________________ गु०भा० गुम 74 // COMMetroienominatom/itosicJAISAPatrisatasaputveis | बेनेदें जाणवो. तिहां जे प्राणातिपातादिक पांच आश्रवनो सेवनार, द्धिगारव; रसगारव श्रने शातागारव पत्रण गारवें करी सहित, स्त्रीगृहादिक सेवनने विषेप्रसक्त, अपध्यानशील, परगुणमत्सरी, इत्यादि गुण युक्त ते संक्लिष्ट चित्तसंसक्तो जाणवो. तथा पोताना आत्माने जेबारे जेवो प्रसंग मले ते वारे तेवो थाय एटले प्रियधर्मी साधु मले ते वारे साधुना आचार पाले अने अप्रियधी पासबो मले तेवारे तेवो थाय, लिंबूना पाणीनी पेरे तद्रूप थ जाय ते असंक्लिष्ट चित्तसंसक्तो जाणवो. इति // पांचमो यथावंदो ते यथा रुचियें प्रवत्तें, यथा तथा लवे, उत्सूत्र नाषे, पोताना स्वार्थना नपदेश आपे, स्वमति विकल्पित करे, परजातिने विपे प्रवर्ते, पारकी तांत करे, उपकारी धर्माचार्यादिकनी हेलना करे, आचार्य उपाध्यायना अवर्णवाद बोले, जेनाथी ज्ञानादिक पामे तेवा बहुश्रुतनी निंदा करे, गारव प्रतिबंधि होय, कारण विना विगय खाय, श्यादिक अनेक नेदे यथाउँदो जाणवो. ए पांचेनां विशेष लक्षण श्रीप्रवचनसारोद्धारवृत्ति तथा आवश्यकवृत्ति तथा - Jan Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org