________________ प०भा० ०भा० amavalavanaupadeaoarvadiaWatus/MBASIVINNI फासिय-फरश्यु तिरिय-तीयु [छ मुद्धं-छ प्रकारे शुद्ध री उचित वेलाये पालिय-पाळ्यु किट्टिय-कीत्यु पच्चख्खाणं-पच्चरूखाण... जंपत्त-जे प्राप्त थयु सोहिय-शोभाव्यु आराहिय-आराध्यु / विहिणोचियकालि-विधिए कफासिय पालिय सोहिय, तिरिय किट्टिय आराहिय छ सुद्धं // पच्चख्खाणं फासिय, विहिणोचिय कालि जंपत्तं // 44 // शब्दार्थ-फरस्यु, पाल्युं, शोभाव्यु, तीर्यु, कीयु अने आगध्यु, ए छ प्रकारे शुद्ध एवं पच्चख्खाण फल आपनाएं थाय छे. तेमा प्रयम विधि प्रमाणे योग्य काले जे पञ्चलखाण लीधुं ते फरस्युं कहेवाय. // 44 // विस्तारार्थः-एक फासित एटले पञ्चख्खाण फरश्युं, बीजुं पालित एटले पच्चरकाण पाढ्यु, त्रीजुं शोनित एटले पच्चख्खाण शोन्नाव्यु, चोथु तीर्ण एटले पच्चख्खाण तीयु, पांच, कीर्तित | एटले पच्चख्खाण कीत्यु, तुं श्राराधित एटले पच्चरकाण आराध्यु एन प्रकारे शुद्धे करी शुद्ध ए, पच्चख्खाण, फलदायक होय. हवे ए विशुदिना अर्थ कहे डे. TwittevataapaaNDARVARIANAVAKADIEAAVANDANVEME // 1583 For Personal Private Use Only