________________ wasase/aVIEWaseemedieAB/Re/ शब्दार्थ-अन्नत्यादि बार आगार अने एप्रमादिक चार आगार, ते चारमा 1 अग्रिनो, 2 पंचेंद्रिच्छेदन, 3 बोधि क्षोभादिक अने 4 सर्पख विगेरे जाणवा. // 55 // विस्तारार्थः-अन्नछयादि बार आगार एटले अन्नबउससिएणंथी मामीने सुहुमेहिं दिहिसंचालहिं पर्यंत बार आगार जाणवा. तेनां नाम कहे . पहेलो उँचो श्वास लेवे, बीजं नीचो श्वास लेवे, त्रीजु खांसी ऊध्रस थावे, चोथु बींक थावे, पांचमुं बगासुं श्रावे, हुं उमकार ते ऊर्ध्ववात श्रावे, सातमुं अधोवात आवे, आठमुं नमरि थावे, नवमुं वमन पित्त मूर्खा आवे, दसमुं सूक्ष्म अंगस्फुरकणथी, अगीयारमुं खलसिंघाण नामक मेल संचारथी, बारमुं दृष्टि प्रमुख संचारथी काउस्सग्ग न नांगे. तथा एवमादिक चार आगार कहे जे एक अग्निनो उपऽव उपने थके तिहांथी पूंजतो अलगो जाय अथवा दीवा प्रमुखनी उजेई थातां तथा अग्निनो स्पर्श थतो होय तेवारें काजस्सग्गमांहे कपमाथी शरीर ढांके, अथवा पंजतो अलगो जश रहे, बीजं पंचेंशियबिंदन पंचेंजि totravesaHIVasaamaanevanaVIDEnavaravasavita /PRASHAN Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.