________________ N प० प. // 12 // होय, अने शेष पोरसी पुरिमट्ठादि पच्चस्काण तथा रात्रिनुं दिवस चरिमादि पच्चस्काण ते ऽविहार तिविहार थने चलविहारे यथायोग्य होय,. परंतु ग्रंथांतरें एटलो विशेष जे जे एकासणादि तिविहार पञ्चकाणीने रात्रे पाणहार होय अने विहार पच्चख्खाणे एकासणादिकने विषे रात्रे चनविहार होय तथा केटलाएक स्थानके श्रावकने पण पोरिसी तिविहारें बोली . अने दुविहार पच्चख्खाणे रात्रे तिविहार होय परंतु ते कारणिक जाणवू, व्यवहारे समजवू नही. इत्यादि बीजी विशेष वात ग्रंथांतरथी जाणवी, एटले चार विधिन बीजु द्वार पूर्ण थयु. उत्तर बोल चौद थया // 12 // // हवे चार प्रकारना थाहारनुं त्रीजुं द्वार कहे जे. खुइपसम-भुखने उपशमावाने एइ-आवे एवा ख्यो थको पण ज-जे खम-समर्थ देइ-आपे एगागी-एकाकी सायं-स्वाद प्रत्ये खिवइ-क्षिपति, क्षेपवे, नांखे पंकुवम--पंकोषम, कादवनी पेरे आ हारिव-आहारने विधे खुहिओवि-धुधितोपिभ. कुठे-कोठामा आहारो-आहार avasusawa/AAAAAAADODARASitemapeeleramanue 12 AV For Personal & Private Use Only www.pinelibrary.org