________________ मु०भा० गु.भा. तो ते न कायनो विराधक कह्यो बे. एटले पमिलेहणानुं बारमुं दार थयु. उत्तर बोल एकशो वीश थया.॥२॥ हवे चार गाथाये करी वत्रीश दोष त्यागवानुं तेरमुं हार कहे जे. दोस-दोष अपविद्ध-अपविद्ध दोष , / ढोलगइ-ढोलगति दोष / मच्छुव्वत्त-मत्स्योदर्न दोष अणाडिय-अनादृत परिपिडियं-परिपिंडित दोष | अंकुस-अंकुश दोष दोष मगपउट्ठ-मन: दुष्ट दोष थडिप्र-स्तब्ध दोष च-वली कच्छभरिंगीय-कच्छभरिंगित AGaddrdaastaina/esasarosasraeloadAMERARAME0/08 BABAPadtetram/deterruarGau/eter/newsmpAmavasy दोस अणाडिअ थड्डिअ-पविद्ध परिपिंडिअंच ढोलगई // अंकुस कच्छभरिंगिअ, मच्छुव्वत्तं मणपउटुं // 23 // २.ब्दार्थ-(१) अनादृतदोष, (2) स्तब्धदोप, (3) अपविद्धदोप, (4) परिपिंडितदोप, (5) ढोलगतिदोप, (6) अंकूशदोप, (7) कच्छभरिंगितदोष, (8) मत्स्योद्वर्तदोप, (9) मनःमदुष्टदोप. // 23 // विस्तारार्थ:-जे अनादर पणे संत्रांत थको वांदे, ते पहेलो अनाहत दोष. तथा जे जात्या Inn Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org