________________ अ०भा० प०भा० // 16 हवे ग्रंथ समाप्ति अर्थे गाथा कहे जे. पञ्चख्खाणं-पच्चख्खाण ते / भावेण-भाव सहित पचा-पाम्या इणं-ए जिणवर-जिनेश्वर अणंतजीवा-अनंतजीद सेविऊण-सेवीने | उठिं-कई छ / N 1 सासय मुख्ख-शाश्वता सुख अणाबाई-अव्यावाध,निराबाध - ONDEN पञ्चख्खाणमिणं से-विऊण भावेण जिणवरुद्दिष्टुं // पत्ता अणंत जीवा, सासयसुख्खं अणाबाहं // 48 // / शब्दार्थ-श्री जिनेश्वरे उपदेशेला आ पच्चख्खाणने भावथी सेवीने अनंता जीवो निराबाध एवा शाश्वता मुखने पाम्या छे. // 48 // विस्तारार्थः-पच्चख्खाण ते ए यथोक्त कथु ते प्रत्ये नावे करीने एटले नावसहित, श्रद्धाये करी निःशकित सम्यग्दर्शन सहित जे रोते जिनेश्वर नगवाने ज्ञान क्रिया सहित उन्नयनय / in Education national For Personal & Private Use Only