________________ TravnavetaavaauVatsaaperma/amaveswariwavinsaansar |रिका, पटीरमी, मथित अगलित तक्रादिक, ‘कस्मिन्नपि योगे' कोइ पण योगने विषे न कल्पे | अनेरी योग विना निवीमां कल्पे.. ____ लहिगटुं, गेरा, वघारिक वां, घारवमां, साज्यपक्व खीचमी, सेवतिका, वघारित चण- | कादिक उत्तराध्ययन योगने विषे आचारांग मध्यगत सप्तसप्तकाध्ययनने विषे चमरोद्देशक अनुज्ञा यावत् नगवतीयोगने विषे न कल्पे, बीजा सर्व योगमध्ये कल्पे. अने पढोगरी, फूंकरएं, उकलधुं, वाशी करंब, तिलवटी, कुल्लर, निवीयातां, विग, गांठीया ना घारा, दलिया, गुंदविना मगीयादि, औषधादि, मोदक, पेटक, खंमा, सिता, वरसोलां, वासी गुमपाक, गुंदपाक, वगर तल्यां कांकरियां, अनुत्कालित श्कुरस, दिनत्रयावधि प्रसूत गोपुग्ध, | बलहट्टी, अंगाराथी उतारी आज्यादि मिश्रित पाबला दिवसनी पचावेली तिलवटी, पर्पटकादि, गुमादिके मिश्रित न करेली तिलवटी, इत्यादिक नीवीयातां श्रीयावश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययनादि सर्व योगने विषे प्रायः कल्पे. एवो विचार प्रसंगथी जाणवा माटे लख्यो ले // 35 // VARATAPERevenuedosaantaravasana www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only