________________ ०भा० // 4 // DARGAOGERTAITRVATARIANDRODrametootnavisaavatsANAND धारण नक्तिरूप जाणवी तथा त्रीजी स्तुति ते ज्ञाननी एटले श्रुत सिद्धांत प्रवचननी जाणवी. तथा श्री जिनशासनना रखवाला वैयावृत्त्यना करनार एवा सम्यग्दृष्टि देवताउनी वली उपयोग मनःस्मरणने अर्थं चोथी स्तुति जाणवी // 55 // ए चार शुश्र्नु शोलमुं द्वार का // उत्तर बोल 2000 थया // पाव-पाप | वंदणवत्तिआइ-वंदण वत्तियादि पवयणसुर-प्रवचनना अधि-| उस्सग्गो-काउस्सग्ग। खवणथ्य-खपाववाने अर्थे / छ-छ टायक देवता इरिआई-इरियावहि निमित्ता-निमित्ते / सरणथ्र्थ-स्मरवाने अथेंनिमित्तह-निमित्त आठ पावखवणत्थ इरिआइ, वंदणवत्तिआइ छ निमित्ता॥ पवयणसुरसरणत्थं, उसग्गो इअ निमित्त // 53 // दार 17 // शब्दार्थ-पाप खपाववाने अर्थे इरियावहिया पडिक्कमवी ए प्रथम निमित्त, वंदगवत्तियादि छ निमित्त अने प्रवचमना देवताना स्मरणने अर्थे कायोत्सर्ग ए' सर्व मलीने आठ निमित्त यया. // 53 // Bantawasnainderandancer/DIVISAVARoasm ee Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg