________________ Sapweredavetitivistorivowwsavitabaseenawal 11 गमणागमण पहेलं आलोवे, 12 बोलाव्या छतां न बोले, 13 कोइने गुरुनी पहेला बोलावे, 24 गुरु छ ना बीजा | पासे भिक्षादि आहार आलोवे. // 35 // विस्तारार्थः-प्रथम गुरुने बागल चालतां शिष्यने विनयनंगादिक लागे माटे ए अकारणे आशातना थाय परंतु जो मार्गादिकनी विषमता होय अथवा गुरुने मार्ग देखावा माटे जो गुरुथी आगल चालवू पमे तो ते अकारणमां गणाय नही. बोजी गुरुने पमखे बेहु पासे गमन करे गुरुनी बराबर चाले तो श्राशातना थाय, त्रीजी एमज गुरुने आसन्ने एटले अमकतो गंता एटले चाले पबवामे दूकमो चाले तो श्वास, बींक, श्लेष्म, उध्रसादि दोष रूप आशातना थाय, एम ए त्रण आशातना जेटले नूमिन्नागे गुरुनी साथे चालतां थकां थाय, तेटलेज नूमिनागे गुरुनी पासे उन्ना रदेवाथकी पण पूर्वोक्त त्रण आशातना थाय. एम त्रण स्थानके गुरुनी पासे बेसता थकां पण पूर्वोक्त त्रण आशातना थाय. एवं नव थ. दशमी आचमने एटले गुरूनी साथे जच्चार नमिये गयां थकां शिष्य जो याचार्यथकी पहेला आचमन लोये अथवा गुरूनी RAND/MaavatparanMeGODOGo/ UtAGDMame/te Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org