________________ or s शु०भा० गु०भा०||8|| पहेलां चलु करे अथवा हायवाणी लीये तो श्राशातना थाय. अगीयारमी उच्चारादिक बहि- ॥१९॥र्दिशी गुर्वा दिक साथे आव्या पडी गमणागमणाथी जो गुरूथकी प्रथम बालोये, तो आशातना | थाय, बारमी गुर्वादिक वमेरा तथा रत्नाधिक जे होय ते रात्रिये बोलावे जे कोण सूतो ? कोण जागे ? एम वचन सांजलतो जागतो थको पण अण सांजलतानी पेरे पालो प्रत्युत्तर नहीं आपे तो आशातना थाय, तेरमी गुरू श्रादिकने आलावा वोलाववा योग्य एवा को श्रावकादिक आव्या होय अथवा श्रावेला ने तेने आवर्जवा माटे गुरु बोलाव्यानी पूर्वेज पोते बोलावे तो आशातना थाय, वली चौदमी अशन पान खादिम स्वादिम ए चारे थाहार रूप जे निका आणी होय ते प्रथम को बोजा शिष्यादिक आगल थालोश्ने पनी गुरू श्रागले आलोचे तो थाशातना थाय // 35 // तह-तेमज निमंतण-निमंत्रण | आयणेण-सरस आहार पोते | तहा-तेमज उपदंस-देखा खड़-खबरावे जमे | अपडिसुणणे-अप्रतिश्रवणे DAANDARWADIO/amasomaorse/cao/ N VAIReverestraitreena-00-70G/resses actase/aMustan JainEducation.im For Personal Private Use Only www.sanelibrary.org