________________ प०भा० // 141 घय दहिआ उद्दिविणा, तिलसरिसवअयसिलट्टतिल्लचऊ॥ दवगुड पिंड गुडादो, पक्कन्नं तिल्ल घय तलियं // 31 // दारं // 5 // शब्दार्थ-घी अने दहिं उंटडी विना बाकीना चार भेदे जाणवू. तलगें, सरसवर्नु, अलसीन अने लाटर्नु ए चार जातनु तेल विगइ छे. ढीलो अने कठीण ए बे जातनो गोल, अने पकान ते तेलमा तलेलं अने घीमां तलेलं एम के भेदे जाणवू. // 31 // विस्तारार्थः-प्रयम घृत जाणवू, बीजी दधि जाणवू, ए बे विगश्ना एक उंटमीना फूध विना बाकी चार चार नेद जाणवा. केम के उंटमोनुं दूध जमाय नहीं, माटे ते विना बाकी चार; एक गायना दहींनुं घी, बीजु नेंसना दहींनुं घी त्रीजु बालीना दहींनुं घी, अने चोथु गामरना दहींगें घी, ए चार नेद घृतना जाणवा, तथा दहींना पण एज चार नेद. एक गायना दूधनुं दहीं, * ए धान्य खसखस जेवू याय छे.. WAmarnamaARMYSAVNMENaamsavamantava का॥१४॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only