________________ ARaatevecetic/ARTD/Metpawaranaar दिद्यमदिह-द्रष्टाद्रष्ट दोष / तमोअण-तन्मोचनदोष उणं-उण दोष ढदुर - ढठ्ठर दोष सिंग-श्रृंग दोष अणिदणालिद्ध-आश्लिष्ट ना उत्तरचुलिअ-उत्तरचुलिका चुडलियं-चुडलिक दोष कर-करदोष ' श्लिष्ट दोष अं-मूक दोष दोष . च- वली दिठ्मदिठं सिंगं, कर तंमोअण अणिद्धणालिद्धं // ऊणं उत्तर चूलिअ, मूअं ढढ्ढर चूडलिअं च // 25 // ____ शब्दार्थ-(२३) द्रष्टाद्रष्टदोष, (24) शृंगदोष, (25) करदोप, (26) तन्मोचनदोष, (27) आश्लिष्टानाश्लिष्टदोष, (28) ऊणदोष, (29) उत्तरचूलिकादोष, (30) मूकदोष, (31) ढळूरदोष, (32) चुडलिकदोष. // 25 // _ विस्तारार्थः-जे मुंगो रही बानो मानो वेसे तेने कोइ बीजो जाणी जाय जे आ बानो वेसी रह्यो अपरनुं वचमां अंतर बते न वांदे, एम दीवं अणदी व दीवं, कोश्ये न दी एम लाजतो थको अंधारामां वांदणां आपे, ते त्रेवीशमो दृष्टादृष्ट दोष Nayawwesapotomaavatore/asaveleaseeDesser/s/98D/ // नंता वांद नशा कोपया ani - -- ने कांग्य एटस का२१ PROIRAAND// D Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ebay.co