________________ ५०भा० Navavana प.भा. 128 // अन्न-अन्नत्थणाभोगेणं सह-सहस्सागारेणं पारि-पारिद्यावणियागारेणं मह-महत्तरागारेण हवे उपवासना आगार कहे . | सच-सच समाहि बत्तिया | छ-छ . गारेणं | पाणि-पाणस्सना पंच-पांच लेवाइ-लेपादिक खवणे-उपवासना | चउ-चार | चरिम-दिवस चरिमना अंमुहाइ-अंगुठसहियादिक भिग्गहि-अभिग्रहना अन्न सह पारि मह सब, पंच खवणे छ पाणिलेवाइ॥ चउ चरिमं गुट्टाइ, भिग्गहि अन्न सहमह सब्वे // 21 // u passausamvasanvaase - van/RANVENUARMADEng/navsayitivewanapampanivas शब्दार्थ-अनत्थणा, सहसा, पारिठावणिया, महत्तरा, सव्यसमाहि. ए पांच आगार उपवासमा तेमज लेवेणवा / विगेरे छ आगार पाणस्सना जाणवा. वली अन्नत्थणा, सहस्सा, महत्तरा, सव्वसमाहि. ए चार आगार दिवस चरिमना // पञ्चख्खाणमां अने अंगुष्ठ सहियादि अभिमहना पचख्खाणमा जाणवा. // 21 // विस्तारार्थः-एक अन्नबणानोगेणं, बीजो सहस्सागारेणं, त्रीजो पारिठावषियागारेणं, चोथो // 12 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org