________________ SAMBANVA ०भा० गुरुभा 84 // a raswatsupatavinasanaprasai/900/mavatin वार पमिलेदणा करवी एटले मुहपत्तिने वधूटकनी पेरे ग्रहण करीने वामनुजादिक पांच स्थानके फेरववी तेवारे पन्नर पमिलेहण थाय, अने अंसुम एटले बे खंन्नानी उपर, अने बे खन्नानी अहो एटले नीचे काखमां, पिठ एटले वांसानी बाजुयें चार पमिलेहण करवी एटले बे खंना उपर अने बे काखने विषे, एमज पमिलेहण बे पगनी उपर करवी तेमांत्रण वाम पगे अने त्रण दक्षिण पगे करतां बथाय, एवी रीते सर्व मली शरीरनी पमिलेहणा पच्चीश थाय. // 1 // 5 शहां यद्यपि श्रीयावश्यकवृत्ति तथा प्रवचन सारोद्धारादिकें पमिलेहणानो विशेष विचार कह्यो नथी पण इहां परंपराथी संप्रदाय समाचारीयें स्त्रीनुं शरीर वस्त्रे आवृत होय माटे एने शरीरनी पमिलेदणा पच्चीशमांथी त्रण मस्तकनी, त्रण हृदयनी अने बे पासाना खंनानी चार, एवं दश पमिलेहणा न होय शेष पन्नर होय तथा वली साध्वीने तो उघामे माथे क्रिया करवानो व्यवहार के माटें तेने मस्तकनी त्रण पमिलेहणा होय शेष सात न होय वाकी अढार पमिलेहणा होय. . . NDARVARDAapac/BUDATE/teac/temponenep/2009/MEEWAN // 84 // Jan Education internation For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org