________________ Na/Aana ०भा० गु०भा० 78 // RAMIVitamate/ evastati tisavitaets/AN पसंते आसणत्थे अ, उवसंते उवठ्ठिए॥ अणुनवि तु मेहावी, किइकम्मं पउज्जई // 16 // दारं // ___ शब्दार्थ-शांत चित्तवाला, आसन उपर बेठेला, क्रोधादि रहित अने छदेण इत्यादि कहेवा तैयार होय एवा गुरुने बुद्धिमान पुरुषोए आझा मागवा पूर्वक वांदणा देवाने उयम करे. // 16 // द्वा.८ विस्तारार्थः-प्रशांतचित्त व्यापरहित गुरु होय, बीजु आसनस्थ एटले पोताने आसने | बेग होय, वली त्रीजु उपशांतचित्त एटले क्रोधादिकें रहित होय, चोथु उपस्थित होय एटले | बंदेण इत्यादिक कहेवाने संमुख उजमाल थया होय, एवा गुरु आदिकने वांदणां देवानी अनुझा | मागीने वली वांदणां देवाना विधिना जाण एवा मेधावी एटले पंमितजनो ते कृतिकर्म एटले वांदण देवा प्रत्ये प्रयुंजे एटले उद्यम करे॥१६॥ए आठमुंहार थयु.उत्तर बोल सामंत्रीश थया.॥ हवे श्राउ कारणे वांदणां देवां, तेनुं नवमुं द्वार कहे . MM/ NutanRRADIOBelovanisturasRADAMDAtiva // 78 // For Personal & Private Use Only Join Education international www.janesbrary