SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ-"पापरहित अने गीतार्थोए नहि वारेली, एवी मध्यस्थ पंडित गीतार्थ पुरुषोए करेली अचरणा पण निश्चे भगवंतनी आज्ञा जाणवी." एवां वचनथी भला पुरुषो ते आचरणाने बहु माने छे. // 49 // . विस्तारार्थः-जे आचारणा अनवद्य होय एटले पापरहित होय, अने वली ते गीतार्थे अवारित होय एंटले बीजा कोश् गीतार्थ पुरुषे तेने वारी नहीं होय एवा मध्यस्थ राग केष रहित अशठ पंमित, गीतार्थ पुरुषो तेणे जे आचरयो होय तो तेवा गीतार्थनी करेली जे थाचारणा ते पण निश्चे श्री अगवंतनी थाझाज कहीयें एवं वचन , ते माटे सुष्टु एटले जला अथवा सुविहित अशठ गीतार्थनी करेली आचरणाने पण गीतार्थ जन घणुं माने // 4 // ए बार अधिकारनुं बारमुं द्वार कह्यु, श्हां सुधी उत्तर बाल ए७७ थया // - हवे चार वांदवा योग्यतुं तैरमुं आदे देश्ने बीजां पण द्वार कहे. चउर्वदणिज-चार वांदवा / सुय-श्रुत सिद्धांत सरणिज्जा-स्मरवा योग्य / ठवण-स्थापना जिन योग्य सिद्धा-सिद्ध भगवान् | चउहजिणा-चार प्रकारना दव्य-द्रव्य जिन' जिण-जिन भाव-भावजिन मुणि-मुनिराज | सुराइ-देवता प्रमुख ... नाम-नाम जिन जिणभेएणं-जिननाभेदे करीने vdop/etsavtarinantarawatacarnata/AAVatanavtatesma For Personal & Private Use Only
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy