तेमां , जीरे, अजमादिक, आदि शब्दथकी पीपर, मरिच, हरमे, बेहेमां, | PARDAS/DamasomwatementATANDARD/y For Personal Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vaatio/R/PR/ प०भा० आमलां, मरी, पीपलीमूल, पीपर, अजमोद, आजो, काजो, काथो, कुलिंजर, कसेलो, कयसेलियो, // 123 // || मोथ, जेठीमध, पुष्करमूल, एलची, बावची, चिणिकबाब, कपूर, तज, तमालपत्र, नागकेसर, | केशर, जायफल, लविंग, हिंगुलाष्टक, हिंगुत्रेवीसो, संचल, सैंधव, यवखार, खयरसार, कोठवली, गोली सर्व जातिनी अशनादिमां न नले तेवी जाणवी, सर्व जातिनां दातण, तुलसी पत्र, श्रीपत्र, खार, सवा, मेथी, गोमूत्रादिकना कीधा अन्नमेलादिकनी गोलीयो, चित्रो, पिंमार्थ, को एक तो पिंमार्थने खजुर कहे . परंतु ग्रंथांतरे एने जे सूरणादि कंदनां खारचूंदां करे , | तेने कहे . कपूर, कचूरो, त्रिगम, पंच पटोल, विमतवण, इत्यादिक अनेक जातिना स्वादिम थाहार जाणवा. - तथा मधु एटले मध अने गोल, खांम, साकर तथा तंबोलादिक ते विविध जातिनो तंबोल नागरवेलीनां पान तया सोपारी प्रमुख ए पण स्वादिम जाणवा. हवे अणादार वस्तु कहे . जे पूर्वे कहेला चारे आहार मांहेला कोइ पण आहारमा /meenasarameramawatasomawwantaM DayanayamawaragamaVAAMVImavaluatputetnapostnews/ // 123 // in Education International For Personal & Private Use Only wwwny Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न श्रावे, परंतु चनविहार उपवासे तथा रात्रिने चनविदारे वावरी कल्पे, ते अणादार वस्तु || हैजाणवी. तेनां नाम कहे बे... अनाहारने विषे जे करपे ते वस्तु कहे जे. लवु नीति ते गोमूत्राक्षिक अने निंबादिक ते निबनी शली पानमा प्रमुख पांचे अंग ए सर्व अनाहार वस्तु जाणवी, आदि शब्दथकी त्रिफला, का, करियातु. गलो, नाहि, धमासो, केरमामूल, बोरालि मूल, बावलबालि, कंथेर मूल, चित्रो, खयरसार, सूखा, मलयागरु, अगरु, चीम, अंबर, कस्तूरी राख, चूनो, रोहिणी वज, हलिज, पातलो, आसगंधी. कुंदरु, चोपचीनी, रिंगणी, अफिणादिक सर्व जातीनां विष, साजीखार, चूनो, जाको, उपलेट, गूगल, अतिविष, पूंयाम, एली. चूणीफल सूरोखार, टंकणखार, गोमुत्र श्रादे दश्ने सर्व जातिना अनिष्ट मूत्र, चोल, मंजीठ, कणयरमूल, कुंआर, थोहर, अर्कादिक पंचकूल, खारो, फटकमी, चिमेक इत्यादिक वस्तु सर्व अनिष्ट स्वादवान् बे, अने इछा विना जे चीज मु-।। खनां प्रदेप करीये ते सर्व अणादार जाणवी.ए उपवासमां पण लेवी सूजे, अने आयंबिल मध्ये EVARE/ABAJa/800/900s/5Vastuda naVINNIVERNVIAME/MemoivesamastetamaANDAN . . For Personal Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था प०भा० aUDAIVEuVapp/apps/SBURGAPAN पाणहार पच्च स्काण करया पढ़ी सूजे ए श्राहारनुं त्रीजु घार थयुं, उत्तर नेद अढार प्रया॥१५॥ हवे नवकारसी प्रमुखना आगारनी संख्यानुं चोशुं कार कहे जे. दा-बे पोरिसि-पोरिसिना | इगासणे-एकासणाने विषे / चथ्यि -चोथ भक्ते नवकार-नोकारसीना सग-सात अट्ठ-आठ | पाणे-पाणस्सना पुरिमढे-पुरिमार्द्धने विषे पण-पांच दो नवकार छ पोरिसि, सग पुरिमड़े इगासणे अठ्ठ॥ सत्तेगठाण अंबिल, अठ्ठ पण चउत्थि छप्पाणे // 16 // शब्दार्थ-नवकारसीमां बे, पोरसीमा छ, पुरिमट्ठमा सात, एकासणामां आठ, एकलठाणामां सात, आंबीलमां आठ, चोय भक्तमां पांच अने पाणस्सना पच्चख्खाणमा छ आगार जाणवा // 16 // विस्तारार्थः-जे मूलगुण उत्तरगुण रूप पच्चस्काण राखवाने अर्थे वामीरूप होय ते आगार Navaia/capapnaDataADAppearesisavanayaputerwayamar // 124 // For Personal Private Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ W news/swas/SUBena/new जाणवा. तिहां अपवाद पदे मुव्य, क्षेत्र, काल अने नावादिके विचारतां मूलगुण पञ्चरकाणने विषे अन्नबणादिक चार श्रागार जाणवा. अने उत्तर गुण पच्चरकाणने विषे यथोक्त रीते पागल कहेशे ते प्रमाणे सर्वत्र आगार जाणवा ते सर्व मली एकवार उच्चरथा थका बाबीश श्रागार थाय. यद्यपि अन्नबससिएणादिक शोल श्रागार कास्सग्गना तथा समकितना रायानि गेणादिक बधागार , तेमज एक चोळ पट्टागारेणं एवं सर्व मली (45) आगार थाय बे, परंतु अहींयां तो दस पञ्चरकाणने विषे बावीश आगारमुंज काम , माटे ते कदे बे. नोकारसीना पच्चरकाणने विषे बे आगार जाणवा. पोरिसीना पच्चरकाणने विषे आगार, | तेम सार्द्ध पोरिसना पच्चरकाणे पण ब आगार, पुरिमार्जना पच्चरकाणने विषे सात आगार, एकासणाना पच्चरकाणने विषे श्रां श्रागार, एकलगणाना पच्चख्खाणने विषे सात श्रागार, आयंबिसना पच्चरकाणने विषे या आगार जाणवा. चोथन्नत एटले उपवासना पञ्चकाणने विषे पांच थागार, पाणस्सना पच्चस्कापने विषे ब श्रागार जाणवा. // 16 // - /ODMEJanuelawwand ooden For Personal & Private Use Only www.ebay.co Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MA परभागा // 12 // चउ-चार चरिमे-दिवस चरिमना अमिग्यहि-अभिबहना | पण पांच | आगार-आगार | दबविगइ-द्रव्य विगइ | पावरणे-दन मूकवाना | उख्खित्तविवेग-उखिखत्त | नियमि-नियम नवनिव्वीए-निवीमा आठ,नव मुत्तु-मूकीने [विवेगेणं | अठ्ठ-आठ R 50/aapaauBOAD@anpanupaB0/09/8GD/u/ARON चउ चरिमे चउभिग्गहि, पण पावरणे नव निबीए॥ आगारुख्खित्तविवेग, मुत्तु दवविगइनियमिठ्ठ // 17 // शब्दार्थ-दिवस चरिममा चार, अभिग्रहमा चार, वस्त्र मुकवामां पांच, निवीमां नव अथवा आठ आगार जाणवा. वली दैव्य विगइनु नियम करनारने 'उख्खित विवेगेणं' ए आगारने मूकीने बाकीना आठ आगार जाणवा. // 17 // विस्तारार्थ:-दिवसचरिमना पच्चख्खाणने विषे चार आगार जाणवा, अन्निग्रहना पच्चरकाणने विषे चार यागार जाणवा. प्रावरण एटले वस्त्र मूकवाना पच्चख्खाणने विषे पांच आगार जाणवा, निवीना पच्चख्खाणने विषे नव आगार पण होय अने आठ श्रागार पण होय, तिहां ARRAPERana/EARE/avmu/08/20 // 125 // For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ emeses/es/esmawatsapmomdaowance जे पिंम अने द्रव्य रूप बेहु विगर्नु पच्चख्खाण करे तेहने नव श्रागार जाणवा, अने जे एकली द्रव्य विगश्मानो नियम करे तेने जख्खित्तविवेगेणं ए श्रागार तेने मूकीने वाकीना आठ श्रा| गार होय // 17 // तेना यंत्रनी स्थापना श्रागल करी बे. हवे प्रत्येक पच्चख्खाण संबंधी आगारोनां नाम कही देखामे . अन्न-अन्नथ्यणाभोगेणं / पच्छ-पच्छन्न कालेणं पोरिसि-पोरिसि सत्त-सात सह-सहस्सा गारेणं दिसय-दिसा मोहेणं छ-छ स-सहित साहु-साहुवयणेणं [गारेणं सट्टपोरिसि-सार्द्ध पोरिसि | महत्तरा-महत्तरा गारेणं नमुकारे-नवकारसिना . . | सब-मुन्न समाहिवत्तिया | पुरिमढे-पुरिमट्ट अन्नसहदुनमुक्कारे, अन्न सह पच्छ दिसय साहु सव्व // Patodnavsaomapnacapac/decorated/dAAAG पोरिसि छ सपोरिसि, पुरिमड़े सत्त समहत्तरा // 18 // Jan Education internation For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COntola TC // 12 // Sawaasuavasanasenasamaavemamavad शब्दार्थ-नमुकारसीमां अन्नत्थणाभोगेणं, सहस्सागारणं एवे, तथा पारेसीमां अन्नत्यणाभोगेणं, सहस्सागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, अने सबसमाहिवत्तियागारेणं ए छ आगार जाणवा. साढ पोरसीमां पण एज | छ अने पुरिमट्टमा उपरना छ सहित एक महत्तरागारेणं ए वधारवो. जेथी तेमा सात थाय. // 18 // विस्तारार्थः-नवकारसीना पच्चस्काणने विषे एक अन्नबणानोगेणं, बीजो सहस्सागारेणं ए बे श्रागार जाणवा. तथा एक अन्नबणानोगेणं, बीजो सहस्सागारेणं, त्रीजो पठन्नकालेणं, चोथो दिसामोदेणं, पांचमो साहुवयणेणं, हो सबसमाहिवत्तियागारेणं ए आगार ते पोरिसीना पच्चख्खाणने विषे जाणवा. तेमज सार्द्धपोरिसीना पच्चख्खाणने विषे पण एहिज आगार जाणवा. तथा वली एज पोरिसीना थागारने एक महत्तरागारेणं ए आगारेकरी सहित करीये तेवारे सात श्रागार थाय. ते पुरिम तथा अवमूना पच्चख्खाणने विषे जाणवा. . हवे एकासणा तथा एकलगणाना श्रागार कहे बे..... DAN DENDA // 126 // For Personal & Private se Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaveseDamavanawaravasaamrpanciaVAMRAVATANJAaavat म-३.३.१५णा मोरे. गुरअ-गुरु अभ्भुटाणेणं / यागारेणं / सग-सात सहरसा-सहरसागारेणं पारि-पारिहापणियागारेणं | एगबिआसणि-एकासण अने| इगगणे-एकलठाणाना सागारिअ- सागारि आगारेण मह-महत्तरागारेणं वियासणना | अउटविणा-आउंटण पसारेआईटप-आउट्टण सारेणं | सब्य-सव समाहिवति / अठ्ठओ-आठ आगार गं बिना अन्न सह सागारिय, आउंटण गुरुअ पारिमहसव्व। एगबियासणि अठओ, सग इगठाणे अउटविणा॥१९॥ शब्दार्थ- अन्नत्यणाभोगेणं, सहस्सागारेणं, सागारि आगारेणं, आउंटण पसारेणं, गुरुअप्भुट्ठाणेणं, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं. ए आठ आगार एकासणामां अने बियासणामां जाणवा. अने तेमाथी एक आउंटण विना सात आगार एकलठाणामां जाणवा.॥ 19 // विस्तारार्थः-एक अन्नपणानोगेणं, बीजो सहरसागारेणं, त्रीजो सागारियागारेणं, चोथो थाउणपसारेणं, पांचमो गुरुथप्नुहाणेणं, हो पारिहावणियागारेणं, सातमो महत्तरागारेणं, था SaveDVAPRADAssemes/anu V aseles Jain Education international For Personal & Private Use Only www.ebaya Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Noया प०भा० // 127 // m/amaam wamisamagamdeoactres/masasar मो, सव्व समाहिवत्तियागारेणं, ए यागार ते एकासण अने बियासणना पच्चख्खाणने विषे जाणवा. तथा एज थाठमांथी एक आउट्टणपसारेणं ए आगार विना शेष एकासणाने विषे जे कह्या ले तेज सात आगार ते एकलगणाना पच्चरकाणने विषे होय // 17 // जिहां जमणा हाथे जमे, मात्र कोलीया लेवानेज हाथ फेरवे, परंतु अंगोपांगने तो खरज खणवादिकने कामे पण हलावे नही ते एकलगणुं जाणवू // 15 // लेवा-लेवा लेवेणं पडुच्च-पडुच्च मख्खिएणं नव-नव अंबिले-आयंबिलना गिह-गिहथ्व संसद्धेगं विगइ-विंगइ पडुच्चविणु-पडुच्चमख्खिएणं अट्ठ-आठ उख्खित्त-उख्खित्त विवेगेणं निविगए-विविगइ' विना Pame/mPIRAVIDARVaruwntowNANDontaamana // 127 // अन्नसहलेवागिह, उख्खित्त पडुच्च पारिमहसव // विगइ निविगए नव, पडुच्च विणु अंबिले अट्ठ॥२०॥ For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vanama wwevanawawwapwapwapwappsaparmananeM शब्दार्थ-अन्नत्य, सहस्सा, लेवालेवेणं, गीहत्य संसणं, उखिखत विविगेगं, पडुचनख्खिएणं, पारिहा, महत्तरा, सव्वसमाहि. ए नव विगइ तथा निविगइने विषे जागवा अने तेमाथी एक पडुच्चमख्खिएगं विना आंबीलमा आठ आगार जाणवा. // 20 // - विस्तारार्थः-एक अन्नधणानोनेणं, बीजो सहसागारेणं, त्रीजो लेवालेवेणं, चोथो गिहत्य सं. सहेणं, पांचमो नख्खित्तविवेगेणं, बहो पमुच्चमख्खिएणं, सातमो पारिठ्ठावणियागारेणं, आठमो महत्तरागारेणं नवमो सवसमाहिवत्तियागारेणं, ए नव आगार ते विग तथा निविगश्ना पच्चख्खाणने विष जाणवा, तथा ए नवमांडेयी एक पमुच्चमख्खिएणं ए श्रागार विना शेष आठ श्रागार जे विगइ थने नीविना कह्या तेज आयंबिलना पच्चख्खाणने विषे जाणवा. जिहां आम्ल एटले खाटो चोथो रस तेहथी निवर्तवं ते आयंबिल कहीये, तेना त्रण प्रकार ने एक उंदन, बीजो कुस्माष, त्रीजो साथुयादिक एत्रण दे बे. अथवा उसामणनी पेरे जिहां अन्नादिक | नीरस थ निकले तेने आयंबिल कहीये // 20 // m/nayanawwamevanamaasee inin Education international For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०भा० Navavana प.भा. 128 // अन्न-अन्नत्थणाभोगेणं सह-सहस्सागारेणं पारि-पारिद्यावणियागारेणं मह-महत्तरागारेण हवे उपवासना आगार कहे . | सच-सच समाहि बत्तिया | छ-छ . गारेणं | पाणि-पाणस्सना पंच-पांच लेवाइ-लेपादिक खवणे-उपवासना | चउ-चार | चरिम-दिवस चरिमना अंमुहाइ-अंगुठसहियादिक भिग्गहि-अभिग्रहना अन्न सह पारि मह सब, पंच खवणे छ पाणिलेवाइ॥ चउ चरिमं गुट्टाइ, भिग्गहि अन्न सहमह सब्वे // 21 // u passausamvasanvaase - van/RANVENUARMADEng/navsayitivewanapampanivas शब्दार्थ-अनत्थणा, सहसा, पारिठावणिया, महत्तरा, सव्यसमाहि. ए पांच आगार उपवासमा तेमज लेवेणवा / विगेरे छ आगार पाणस्सना जाणवा. वली अन्नत्थणा, सहस्सा, महत्तरा, सव्वसमाहि. ए चार आगार दिवस चरिमना // पञ्चख्खाणमां अने अंगुष्ठ सहियादि अभिमहना पचख्खाणमा जाणवा. // 21 // विस्तारार्थः-एक अन्नबणानोगेणं, बीजो सहस्सागारेणं, त्रीजो पारिठावषियागारेणं, चोथो // 12 For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ naaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaavesex महत्तरागारेणं, पांचमो सबसमाहि वत्तियागारेणं, ए पांच आगार उपवासना पच्चरकाणने विषे जाणवा. तथा अचित्त पाणीपीवे तेने पाणस्सना पच्चख्खाणने विषे लेवेणवा अलेवेणवा. अलेण वा बटुलेवेणवा, ससिलेणवा, असिणवा, ए लेपादिक ब आगार जाणवा, तथा एक अन्नबणानोगणं, बीजो सहस्सागारेणं, त्रीजो महत्तरागारेणं, चोथो सव समाहिवत्तियागारेणं ए चार श्रागार ते दिवसचरिमना पच्चरकाणने विषे तथा अंगुहमतिसहियादिक अनिग्रहना पच्चरकाणने विषे जाणवा // 1 // पच्चरकाणना श्रागारोनी संख्याना यंत्रनी स्थापना. अंक पच्चरकाणनां नाम संख्या . श्रागारोनां नाम. 1 नोकारसी. 2 अन्न० // सह०॥ पोरिसी. |6 अन्न० // सह // पछन्न // दिसामो० // साहु०॥ सव०॥ 3) साठ्ठपोरिसी. | 6 अन्न०॥ सह०॥ पन्छन्न०॥ दिसामो०॥ सादु०॥ सव०॥ VaravasanasaneemuVacan For Personal & Private Use Only www.ebay.org Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भाष | | | ए०भ // 122 Reveaasaram/daemartAGRAANAadrawaAtAMOROM/stavaan | पुरिम8. अवट्ठ. एकास'. बियासणुं. एकलठाणुं. नीवी... अन्न सह०॥ पबंग ॥दिसा०॥ साहु० ॥सव०॥ महत्त०॥ अन्न ॥सहा पहलादिसा॥ साहु० ॥सव०॥ महत्त० // अन्न सह०॥ सागा० // याउ० गुरु० पारि० मह० सब० 6 अन्नः ॥सहासागा // आज गुरु पारि० मह० सव० 7 अन्न सह॥ ॥सागारि०॥ गुरु०॥पारि०॥ मह० ॥सव०॥ ए अन्नः ॥सहस्सा०॥ लेवा०॥गिहना नस्कित्ता पमुच्च० ए पारि०॥ महत्त० // सव्व०॥ 6 अन्न सहन लेवा० गिह उरिक पारि महः सवन 5 अन्न सह पारि० महः सव्वा चोलपट्टागार यतिने 6 लेवे. अले अबे बहु० ससिले असिले अन्न सह महः सव्वळ aadipomaaaaaaaaaaaaaaaaamwawwapmomupane विग. आयंबिल. उपवास. पाणहार. 14/ अनिग्रह संकेत. // 129 // inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ areatiseasVERDOING/wwwdaseDESe/easomaase 15 दिवसचरिमं. / 5 अन्न० सह मह० सब० 16 नवचरिमं. 17 देसावगासिक.. .|4 ,, 17 समकितना. 6 राया गणा बला० देवा० गुरुनि वित्तिः इहां नरिकत्तविवेगेणं ए जे आगार , ते आगार मिविगइ श्राश्रयी , ते पिंम विगय जणाववा माटे विगयना नेद कही देखामे बे. परंतु विगयना नेदो कहेवार्नु द्वार तो पागल आक्शे हाल अहीयां तो मात्र पिंम विगय उलखाववाने निमित्तेज कहे . // 1 // चउरो-चार घय-घृत | मरूखण-मांखण महु-मधु, मध .. दन विगइ-द्रव्य विगय गुल-गोल पक्कन-पक्वान मज-मदिरा, मद्य चउर-चार : दहियं-दधि दो-चे सिल- तेल पिंडदवा-पिंड द्रव्य / पिसियं-मांस पिंडा-पिंड Gane/VarmaVINDVanvaranasonacaINDINDORE For Personal Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुद्ध महु मज तिलं, चउरो दवविगइ चउर पिंडदवा॥ घय गुल दहियं पिसियं, मख्खण पक्कन्न दो पिंडा॥२२॥ masmaaaaaaaNEWSawace/mosamasuaabetes ___ शब्दार्थ-दुध, मध, मद्य अने तेल ए चार द्रव्य ( ढीली) विगइ छे. वली घी, गोल, दहि अने मांसपेसी ए चार पिंड तथा द्रव्य विगइ छे. वली मांखण अने पकान ए वे तो पिंड विगइ छे. विस्तारार्थः-एक पुग्ध, बीजो मधु, त्रीजो मद्य एटले मदिरा अने चोथो तेल ए चार व विगय . ए चार ते ढीलु विगय होय रस रूप होय, माटे एने रसविगय कहीये,अने एक घृत बीजो गोल, त्रीजो दधि एटले दहीं बने चोथो मिशित ते मांस ए चार विगय जे ते पिंग अवरूप एटले पिंक तथा रसरूप जाणवी. ए चार को वेला व होय, तथा कोश् वेला पिंग रूप थीणो पिंम होय. तथा एक माखण, बीजो पक्वान्न ए बे विगय ते स्वन्नावें करीने पिंग रूप होय, कठिन होय, माटे एने पिंझविगय कहीये. ए दस विगय कया. इहां उख्खित्तविवेगेणं ए Poemaeapa/Jeesopeanupamaasee // 13 // For Personal & Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / VANDARDARD/RampCA/MARPARASIMDEV थागार जे ले ते पिंमविगयनोचे ते जणाववा माटे या गाथा कही॥॥ हवे केटलांएक पच्चखाण मांदोमांहे श्रागार तथा पाठ उच्चार विशेषे करी सरखा ले. एटले तेना आगार पण माहोमांहे सरखा बे. अने पाठ पण सरखो , ते कहे जे. पोरिसिसटुं-सार्द्ध पारिसि निविगइ-नीवितुं | अंगुठ-अंगुठ्ठ सहियं / सचित्त दवाई-सचित्त द्रव्याअबढें-अवर्नु पोरसाइसमा-पोरिसि महि-मुष्ठि सहियं दिकनुं दुभत्त-बेआसणुं __ आदि सरखा / गंही-गंठि सहियं / अभिग्गहियं-अभिग्रहनु NavBANNARO/Assadop पोरिसि सड्ढमवढं, दुभत्त निविगई पोरसाइ समा // अंगुठ्ठ मुठि, गंठी, सचित्त दवाइ भिग्गहियं // 23 // शब्दार्थ-पोरसी अने साढ पोरसी, अवढ अने पुरिमढ, एकासणुं अने बीयासणु, विगइ अने नीवि, तेमज अंगुहसहियं, मुष्टिसहियं, गहिसाहियं अने सचित्त द्रव्यादिक ए सर्व अभिग्रह पच्चख्खाण मांहो मांहे सरखां छे. // 23 // tom/LD/ES For Personal & Private Use Only www.ebay.org Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वभा० पमा mama/PED/DRDDemom/ama/RO/AR विस्तारार्थः-पोरिसि श्रादे देने पच्चरकाण जे , ते सरखां जाणवां, एटले एक पोरिसि अने बीजी सार्द्ध पोरिसि ए बे सरखां जाणवां एटले पोरिसी अने सार्द्ध पोरिसीना पच्चरकाणना | पाउनो उच्चार तथा आगार पण सरखा . तेमज पुरिमर ने अवमर्नु पच्चरकाण पण सरखं जा णवू, तथा एकासणुं अने छिन्नक्त एटले बीथासणानुं पच्चरकाण अने श्रागार पण सरखा जाणवा, | तथा विगश्ने नीविर्नु पच्चरकाण अने आगार पण सरखा जाणवा. तथा अंगुट्टसहियं, मुठिसहियं गंठिसहियं, सचित्त ऽव्यादिकनुं पच्चरकाण एटले सचित्त व्यादिकना पच्चरकाण जे देसावगासिक तेमज दिवसचरिमादिनां पच्चरकाण ए सर्व अनिग्रह पच्चरकाण कहेवाय, तेना पण मां. होमांदे पाठ तथा श्रागार सरखा जाणवा. परंतु कालप्रमाणादिके तथा स्थानकें तो फेरफार होयज // 23 // हवे ए सर्व आगारोना अर्थ कहे बे. विस्सरण-विस्मरण / सयमुह-पोतानी मेळे मुख / पच्छ वकाल-प्रच्छ न काल | दिसिविव जामु-दिशिना अणाभोगो-अनाभोगयी। महे | मेहाइ-मेघादि विपर्यासथी सहसागारो-सहसात्कार / पचेसो-प्रवेश करे | दिसिमोहो-दिसा मोहेणं Noteewanapateeteatraa/teatsaanemaDAAMRO/AR / / 1 For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस्सरण महाभागो, सहस्सागारो सयं मुहपवेसो॥ पच्छन्नकाल मेहाई, दिसिविवजासु दिसिमोहे // 24 // MASVaawa/anawaneoameapaatopatideomaratvapse शब्दार्थ-चरूखाणनो उपयोग विसरवाथी कांइ मुखमां घाले ते अनाभोग, सहसात्कारे पोतानी मेले मुखमा पेभी जाय ते सहसागार, पच्छन्नकाल ते मेघ विगेरेथी दिवसथी दिवसनी खबर न पडवाथी जमे ते, तेमज दिशाना वि. पर्यास पणाथी दिशामोह ए आगारोमा पच्चख्खाण न भागे. // 24 // विस्तारार्थ-जे विस्मरण थर जाय ते अनाजोगथी थाय, एटले पच्चरकाणनो उपयोग अ-| नालोग थकी वीसरी जाय, तेबारे अजाणपणे कांश मुखमां प्रक्षेप करे तो तेथी पच्चरकाण नंग न थाय. ए प्रथम अणानोगेणं आगार कह्यो, एनी साथे अन्न शब्द जोमीये तेवारे अन्नवणानोगेणं एवं नाम थाय, माटे तेनुं कारण समजवाने नीचे अर्थ लखीये बैये, अन्नबणानोगेणं एटले अन्यत्र अने अनान्नोगात् तिहां अन्यत्र एटले जे आगार कह्या होय ते आगार वर्जीने Voc0000wancodeop/appsowwwsARGONDA For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० भाल प.भी. 132 // बीजा सर्वत्र स्थानके पच्चख्खाण पालवानी यत्ना राखवी. अन्न ए पद सर्वे आगारे जोमवं, | एम जाणवू, तथा अनानोगात् एटले वीसरवाथकी अर्थात् पच्चखाणनो उपयोग वीसरते अजाणतां कांश मुखमा प्रक्षेप करा जाय, पडी पच्चख्खाण सन्निरी आवे, तेवारे तरत मुखथकी त्याग करे, तेथी पच्चरकाण नंग थाय नहीं, अथवा अजाणे मुखथकी हे उतयुं पडी कालांतरे अथवा तुरत स्मरणमां आवे तोपण पच्चस्खाणनो नंग थाय नही परंतु शुद्ध व्यवहार बे, तेथी फरी निःशंक न थाय ते माटे यथायोग्य प्रायश्चित्त लेवं. ए वात श्रागारोने विषे जाणवी. माटे | अहीं पीविकारूपे लखी.... बीजो सहसात्कार ते पोतानी मेले श्रावी मुखमांहे प्रवेश करे ते जाणवू. एटले पञ्चख्खाण की, ले तेनो उपयोग तो वीसरयो नथी, पण कार्य करवाना प्रवर्तनयोग लक्षण सहसात्कारे खन्नावेज पोताना मुखमां का प्रवेश थजाय. जेम दाध मथतां थकां बांटो उमीने मुखमां पमी जाय, तथा चनविदार उपवास होय, अने वषांकालमां मेघनो बांटो मुखमा पमीजाय, ता पच्चरकाण नांगे नहीं. Jan Education international For Personal Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रीजो प्रचन्नकाल ते कालनी प्रशन्नता जाणवी. जेम मेघादि एटले मेघना वादले करीने ढंका गयेला सूर्यनी खबर न पसे, तथा यादिशब्दथकी दिग्दाह, ग्रहादिक, रजोवृष्टि, पर्वत प्रमुख सर्व जाणी लेवू. तिहां पर्वत अने वादला प्रमुख अंतरिक्ष, सूर्य देखाय नहीं, अथवा रज जमवे करी न देखाय, तेवारे पोरिसीयादिकना कालनी खबर न पमतां अपूर्ण थयेलीने संपूर्ण थयेली जाणीने जमवा बेसी जाय तो पच्चकाण नंग न थाय. परंतु जाणवामां आवे तो पबीअर्दो जम्यो थको होय तो पण एमज बेशी रहे, अने पोरिसी श्रादि पूर्ण थाय, पनी जमे तो नंग न | थाय, परंतु हजी पूर्ण थ नथी. एवं जाणवामां आवे तो पण अटके नहीं. अने जमे तो पच्च ख्खाण नंग थइ जाय॥ ___चोथो दिसामोहेणं ते दिशिना विपर्यासपणाथकी जेवारे दिङ्मूढ थइ जाय, तेवारे पूर्वने | पश्चिम करी जाणे अने पश्चिमने पूर्व करी जाणे एम खबर न पम्वाथी अपूर्ण पच्चख्खाणे पण पूर्ण काल थयो जाणीने जमे तो पचख्खाण नंग नहीं, थने दिङ्मोह मटी गया पली जेवारे NBasiMainmentAHOPDeparavasanawaraDAREDATE sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Com 1133 // जाणवामां आवे तेवारे पूर्वनी पेठे अर्को जम्यो थको होय तो पण पचरूखाण पर्ण थाय विहां सुधी एमज बेशी रहे, अने काल पूरो थया पडी जमे // 24 // साह वयण-साधुन वचन / मुथ्थया-स्वस्थता . | संघाइकज-संघादिक कार्य। चंदाइ-बंदिवानादिक उग्घाडा पोरिसि-उग्घाडपोरिसि समाहि-समाधि महत्तर-महत्तरागार | सागारि-सागारिागारेणं तणु-शरीर / इति-एम गिहथ्य-गृहस्थ 98880000000001950/8/9wANGANAMBABA 80PDADAauooDaditaasARDSe/5G साहुवयण उग्घाडा, पोरिसितणु सुथ्थया समाहित्ति // संघाइकज्ज महत्तर, गिहथ्थ बंदाइ सागारी॥२५॥ शब्दार्थ-(५) साहुक्यणेगं एटले उग्वाड पोरिसि एवं साधुनुं वचन सांभळीने पञ्चख्खाग पारतां. (6) सब समाहिवत्ति आगारेणं एटले शरीरनी स्वस्थता साचवा निमित्ते. (7) मह तरागार रटडे संघादिकना कार्यमां बडेरानी आज्ञा पाळता. (8) सागारि आगारेणं एटले गृहस्थनी तथा बंदिवानादिकनी नजर पडतं. // 25 // sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस्तारार्थः-पांचमो उग्धाम पोरिसी एवं साधुनुं वचन एटले बहुपमिपुरणा पोरिति एवं / सानलीने जो अपूर्ण पञ्चकाणे जमे तो पण पोरिसी नंग न थाय, पठी कोश्कना कहेवा उपरथी जाणवामां आवे के हजी लगण पोरिसीनो काल पूर्ण थयो नथी, तेबारे पूर्वोक्त रीते अर्द्धजुक्त || रहे, अने पोरिसीनो काल पूर्ण थया पड़ी जमे ए साहुवयणेणं नामे आगार जाणवो बहो शरीर तेनुं स्वस्थता जे निरावाध पणुं तेने समाधि एम कहीये, एटला माटे ए सव| समाहिवत्तियागारेणं कहेवाय, श्हां तीवशूलादिक रोग नपने थके, आर्त रौद्रनी सर्वथा निराशे जे शरीरनी स्वस्थता ते सर्व समाधि कहीये. तत्प्रत्ययिक जे कारण ते सर्वसमाधिवर्तिताकार कहीये. ते समाधिने निमित्ते जे औषध पथ्यादिकनी प्रत्तिने विषे अपर्ण प्रत्याख्याने जमतां पण पञ्चख्खाण नंग थाय नहीं. | सातमो संघादिकनुं कोई कार्य उपने थके वमेरानी आज्ञा पाले, तेने महत्तरागार कहीये ते आवी रीते के जे पञ्चख्खाण कोधं . तेनी अनुपालनाथकी पण जो निर्करानी अपेक्षाये वि Bananarayanseasevana/ARamera/OEMBERea SOORVARMANDARDanceanVIDMAAVARADIATMAVARTA For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ /05/5a प०भा० प०भा० 1134 // PostamVIDIOMARVARANGame/evitricatename चारोये तो महोटुं निर्जरा लान हेतु कार्य बे, अने अन्य पुरुषांतरे ते कार्य असाध्य बे, बीजा को पुरुषथी थाय तेम नथी, एवं को संघर्नु तथा आदि शब्द थकी चैत्य ग्लानादिकना कार्य प्रयोजन , तेहिज आगार ते महत्तरागार कहीये.