________________ ०भान चं०भा० // 7 // VANDAN/AANDARVADPARDADODARADVERN शब्दार्थ-घर, जिनमंदिर अने जिनपूजाना व्यापारना त्यागथी त्रण निसिहि थायछे. तेमा प्रथम जिनमंदिरना आ| गला वारणामां, गभारामां अने चैत्यवंदनने अवसरे एम त्रण निसिहि साचववी. // 8 // विस्तारार्थः-जे सावध व्यापारनो मन, वचन अने कायायें करी निषेध करवो, तेने निसिही कहीये, ते एक पोताना घरनां, बीजी जिनघर ते देरासरना, त्रीजी श्रीजिनेश्वरनी पूजानां जे व्यापार एटले ए त्रणना जे व्यापार तेने त्यागवाथकी नैषिधिकीत्रिक थाय, तेमां प्रथम निसिहि ते पोताना घर, हाट, परिवारादिक संबंधी जे सावद्य व्यापार ते सर्व निवर्ताववा माटे श्रीजिनमदिरने अग्रद्धारें कहे. एटले देरासरनां मूल बारणे दरवाजामां पेसतांज कहे, पण श्हां श्रीजिनघरने पूंजवा समारवा संबंधि तथा पूजा संबंधि सर्व व्यापार यादरे, तथा बीजी निसिही ते जिनघर संबंधी व्यापारथी निवर्त्तवा रूप देरासरनी मध्य गन्नारामां पेसतां कहे, तिहां देरासर पमथा श्राखमयानी चिंतानो तथा देरासरमा पूंजवादिकनो त्याग करीने अव्य पूजादिकनो प्रारंन करे, एम सर्व प्रकारनी प्रजा विधिसहित साचवी रह्या पनी त्रीजी मिसिहीजे जिनप्रजा संबंधि व्या DDHIDDEDoDaroPDADDDDD/05 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org