________________ प.भ प०भा० // 14 // ROBanua/anawanemup ta/80/08/MARWAVARA हवे गिहबसणं ए आगारथको नीवीना पञ्च रकाण मांहे जे नीवियातां साधुने कल्पे, ... ते संसृष्ट अव्य कहोये, ते संसृष्ट अव्य जाणवाने कहे . घय-घृत, घी | भत्तुवरिं-भात उपर | अद्दामलयं-आम्लक दही-दहीं तिल्ल-तेल पिंडगुल-काठोगोलय-वली चउरंगुल-चार आंगल - दवगुड-नरमगोल एग-एक मख्खणाणं-मसल्युं / संसह-मिश्र दुद्धदही चउरंगुल, दवगुड घयतिल्ल एगभत्तुवरि // पिंडगुल मख्खणाणं, अदामलयं च संसट्ठ // 36 // शब्दार्थ--अने दहि भात उपर चार आंगुल होय तथा ढीलो गोल, घी अने तेल एग भात उपर एक आंगल होय तेमज करीण गोलथी मसलेला चूरमादिकमां पीलुना म्होर. सरखा गोलना ककडा होय तो ते संसृष्ट कहेवाय. ते निवीयातामा कल्पे छे. // 36 / / Japanesamasom/maanterarupamagesapanorand Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org