________________ सु०भा० RNMDARuwatcURAwapsavita चोलपट्टमात्रपणे श्रमण थयो हतो तेटलाज नेला थई हाथ जोमेअथवा योनिथी बालक नीकलते जेम रचितकर संपुट होय तेम करसंपुट करया हाथ जोमेलाने ललाटे लगामे ते यथाजात कहीयें एम बे अवनत अने त्रीजु यथाजात मलीत्रण आवश्यक थयां. बार थावत्ते सूत्रानिधान गर्मित कायव्यापार विशेष जाणवां. तेमा प्रथम वांदणे व आवर्त थाय, ते श्रावो रोते:-प्रयम त्रण आवर्त तो "अहो” " कायं" “काय" ए बेबे अकरें नीपजे एटले पोताना हाथनां तला बे बंधां गुरु चरणे लगामे तथा उत्तान हाथे पोतानो ललाटदेश फरसे अने "1 अहो 2 कायं 3 काय संफासं” कहेतो मस्तक नमामे, तेवार पठी “खमणिजोथी मांमोने वश्कतो" पर्यंत यावत् करसंपुटे कहीने वली त्रण आवर्त्त त्रण त्रण अदरना कहे, तेमां एक अदर गुरुचरणे हाथ लगामतां कहे, बीजो अक्षर उत्तान हाथे वचाले विशामा रूप कहे अनेत्रीजो अदर ललाट देशे हाय लगामतां कहे, जेम "ज त्ताने" "ज वणि" " ऊंचने" एवा त्रण आवर्त त्रण त्रण अकरना कहेतो खामेमि waavawaruwaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaman E 80 amentarotamiVARGOV Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org