________________ / Wareuds or asted today दोवणयं महाजाय, आवत्ता बार चउसिर ति गुत्तं // दुपवेसिग निख्खमणं, पणवीसावसय किइकम्मे // 18 // शब्दार्थ-वेवार अवनत, एकवार यथानात, बारवार आवर्त, चारवार शिरनुं आना, त्रण गुप्ति, बेबार अवग्रहमा प्रवेश करवो अने एकवार निकलवू. ए पच्चीस आवश्यक वांदणामां होय छे. // 18 // द्वा. 9 विस्तारार्थः-बे अवनत वांदणाने विषे जाणवां एटले बेवार नपरितन शरीर नाग नमाम्वो तिहां एक तो जेवारें "श्वामि खमासमणो वंदिलं जावणिजाए जिसीहियाए' एम कहीने नमे तेवारे बंदेणनी अणुजाण एटले आशा मागतो शरीरनो उपरितन नाग नमामे त्यारे गुरु बंदेण कहे. ए एक अवनत थयु, एम बीजीवार वांदणां देतां बीजो अपनत थाय. ए बे अवनत रूप बे आवश्यक थया. तथा एक यथाजात एटले जे रूपें दीक्षानो जन्म थयो हतो अर्थात् रजोहरण, मुहपत्ति avatARVatatemapeeAAVAteejartseite/AAGHVAMVE w inin Education international For Personal & Private Use Only www.alby Dig