________________ /05/5a प०भा० प०भा० 1134 // PostamVIDIOMARVARANGame/evitricatename चारोये तो महोटुं निर्जरा लान हेतु कार्य बे, अने अन्य पुरुषांतरे ते कार्य असाध्य बे, बीजा को पुरुषथी थाय तेम नथी, एवं को संघर्नु तथा आदि शब्द थकी चैत्य ग्लानादिकना कार्य प्रयोजन , तेहिज आगार ते महत्तरागार कहीये.तिहां अपूर्ण काले जमतां पच्चरकाण नंगन थाय. बाग्मुं गृहस्थनी नजर पके, तथा सर्पबंदिवानादिकनी नजर पमे, तेने सागारियागारेणं कहिये. तिहां श्रागार एटले घर तेणे करी सहित , जे तेने सागारि कहीये, तेनी नजरे देखतां साधुने आहार करवो कल्पे नहीं. केम के एथकी प्रवचनोपघातादिक बहु दोषनो संनव थाय, माटे साधुने जमतां थकां जो सागारी आवी पमे, अने ते जो चल होय, एटले तरत जवावालो होय तो क्षणेक बेसी रहे, अने तेने स्थिर रहेतो जाणे तो स्वाध्यायादिकना नंगना नयथकी अन्यत्र जश्ने तेहिज आसने जमे तो पच्चख्खाण जंग न थाय. ए जेम गृहस्थनेसागारी कहीये तेमज जेना देखतां अन्न खाश्ये ते पचे नहीं, तेने पण सागारिक कहीये तथा उपलक्षणे श्रादि शब्दथकी सर्प, अग्नि, प्रदीप, पाणीनी रेल श्रावे, तथा गृहपातादिक एटले घर परतुं होय, ए amayanavaratraVEGEMINDIANSVAIANSING // 1340 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org