तिहां अपूर्ण काले जमतां पच्चरकाण नंगन थाय. बाग्मुं गृहस्थनी नजर पके, तथा सर्पबंदिवानादिकनी नजर पमे, तेने सागारियागारेणं कहिये. तिहां श्रागार एटले घर तेणे करी सहित , जे तेने सागारि कहीये, तेनी नजरे देखतां साधुने आहार करवो कल्पे नहीं. केम के एथकी प्रवचनोपघातादिक बहु दोषनो संनव थाय, माटे साधुने जमतां थकां जो सागारी आवी पमे, अने ते जो चल होय, एटले तरत जवावालो होय तो क्षणेक बेसी रहे, अने तेने स्थिर रहेतो जाणे तो स्वाध्यायादिकना नंगना नयथकी अन्यत्र जश्ने तेहिज आसने जमे तो पच्चख्खाण जंग न थाय. ए जेम गृहस्थनेसागारी कहीये तेमज जेना देखतां अन्न खाश्ये ते पचे नहीं, तेने पण सागारिक कहीये तथा उपलक्षणे श्रादि शब्दथकी सर्प, अग्नि, प्रदीप, पाणीनी रेल श्रावे, तथा गृहपातादिक एटले घर परतुं होय, ए amayanavaratraVEGEMINDIANSVAIANSING // 1340 For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ broad श्रागार पण लेवा. इत्यादिक उपद्रवोना कारणे अन्यस्थानके जइ जमतां पण पञ्चख्खाण नंग न थाय // 25 // आउंटण-संकोचवू / पाहुणसाहु-माहुणो साधु | विहिगहिए-विधिये ग्रहण करेलु| पावरण-प्रावरण अंगाणं-अंग गुरु अभुटाणं-गुरु अभ्भुटाणेणं जइण-यतिने कडिपट्टो-चोल पट्ट गुरु-गुरु | परिठावण-अनपरठवq ते / आउंटण मंगाणं, गुरु पाहुण साहु गुरु अप्भुट्ठाणं // परिदावण विहि गहिए, जईण पार्वणि कडिपट्टो॥२६॥ amavasaavasana/MOREpdate/PEDIARVase/HJAPANEEM ___शब्दार्थ-(९) आउट्टण पसारेणं एटले अणखमते पगआदि अंगने संकोचतां पसारतां (10) गुरुअभुटाणेणं ए- | टले पोताना गुरु अथवा कोई मोटो माहुणो साधु आवे जमता उठवाधी. (11) पारिद्वावणि आगारेणं एटले विधियुक्त ग्रहण करेलो आहार उपवासादिकमां वावरता. (12) चोलपट्टागारेणं एटले वस्त्र मूकी नन बेठो होय ने कोई ग्रहस्थ आववाथी लज्जाने माटे उठीने चोळपट्ट पहेरतां. // 26 // www by Dig For Personal Private Use Only zain Education intermuntional Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREAD/ प०भामा goNTO tweeMIVBE/twaama/AMWALISAMILMWaawar विस्तारार्थः-नवमो पग प्रमुख अंग तेनुं आकुंचन एटले संकोचq तथा पसारवू ते अणखमते कर पके, एटला माटे एने थानणपसारेणं आगार कहीये, तेथी जमतां थकां कांक पोतानां श्रासनादिक चलायमान, थाय तो पच्चस्काण नंग न थाय. दशमो गुरु आचार्यादिक यावे अथवा को महोटो पाहुणो साधु यावे थके जमतां उग्वु पमे तो गुरुअप्नुहाणेणं आगार थाय, एटले ते श्रावेला श्राचार्यादिक गुरुनां विनयादिक करवा माटे अन्युबान्नादिक साचववा सारु उन पसे, फरी तेमज बेसीने जमे तो पच्च ख्खाण नंग न थाय // .. अगियारमो जे अन्न परम्ववानुं होय ते विधिये ग्रहण करेलुं होय ते उपवासादिक पच्चकाणमां पण ले पो तेने पारिद्यावणियागारेणं कहीये, एटले जे विधिये करी निर्दोषपणे ग्रहण कयुं, अने विधिये वहेंची आप्यु होय, पनी अन्य साधुये विधिये नुक्त करयों थकी कांक आहार नगरयो ते पारिष्ठापन योग्य थयो, परंतु ते अधिक आहारने परग्वतां दोष उपजे डे, DRAMDARVARDampetite/INDIANBVatanasana // 125 // Jan Education International For Personal & Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAMVADNAVIADMweresame/eM/NAVeteerintANDAmAtINSANIVERY एवं जाणीने तेह थन्न तथा विगयादिकने गुरुनी आझाये हारतां पच्चरकाणनंग न थाय. तिहां एटलुं विशेष जे चनविहार उपवासमां पाणीनो नियम अने पाणीविना मुख शुद्ध न थाय माटे पाणी तथा आहार ए बेवानां परउववानां होय तो कल्पे थने तिविहार उपवासादिकमां तो पाणी मोकळे माटे एकलो आहार पण लेवो कल्पे ए आगार यतिने होय परंतु पाठ संलग्न बे माटे गृहस्थने पण पाठमां कहेवाय . . . बारमो यतिने अर्थे आगार जाणवो ते यतिने अर्थे प्रावरणना पच्चरकाणे चोखपट्ट तेदनो श्रागार जाणवो, एटले वस्त्र मूकी नग्न थइ बेगे होय श्रने गृहस्थ आवे एटले लजाने माटे उठीने चोलपट्ट पढेरे, तेने चोलपट्टागारेणं कहीये एथी पचरूखाण नंगन थाय. ए श्रागार पण तिने होय // 26 // खरडिय-खरड्यो लेव-टेवा लेवे गं मंडाइ-मांडादिक मख्खियं-मसल्यु . लुहिम-लुंछी नांख्यो उख्खित्त-पाछु ले अंगुलीहि-अंगुलीये डोबाइ-चाटुवादि ।हुच-शाकादिक | पिंडविगइणं-पिंडरूप विगयर्नु मगा-लगारेक NEPunwarsawarSaraVas/cms/maravateeravendeath | Rare उलिखत-पार्छ पविगयतुं / मगा-लगारेक For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० प०भा० MEMBRD/ खरडिअ लूहिअ डोवा, इ लेव संसठ्ठ डुच्च मंडाई॥ उख्खित्त पिंड विगई,णं मख्खीयं अंगुलीहिमणा॥२७॥ HEARavan D शब्दार्थ-(१३) लेवालेवेणं एटले खरड्यो होय ने पछी लूछयो होय एवा चाटुवादिके लीधेलो आहार जमतां. (14) गिहथ्थ संस?णं एटले गृहस्थ संबंधी विगयादिके मिश्र कीधुं एवं शाक तथा मांडादिक वावरतां. (15) उख्खित्त विवेगेणं एटले मांडा तथा पूपिकादिक उपर मूकेला गोळ प्रमुख पिंडविगय पाछा लइ लीधेला एवा आहार ने वावरता. (16) पडुच्च मख्खिएणं एटले अंगुलीवडे घृतादिक चोपडीने लगारेक स्नेहवंत बनायेलो आहार वावरतां // 27 // विस्तारार्थः-तेरमो, प्रथम खरड्यो होय अने पर तेने बुंबी नांख्यो होय एटले खरड्यो ते लेप अने खूब्यु ते अलेप एवो मोयो चाटुवो प्रमुख होय ते लेवालेवेण श्रागार जाणवो, | एटले नोजन, नाजन अथवा चाटुवा प्रमुख होय ते अकल्पनीय एवा विगय अने शाक प्रमुख अन्नादिके खरड्या होय, पठी ते कमी प्रमुखने खूबीने अलेप कोधां होय, तो पण कांश्क /Raprapa/AAGADARVAPAANVaive VD /BEVINDA For Person Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nawwwss/trea/asawaswws&e/09/RAS विगयादिक अवयवना सनावे सहित बे; तेवा नाजने करी आयंबिलादिक पच्चरकाणवालाने जमतां लेतां पच्चख्खाण नंग थाय नही.. चौदमो गिहबसंसट्टेणं एटले नक्तदायक गृहस्थ संबंधि विगयादिके वघारादिके संसृष्ट | एटले मिश्र कीधुं एवं शाकादिक करंबादिक तथा मांमादिक ते लगारेक हाथे गोल प्रमुखे | चोपमया कीधा होय, तेने गृहस्थसंसृष्ट कहीये, ते निविना पञ्चख्खाणे लेवा कल्पे तथा आयं बिलमां पण किंचिन्मात्र तैलादिके स्निग्ध हाथ लगामेला एवा मंगकादिक होय ते पण यतिने || लेतां पच्चख्खाण भंग न थाय. . पन्नरमो पिमरूप विगयर्नु उरिक्षप्त एटले पाडं लेवं एटला माटे एने जस्कित्तविवेगेणं नामे थागार कहीये, एटले ए नाव जे मांमा प्रमुख अन्न तथा पूपिकादिक ऊपर गोल प्रमुख तथा | माखणादिक मूक्यां होय, ते फरी पानं तेना उपरथी उपामी पण लीधां होय एटले ए गोल | माखणादिक जे पिंक विगय ते एवां बे, के जे पदार्थ उपर राखेला होय, तेने फरी जेवारे Samvaade/ADVANAND/AAAAAMANANDMAANYA /NUMAN/AMS JainEducation.indernational For Personal Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० पमा // 137 BEAUDGODD/9appearee/4800 तेना उपरथी पाबां उद्धरी लश्ये तेवारे ते निःशेषपणे एटले बधां पाबां खेवाइ शकाय नही, कांक पण रोटला प्रमुखने लागेलां थकांज रही जाय माटे जेना उपरथी मिविग अलगी करी लीधी होय एवा रोटला प्रमुखने विगश्ना पच्चख्खाणवालो, जो गृहस्थना घरथी वहोरीने झुंजे, तो पञ्चख्खाण नंग न थाय. शोलमो मसयुं अंगुलीये करीने लगारेक एटले ए नाव जे अंगुलिये घृतादिक चोपमी ते अंगुलीये चोपमीने मामा प्रमुख करे तेने पमुच्चमख्खिएणं कहीये. ते सर्वथा रूक्ष एवा मंगकादिक होय तेने लगारेक स्नेहवंत सुकुमारता उपजाववाने अर्थे लहुचू प्रमुख अंगुलीये करी म्रदित की, होय ते नीवि पच्चख्खाणमा लेतां पञ्चख्खाण नंग न थाय, परंतु घृतादिकनी धाराये करी म्रक्षित करे, तो लेवं कल्पे नहीं. ए शोल आगार अशन श्राश्री कह्या // 27 // * हवै पाणस्सना उ श्रागारनो अर्थ कहे जे. .. taravandanaanwavetaudaeaawarastreamwomama/amz/AMER // 137 // /musSusMAHRAINBAD sain Education For Personal Private Use Only www.sanelibrary.org Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ V लेवाडं-लेप कृत पाणी आयमाइ-आचाम्लादि इअर-इतर सोवीरं-सौवीर अच्छ-निर्मल पाणी उसिणजलं-उष्ण पाणी धोयण-चोखानुं धोयण बहुल-बहु लेप ससिथ्यं-सीथ सहित इअर-इतर उस्सेइम-आटाथी खरड्या सिध्यविणा-सीय विनानु हाथर्नु धोयण जाणवू PREBATERamayanemaemonaneeM/ETAMAVAaNaIO लेवाडं आयामाई, इयर सोवीरमच्छ मुसिणजलं॥ धोअण बहुल ससिथ्थं,उस्से इमइयर सिथ्थविणा॥२८॥ शब्दार्थ-(१) लेपकृत महालेपवालं ते चोखा प्रमुखादाविनावें // 28 शब्दार्थ-(१) लेपकृत एटले आचाम्लादि. (2) अलेपकृत सौवीर कांजीन धोवण आदि, (3) अच्छेणवा एटले निर्मल पाणी ते उष्ण जळ, (4) बहु लेपवालुं ते चोखा प्रमुखनुं धोवण, (5) सीथ सहित पाणी ते आटाथी खरडेला एवा | हाथ- धोषण. (6) सीय विनानुं पटले अन्नादिक आयना स्वाद विनानुं / / 28 // विस्तारार्थः-प्रथम लेपकृत पाणी ते कोने कहीये? के श्राचाम्लादि उसामण थादिशब्द थकी आंवली तथा जानु पाणी पण जाणq. एटला माटे ए श्रागारनुं नाम लेवेणवा कहीये. ANDA sinin Education International For Personal & Private Use Only www.janelby Dig Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaaaa98/2018/- बीजो इतर एटले पूर्वोक्त लेपथकी उलटुं अलेपकृत पाणी लेवू, ते माटे ए आगारनुं नाम अलेवेण वा जाणवू. ते सौवीर कांजी धोयण श्रादिशब्दथी गमूल जरवाणी प्रमुख जाणवू. ...