________________ Aavanapdrawanawasana/ | रनुं द्वार, 5 दश विगयन द्वार, 6 त्रीस निवीयातानुं द्वार, 7 मूलगुण उत्तरगुगना भेदतुं द्वार, 8 छ शुदिनुं द्वार, 9 पचख्खाणना फलनु द्वार // 1 // विस्तारार्थः-प्रथम पञ्चरकाणना दश नेद , तेनुं द्वार कहेशे. बोजु पच्चरकाण करवाने विषे पाठ विशेषरूप चार प्रकारनो विधिले तेनुं हार कहेशे. त्रीजुं चार प्रकारना आहारना स्वरूपनुं धार कहेशे. चोथु पञ्चरकाणमां अद्विरुक्त एटले बीजी वारनां अण उच्चरयां अर्थात् | एकवार कह्यां तेनां ते फरी जुदां जुदां पच्चरकाणमां आवे, ते न लेवां एवा बावीश आगार हार कदेशे. पांचमं दश विकृति एटले दश विगयनी संख्यानं हार कदेशे. बत्रीश विकृतिगत | एटले ब मूल विगयना त्रीश निवीयाता थाय तेनी संख्यानुं द्वार कहेशे. सातमुं एक मूल गण पच्चरकाण तथा बीजं उत्तरगुण पञ्च रकाण एम बे प्रकारना नांगा पच्चरकाणना थाय, तेनुं द्वार कहेशे. आठमुं पच्चरकाणनी ब शुद्धिनुं स्वरूप निश्चेथी, कहे, तेनुं हार कहेशे. नवमुं पच्चरकाण | करयाथी इहलोक तथा परलोक मली बे ठेकाणे फल थाय तेनुं द्वार कहेशे // 1 // ए Entre/atestVARGIVacawo/tra dblesednapaalakatpatrNamah E EVANJetaMVAASANA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org