________________ कमा/ दिठिपडिलेह एगा, छ उड्ढपप्फोड तिग तिअंतरिया // अख्खोड पमज्जणया, नव नव मुहपत्ति पणवीसा॥२०॥ /am/ NaamtvtaasDESHVAND98/09ER/1056/BSE/RE/APA/AINME शब्दार्थ-एक दृष्टि पडिलेहण, छ उंचा पख्खोडा, त्रण अखोडा, त्रण प्रमार्जना. ए छेला बे त्रगने गवार अंतरित करतां एक एकना नव नव भेद थाय. सर्व मली मुहपत्तिनी पच्चीस पडिलेहणा यइ. // 20 // द्वा 11 _ विस्तारार्थः-प्रथम मुहपत्तिने पहेले पासे सूत्र अने बीजे पासें अर्थ तेनुं तत्त्व, सम्यक् प्रकारे हृदयने विषे धरूं, एमचिंतवीने महपत्ति उखेली तेनां बेहु पासां सर्वत्र दृष्टियें करी जोबां ते दृष्टि पमिलेदणा एक जाणवी. तेवार पली उंचा पखोमा करवा एटले मुहपत्तिने फेरवी बे हाथें साहीने एकेका हाथें नचायवा रूप त्रण त्रण जंचा पखोमा करवा तिहां माबे हाथे करतां सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय अने मिथ्यात्वमोहनीय एत्रण मोहनीय परिहरु एम चिंतवीयें तथा जमणे हाथे करतां कामराग, स्नेहराग अने दृष्टिराग, ए त्रण राग परिदलं. एम a/twiVARANAAGI/AAMSAMVAANAADARVADIVAS S80 www.jainelibrary.DIO For Personal & Private Use Only