________________ चै०भा० raavaveteratBP.BawasanaNPARM प्रणम्य प्रणतानंद कारकं विघ्नवारकं // श्रीमद्विजय देवाहूं लसल्लावण्य धारकं // 1 // मेरु धीरं स्फुर द्वीरं, गंभीरं नीरधीशवत् // भाष्य त्रयार्थ बोधाय, बालबोधो विधीयते // 2 // BROADVERasa/REDIAWoo शब्दार्थ-चंदन करवा योग्य एवा सर्वे (पांच) परमेष्ठीने चांदीने चैत्यवंदन, गुरुवंदन अने पच्चख्खाणना उत्तम विचारने बहु वृत्ति, भाष्य अने चूणिरूप सूत्रना अनुसारे हुं कहीश.॥१॥ शब्दार्थ-नमस्कार करनार माणसोने आनंदना करनार अने विघ्नने दूर करवावाळा तथा प्रकाशित लावण्यने धारण करवावाळा एवा श्रीमद्विजयदेवसुरी नामना गुरु महाराजने तेपज बळी // 1 // शब्दार्थ-मेरु पर्वतना जेवा धैर्यवान , अने स्वयंच रमण समुद्र जेवा मंभीर, अने देदीप्यमान् एवा वीरभगवानने नमस्कार करीने प्रणभाष्यना अर्थनो बोध थवा माटे बालावबोध करवामां आवे // 2 // // 1 // m ansavina Jain Education For Personal & Private Use Only www.ebaya