________________ Sil. शब्दार्थ-मन, वचन अने काया; बली मनवचन, मनकाया अने वचनकाया; तेमज मन, वचन अने काया एत्रण या योग. ए सात भांमाने करवा, कराववा अने अनुमोदका. एवा भेदयी एकवीस मेद थाय. बली तेने दीक त्रीक योग स हित करी भूत, भविष्य अने वर्तमान काले करी गुणतां एकसो सुडतालीस भांगा याय. // 42 // / विस्तारार्थः-एक प्राणातिपातादिकने मने करी न करूं, बीजो वचने करी न करूं, त्रीजो कायाये करी न करूं, चोथो मन अने वचने करी न करूं. पांचमो मन अने कायाये करी न कलं, बहो वचन अने कायाये करी न करूं सातमो मन, वचन अने काया, ए त्रणे योगे करी न करुं, ए एक संयोगी सात नांगा धया. ते सात नांगा करवा श्राश्रयी जाणवा. तेमज सात नांगा कराववा श्राश्रयी जाणवा, अने सात नांगा अनुमति प्रापवाना एटले अनुमोदन देवाना पण जाणवा. ते श्रावी रीते के-प्राणतिपातादिकने एक मने करी न करावं. बीजो वचने करीन करावं, त्रीजो कायाये करीन करावं, चोथो मन बने बचने करी न करावं, पांचमो मन अने कायाये DNNNNNNN Jain Education international For Personal & Private Use Only