________________ ०भा० गु०भा० / 93 // Racetametarvasnasesvasabasuvanswastesaeonawareitrawas ज्यां सुधी ते क्रिया करीयें, तिहां सुधी ते स्थापना रहे, जो दृष्टि तिहांनी तिहां राखीयें, तो रहे, नही तो वली फरी बीजी स्थापना स्थापवी पमे, ते श्वर कालनी स्थापना जाणवी. अने बीजी यावत्कथिक स्थापना ते घणा काल पर्यंत रहे, ते प्रतिमादिक तथा अदादिकनी बे प्रकारनी स्थापना करीयें बैये. ए स्थापनानी आशातना पण गुर्वा दिकनी पेरें टालवी // 5 // गुरुविरहंमि-गुरुनो विरह / दसणथ्य-देखाडवाने माटे / विरह छता | आमंतणं-आमंत्रण ठवणा-स्थापना च-वळी जिणविंब-जिनाव सहलं-सफल गुरुपएसोव-गुरुनो उपदेश | निगविरहंमि-श्री निनेश्वरनो सेवण-सेवा / गुरुविरहमि ठपणा, गुरुवएसोव दंसणत्थं च // जिणविरहंमि जिण बिं-ब सेवणामंतणं सहलं // 30 // शब्दार्थ-गुरुनो अभाव होय त्यारे गुरुनो उपदेश देखाडवा माटे स्थापना छे. जेम हमणां जिनेश्वरनो विरह छतां VasavamVANEEYAaweavenawatiseasotawinoatmavitagrams // 93 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org