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________________ VAR/SIMRAVAARAMBINEDOS/ / त्रोजो चारित्रकुशील ते ज्योतिष, निमित्त, अदरकर्म, यंत्र, मंत्र, नूत कर्म, बलिपिक, उ. ऊणी, दानादि, सोनाग्य दो ग्यकारी, जमी, मूली, विद्यारोहणादिक, पादलेप, आंख अंजन, चूर्ण, स्वप्नविद्या, चिपुटीदान प्रमुख, अतीत अनागत वर्तमान निमित्तकयन, पोतानी जाति कुल विज्ञानादिक स्वार्थकार्य प्रकाश करे, नख, केश, शरीर, शोना करे, वस्त्र पात्र मादिक बहु | मूल्यवाला सुंदर सुकोमलनी वांबा करे, शिष्यादिक परिग्रहनी विशेष तीवता धरे, निष्कारण | अपवाद पद सदूषण मार्ग प्रकाशे, तया सेवे, श्यादिक लक्षणे चारित्रकुशील जाणवो. ' चोथो संसक्त, ते पासबा अथवा संविझादिक जन जेवानी साथे मले त्यां तेवो थई प्रवर्ते, अथवा मूलोत्तर गुण दोष सर्व एका प्रवर्त्तावे, जेम गायनी आगल सुंमलो मूक्यो होय तेमां सरस, नीरस, कपाशिया, खोल, घृत, मुग्धादिक एक मेब्यु होय तो ते सर्वने एकगंज खाई। जाय पण तेनुं विवेचन न करे. तेम ए पण गुण अने दोष सर्वने एका प्रवर्तीवी देखामे तेने संसक्तो कहीये, ते एक संक्लिष्टचित संसक्तो अने वीजो असंक्लिष्ट चित्तसंसक्तो एवा ANVEERIEVARJATARIRAMPS/AAGJaaaaa 0/0 / B/STANTRVASNASE a aaatanAIPUR For Personal Private Lise Only
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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