________________ ०भा० 12 // च.भा. PRB0BVAADHA-3/RBT avast- 0 ण्हवणच्चगेहिं छउम-त्थवत्थ पडिहारगेहिं केवलियं // पलियं कुस्सग्गेहि य, जिणस्स भाविज सिद्धत्तं // 12 // शब्दार्थ-जिनराजनी न्हवण, पखाल अने पूजा अवसरे छद्मस्थावस्था भाववी; आठ प्रातिहार्ये करीने केवली अवस्था भाववी अने पलोंठीवालीने काउस्सग्गने आकारे देखीने सिद्धावस्था भाववी. // 12 // विस्तारार्थः-सपनार्चकैः एटले न्हवण, पखाल, अर्चादि पूजाना अवसरें, पूजा करनारा, पूजक पुरुषोयें श्रीजिनेश्वरनी बद्मस्थावस्थाने नाववी, ते बद्मस्थावस्थाना त्रण नेद , एक जा न्मावस्था, वीजी राज्यावस्था अने त्रीजी श्रमणावस्था, तेमां प्रजुने न्हवण अर्चादिक प्रदालन करतां जन्मावस्था नाववी, अने मेरुपर्वतनी उपर जे जन्म महोत्सव नाववो ते पण जन्मावस्थाज जाणवी. ___ तथा मालाधारादि, पुष्प, केशर, चंदन अने अलंकारादि चढावतां राज्यावस्था नाववी. ADVERDaasB/amAAMSAROJABARD/PrasRemed /984902 For Personal Private Use Only