________________ चै०भा० / s ava/aANDAanevaanges/mad/es/potosa विस्तारार्थः-एक श्लामि खमासमणनो पाठ तेने पंचांग प्रणिपात कहीये. बीजो स्तवपाउ |||| ते श्रीजिनेश्वरना गुणनी स्तुति ते स्तवनादिनो पाठ करवो ते योगमुखायें करीने होय, तथा वां- || | दणा देवां अने कामस्सग्ग जे अरिहंतचेश्याणं इत्यादि सर्व जिनमुखायें करीने थाय, तथा जा- ||3|| | वंति चेश्याई, जावंत केविसाहु अने जयवीयराय ए त्रणे प्रणिधानसंझामां आवे. पण श्हां ते | | संप्रदायगत एकज जयवीयरायने कहीयें वैयें, ते मुक्ताशुक्ति मुखायें कहीयें // 10 // शहां श्रीसं| घाचार नाष्यमध्ये मुक्ताशुक्ति मुखाये स्त्रीने स्तनादिक अवयवो प्रगट देखाय तेम न थq जो-|| | श्ये, एवा हेतु माटे स्त्रीने उंचा ललाटदेशे हाथ लगामवा कह्या नथी. ए नवमुं मुांत्रिक कद्यु॥ | हवे दशमा प्रणिधानत्रिकनुं स्वरूप कहे . पणिहाण-प्रणिधान , . . पत्थणासरुव-मार्थना स्वरूप | काय-कायार्नु तियत्यो-त्रिकनो अर्थ तिगं-त्रिक एगत्तं-एकाग्र उ-बळी सेस-बाकी मुणिवंदण-मुनिवंदन वय-वचननुं पयडुत्ति-प्रगट छे er der de चेइय-चैत्य वा-अथवा मण-मनन winter in Education International For Personal & Private Use Only