________________ प०भा० // 116 // प०भा० पढमंमि-पहेले स्थानके बीयंमि-बीना स्थानके / देसवगासं-देसावगासिकर्नु / जह संभव-यथा संभवे चउथ्थाइ-चोथादिक तइय-त्रीजा तुरिए-चोथा नेयं-जाणवू तेरस-तेर | पाणस्स-पाणस्स | चरिमे-दिवसचरिमं पढमंमि चउत्थाई, तेरस बीयंमि तइय पाणस्स // देसवगासं तुरिए, चरिमे जह संभवं नेयं // 8 // शब्दार्थ-पहेले स्थानके चोथ विगेरे, बीजे स्थानके नवकारसी विगेरे तेर, श्रीजा स्थानके पाणीना छ आगार, चोथे स्थानके देसावगासि आदि अने पांचमे दिवस चरिमादि जेम घटे तेम जाणवू. // 8 // विस्तारार्थः-पहले स्थानके चोथादिक एटले एक उपवासथी मामीने चोथ बह इत्यादि यावत् चोत्रीश नक्त पर्यंत पच्चरकाण करवां, तथा बीजा स्थानकने विषे नोकारसी, पोरिसी, साईपोरिसी, पुरिमढ़, अवह अने गंठसहियं, मूहसहियं, अंगुठसहियं, घरसहियं, प्रस्वेदसहियं, wvanayanepAANDATINDAIANDramasomeVitatvBitrate/AIDABADES DAN in Education international For Personal & Private Use Only www janebryong