________________ चै०भा० // 44 // आवस्सय चुण्णीए, जं भणियं सेसया जहिच्छाए॥ तेणं उज्झंताइवि, अहिगारा सुयमया चेव // 47 // Saptasareasai शब्दार्थ....जेम आवश्यक मूत्रनी चूर्गीने विवे कह्यु छे ते उझितादि शेष अधिकार इच्छा प्रमाणे जाणवा. ते कारण माटे उज्झित सेल इत्यादिक गाथाथी पण ते सर्व अधिकार निश्चे श्रुतमय जाणवा // 47 // विस्तारार्थः-जेम यावश्यक सूत्रनी चीने विषे तथा प्रतिक्रमण चूर्णीमध्ये का जे जचिंतादिक शेष अधिकार ते यथेछायें जाणवा. ते कारण माटें ए उद्यतसेलसिहरे इत्यादिक गाथाये पण जे अधिकारो ते सर्व श्रुतमय जाणवा. चकार पादपूर्णार्थ डे अने एव शब्द निश्चय वाचक // 47 // . बीओ-बीजो व निओ-वर्णव्यो छे सक्कथ्थयंते शक्रस्तवना अंते | वांदवाना अवसरें सुयथ्थयाइ-श्रुतस्तवादि | तर्हि-तेज पदिओ-को छ पयडथ्थो -प्रगटार्थ अथ्थओ- अर्थ थकी | चेव-निश्चे दव्यारिहवसरि-द्रव्य अरिहंत ntaineaawaravasaavada/IAS/S भा॥४४॥ For Personal Private Use Only