त्रीजो अ ते निर्मल पाणी ऊष्ण पाणी एटले त्रिदंमोत्कालित ऊष्ण जल अथवा बीजूं पण निर्मल पाणी नितर्यु फलादिकनुं धोयण जाणवू एटला माटे अच्छेणवा नाम कहीये. चोथो चोखा प्रमुखना धोयण प्रमुखनुं पाणी तेने बहलेप कहीये एटला माटे एनुं बहु | वेणवा एवं नाम . ए तंफुलधावनादिक गंमुल पाणी जाणवू. पांचमो सीय सहित पाणी ते थाटाथीखरमया हाथर्नु धोयण एटलेनत्से दिम ए, पिष्टजलनुं नाम बे एटला माटे ससिलेणवा एवं ए यागारनुं नाम .. बहो ए पूर्वोक्त पांचमो ससिलेणवा ए श्रागारथी इतर ते बाटावाला हायर्नु धोयण तेने वस्त्रादिके करी गट्युं होय, तेथी ते सीथ विनानुं जाणवू, एटले अन्नादिक आटाना दाणाना स्वाद विनानुं थाय, एटला माटे तेनुं नाम असिलेण वा कहेवाय. ए आगार पाणीना BOSNABBA Da8Ravan/RBAR ND For Personel Private Use Only in Educati on Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ meanesamananews/toshop/SUtsaaaaama कह्या. तेनी साथे पूर्वे कहेला शोल श्रागार मेलवीये, तेवारे सर्व मली वावीश आगारोनी संख्या थाय. // 27 // अहींयां प्रत्येक आगारे वा शब्द मूकेलो ले ते एक एकथी बीजा बीजामा विशेष देखावा ने माटे , एटले लेपथी अलेप विशेष, अलेपथी अब विशेष, अछथी बहुलेप विशेष, बहुलेपथी | ससिब विशेष, ससिबथी असिव विशेष जाणवो, परंतु लेपादिकनुं पाणी लीये, तो पण उपवासा | दिकनो भंग थाय नही. ति नावः // ए प्रकारे अपुनरुक्त एटले फरी न उच्चरीये एवा बावीश | आगारोना अर्थनुं व्याख्यान लेशथी देखाम्यु. ए श्रागारोना अर्थ- चोथु छार पूर्ण थयु. उत्तर बोल चालीश थया // हवे दश विगश्ना स्वरूप, पांचमुं धार कहे जे. Vetics/ MPORJASIDAONDBOBaste For Personal & Private Use Only Jain Education international Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Da प०भा० प०भा० 1139 // पण-पांच चउ-चार भख्ख-भक्ष दुद्धाइ-दुग्धादिक विगइ-विगइ इगवीसं-एकवीश ति-त्रण दुबे चविह-चार भेदे अभख्खा-अभक्ष्य चउ-चार महुमाई-मधु आदिक विगइ-विगइ | बार-बार emayanavidavasnaveerpassMAHILAODamantavya दुविहे-वे भेदे पण चउ चउ चउ दु दुविह, छ भख्ख दुद्धाइ-विगइ इगवीसं ति दुति चउविह अभख्खा , चउ महुमाई विगई बार // 29 // VarawanswaracanamaAREDGJRementsena शब्दार्थ-दुधनां पांच, दहिनां चार, घीनां चार, तेलनां चार, गोलना बे, पकानना बे. एम ए दुध विगेरे भक्ष्य || (खावा योग्य) विगइना सर्व मली एकवीस भेद थाय छे. तेमज मधना ग, मदिराना बे, मांसना त्रग, मांख गना चार. एम ए चार अभक्ष्य विगइना सर्व मली बार भेद छे. // 29 // विस्तारार्थः-जे इंजियादिकने पुष्ट करे, मन, वचन अने कायाना योगने अप्रशस्त विकार उपजावे, ते विग कहीये, ते विग दश नेदे . तेमांथो चार विग तो साधु अने श्रावक // 139 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaaaaaaaaaavavanwwwesome/ RBaavaa || बेहुने अन्नदयज . एटले नक्षण करवा योग्य नथी, अने उ नदय विगइ साधु अने श्रावक | बेहुने नदय करवा योग्य ले. माटे एने लक्ष्य विग कहीये, तेना उत्तर नेद एकवीस थाय ते कहे जे. प्रथम दुध विगइ पांच नेदे , बीजी दधि विगइ चार नेदे दे, त्रीजी घृतविगइ चार नेदे , चोथी तेल विगई चार नेदे , पांचमी गोळविग बे नेदे डे, नही पक्वान्नविगइ द्वि| विध एटले बे नेदे , ए उधादिक नक्षण करवा योग्य विग बे, तेना सर्व मली उत्तरनेद एकवीश थाय .. __हवे चार अन्नक्ष्य विगश्ना उत्तर नेद कहे . प्रथम मधु विगइ त्रण नेदे , बीजी मदिरा || विगबेनेदे , त्रीजी मांस विगश्त्रण नेदे , चोथीमाखणविग चार नेदे . ए मधु आदिक | चार अन्नक्ष्य विग , तेना सर्व मली उत्तर नेद बार थाय ते सर्व नामपूर्वक पागल कहेशे॥ हवे प्रथम उ नक्ष्य दिगश्ना एकवीश नेद व्यक्त करी कहे . WWW/ANDUpeNBANON sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० पि.मा. // 14 // PaNVIDAVAAVaaaaaamwwwpawaavanaane खीर-द्ध | गुह-गोल | महिसी-भेंसन पण-पांच घय-घृत पकन-पकवान उंटि-उंटडीनुं दहि-दधि छ-छ अय-छालीन अह-वे अ-वली भरुखविगइओ-भक्ष्य विगइ एलगाण-गाडरीनुं चउरो-चार जातनुं तिलं-तैल गो-गायनुं | खीर घय दहि अ तिलं, गुड पक्कन्न छ भख्ख विगइओ॥ गो महिसी उंटि अय ए-लगाणपण दुद्ध अह चउरो॥३०॥ शब्दार्थ-दुध, घी, दहि, तेल, गोल अने पकान. ए छ भक्ष्य विगइ छे. तेमां गाय, भैसनु, उंटडीनु, बकरीनु || अने घेटीनुं ए पांच जातनुं दूध विगइ छे. हवे चार जातवें घी विगेरे कहे छे. // 30 // _ विस्तारार्थः-प्रथम ब लक्ष्य विगयनां नाम कहे . एक उध, बीजो घृत, त्रीजो दधि, वली || चोथो तेल, पांचमो गोल, हो पक्वान्न, ए ब नदयविगय जाणवी. एटले ए ब विगइ जे ले, ते MameramanuMAINEmaavanmastAwarendrana/ AR // 14 // For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pasaava@ANDAINTENANDAp/a/ साधु तथा श्रावकने लक्षण करवा योग्य बे, माटे एने लक्ष्य बिगय कही, हवे ए ल नक्ष्य विन गयना उत्तर नेदनां माम कहे . तिहां प्रथम दूधविगयनुं नाम कछु , माटे दूधना उत्तर नेद कही देखा जे. एक गायन है। दूध, बीजें जेंसनुं दूध, त्रीजुं उंटमीन दूध, चोथु अजा एटले बालीनुं दूध, पांचमुं एमका ते गा| मरीनुं दूध ए पांच जातिनां दूध ते सर्व विगई जाणवी, अने शेष मनुष्यणी तथा बोजा पशुया दिकनां जे खीर थाय 2 ते विगश्मां गणाय नही. अथ एटले हवे चार जातिर्नु घृत तथा चार | जातिनुं दहीं कहे जे // 30 // घय-घृत | सरिसव-शरशवर्नु | चउ-चार पक्कन्न-पक्वान दहिया-दधि अयसि-अलसीनुं दवगुड-द्रव्य गोल तिल्ल-तेलमा उहिविणा-उंटडीना विना / लट्ट-कावरी पिंडगुडा-पिंडरूप गोल | घयतलियं-घृतमा तलेलं तिल-तिल- . | तिल्ल-तेल waavanavaanavanapanasanvasavaravasawaawarmvaree /aNEYONDER Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० // 141 घय दहिआ उद्दिविणा, तिलसरिसवअयसिलट्टतिल्लचऊ॥ दवगुड पिंड गुडादो, पक्कन्नं तिल्ल घय तलियं // 31 // दारं // 5 // शब्दार्थ-घी अने दहिं उंटडी विना बाकीना चार भेदे जाणवू. तलगें, सरसवर्नु, अलसीन अने लाटर्नु ए चार जातनु तेल विगइ छे. ढीलो अने कठीण ए बे जातनो गोल, अने पकान ते तेलमा तलेलं अने घीमां तलेलं एम के भेदे जाणवू. // 31 // विस्तारार्थः-प्रयम घृत जाणवू, बीजी दधि जाणवू, ए बे विगश्ना एक उंटमीना फूध विना बाकी चार चार नेद जाणवा. केम के उंटमोनुं दूध जमाय नहीं, माटे ते विना बाकी चार; एक गायना दहींनुं घी, बीजु नेंसना दहींनुं घी त्रीजु बालीना दहींनुं घी, अने चोथु गामरना दहींगें घी, ए चार नेद घृतना जाणवा, तथा दहींना पण एज चार नेद. एक गायना दूधनुं दहीं, * ए धान्य खसखस जेवू याय छे.. WAmarnamaARMYSAVNMENaamsavamantava का॥१४॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VaruVANDAIVanture/ANI/ADVtime/HO/AMM | बीजं नेषना दूधनुं दही, त्रीजु बालीना दूधनुं दही अने चोथु गामरेना दूधनुं दही, ए चार दहींना नेद विगश्रूप जाणवा. हवे तेल विगयना चार नेद कहे . एक तिअनुं तेल, बीजु शरशव, तेल, त्रीजु अलसीनु तेल अने चोथु काबरी एटले कसुंबाना दाणानुं तेल, ए तेल विगना चार नेद विगश्याता रूपे जाणवा. अने बीजा एरंगफल मधुकफल, नालियेर, खदिर, शिंशपादिक यावत् लादापाकादिक सर्व जातिनां तेल ते निवियाता जाणवां..... हवे गोल विगश्ना बे नेद कहे . एक. व्यगोल ते ढीलो राबमीयो रसरूप गोल जाणवो, बीजो पिंम रूप गोल ते कागे विविध जातिनो गोल जाणवो. ए बे प्रकारना गोल जाणवा.. . ..हवे पक्वान्न विगश्ना बे नेद कहे , तेमां एक तो पूर्वे जे चार जातिनां तेल कह्यां बे, | / तेमां तब्यु होय तेने तेलमां तलेबु पक्कान्न कहीये, बीजु पूर्वे जे चार जातिनां घृत कह्यां डे, awaseetenevanager/DAVERNasamayanameramavorn A P For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० // 142 amavarawRMIRAHMENaDemanawa/ARVARANAMAN तेमां तब्यु होय तेने घृतमां तले पक्वान्न कहीये. तलियं शब्द बे स्थानके जोमवो. ए रीते धना पांच, घृतना चार, दहींना चार, तेलना चार, गोखना बे अने पक्कानना बे, मली एकवीश नेद नक्ष्य विगयना कह्या. ए विगयना नामर्नु पांच, दार पूर्ण ययु. उत्तर बोख पच्चास थया॥ हवे ए नदय विगयना निवीयाता त्रीश कराय जे तेना नेदोनुं हुं धार कहे . पयसाडि-पयसाडी | अवलेहि-अवलेहिका / विगइगया-निवीमाता / अप्पतंदुल-अल्पतंदुल खोर-खीर दुखटि-दुखो दख्ख-द्राख तच्चुन-चोखानो आटो पेया-पेया दुख-दुग्धना / बहु-घणा | अविलसहिअ-खटास सहित पयसाडि खीर पेया, वलेहि दुद्धट्टि दुद्ध विगइगया // दख्ख बहु अप्प तंदुल, तच्चुन्नं बिलसहिअ दुद्धे // 32 // शब्दार्थ-द्राख नाखीने राधेलं दूध पयसाडि, बहु चोखा नाखीने रांधेलु दक्ष खीर, थोडा चोखा नांखीने रांधेलं Ramayawwwevanayampeares/maavanaaves/namam // 14 For Personal Private Use Only www.janelibrary.org sain Toucation international Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ iawas/aavisartanavagesa/ARVINAanavanaras | पेया, आटो नाखीने रांधेलं अवलेहिका अने खटास नाखीने रांधेलुं दूध दुट्टि. ए पांच धना निवीआता जाणवा.॥३२॥ | विस्तारार्थः-प्रथम धना पांच निधियाता थाय ते कहे . एक घाख अने टोपरादिक नाखीने दृध रांध्यु होय तेने पयसामी कहीये, वीजुं घणा चोखा नांखीने दूध रांध्यु होय तेने खीर कहीये, त्रीजु अल्पतंफुल एटले थोमा चोखा नांखीने इध रांध्युं होय तेने पेया कहिये, चोथं ते चोखाना चूर्णे करी सहित एटले ते चोखानो बाटो लोक नाषाये फुकरणुं कहे बे, ते नांखीने, दूध पचाव्यु होय, रांध्यु होय तेने अवलेहिका कहिये, पांचमुं खाटो रस करी बाब कांजी प्रमुख खटाशे सहित पुध ऊष्ण करे, अथवा ए लोक नाषाये दृधमा खटाश होय, तेमाटे एने फेदरी कहे , अथवा त्रण दिवस प्रसूत गोषुध बलही बलहटां ते उद्धट्टी कहीये, ए पांच सुधनां विकृतिगता एटले निवियाता जाणवा, नेदांतरे, एना बीजा घणा नेदो थाय . // 32 // हवे घृतविग तथा दहीविगश्ना पांच पांच निवियाता कहे बे. 9/GOOMeitie-NEKARJRANDom/Parvasanasameer For Personal & Private Use Only Jain Education international Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० प०भा० निभ्भंजण-निर्भजण / किष्टि-कीटुं वीसंदण-विस्पंदन पक्कघयं-पाकुं घृत पक्कोसहितरिय--पकौषधितरित दहिए-दहीने विषे | करंब-करंवो घोल-घोलेलो सिहरिणी-शिखंड घोलवडा-घोलवडा सलवणदहि-लवणसहित दधि. answm/tPawanprasoonmaavaavaranspare | निभंजणवीसंदण, पक्कोसहितरिय किशि पक्कघयं // दहिए करंब सिहरिणि, सलवणदहि घोल घोलवडा॥३३॥ Ne/IN/AANWaivamevenusanteraryanahuaaTANVANDm शब्दार्थ:-निर्भजनघृत, विस्पंदनघृत, पक्वौषधितरित, कीटुं, अने पाकुं घी. ए पांच निवियाता घी विगइना जाणवा. दहीमा कूर मेळवीने कीधेलु ते करंबो. दहीं खांड नाखी मथन करेलु ते शिखरिणी. लूगनां कण नाखीने मथेलं दहीं ते लवणसहित. लुगडांथी छाणेलं ते घोळेलुं दहीं. दहींना घोळयुक्त वडां करयां ते घोलवडा. ए पांचनिचियाता दहींना जाणवा. | विस्तारार्थः-एक पक्वान्न तल्या पडी उतर्यु जे बलेवू घृत तेने निप्नंजण एटले निर्नजन | घृत, पक्वान्ननुं तलण घृत कहीये, बीजं दहींनी तरी अने धान्यनी कणक वे? एका मेलवीने // 14 // For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CURNEPARO/ARRIANAVRED/weapooranepehwa/spe/ नीपजाव्यु जे द्रव्य विशेष ते कुबरी इति नाषा सपादलक्ष देश प्रसिद्ध ते विसंदन एटले विस्पंदन कहीये, त्रीजं पक्वोषधितरित एटले औषधिने घृत साथे पचावीये तेनी नपर जे घृतनी तरिका वले डे, एवं करिया सरिखं घृत पचीने थाय, ते घीनी नपरली तरी कहीये, चोथ पृतनो मेल उतरे तेने तनो मेल ते कौटुं कहीये, पाचमुं पाकुं घृत ते औषधिये पचावेयं घृत जाणवू, खयर आमलादिक ब्राह्मी प्रमुख औषधिये करी पचाव्यु होय ते जाणवू एनानेदांतर घणा थाय. हवे दहींना पांच निवियाता कहे जे. प्रथम दहींने विषे उदन एटले कर एक मेलवीने की, ते दधि सीधोरो इत्यादि लोक नाषाये कहे , तेने करंबो कहीये, बीजें खांस नांखीने हाथथी मथन करेलुं दहीं तथा खांमयुक्त बांधेलु दहीं तेने शिखरिणी कहीये,त्रीजं लणना कण | नाखीने मथेवु वस्त्रे अणगढ्यु जे दही, ते लवण सहित दधि कहीये, चोथु बुगमाथी बाणेर्बु मथेलु दहीं तेने घोलेबुं दहीं कहीये, पांच, दहींना घोलयुक्त वटक करवां कांजीवमां, दहीवमां तथा दहीं बाणीने तपावे, पनी मांदे वां नांखे, तेने घोलवमां कहीये, इहां विवेकीने एटनु inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Total प. भा० // 144 // vmamawwamamavazaaaaaaaaaaaaavanRVINNI विशेष के जिहां विदलयुक्त करवु पमे, तिहां दहीं तथा बास जे वमामांहे नांखवी होय तेने ऊष्ण करी नांखीये तेवारे श्रावकने नक्षण करवा योग्य प्राय, अन्यथा घोलवमां बावीश अन्नदयमांगणाय ते नक्षण करवा योग्य नथी. अकल्पनीय जाणवां // 33 // ____ हवे तेल तथा गोल विगश्ना पांच पांच निवीयातां कहे बे. तिलकुहि-तिलवट / पकुसहितरिय-पकौषधियी / सकर-साकर खंड-खांडनी निम्भंजण-निर्भजण तरिततेलगुलवाणय-गोलवाणी अधकढिय-अरधो कढेलो पकतिल-औषध पक्वतेल / तिल्लमली-तेलनीमली. पाय-गुलनी पांति / इख्खुरसो-शेलडीनो रस तिलकुट्टि निभंजण, पक्कतिल पक्कुसहितरिय तिल्लमली॥ सकर गुलवाणय पाय, खंड अधकढिय इख्खुरसो॥३४॥ शब्दार्थ-तिलवट, निर्भजन तेल, औषध पकतेल, पकौषधितरित तेल, अने तेलनी मळी ए पांचनीवियाता तेलनां vanawaneonangewwwanaparaswanaprasavamaawara // 144 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CAMERAMBANANDARMAtempouVAASANDAtme/teativever जाणवां. साकर, गलमाणु, गोळनी पांति, खांडनी सर्व जाति अने अर्ध कढेलो शेलडीनो रस. ए पांचनिवीयातां गोळनां | जाणवां. // 34 // विस्तारार्थः-प्रथम तिल तथा गोल कटीने खांमीने एकां करिये, ते तिलवट कहीये, वीजें तल्या पक्वान्नथी उतरेलुं दातुं बळेबुं तेल एटले पक्वान्ननु तलण जाणवू, अथवा केरी प्रमुखादिकना सरसोयादिक तेल ते निप्नंजण एटले निर्नजन जाणवू, त्रीजुं सर्व औषधवाला तेल एटले लादादिक ऽव्यथी पकावेला तेलने औषधपक्व तेल कहिये. चोथं तेलमांहे नारायणादिक औषधी पचाव्या पडी औषध उपर तरी वले ते पौषधियी तरित तेल एटले पक्वोषधिथी वलेली तरि कहीये. पांचमुं तेलनी मली एटले तेलनो मेल कीटी जाणवी. ए पांच | नावियातां तेलनां जाणवां. एना पण नेदांतरे घणा नेदो थाय. हवे गोळनां नीवियातां कहे . एक साकर मिश्री, बीजो गोलपाणी तथा रांधेलु गलमाणु अखात्रीजे कराय ने ते देश प्रसिद्ध , त्रीजो गोलनी पांति ते पाकगुम जेणे करी खाजादिक SWAROVARANV0CDMATRanceJAP../elev Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jang Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० प०मा० // 148 avinavemarathisruses/MOVEMERGAON | लेपीय बैये, एने मालबादिक देशने विषे काकबपति एम नाषाये कहे , चोथो खामनी सर्व जाति, पांचमो अझै कढेलो इकु एटने सेलमा तेनो रस, ए पांच नीवियातां गोलनां जाणवां. | | एना पण नेदांतर घणा थाय . // 34 // . हवे कमाविगश्ना पांच नीवियातां कहे जे. पूरिअतवपूआ-एकतावडी | तन्नेह-तेथी अन्य जललप्पसिय-जललापसी / पूत्तिकयो -निवीभातुं "पुराय एवडा पुडला उपर तुरिअघाणाइ-चोथाघाणादिक पंचमो-पांचमुं पोतुं देइ करेलो पुडलो बीअपूअ-बीजो पुडलो / गुलहाणी-गोलवाणी Viracasite/RED/3rdPARDESpacitmendednapr पूरियतवपूआ बीय, पूअ तन्नेह तुरिय घाणाई // गुलहाणी जललप्पसि, य पंचमो पूत्तिकयपूओ // 35 // // 145 // शब्दार्थ-एक तावडी पूराय एवडा पूडला उपर बीनो तलवो ते, त्रग घाण तल्या पछी चोथो घाग तलको ते, गोल For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ U gyaawa/sunyAwedamanup/sp/B0/ IVAtINDASHABAD | धाणी, जललापसी अने पोतुं दइने करेलो पुडलो. ए पांच निवीयातां जाणवा. // 35 // - विस्तारार्थः-पूरयो एटले ढाक्यो सर्व तापमो जे जेणे एवा पूमता उपर बीजो पूमनो तली | काढीये, ते बीजो तमलो नीवीयातो जाणवो, एटले घृतादिके पूरित एवो जे तवो तेने विषे एक पू करी पूरयो समस्त तवो तेहमां एकवार तली, वली तेहिज पूपिकादिक पर्पटकादिके अपूरित स्नेह एवा तवामां बीजो वार तथा प्रोजी वार देवीने तली काढीये जे पक्वान, ते निवीयातुं जाणवं. बीजु तेथी अन्य एटले त्रण घाण तली काढ्या पनी उपरांत बोजु घृत केपव्युं नथी एवं जे तवामांहेलु मूलगुं घृत ते मांहे तख्या जे चोथा घाणवा आदिक ते सर्व बाजूं नोबीयातुं | जाणवू, तथा त्रीजु गोलधाणी करवी, ते त्रीजुं निवीयातुं जाणवू. चोथु सुकुमारिकादिक काढ्या पनी एटले पक्वान्न तली काढ्या पनी उधृत जे घतादिक || एटले वधेर्यु जे घृतादिक तेणे करी खरमेलो जे तबो तेने विषे पाणी साये रांधी एवी जे लापसी NDANDA sinin Education national For Personal & Private Use Only www janeiro Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० प०भा० // 146 VIANARAS/Navitaeswarupamapan गईन उरण गोलर्नु पाणी घृतादिके नेलीने सीजवे , एने मरुदेशे प्रसिद्धपणे लापसी तथा लहगटु कहे , ते जललापसी निवीयातुं जाणवू. एटले तावमीनी चीकट टालवा सारु मांहे लोट नांखी पाणी साथे लापसी करीये ते जाणवी. पांच, पोतकृत पूमलो ते घृत तेले खरमेला एवा स्नेह दिग्ध तवाने विषे गुमादिकनुं पोतुं श्रापी गल्या पुमा करे , एटले पक्वान्न तल्या पली खरड्या तावमा मांहे गोळादिकनुं पोतुं देश्ने पुमलो सीजवीये ते निवीयातुं जाणवू // एउजद विगयनां त्रीश निवीयातां कह्यां. | जिहां घी अने तेलमां पाणीनो नाग आवे ते नीवियातां तख्या चणादि सर्व जाणवां, अने जे कमाश्मांदेथी घी तथा तेल उपर फरी वले नही, चिलमिलाट न थाय एवं तळेलु होय, ते पण विगयातुं नही कहेवाय. इत्यादिक परंपरागत लेवानो विचार बहु प्रकारे , ते गठसमाचारीगत प्रसंगथी योगादिकमांहे कल्पाकल्प विन्नागे लखीये बैये. - सहचूई, पूपिका, पोतकृतपूपक, वेममी, तद्दिनकृत करंब, घोल, फूल, वघारित पूरण, वघा MONEDHAVANA 1460 BAVITAMBANNIV/ www by Dig For Personal Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TravnavetaavaauVatsaaperma/amaveswariwavinsaansar |रिका, पटीरमी, मथित अगलित तक्रादिक, ‘कस्मिन्नपि योगे' कोइ पण योगने विषे न कल्पे | अनेरी योग विना निवीमां कल्पे.. ____ लहिगटुं, गेरा, वघारिक वां, घारवमां, साज्यपक्व खीचमी, सेवतिका, वघारित चण- | कादिक उत्तराध्ययन योगने विषे आचारांग मध्यगत सप्तसप्तकाध्ययनने विषे चमरोद्देशक अनुज्ञा यावत् नगवतीयोगने विषे न कल्पे, बीजा सर्व योगमध्ये कल्पे. अने पढोगरी, फूंकरएं, उकलधुं, वाशी करंब, तिलवटी, कुल्लर, निवीयातां, विग, गांठीया ना घारा, दलिया, गुंदविना मगीयादि, औषधादि, मोदक, पेटक, खंमा, सिता, वरसोलां, वासी गुमपाक, गुंदपाक, वगर तल्यां कांकरियां, अनुत्कालित श्कुरस, दिनत्रयावधि प्रसूत गोपुग्ध, | बलहट्टी, अंगाराथी उतारी आज्यादि मिश्रित पाबला दिवसनी पचावेली तिलवटी, पर्पटकादि, गुमादिके मिश्रित न करेली तिलवटी, इत्यादिक नीवीयातां श्रीयावश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययनादि सर्व योगने विषे प्रायः कल्पे. एवो विचार प्रसंगथी जाणवा माटे लख्यो ले // 35 // VARATAPERevenuedosaantaravasana For Personal & Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प.भ प०भा० // 14 // ROBanua/anawanemup ta/80/08/MARWAVARA हवे गिहबसणं ए आगारथको नीवीना पञ्च रकाण मांहे जे नीवियातां साधुने कल्पे, ... ते संसृष्ट अव्य कहोये, ते संसृष्ट अव्य जाणवाने कहे . घय-घृत, घी | भत्तुवरिं-भात उपर | अद्दामलयं-आम्लक दही-दहीं तिल्ल-तेल पिंडगुल-काठोगोलय-वली चउरंगुल-चार आंगल - दवगुड-नरमगोल एग-एक मख्खणाणं-मसल्युं / संसह-मिश्र दुद्धदही चउरंगुल, दवगुड घयतिल्ल एगभत्तुवरि // पिंडगुल मख्खणाणं, अदामलयं च संसट्ठ // 36 // शब्दार्थ--अने दहि भात उपर चार आंगुल होय तथा ढीलो गोल, घी अने तेल एग भात उपर एक आंगल होय तेमज करीण गोलथी मसलेला चूरमादिकमां पीलुना म्होर. सरखा गोलना ककडा होय तो ते संसृष्ट कहेवाय. ते निवीयातामा कल्पे छे. // 36 / / Japanesamasom/maanterarupamagesapanorand For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ withwestore/ a MANDIDOGVAg rouVATERVelvetom/AV/And विस्तारार्थः-मुग्ध अने दधिमांदे कूर प्रमुख नांखोये एटले दूध दही मिश्रित कुरादिक | होय, ते जो पूध तथा दही कुरथी चार अंगुल उपर चमे तेने संसृष्ट अव्य कहीये, ते नीवियातुं | नीवोमां कल्पे एटले नात रोटी उपर दूध, दही, चार अंगुल प्रमाण उंचुं चम्युं होय, तो नीवीप्रमुख मांहे साधुने कल्पे अने चार अंगुलथी अधिक पांच श्रादिक अंगुलना प्रारंलथी | जेवारे उंचु चमे, तेवारे ते विग जाणवू. माटे ते न कल्पे. ___अने अव्यगोल एटले ढीलो नरम गोळ अने घृत तथा तेल ए त्रणे ज्यां सुधी नक्त जे जात अथवा रोटी ते उपरे एक अंगुल प्रमाण उंचां चढ्यां होय त्यां सुधी संसृष्ट प्रव्य कहेवाय, एटले नीवियातुं कहेवाय, ते लेवं कल्पे अने बीजा अंगुलथोप्रारंनीनेचा चमता देखाय, तेवारे विकृत अव्य एटले विगयऽव्य जाणवां, ते लेवां करपे नहीं.. पिंगोल एटले काग गोल साये मसयु जे चूरमुं प्रमुख तेमांहे आस्त्रिक |एटले शण पोलूना महोर ते समान नहाना कणीयाना जेवा प्रमाण वाला एवा गोलना बहु AREERRO/map/samaavatmeVARAVasa For Personal & Private Use Only www.jame by dig Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० stoda/Da/namasteemap/ee/ Savants/anandiVAJA/ | च-अने खंग रहे, तो पण तेने वली संसृष्ट अव्य कहिये. ते नीवीयातामहे सेवा कल्पे परंतु एथी || महोटा खंग गोलना रहे तो ते विकृतिगत जाणवा, ते कल्प नहीं // 36 // ___ हवे वली एहिज नीवियातानुं स्वरूप दर्शाववा कांक विशेष कहे . दव-द्रव्य चोखा प्रमुखे / पुणो-वली.. | उद्धरिए-उधर्यापछी इम-एम हय-हणी तेण-ते माटे तत्-ते विगइ-विगइने तं-तेने तम्मिय-ते उतर्या पछी अन्ने-अनेरा कहे ले, विगइगयं-निवियातु हमेदव्वं-हतद्रव्य उकिदव्वं-उत्कृष्टद्रव्य दवहयविगई विगइ-गयं पुणो तेण तं हयं दव्वं // उद्धरिए तत्तंमिय, उक्किठ्ठ दवं इमं चन्ने // 37 // शब्दार्थ-शालना चोखा विगरेथी निर्वीर्य करेली तिरादिक विगइ तथा वर्णिकादिके करीने हणी एवी जे घृतादि // 148 D/19/DP/dowe/ov /sether/nayana/ANVARE inin Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VaaVANVANIVAAVAKADI/AANDVtuURANIYAnymaa विगइ ते विकृतीगत कहेवाय. वली भात विगेरेथी हण्यु ए जे विकृतिगत ते इतव्य कहेवाय. तथा तावडामाथी मुखडी काढी लीधा पछी वधेलं टाई ययेलुं जे घी तेमां नाखेला लोटने हलावीने करीये ते उत्कृष्ट द्रव्य कहेवाय एम बीजा आचार्य कहेछे. // 37 // ___ विस्तारार्थः-अव्य जे कलम शाली चोखा प्रमुख तेणे हणी निर्वीर्य करी एवी जे दौरादिक विगइ तथा कणिकादिके हणी एवीजे घृतादिक विगइ तेने विकृतिगत एटले नीवियातुं कहीये | ते कारण माटे वली ते तंदुलादिके हएयु एवं जे बिकृतिगत तेने अव्य कहीये. पण विगय तथा निविगय न कहीये. तथा सुकुमारिकादि तावमा मांदेथी उकरया पठी एटले सुकुमारिकादि | काहामी लीधा पनी उगरयुं जे घृत ते टाहाहुं थया पली तेमां लोट नांखीने हलाविये ते घृत तावमो हेगे उतारया पली उत्कृष्ट अव्य कडेवाय एटले निविगय जाणवू एम अनेरा श्राचार्य कहे डे. इति गाथार्थः इहां जावार्थ ए ले जे अन्न प्रमुख प्रव्ये विगश्ना पुजल हण्या, तेवारे विगयनो स्वाद weevataante/ARawatiwwetawwapcomitraVAANEYAawatasweetne nin Education international For Personal & Private Use Only www.jang Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प.भा . aaaamaaave/amama/aawaavawan/08/caartiasation फरी गयो, तेथी ते नीवीयातुं कहेवाय. परंतु विगइ न कहेवाय, एटला माटे ते नीवीना है| पल्भाल || पञ्चस्काण वालाने लेवी कहपे. अने सुकुमारिकादिक सुखमीने तावमामांहेथी काढया पली जगज्युं जे घृतादिक तेने विषे चूला उपर बते अग्निसंयोगथी तपे थके तेमांहे देपव्यु जे कणिकादिक दल प्रमुख तेने उत्कृष्ट | द्रव्य कहीये, ते विकृतिगत जाणवू. ते केम के ? चूरिम पूर्वे कमाह विग थर नग्न कणिका कीधी ते कष्ण घृत गोल परस्परे अव्य हत थइने पड़ी ते कणिका केप करी मोदक बांध्या एवं जे चूरमादिक ते विकृतिगत जाणवू, पण विगय समजवी नहि, एनुं नाम जस्कृष्ट ऽव्य जाणवू. एम कटलाएक श्राचार्य कहे . नामांतरे गीतार्थानिप्राये तो एम के जो चुब्हाना माथाथी उतरया पली शीत थया केमे जे कणिकादिक क्षेपवीये, ते तथाविध पाकानावथी विकृतिगत हा॥१४९॥ कहीये, अन्यथा परिपक्व विशेष थये व्यगत कहीये, पण विग तथा निर्विकृतिक न कहीये, एबुं व्याख्यान प्रवचनसारोद्धारवृत्तिना अभिप्रायथी लख्युं बे, पण तिहां एम कथु बे, जे सुधिये Vaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaan For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ est/ नली परे विचारवं, जे माटे निर्विकृतिक अनेक नेदे . ते बहुश्रुतनी आचरणा परंपराथी जाणवां. // 37 // हवे केटलीएक वस्तुनां नाम उत्तम अव्य कह्यां बे, ते. देखामे डे. तिल-तेलथी | रायण-रायण डोलीतिल्लाइमा-डोली तेल | सरमुत्तमदव्य-सरसउत्तमद्रव्य सकुलि-सांकली अंबोइ-आंबादिक वरसोलाइ-वरसोला कहीये | दरूखवाणाइ-दाखवाणीप्रमुख - तिल सकुलि वरसोलाई, रायणंबाइ दख्खवाणाई // रायण-रायण डोलीतिल्लाइ डा -लेपकृत। / Pranavmeenawanpravasana/OEM/ODAED/DARJAGHVAN / / डोलि तिल्लाईया, सरसुत्तम दव लेवकडा // 38 // / / शब्दार्थ-तलसांकली, वरसोला विगेरे, रायण, केरी, दाखवाणि विगेरे, डोलीया विगेरेनां तेल. ए सर्वने सरस उत्तम द्रव्य कहेवाय अथवा लेपकृत द्रव्य पण कहेवाय. // 38 // / Jan Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B प प०भा० // 15 // RABINEERumetamaas RasansaamaasasanasasawanSamvaaseen विस्तारार्थः-तेलथी नीपनी एवी तिल सांकली तथा खारेक, टोपरां, सिंगामा प्रमुखना | होलीना हारमा तेने वरसोलां कहीये, अने श्रादिशब्दथकी साकर खांझना विकार साकरीया पापम, नालिकेर, खांस, कातली. पाक, सर्व मेवा प्रमुख, तथा रायण यांबादिक एटले आम्रादिक फल सर्व अचित्त करयां पाकादिके नीपजाव्यां मधुकादिकनां, नालिकरादिकना,पाखवाणी प्रमुख, नालेरवाणीप्रमुख मोली, तेल, आदि शब्दथकी नालिकेर, सरसव प्रमुखर्नु तेल तथा एरंग प्रमुख तेल जाणवू. अस्कोमादिक मेवा हलवा प्रमुख ए सर्व सरस उत्तम अव्य कहीये तथा एने लेपकृत पण कहीये. ए नीवीमां कल्पनीय जाणवां. // 30 // हवे ए सर्व पदार्थ कारणे लेवां कल्पे, पण सहजपणे रसगृध्रताये लेबां करूपे नहीं, ते कहे . विगइगया-निवियाता | निम्विगइयंमि-नीवीना पञ्च- | मुतुं-कीने भुतु-भोगवद्, लेवू संसहा-संसृष्टद्वव्य ख्खाणने विष कप्पंति-कल्पे .. जे-जे उत्तमदब्वाइ-उत्तमद्रव्यादिक | कारणजायं-कारण न-नहि | वुत्तं-कडं ले e 150 emarava For Personal Private Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विगइगयासंसठ्ठा, उत्तम दवाइ निविगइयंमि // कारणजायं मुत्तुं, कप्पंति न भुत्तुं जं वुत्तं // 39 // Varue/amsenawativemahawa/scom/ a शब्दार्थ-विगइथी उत्पन्न थयेला, संसृष्ट अने उत्तम द्रव्यादिव. नीवीना पचरुखाणमां कारणने मूकीने खावू न कल्पे | अर्थात् कारणे खवाय. कारण कयुं छे के. // 39 // विस्तारार्थः-एक विकृतिगता एटले दूध प्रमुख विगश्थी उत्पन्न थया जे नीवीयाता जे | संख्याये त्रीश पूर्वे कह्या जे ते. बीजा संसृष्ट द्रव्य जे करंवादिक, मगदल, पापमी पिंमादिक, त्रीजा उत्तर द्रव्यादिक ते तिलसांकली, साकर, मेवादिक सरसोत्तम अव्य जे पूर्वे कही आव्या ते ए त्रण प्रकारनी वस्तु ते नीवीना पच्चरकाणने विषे कोई कारणजातं एटले पुष्टालंबन विशेष प्रयोजनरूप वातादिक कारण मूकीने, साधुने नोगववं लेवू नहीं कल्पे. जेने जावजी सुधी विगयनां पच्चरकाण होय, किंवा तथाविध विशेष तपे उजमाल होय, किंवा वैयावच्च करवाने V AAMVAANIVERem For Personal Private Use Only Sain toucation international Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० पभ / 9080500000000000000000D/DARDAR नजमाल होय, ज्ञानादिकनो उद्यमी होय, तेवारे शरीरे ग्लानादिक निमित्ते औषधादिक कारणे लेवां करपे, अन्यथा कारणविना लेवां कल्पे नहीं. जेमाटे कडं बे, ते आगली गाथाये || कहे . // 3 // विगई-विगइप्रत्ये / विगइगय-निवीयाता भुंजए-खाय बला-बलात्कारे विगइ-नरकादि माठी गति जो-जे. साहू-साधु नेइ-पहोंचाडे भोओ-बीहतो | अ-वलो विगइसहावा-विकृतिस्वभाव विगइं विगइ भीओ, विगइगयं जो अ भुंजए साहू॥ POANDAPORE/APPS/Ramevtaura/es/ANI/Antamaal विगई विगइ सहावा, विगई विगई बलानेइं // 40 // शब्दार्थ-विगइने अने विगइमा रहेला क्षीरादिकने नरकादि विरुद्ध गतिथी भय पामतो जे साधु भक्षण करे छे, तो विकार पमाडवाना स्वभाववाली विगइ ते साधुने बलात्कारे माठी गति प्रत्ये पहोंचाडे छे. // 40 // For Personal Private Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ raawaavaepsaneleowaneme/0Bawa/meROIN विस्तारार्थः-ध प्रमुख जे विगले ते प्रत्ये अने विकृति गत जे क्षीरादिक त्रिविध द्रव्य नीवीयाता कह्या ते प्रत्ये विगति एटले विरुद्धगति ते नरक, तिर्यंच, कुदेव, कुमाणसत्वरूप जे माठी गतियो बेतेनाथकीनीती राखतो एटले बीहतो अथवा संयम ते गति अने तेनो प्र|तिपक्षी जे असंयम ते विगति जाणवी. तेवी विरुद्धगतिथकी बोहतो एवो जे वली साधु ते मुंजे एटले खाय ते साधुने विग ते विगति जे नरकादिकनी विरुद्ध गति तेने विषे बलात्कारे एटले | ते साधु जो पण उर्गतिमां जवाने नथी वांडतो तो पण बलात्कारे तेने माठी गति प्रत्ये पहों| चामे. ते विग केहेवी डे ? तो के विकृति स्वन्नाव, एटले विकार उपजाववानो डे स्वन्नाव || है | जेने एवी बे. केम के ए विकृति ते अवश्य शब्दादिक कामनोगने वधारे एवी , माटे कारण मा विगयादिक न लेवां. अने श्रावकने पण निव प्रमखने पञ्चरकाणे कोइ महोटा कारण विना तथा विशेष तप विना नीवियाता लेवा कल्पे नहि, एनो विस्तार श्रीयावश्यकनियुक्तिनी वृत्तिथी तथा प्रवचनसारोद्धार नीवृत्तिादिक ग्रंथथी जाणवो. अहीं संक्षेप मात्र लख्यो 40 AANDAppronapartetnavarateaeptemmeena For Personal & Private Use Only www.janebryong Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० प०भा० // 152 // हवे चार अनदय विगय , तेना उत्तरत्नेद कहे . कुत्तिय-कुतां बगतरांगें मध | तिहा-त्रण प्रकारर्नु | दुहा-वे पकारनु | मंस-मांस मच्छिय-माखीजें तिहा-विधा क-काष्ट जल-जलचर घयन्व-घृतनी येठे भामर-भमरान पिट-पिष्ट यल-थलचर मख्खण-माखण महु-मध खम-खेचर अभख्खा -अभक्ष्य मन-मदिरा कुत्तिय मच्छिय भामर, महुतिहा कह पिट्ठ मज्झदुहा॥ जलथल खगमंस तिहा, घयव मख्खण चउ अभख्खा४१ दारं Resea@SBANDARDARupasaavadgaodae शब्दार्थ-कुतीयुं, मांखीनुं असे भमरीनुं एम प्रण जातनुं मध, काष्टथी अने पिष्टथी बनावेली मदिरा बली जलचर, है || थलचर अने खेचर जीवोनुं एम पण आतनुं मांस अने घीनी पेठे चार जातनुं मांखण ए चार अभक्ष्य छे. // 41 // विस्तारार्थः-तिहां प्रथम मधु विगयना नेद कहे जे. एक कुत्तां बगतरां जंगल मध्ये थाय nin Education international www.janelibrary.org For Personal & Private Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे. तथा वर्षाकाले विशेष थाय बे, तेहनुं मध, बीजें माखीजें मध, अने त्रीजु नमरानुं | मध एवं त्रण प्रकार- मधु एटले मध जाणवू, तथा एक काष्ठ ते धाउमी प्रमुख काष्टथी महुमादिकथी नीपन्यु मद्य, बीजं पिष्ट ते ज्वारप्रमुखना आटादिकथी नीपनी मदिरा ए मद्य एटले मदिरा ते बे प्रकारनी जाणवी. हवे मांसना नेद कहे . एक जलचर जीव जे मत्स्यादिक तेनं. | बीजु थलचर जीव जे छिपदचतुष्पदादिक तेनुं, त्रीजु खेचर जीव जे पदीयादिक ते, ए विधा | एटले त्रण त्रकारनुं मांस जाणवू, तथा घृतवत् एटले जेम घृत, गाय नेष गामरी अने बाली | ए चार प्रकारे कयु, तेम माखण पण एहज चार प्रकारनुं जाणवू, पण एटबुं विशेष ले जे मा| खण जे, ते सर्व चारे प्रकारचें अन्नक्ष्यज बे. अने घृत जे , ते चारे प्रकारचं नक्ष्य विगयमां | कडं बे, जेमाटे वोज थ खटासे चलित रसपणुं पामीये एवी एक मदिरा, बीजुं सथी बाहेर | नीकल्यु एवं माखण, त्रीजु जीवित शरीरथी अलगुं थयु एवं मांस, रुधिर तेपण एमज जाणवू, तथा चोथु मधुपुमाथी उपन्युं मधु, ए चारे पदार्थोंने विषेअंतर मुहर्तमध्ये असंख्याता बेजिय avataavatmanicatare Navarateaetanaatme/ets/RecitativeawaruVARINIVAaer a sooAMMARVAR/ www.ianelibrary.org sain toucation international For Personal Private Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० // 153 TamasaantesterseDDIRepaidaopdatemaramewater जीव उपजे, तेमां मांसपेशी मध्ये तो पक तथा अपक्क तथा अग्नि उपरे पच्यमान एवो थको पण तेमांहे असंख्य बेंजिय तथा पंचेंद्रिय तथा निगोद जीव अनंता पण पोते पोतानी मेले उ- प०भा० पजता कह्या बे, ते माटे ए चार विगय जे जे, ते सर्वथा अन्नदय वर्जनीय कही . ए त्रीश || निविगर्नु उतुं कार पूर्ण थयु. उत्तर बोल 70 थया // 41 // हवे पच्चरकाणना बेनांगानुं सात, हार कहे . पञ्चरकाणना बे नेदे बे, एक मूलगुणरूप अने बीजुं उत्तर गुणरूप तिहां साधुने मूलगुण ते | पांच महावत अने उत्तरगुण ते पिंझ विशुद्धयादिक जाणवां, तथा श्रावकने मूलगुण ते पांच अ-| णुवत अने उत्तरगुण ते त्रण गुणवत अने चार शिक्षाबत जाणवां, तिहां सर्व पच्चरकाणादिक तेहना नांगा जे रीते थाय, ते रोते कहे बे.. तेमां सर्व उत्तरगुण पच्चरकाण अनागतादिक दश प्रकारे पूर्वे कयां, अने देशोत्तर गुण पच्चकाण सात प्रकारे-ते त्रण गुणवत अने चार शिदावत मली थाय, तथा वली एक श्वर अने || FARMEReasarampaapamerame/eDame/REDESemon // 153 // Jan Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीजं यावत्कथिक, ग वेनेदे नुसरगुण प्रत्याख्यान तमा साधुने श्वरगुण पञ्चरकाण ते कांक अनि ग्रहादिक जाणवां, अने यावत्कषिक ते पिमविशुद्धयादिक तथा अनियंत्रितादिक जे नि कादिक पण अन्नग्न होय-नंग न थाय, ने सर्व यावत्कधिक जाणवां, अने श्रावकने नो इत्वर ते चार शिक्षात्रतादिक ने. अने यावत्कधिक त्रण गुणवतादिक ते. ते श्रावक व नंदे . एक अविरति सम्यगुष्टि ने केवल सम्यगदर्शन युक्त कृष्ण श्रेणिकादिकनी परे जाणवा, अने वीजा विरति सम्यग्दृष्टि, ने वली बे ने एक सानिग्रही अने वीजा निरनिग्रही. ते वल। विनयमान श्रका श्राप दे थाय, ते केवी रीते ? तो के एक इविध त्रिविध. बीजो द्विविधतिविध, त्रीजो द्विविध एकविध, चोथो एकविध त्रिविध, पांचमो एकविध विविध, यो एकविध एकविध, ए नांगा पांच व्रत आश्रयोथाय,अने कोशएक उत्तरगुण माहेबु कोइएक बत लीये, ते सातमो नांगो जाणवो, अने थाउमो नांगो कोई नियम मात्र नज लीये ते जा. णवो. ए रीते पुाक्त पांच छात्रतादिक तेने मनांगे गुणीये तेवारे त्रीश नंग थाय. तेनी साथे sinin Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० NDAGanarasi/ प०भा० का एक उत्तरगुणनो नांगो मेलवीये, तेवारे एकत्रीश नांगा थाय, तेनी साथे वली कोई नियम मात्र व्रत न लीये, तेनो एक नांगो मेलवीये तेवारे बत्रीश नेदे श्रावक सम्यग्दर्शनी शंका कांदादि | रहित अमूढदृष्टिपणे जाणवा. इत्यादिक नेदनी वक्तव्यता बहु , पण शहां मुख्यताये उंगणफचास नांगा थाय, ते नांगा गाथाना अर्थे कहे . मण-मने मणतणु-मन अने कायाए / सत्त-सात दुति जुय-द्विक त्रिक योग वयण-वचने वयतणु-वचन अने कायाए कर-करवा आश्रयी तिकालि-त्रणकाल काय-कायाए तिजोगि-त्रण योग कार-कराववा सीयाल भंग सयं-एकशोने मणवय-मन वचने सग-सात अणुमइ-अनुमति सुडतालीश भांगा Here/apevanawaneanteras / / /Ge/a/ मणवयणकायमणवय, मणतणुवयतणुतिजोगिसठासत्त॥ करकारणुमइ दुतिजुय, तिकालि सीयाल भंगसयं // 42 // /a/aavaadee // 154 // ASHARAMVasavetaseases JainEducation irdermational For Personal & Private Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sil. शब्दार्थ-मन, वचन अने काया; बली मनवचन, मनकाया अने वचनकाया; तेमज मन, वचन अने काया एत्रण या योग. ए सात भांमाने करवा, कराववा अने अनुमोदका. एवा भेदयी एकवीस मेद थाय. बली तेने दीक त्रीक योग स हित करी भूत, भविष्य अने वर्तमान काले करी गुणतां एकसो सुडतालीस भांगा याय. // 42 // / विस्तारार्थः-एक प्राणातिपातादिकने मने करी न करूं, बीजो वचने करी न करूं, त्रीजो कायाये करी न करूं, चोथो मन अने वचने करी न करूं. पांचमो मन अने कायाये करी न कलं, बहो वचन अने कायाये करी न करूं सातमो मन, वचन अने काया, ए त्रणे योगे करी न करुं, ए एक संयोगी सात नांगा धया. ते सात नांगा करवा श्राश्रयी जाणवा. तेमज सात नांगा कराववा श्राश्रयी जाणवा, अने सात नांगा अनुमति प्रापवाना एटले अनुमोदन देवाना पण जाणवा. ते श्रावी रीते के-प्राणतिपातादिकने एक मने करी न करावं. बीजो वचने करीन करावं, त्रीजो कायाये करीन करावं, चोथो मन बने बचने करी न करावं, पांचमो मन अने कायाये DNNNNNNN Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० // 155 // TAaravasanat पा KeramasapupitBANAND/OBatpAD/EDARDIN ATABASIYA करी न करावं हो वचन अने कायाये करी न करावं, सातमो मन, वचन अने कायाये करी न करावं. ए सात कराववाना नांगा कह्या. हवे सात अनुमोदवाना कहे . एक प्राणातिपातादिकने मने करीन अनुमोठं, बीजो वचने करीन अनुमोई. त्रीजो कायाये करीन अनुमोदूं, चोथो मन अने वचने करीन अनुमोदूं, पांचमो मन अने कायाये करीन अनुमोदूं, हो वचन अने कायाये करी न अनुमोडं, सातमो मन, वचन अने कायाये करी न अनुमोदूं, || ए सात नांगा अनुमोदन देवाथाश्री कह्या, एम सात करवाना सात कराववाना अने सात अनुमोदवाना मली एकवीश नांगा थया. हवे हिक त्रिक योग सहित सात सात नांगा करीये, ते श्रावी रीते के एक प्राणातिपा| तादिकने मने करी न करूं, न करावं; बीजो वचने करी न करूं, न करावं; त्रीजो कायाये करी न करुं न करावु; चोथो मन अने वचने करी न करूं न करावं; पांचमो मन अने कायाये करी | न करूं, न करावं; हो वचन अने कायाये करी न करूं, न करावं, सातमो मन, वचन अने arvasavataame/BVmAIN // 165 For Personal Private Lise Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काया, पत्रणे करीन करूं, न करा: ए करवा कराववा आश्री सात नेद कह्या. तथा एक प्राणातिपातादिकने मने करी न करूं, न अनुमोj, वीजो वचने करी न करूं, न अनुमोई. त्रीजो कायाये करी न करूं, न अनुमोई, चोथो मन अने वचने करीन क न अनुमोद, पांचमो मन अने कायाये करी न करें न अनुमोदूं, हो वचन अने कायाये करी न करूं, न अनुमोद, सातमो मन वचन अने काया, ए त्रणे करी न करूं, न अनुमोदूं, ए सात नंग, न करवा, तथा न अनुमोदवा आश्री कह्या. तथा एक प्राणातिपातादिकने मने करी न करावं, न है | अनुमो, बीजो वचने करी न करावं, न अनुमोद्, त्रीजो कायाये करी न करावं, न अनुमोदूं, चोथो मने करी वचने करी न करावं, न अनुमोदूं, पांचमो मने करी कायाये करी न करावं, न है अनुमोदूं, बट्टो वचने करी कायाये करी न करावं, न अनुमोदूं, सातमो मन, वचन अने कायाये करी न करावु, न अनुमोदूं, ए न कराववा न अनुमोदवा आश्री सात नंग कह्या. एम सात न करवा न कराववा आश्री अने सात न करवा न अनुमोदवा श्राश्री तथा सात न कराववा न Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० थ०भा० // 156 // Bus/aparavanaeraamaayaanusaramaves/swas अनुमोदवा आश्री. एवं सर्व मली दिकसंयोगे एकवीश नंग अया. तेनी साथे पूर्वोक्त एक संयोगना एकवीश मेलवतां, बहेंतालीश नांगा थया..... . हवे त्रिक संयोगे सात नंग थाय, ते कहे . एक प्राणातिपातादिकने मने करी न करूं, न करा, अने ने अनुमोदूं, बीजो वचने करी न करूं, न करावं अने न अनुमोदूं, त्रीजो कायाये करी न करूं, न करावं अने न अनुमोदूं, चोथो मन अने वचने करी न करूं, न करा, अने न अनुमोद्, पांचमो मन, अने कायाये करी न करूं, न करावं, अने न अनुमोदूं, बहो वचन अने कायाये करी न करूं, न करावु अने न अनुमोदूं, सातमो मन, वचन अने कायाये करी न करूं, न करावं अने न अनुमोदूं, ए त्रिकसंयोगी सात नांगा थया. ते पूर्वोक्त बहेंतालीश साथे मेलवतां सर्व मली जंगणपचास नांगारूप ते अणुव्रत, गुणत्रत थने अनिग्रहादिकना नेद उपजे, तेने त्रण काल ते अतीत, अनागत अने वर्तमान, ए त्रण काले करी गुणीये, तेवारे एकशोने सुमतालीश (१४७)नांगा थाय.माटे जे एटला नांगा जाणे, ते पच्चरकाणनो कुशल कहीये. यदुक्तं // PemasteptemessageDEDDIATIME/APasteus/moAPNAVRE inin Education international For Personal & Private Use Only www.janelyg Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ems/tempathmaAINMENDOOGDADODAawatapp/BE सीयालं नंगसयं, जस्स विसुद्धिए होश उवलद्धं // सो खलु पच्चरकाणे. कुसलो सेसा अकुसलाय // 1 // इति // एना विशेष नांगा पम्नंगीना श्रावकना व्रत संबंधी थाय ते कहे . गाथा // तेरसकोमी सया, चुलसीइं जुयाई बारसयलस्का // सत्तासी सहस्सा, दोय सया तह पुर| पहिया // 1 // तेरसें कोमाकोमी, चौरासी कोमी, बारलाख सत्यासी हजार बसें ने बे थाय. एमज नवनंगीना नवाणुं हजार नवशे ने नवाणुं कोमी, उपर नवाणुं लाख, नवाणुं हजार, नवशे ने नवाणुं एटला नांगा थाय. एए ए एए एए ए ए ए एमज एकवीश नंगी तथा जंगण | पच्चास नंगीना विशेष नांगा थाय, ते सर्व आवश्यकबृहवृत्तिथी, तथा दीपिकाथी तथा प्रवच| नसारोकारवृत्तिथी, तथा श्रावकवतन्नंगप्रकरणवृत्तिथी, तथा देवकुलिकाथकी जाणवा. ते पच्चरकाणनो कुशल होय, तेणे विचारवा....... हवे ए पच्चस्काणनुज स्वरूप कहे जे. Maitrisatoeie/astavaHIMBORNMBERVetests/ ADVEM/10/60 For Personal & Private Use Only www.by og JainEducation into Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भाल प०भान e edeegsEsts // 17 // एयंच-ए वली / मणवयणतणूहि-मन वचन अने जाणग जाणग पासि-जाण / भंग चउगे-चार भांगाने उत्तकाले-उक्त काल कायाये करी अंजाण्या पासे तिसुअणुग्णा-त्रग भांगाने सयंच-पोतानो मळे पालणिय-पालचा योग्य ते इत्ति-एम विषे अनुज्ञा एयं च उत्तकाले, सयं च मण वयण तणुहिं पालणियं॥ . जाणगजाणग पासि, त्तिभंग चउगे तिसु अणुण्णा॥४३॥ दारं / शब्दार्थ-वली ए पच्चख्खाण कहेला काले लेनार धगीये पोते मन, वचन अने कायाए करीने पालवा. वली ते प. चख्खाण करनार जाण अथवा अजाग तेमज करावनार जाण अपवा अनाण एम चार भांगा थायछे. तेमा प्रथमना त्रण | भांगे आज्ञा छे. // 43 // विस्तारार्थः-ए पूर्वोक्त वली उक्तकाल जे पोरिसीयादिक काल प्रमाण रूप ते पोतानी मेळे जेवी रीते बोट्युं होय-यथोक्तरूपे जे नंगादिके ली, होय, ते नंगादिके मन, वचन अने कायाये करी पालवा योग्य ते जाण अजाण्या पासे करे एम नंगचतुष्के एटले चार नांगाने विषे NapanapDotomadrasutimanoramanup/ maratramserenaa // 15 // aporea Tin E cation International For Personal & Private Use Only www.anebryong Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर: तेमां पदेला त्रण नांगाने विषे यनका पटखें याहा पटले / पचम्कागने करवा कराववा रूप चननंगी चाय ते कहे . एक पत्रकाणनो करनार शिष्य पण जाण होय. अने वीजा पञ्चम्काण कगवनार गुरु पण जाग होग, प्रथम नंग शुद्ध जाणवो. बीजो पराकाण कगवनार गुरु जाण होय यने पञ्चम्काण करनार शिप्य अजाण होय. वजो नांगो पण शुद्ध जा. वो. त्रीजी पञ्चम्शण करनार शिष्य जाण होय अने पचमबाणनो कगवनार गुरु अजाण होय ए चीजो नांगो पा शुद्ध जाणवो. चो यो पञ्चम्याण करनार शिप्य करने पच्चरकाग करावनार गुरु, ए बेतु अजाण होय, ते चोयो नांगो श्राद्ध जागवी परीते चार नांगामादेथीत्रण नांगे पञ्चग्ग्वाण करवानी आझा , अने चोथा नांगाने विष याझा नथी / / ए मूलगुण, उत्तरगणरूप पञ्चरकाणन सात छार यु. जनर नेद व्याशी थया / / 43 // हवे पूर्वोक्त गादिके विचारीने पण जेम संयमयोग हीन थाय नही, ते रीते पञ्चग्वाण की, था पण प्रकारनी शुद्विये करी सफल पाय, माटे पञ्चम्वाणनी विशुद्धिनुं श्रापमुं दार कहे . For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० ०भा० amavalavanaupadeaoarvadiaWatus/MBASIVINNI फासिय-फरश्यु तिरिय-तीयु [छ मुद्धं-छ प्रकारे शुद्ध री उचित वेलाये पालिय-पाळ्यु किट्टिय-कीत्यु पच्चख्खाणं-पच्चरूखाण... जंपत्त-जे प्राप्त थयु सोहिय-शोभाव्यु आराहिय-आराध्यु / विहिणोचियकालि-विधिए कफासिय पालिय सोहिय, तिरिय किट्टिय आराहिय छ सुद्धं // पच्चख्खाणं फासिय, विहिणोचिय कालि जंपत्तं // 44 // शब्दार्थ-फरस्यु, पाल्युं, शोभाव्यु, तीर्यु, कीयु अने आगध्यु, ए छ प्रकारे शुद्ध एवं पच्चख्खाण फल आपनाएं थाय छे. तेमा प्रयम विधि प्रमाणे योग्य काले जे पञ्चलखाण लीधुं ते फरस्युं कहेवाय. // 44 // विस्तारार्थः-एक फासित एटले पञ्चख्खाण फरश्युं, बीजुं पालित एटले पच्चरकाण पाढ्यु, त्रीजुं शोनित एटले पच्चख्खाण शोन्नाव्यु, चोथु तीर्ण एटले पच्चख्खाण तीयु, पांच, कीर्तित | एटले पच्चख्खाण कीत्यु, तुं श्राराधित एटले पच्चरकाण आराध्यु एन प्रकारे शुद्धे करी शुद्ध ए, पच्चख्खाण, फलदायक होय. हवे ए विशुदिना अर्थ कहे डे. TwittevataapaaNDARVARIANAVAKADIEAAVANDANVEME // 1583 For Personal Private Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिहां प्रथम सम्यक प्रकारे विधिये करी उचित काले एटले उचितवेलाये जे पचरकाण | प्राप्त थयुं एटले सूर्योदयथी पहेला पच्चरकाण उचितकाले जे पाम्युं, एटले जे पच्चरकाण कीधु, ते यावन्मात्र जेटला काल लगण ग्रहण कयुं, तावन्मात्र तेटला काल लगे पहोंचामव॒ तेने फरश्यु कहीये // 44 // पालिय-पायु / सोहिय-शोभाव्युं / भोयणओ-भोजन लेवा थकी किट्टिय-कीयु पुणपुण-वारंवार गुरुदत्त-गुर्वादिकने दइने तिरिअ-तीर्यु भोयणसमय-भोजनना समयने सरियं-संभायु | सेस-शेष समहियकालो-समधिक काल सरणा-संभार पालिय पुणपुणसरियं, सोहिय गुरुदत्त सेस भोयणओ // तिरिय समहिय कालो, किट्टिय भोयण समय सरणा॥४५॥ शब्दार्थ-करेला पच्चख्खाणने वारंवार संभार, ते पाल्युं कहवाय, गुरुने आप्या पछी बाकीन पोते जमवु ते शोभा sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० elasanasaramee पभा // 159 // Gandonsi/APERVASweep व्युं कहेवाय. धारेला कालथी कांइक अधिक काल गया पछी पचरूखाण पूर्ण करे ते तीर्यु कहेवाय अने भोजनना अबसरे करेला पचरूखाणने संभारवं ते कीयु कहेवाय. // 45 // विस्तारार्थः-बीजुं ज्यां लगे पचरूखाण पूरूं न थाय, तिहां लगे वारंवार उपयोग देने सावधानताये संन्नायुं जे महारे अमुक पञ्चरुखाण आजे , ए रीते पञ्चख्खाणने स्मरणमां राखवं, ते पायुं कहीये.. .. त्रीजु शोनित एटले शोन्नाव्यु, ते आहारादिक लाव्या होश्ये ते प्रथम गुर्वादिकने निमंत्री आपीने पली शेष रह्यु होय जे नोजन तेने पोते लेवाथकी एटले पच्चख्खाण कीg डे ते पूरण थया पडी ते वस्तु लावी पहेला गुरुने यापी पठी पोते वावरे ते पच्चरकाण शोनाव्युं कहीये. चोथु समधिककाल ते पचरुखाणनो काल पूर्ण थया पडी पण थोमो अधिक काल लगे पमखीने || सबुर करीने पली पञ्चख्खाण पारे, तेने पच्चख्खाण तिरित एटले तीर्यु कहीये. पांच, नोजनना समयने विषे नोजननी वेलाये संना जे फलाणु अमुक पञ्चरकाण इतुं, ते आज महारुं पूर्ण yamaapamaanasameeraanpowseDamwasna 15 For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Genuism तु-वली VasyamantrawasavaranteerNa/HTRAI/Aa/GOTHARAJ थयुं बे. हवे अशन को? आरोगुं? निस्तारूं? इत्यादिक विनय नाषा साचवीने जमवं, तेने पच्चख्खाण कीयु कहीये // 45 // इअ-ए सदहणा-सद्दहणा अणुभासण-अनुभाषण शुद्धि पडिअरि-आयु अहवा-अथवा जाणण-जाणवाप' अणुपालण-अनुपालणाशुद्धि भावमुद्धत्ति-भावशुद्धि छे आराहियं-आराध्यु छ मुदि-छ शुद्धि विणय-विनय शुद्धि एम जाणवु इअ पडिअरिअं आरा-हियं तु अहवा छ सुद्धि सद्दहणा॥ जाणण विणयणु भासण-अणुपालण भाव सुद्धत्ति॥४६॥दारण ब्दार्थ-उपर कहेला सर्व प्रकारे आचर्यु तेने आराध्यु कहेवाय अथवा पचरूखाणनी छ शुद्धि छे ते लीधा प्रमाणे करवू, जाणनी पासे करवू, गुरुनो विनय करवो, गुरु बोले तेम मनमां बोलj, कष्ट पडे तो पण भागवू नहि, शंकादि दोप रहित रहेg, ए छ विशुद्धि जाणवी. // 46 // a naveDomasasoredoaadioups/pop/DD inin Education international For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० VandavuVasavaDAID/DadaBasuss/Basudies .. विस्तारार्थः-बहु ए सर्व प्रकारे करी प्रतिचारतं एटले याचरयुं जे पच्चख्खाण एटले ए सर्व प्रकारे संपूर्ण निश्राये पमामयं निराशंसपणे श्री जिनाझा पालन पूर्वक संयमयात्रा निर्वाहक षट्कारण साधनपूर्वक अप्रमादपणे महोटा कर्मदयने कारणे थयुं तेने बाराधितं एटले आरायु कहिये. अथवा प्रकारांतरे करी वली पण पच्चरकाणनी शुद्धि प्रकारांतरे वीजी ले ते कहे बे. प्रथम सम्यग्दर्शनी श्रद्धावंतना मुखथी पच्चख्खाण करवू, अने निःशंकता आचारयुक्त शुद्ध सद्दहणा पूर्वक करवू, एटले करेला पञ्चख्खाण उपर शुद्ध नाव होय ते सदहणा शुद्धि जाणवी. बीजी पच्चख्खाणने ऽव्य, क्षेत्र, काल अने नावथी जाणीने तथा मूल उत्तरगुणे नेद नंगादिके जाणीने वली जाणनी पासे पच्चख्खाण करे, ते जाणवापणुं ए बीजो अधिकार शुद्ध जाणवो. रोजी सुझानादिक आचारसंयुक्त अतिचार प्रविधि रहित गुरुनी पासे वांदणां देवां प्रमुख विनय साचवीने पच्चख्खाण करवं, ते विनयशुद्धि जाणवी. चोथी गुर्वादिक कहेता होय ते प्रत्ये थागारादिकनुं पोते नाखवं, एटले गुरु पच्चख्खाण करावे, अने पाउलथो पोते श्रागार VasavamvalsMVavitwaivetaavatkirtwws/etsmeARVAtwitteeMBA // 16 // www .DID For Personal Private Use Only in Education Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Sasau0/detavanepanasaitasangaBANE उच्चरे, ते अनुन्नाषण शुकि जाणवी. पांचमी निराशंसपणे रूमी रीते पाले, जो विषम जय कष्ट | आवी उपजे तो पण दृढ रहे, परंतु पञ्चख्खाण नंग न करे, पच्चख्खाणथी चूके नहीं, ते | अनुपालणा शुद्धि जाणवी. बही पूर्वोक्त सर्वप्रकारथी निऊँरारूप इहलोक परलोकनी वांगरहितपणे आशंकादि दोषे करी रहित ते नावशुद्धि . इति एटले एम जाणवू. ए शुद्धि पण समस्त सर्वे पच्चख्खाणोने विषे जाणवी. एम नंगादि विशुद्धिना विस्तारनां बीजक ग्रंथांतरथी | जाणवां. एटले ए आठमुं न शुद्धिनुं हार थयु // उत्तर बोल अट्ठाशी थया. // 46 // हवे पच्चख्खापर्नु फल बे प्रकारे थाय, तेनुं नवमुं हार कहे जे. पञ्चख्खाणस्स फलं-पच्चख्खा- परलोके | तु-वली . दामनगमाइ-दामनकादि गर्नु फल होइ-होय इहलोए-आ लोक आश्री परलोए-परलोकने विषे इहपरलोएय-इह लोक तथा | दुविहं-बे प्रकारनु | धम्मिल्लाइ-धम्मिलादिकनो / Steve Nyerere Jain Education international For Personal & Private Use Only . Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पितभा // 161 Potavavengerseasetore/en/item/eeWAAMR/ Acatiavrapali पच्चख्खाणस्स फलं, इह परलोए य होइ दुविहं तु // इहलोए धम्मिल्लाई, दामनगमाइ परलोए॥४७॥दारए शब्दार्थ-पच्चख्खाणर्नु फल आ लोकमां धम्मिलकुमारादिना अने परलोकमां दामनकांदिकना दृष्टांतथी जाणवू.४७ विस्तारार्थः-पच्चख्खाणर्नु फल ते श्ह लोक तथा परलोक आश्री बे प्रकारर्नु वली होय, | / तेमां कोइएक प्राणीने इहलोके एज नवमां तुरत फल थाय, अने कोइएकने परलोके एटले | परनवे फल थाय, तिहां था लोकाश्रयी तो धम्मिलादिकनो दृष्टांत वसुदेवहिंमीग्रंथथी जाणवो, | एटले धम्मिझे उत्तरगुण पच्चख्खाण चारित्ररूप उ महीना पर्यंत आयंबिल प्रमुख तप कर्यु, तेथी। तेहीज नवे घणी लब्धि उपनी, शरीरना मल मूत्र सर्व औषधरूप थयां, राजसंपदा नोगवी मोक्षपदवी पाम्यो, अने परलोकने विषे एटले परनवमां दामन्नकादि प्रमुखना एटले दामनक - NapanaanWATNepadeanasanvaadvanRRANS // 16 For Personal Private Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a nwww bestowivateAGARAwary नामे व्यवहारीयाना चटानो दृष्टांत श्रीनावश्यक नियुकिगमन यंप्रथकी जावा. पटले पञ्चरकाण फलनु नवमं द्वार थयु, ननर बोल ने श्रया // 40 // एमां पानव श्राश्रयी पञ्चकाणना फल संबंधी धम्मिलकमागटिकनाष्टांत को , तेनी कथा संकेपर्थ। लग्बपी जोश्ये, परंतु प धम्मिन्नो रामपाइ गयो ने. नेलां एमनी संपूर्ण कथा घणा सजनोने वांश्वामां आव। गयेली , माटे ही लम्बी नयी. जे मनोने यांचवानी अनिलाघा होय तेम्मो रास वांची लवो. अने परनवे दामन्नकादिकरे फल श्रथु ले ते दामना कनो दृष्टांत संप मात्रे खर्चीये येःराजपुर नगरे एक कुलगर रहेतो हतो, तेनो जिनदास श्रावक मित्र हनो, तेनो संगतथी कोश्क दिवसे साधु पास गया, त्यां मत्स्यता मांसनो नियम लोधो, अनुक्रमे निद थयु, नेवारे घणा लोक मत्स्याहारी थके शालिकादि पुरुषे बलात्कारे उद्द समीपे आएयो, तिहां ते जालमा नाखेला मत्स्यने जाने मुकी यापे. एम ऋण दिवस सुधी बलात्कार कराव्यो. तेवार एक मत्स्यनी For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०भा० प०भा० // 162 // veraavanaaveDMDORIE/Anema/itemaa/tea | पांख त्रूटी देखी बलात्कारे तेथी निवत्यों, पड़ी अणसण ले मरण पामी राजगृह नगरे शेठनो | | पुत्र थयो, दामन्नक नाम दीg, ते आठ वर्षनो थयो तेवारे तेनुं कुल मरकोना रोगथी मरण | | पाम्यु, उछिन्न थयुं, तेवारे ते दामन्नक कोश सागरदत्त व्यवहारीने घरे दुःखित थको रह्यो. एकदा साधुनुं युगल निक्षाने अर्थे ते व्यवहारीने घेर आव्युं, तिहां ते बालकने देखीने परस्पर | साधू वोल्या जे ए बालक ए घरनो स्वामी थशे, ते प्रचन्नप्रवृत्ति घरना अधीशे जाणी तेवारे श्रम र्षपणे करी ते बालकने मारवा नणी अंत्यजने आप्यो, तेणे अनिझान देखामवा निमित्ते तेनी | टचली अंगुली छेदी परं तेने नीविषय नय देखामी परहो काढयो, पडी ते बालक अनुक्रमे नागे थको ते शेग्नुं जिहां गोकुल डे, ते ग्रामे आव्यो, तिहां ते गोकुलना स्वामीयतेने स्वरूपवान् तथा विनीत देखी पुत्रपणे थाप्यो, यौवन पाम्यो. पठी अनुक्रमे केटलाएक वर्षांतरे तिहां सागर दत्त शेठ श्राव्यो, तेणे तेने देखीने उलख्यो, ते वारे कोई कार्यन निमित्त करी लेख लखीने आ प्यो, तेमां शेवे पोताना पुत्रने लख्युं जे एने विष थापजो. एवो लेख थापी पोताने नगरे BED/sumeetaudasetAMDARDARAtia/sup/ee/sites // 16 times For Personal Private Use Only zain Education intermunionul Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BARDawa VaveDEVAAMRtosapanaaVARIODastavatus/ON मोकल्यो, ते श्रांत थयो थको उद्यानमांहे कामदेवना प्रासादे आवी सूतो, तिहां वरार्थिनी एवी शेउनी पुत्री कामदेव पूजवा आवी, तिहां तेणे तेने सूतो देखी कागलमा पोताना पिताना श्रकर देखी कागल वांच्यो, तेमां विष देवानुं लख्युं जोड्ने पोतानुं नाम विषा ने तेथी तेनी श्छक थइ मनमां विचार्यु जे महारा पिताये सुंदर स्वरूपवान् जाणी वर मोकल्यो , पण विष देजो एवं लख्यु डे ते महारा पिता कागल लखतां जुली गया ले. विषाने स्थानके विष लखा गयुं बे, अने कामदेवे पण महारा उपर प्रसन्न थश्ने ए वर मुजने आप्यो, माटे कागलमां विष लख्यु हतुं, तिहां विषा देजो. एम कन्याये अंजन शलाकाये लखीने पाबो लेख तेने ठेकाणे मूकी दीधो. अनुक्रमे ते घेर आव्यो, तिहां तरत लग्न लेकन्या परणावीने जामाता कीधो. एवी वात सांजलीने शेठ घरे व्यो. क्रोधायमान थको कहेवा लाग्यो जे मातृपजन निमित्ते पाणि ग्रहण मांगलिक वधाववा नणी जमाश्ने मोकलो, अने शेने मारवा सारु अंत्यजने संकेत कराव्यो हतो. हवे ते मातृपूजन निमित्ते जाय एटलामां विकालवेला जाणी नवपरणीत हतो, माटे iBE/AIDAO/AREIViaesavata Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० VERMAmeenawRAMMERasamast eeutenawaRDAN शेग्नो पुत्र कहेवा लाग्यो के तमारीवती हुँ मातृपूजन करवा जाउंबु, एम कही ते गयो, एटलामां वच्चे रस्तामां अंत्यजे तेनो संकेत जाणी ते शेग्ना पुत्रने जमाइ समजी मारी नांख्यो. नवितव्यताथी बलवत्तर कोश् नथी. पड़ी ते पुत्रमरणर्नु वृत्तांत सांजलीने हृदयस्फोट थ शेठ पण मरण पाम्यो. अनुक्रमे घरनो स्वामी दामन्नक थयो. ऋषिनाषित वचन अन्यथा न थाय. - अनुक्रमे एकदा पाबले पहोरे पाहरी देतो हतो तेणे एक मंगल पाठक गाथा कही. तद्यथा। अणुपुंखमावहंतावि, अन्नबा तस्स बहुगुणा हुँति // सुह पुरककम्म फुतो, जस्स कयंतो वह परकं // 1 // ए गाथानो अर्थ सांजली एक लदनुं दान दीg, एम त्रण वार गाथा सांजली त्रण लद दान दीधुं. राजाये ते वात सनिलीने पोतानी पासे तेमाव्यो. पली सर्व वीतक वात राजा आगल कही, राजा हर्ष पाम्यो थको तेने नगरशेठनी पदवीये स्थाप्यो. एकदा गुरु आव्या सांनली वांदवा गयो, तिहां धर्मदेशना सांजली अने पुरातन नव मत्स्य मांस पच्चख्खाणादिक सर्व सांनयु, बोधिलान पाम्यो, धर्मानुष्ठान साचवी देवलोके गयो. तिहांथी महाविदेहमा सुकु. DaourangapancDonadeaans/name/0/ // 16 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PENEDAAGDAMVAward लमा उपजशे, तिहां बोधिलान पामी चारित्र लही केवलझान पामी परंपराये मोक्षसुख पामशे, अने केटलाएक तेहोज नवे सिद्धि पामे. ए बे प्रकारे फलनुं नवमुं हार थयु.॥ एटले सर्व मुलगुण प्रत्याख्यान सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान तथा अनिग्रहादिक देश उत्तरगुण पण होय, अने श्रावकने देश मूलगुण प्रत्याख्यान ते अणुव्रत तथा देश उत्तर गुण प्रत्याख्यान ते गुणव्रत अने शिदावत जाणवां. ते वली बे वे नेदे. एक श्वर ते अल्पकालि अनागतादि पच्चख्खाण मूल उत्तर गुण पच्चख्खाण अने देश उत्तरगुण पच्चख्खाण ते शिक्षावतादि तथा देशे मूलगुण पच्चख्खाण अने सर्वेथी उत्तरगुण पच्चख्खाण अने मूलगुण क्रियारूपे एबुं पच्चख्खाण धम्मिवादिकने जाणवु. इत्यादिक पच्चख्खापना नंग विकल्प घणा , ते गुरुना विनयथी जाणीये, माटे यथागृहीत नंगे पच्चख्खाण आराधवां, तेनुं गमन संपूर्णधाराये कदे बे. // 47 // space/Rasayadeepasstoweeteranaantea /MOVoto b uvads/ meani Su For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०भा० प०भा० // 16 हवे ग्रंथ समाप्ति अर्थे गाथा कहे जे. पञ्चख्खाणं-पच्चख्खाण ते / भावेण-भाव सहित पचा-पाम्या इणं-ए जिणवर-जिनेश्वर अणंतजीवा-अनंतजीद सेविऊण-सेवीने | उठिं-कई छ / N 1 सासय मुख्ख-शाश्वता सुख अणाबाई-अव्यावाध,निराबाध - ONDEN पञ्चख्खाणमिणं से-विऊण भावेण जिणवरुद्दिष्टुं // पत्ता अणंत जीवा, सासयसुख्खं अणाबाहं // 48 // / शब्दार्थ-श्री जिनेश्वरे उपदेशेला आ पच्चख्खाणने भावथी सेवीने अनंता जीवो निराबाध एवा शाश्वता मुखने पाम्या छे. // 48 // विस्तारार्थः-पच्चख्खाण ते ए यथोक्त कथु ते प्रत्ये नावे करीने एटले नावसहित, श्रद्धाये करी निःशकित सम्यग्दर्शन सहित जे रोते जिनेश्वर नगवाने ज्ञान क्रिया सहित उन्नयनय / in Education national For Personal & Private Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RATRVARDA - सम्मत का डे, प्रकाश्यु ले ते प्रकारे एवा गुणधारणरूप पच्चख्खाणने सेवीने, यादरीने, पालीने त्रिकालापेक्षाये अनंत जीव नव्यप्राणी ते शाश्वतां सुख अनाबाध अव्याबाध निराबाध, एटले नथी कोई बाधा जिहां एq जे मोक्षस्थानक ते प्रत्ये पाम्या, पामे , अने पामशे // 4 // // इति प्रत्याख्याननाष्यं संपूर्णम् // - VAARRAIANDANANJAIANDAIADEASTRATANDARVAV // इति नाप्यत्रयं वालावबोधसहितं समाप्तम् // INDONDA inin Education international For Personal & Private Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प०भा० पलभ // 2657 mavasaayaNavanavamavasareile/e/Saamaan आ पुस्तक प्रसिद्ध करवामां गुरूणीजी महाराज श्री श्री श्री सरूपश्रीजी तथा गुरूणीजी साहेब श्री शणगारश्रीजोनी शिष्या साधवीजी महाराज श्री जिनश्रीजी तथा कमलश्रीजीना उपदेशथी मास्तर हवीशंग फूलचंद हस्तक नीचे लखेला मानवंता नाश्यो तथा बेनो तरफथी नीचे लखेली मदद मली ले ते मोटा उपकार साथे स्वीकारीए बीए. रुपीआ. सहाय्यकोनां नाम / 10 शेठ. केशुरामजी सीतारामजी हीमतमल मु. शीवगंज | 15 बाइ हस्तु शा. माणेकचंदजी कृपाजी मु. अंकलेश्वर 15. शेठ, खुशालचंदजी भूवुतमलजी मु. देलदर / 10 शा. जागाजो डाह्याजी हा. बाइ रुपा. मु. खंजेद. 50 बाइ वनीवाइ मु. धणीवाळा. |280 मधेथी 270 मळ्या छे. . 25 बाइ सोनीवाइ शा. परतापजीनी विधवा. मनोवी. | 75 साधवीजी उत्तमश्रीजीनीशिष्या निधानश्रीजीना उप२० शा. कीश्नाजी जोधाजी मु. सुरत. रु.३४५ देशथी पाथावाडावाळा देषराज आणंदजी तरफथी. meanevaadeeaaaaaaaaaaaaaaaaaaa/POSED / 165 // For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org