________________ विस्तारार्थः-पांचमो उग्धाम पोरिसी एवं साधुनुं वचन एटले बहुपमिपुरणा पोरिति एवं / सानलीने जो अपूर्ण पञ्चकाणे जमे तो पण पोरिसी नंग न थाय, पठी कोश्कना कहेवा उपरथी जाणवामां आवे के हजी लगण पोरिसीनो काल पूर्ण थयो नथी, तेबारे पूर्वोक्त रीते अर्द्धजुक्त || रहे, अने पोरिसीनो काल पूर्ण थया पड़ी जमे ए साहुवयणेणं नामे आगार जाणवो बहो शरीर तेनुं स्वस्थता जे निरावाध पणुं तेने समाधि एम कहीये, एटला माटे ए सव| समाहिवत्तियागारेणं कहेवाय, श्हां तीवशूलादिक रोग नपने थके, आर्त रौद्रनी सर्वथा निराशे जे शरीरनी स्वस्थता ते सर्व समाधि कहीये. तत्प्रत्ययिक जे कारण ते सर्वसमाधिवर्तिताकार कहीये. ते समाधिने निमित्ते जे औषध पथ्यादिकनी प्रत्तिने विषे अपर्ण प्रत्याख्याने जमतां पण पञ्चख्खाण नंग थाय नहीं. | सातमो संघादिकनुं कोई कार्य उपने थके वमेरानी आज्ञा पाले, तेने महत्तरागार कहीये ते आवी रीते के जे पञ्चख्खाण कोधं . तेनी अनुपालनाथकी पण जो निर्करानी अपेक्षाये वि Bananarayanseasevana/ARamera/OEMBERea SOORVARMANDARDanceanVIDMAAVARADIATMAVARTA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org