________________ तिहां प्रथम सम्यक प्रकारे विधिये करी उचित काले एटले उचितवेलाये जे पचरकाण | प्राप्त थयुं एटले सूर्योदयथी पहेला पच्चरकाण उचितकाले जे पाम्युं, एटले जे पच्चरकाण कीधु, ते यावन्मात्र जेटला काल लगण ग्रहण कयुं, तावन्मात्र तेटला काल लगे पहोंचामव॒ तेने फरश्यु कहीये // 44 // पालिय-पायु / सोहिय-शोभाव्युं / भोयणओ-भोजन लेवा थकी किट्टिय-कीयु पुणपुण-वारंवार गुरुदत्त-गुर्वादिकने दइने तिरिअ-तीर्यु भोयणसमय-भोजनना समयने सरियं-संभायु | सेस-शेष समहियकालो-समधिक काल सरणा-संभार पालिय पुणपुणसरियं, सोहिय गुरुदत्त सेस भोयणओ // तिरिय समहिय कालो, किट्टिय भोयण समय सरणा॥४५॥ शब्दार्थ-करेला पच्चख्खाणने वारंवार संभार, ते पाल्युं कहवाय, गुरुने आप्या पछी बाकीन पोते जमवु ते शोभा sinin Education national For Personal & Private Use Only www.janeiro