________________ ०भा० // 45 // VANDAmusemaanaaaaaaaa-MEANINDAVARINA वना अंतने विषे जे पवितः एटले कह्यो डे अर्थात् पूर्वाचार्योयें शक्रस्तवना अंतमा स्थापन करेलो , ते ऽव्य अरिहंत वांदवाना अवसरें एटले नाव अरिहंत वंदनानंतर अव्य अरिहंत वं. दनानुं अनुक्रमें प्राप्तपणुं बे, माटें ए आद्य अधिकारमा पण नवमी संपदाने विषे कांश्क नण वाथकी तेनुं विस्तारार्थपणुं ने तेम प्रगटार्थो एटले प्रगटार्थ जाणवो माटे ए पण श्रुतमय जाणवा. श्रा प्रकारें नियुक्ति अने चूर्णीनां वचन ते प्रमाण न , जे माटें कयु डे // 4 // असढाइन-पंडित पुरुषोए आ- अबारियं-नहि वारेली / आयरणावि-आचरणापण / इतिवयणी-एq वचन छे अणवजं-पाप रहित [चरेलु इति-एवा हु-निश्चे सु-भला गीअथ्य-गोतार्थ मज्झथ्या-मध्यस्थ आण-आज्ञा बहुमन्नति-घणुं माने असढाइन्नणवज्झं, गीअत्थ अवारिअंति मज्झत्था॥ आयरणावि हु आण, त्ति वियणओ सु बहु मन्नंति॥४९॥ autammePDABARDIBADDCATM/ A8088000 // 45 For Personal Private Use Only