________________ एक श्राचार्यों कहे डे के अलगाम्या होय एटले ललाट देशथी पुर राख्या होय. इति एटले ए। प्रकारे मुक्ताशुक्ति नामे मुडा कहीये. एमां अंगुलिनां बिछ विना जेम मोतीना बीपनो जोग खेलो होय, तेवा थाकारें हाथ राखवा, ए मुजार्नु ए बक्षण // 17 // हवे ए त्रण मुसा मांहेली कश् मुमायें कर क्रिया करवी. ते कहे बे. | पंचंगो-पंचांगे होइ-होय / वंदण-वांदणा प णिहाणं-प्रणिधान पणिवाओ-मणिपात जोग मुद्दाह-योगमुद्राये जिणमुद्दाए-जिन मुद्राये मुत्तमुत्तीए-मुक्ताशुक्तिमुद्राए // ययपाढो-स्तवन पाठ जिया एवाय Dow/D/EREGDragoaaspesaasBazaaran Sapanaaneous/app/enomwwwANDomawravasanmaaNE पंचंगो पणिवाओ, थयपाढो होइ जोगमुहाए॥ वंदण जिणमुदाए, पणिहाणं मुत्तसुत्तीए // 18 // शब्दार्थ-जोगमुद्राये करीने पंचांग मणिपात अने स्तवपाठ थायछे जिनमुद्राये वंदन अने मुक्ताशुक्ति मुद्राये प्रगि. | धान यायछे. // 18 // // Inin Education internationa For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org