________________ प०भा० प०भा० NIVONIVG NE N PoarnsouTWEAasandsomeranpanuareADHETAVANIva विस्तारार्थः-एटलाज माटे अचित्तनोजी होय तेने पण एटले उपवासने विष श्राय- | | बिलने विषे, तथा निवि श्रादिक एटले निवि एकासणादिक तिविहार पच्चख्खाण तथा आदि-| शब्दथी सचित्त परिहारने विषे निश्चयथकी फासुक अचित्त जल ते जेम यति फासुक निर्जीव | पाणी पीये तेनीपेरे श्रावक पण फासुक पाणी पीये तेने पण एहिज आगार कहीये, परंतु ते वली तिविहार पच्चख्खाण पच्चख्खे सचित्तनोजीने पण उपवास आयंबिल, निविर्नु पच्चख्खाण तिविहारें होय ते नष्ण पाणी पीये अने एकासणादि पचख्खाणनो नियम नथी. एमां तो सुविहार, तिविहार, चनविहार यथासंभवे होय // 11 // चउहाहारं-चउविहारोज़ / मुणीण-मुनिने निसि-रात्रिनुं पञ्चख्खाण | सट्टाण-श्रावकने अर्थे तु-वली सेस-शेष पोरिसि-पोरिसिनु दुतिचउहा-दुविहारे, तिविनमो-नोकारसीनुं तिहचउहा-त्रिविहारा तथा / पुरिम-पुरिपट्टनु हारे, चउविहारे रतिपि-रात्रिनु पण चउविहारा एगासणाइ-एकासणादिक // 119 // DE VIVIM / Inn Education international For Personal & Private Use Only www iny ong