________________ Ste/ Pouces t 940060/ODecVasanautoclarePMIDADASEAN लंबुत्तर-लंबुत्तर न-नहोय समणीण-श्रमणीने, साध्वीने| बहु-वधू थण-स्तन दोस-दोष स-सहित सहीण-श्राविकाने संजइ-संयति सिरकंप मूअ वारुणि, पेहत्ति चइज दोस उस्सग्गे // लंबूत्तर थण संजइ, नदोस समणीण सवहुसढीणं॥५७॥दारं५० ___ शब्दार्थ-शिरकंप, मूक, मही। अने प्रेष्य ए ओगणीस दोष कायोत्सर्गमा त्यनी देवा; पण लंबूत्तर, स्तन अने संयति ए त्रण दोष साध्वीने न होय. वली वधु दोष सहित उपर कहेला त्रग दोष अर्थात् चारे दोष श्राविकाने न होय. विस्तारार्थः-शोलमो यदावेशितनी परें माथु धूणावे, ते शिरःकंपदोष, सत्तरमो मुंगानी पेरें हू हू करे, ते मूकदोष, अढारमो आलावो गणतो थको मदिरानी पेरें बमबमाट करे, ते मदिरा है। दोष, उंगणीशमो वानरनी पेरें अरहुं परहुं जोवे, उष्ट पुट चलावे, ते प्रेष्य दोष ए प्रकारें ए ea au avbeste For Personal Private Lise Only