________________ गु०भा० BANSARAuraut/AADIMANDAai/AGRANDMAANDOLD/DDNA तो आचार्यादि पद प्रतिष्ठित मुनिने करायः // 4 // गु०मा० विस्तारार्थः-त्रीजु छादशावर्त वंदन ते वली बे वांदणां देवे करीने होय, एटले बे वांदणां देवे करी थाय, शहां बंदण शब्द वंदनवाचक जाणवो. ते पूर्वोक्त त्रण वांदणांमां यादिम एटले पहेलु फेटावंदन जे बे, ते साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकारूप चतुर्विध समस्तश्रीसंघे मली मिथो एटले माहोमांहे परस्पर तेवा तेवा अवसरने विषे करवं होय त्यारें थाय, अने बोजु जे थोनवंदन , ते निश्चें वली सुसाधु एवा दर्शनीयनेज अर्थे होय, एटले एक गबगत, बोजो अनुयोगी, त्रीजो अनियतवास), चोथो गुरुसेवी, पांचमो आयुक्त जे संयममार्गमा सावधान एवा गुणवंत यतिने ए वांदणुं देवाय, तथा चकारथी, तथा विधिविशिष्ट कार्यने विषे लिंगमात्रधारी पण जो सम्यक्त्वदर्शनवंत होय, तो ते पण बोनवंदने वंदनीय होय. तथा त्रीजुं द्वादशावर्त वंदन Ish63 // जे जे ते वली श्राचार्य, उपाध्याय, गुणवंत गीतार्थादिक एवा पदप्रतिष्ठित जे दोय तेमने निश्चे होय.॥४॥ vavm/surendraMVARD/amsteARC/Item/team/MVADAM sain Toucation international For Personal Private Use Only