________________ Pa मु०भा० गु०भा० t // 68 // सीयलय ख्खुडुए वी-र कन्ह सेवगदु पालए संबे // पंचे ए दिलुता, किइकम्मे दवभावहिं॥११॥ दारं // 2 // de S शब्दार्थ-वंदनकर्म उपर शीतलाचार्यनो, चितिकर्म उपर क्षुवकाचार्यनी, कृतिकर्म उपर वीरा शालवीनो अनेकप्णनो, पूजाकर्म उपर राजाना बे सेवकनो अने विनयकर्म पर पालक तथा शांचनो दृष्टांत जाणो. आ पांच दृष्टांत कृति कर्म उपर द्रव्य अने भावी जाणवा. // 11 // द्वा. 2 विस्तारार्थः-प्रथम वंदन कर्म उपर अव्यवंदन अने नाववंदन आश्रयी शीतलाचार्यनो दृष्टांत, बीजा चितिकर्म उपर कुखकाचार्यनो दृष्टांत जाणवो. त्रीजा कृतिकर्म उपर वीरा शालवी नो अने कृष्ण महाराजनो दृष्टांत जाणवो. चोथा पूजाकर्म उपर राजाना बे सेवकोनो दृष्टांत जाणवो. पांचमा विनयकर्म उपर श्री कृष्णमहाराजना पुत्रपालक अने शाम्बनो दृष्टांत जाणवो ए पांच दृष्टांत ते कृतिकर्म एटले वांदणाने विषे अव्यन्नावें करीने जाणवा / / 11 // हवे ए पांचे itSHURAapaliDARUDASEDinanataapital/RLDolasavets 68 // PA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janebryong