________________ Na चउहाहारं तु नमो, रत्तिंपि मुणिण सेसतिहचउहा // निसिपोरिसि पुरिमे-गा सणाइ सट्ठाण दुतिचउहा॥१२॥ /DON शब्दार्थ-नोकारसीन अने रात्रीचें पच्चख्खाण मुनिने चउविहारुंज होय. तथा बाकीनां पोरसी आदि तिविहारां तथा चउविहारा होय. वली श्रावकने रात्रीनु, पोरसीनु, पुरिमट्टर्नु अने एकासणादिकर्नु पच्चख्खाण दुविहार, विहार अने | चउविहारे होय. // 12 // विस्तारार्थः-नोकारसीनु पञ्चख्खाण तथा रात्रिनु पञ्चख्खाण पण मुनिने, यतिने वली नि| यमा चविहारज होय अने शेष पोरिसी श्रादिक पञ्चख्खाए ते मुनिने तिविहारा तथा चनवि हारा यथासंनवे होय. हवे श्रावक श्राश्रयी कहे . रात्रिनुं पञ्चरकाण, पोरिसीनुं पञ्चख्खाण, | पुरिमडुर्नु पञ्चख्खाण अने एकासणादिक पच्चख्खाण जे . ते श्रावकने विहार, तिविहार अने | चनविहार, ए त्रण प्रकार यथायोग्य होय, तिहां नवकारसी तो श्रावकने चनविहार पख्वखाणेज NEVNDINA detastatn NIE es Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jang