________________ भा० गुरुमा चदिसि-चार दिशा अहु-साडात्रण गुरुग्गहो-गुरुथकी अवग्रह / तेरस-तेर इह-ए | करे-हाथर्नु सपरपरूखे-ख अने परपक्ष | नकप्पए-न कल्पे अणणुनायस्स-गुरुनी अनुज्ञा तथ्य-तेटला सया-सदा लीधा वीना पविसेउ-प्रवेश करवाने 94 // VanessaGSamaydeasoomv चउदिसि गुरुग्गहो इह, अहुट्ट तेरस करे सपरपख्खे // अणणुन्नायस्स सया,न कप्पए तत्थ पविसेउ॥३१॥दारं॥१६॥ PresenteSMARVADODARVAGAus/avenawarjaRRI शब्दार्थ-आ जिनशासनमां गुरुथी अवग्रह चारे दिशामा पुरुष पुरुषने अने पुरुष तथा स्त्रीने साडा त्रण हाथ अने तेर हाथ जाणवो. ते अवग्रहमा प्रवेश करवाने आज्ञाविना क्यारे पण न कल्पे. // 31 // विस्तारार्थः-ए श्रीजिनशासनमांहे गरुथकी अवग्रह चारे दिशाने विषे व अने परपद थाश्रयी अनुक्रमे केटलो केटलो होय, ते कहे . तिहां एक सामा त्रण अने बीजो तेर हाथनो है ISM94 // जाणवो. तेमां स्वपद ते पोतामां साधु साधुमां अने बीजा श्रावक जाणवा. तथा परपद ते साधु || in Education in For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org