________________ || पुष्प केसरादिके अने बीजी श्राहार फलादि ढोकने तथा त्रीजी स्तुति करवे करीने पूजा त्रिक थाय बे. तेमां प्रथम अंगपूजा ते श्रीवीतरागनी पूजा अवसरे मनःशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, नीतिनुं धन, पूजाना उपकरणनी शुद्धि, नूमिशुद्धि, ए सातवानां शुद्ध करी धवल | निर्मल सुपोत धोतीयां पुरुष पहेरे, अने जेनो श्रापमो मुखकोश थाय, एहवी एक सामी उत्त. रासंगनी धरे, एवी रीतें पुरुषे पूजा अवसरे बे वस्त्र राखवां, अने स्त्रीने तो विशेष वस्त्रादिकनी शोना जोश्य, तथापि हमणां संप्रदायें त्रण वस्त्र पहेरी पूजा करे, ए रीते वस्त्र पहेरी श्राशातना | टालतो थको प्रथम पूंजणीयें करी श्रीजिनवित्रने पूंजे, पूंजवाथी मामी पर्वने विषे त्रण, पांच, सात, कुसुमांजलि प्रक्षेप करे. न्हवण, अंगलूहणां धरतो, विलेपन, भूषण, अंगीरचन, पुष्प च-|| मावतो जिनहस्तमां नारिकेरादिक धूपादेप, सुगंधवासदेपणादिक करतो पूजा करे. ए सर्व | || अंगपूजा जाणवी. SamvapmAROPEARasoiceptevar.BRDINAROI INDVDR/PABVPM/PR/09/RAS/DED/D-RamRMONDA For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org