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________________ NDODONDAD awan.maraPANI/999/09/200amavasae/aaw दिशि, बीजी अधोदिशि अनेत्रीजी तिहीं दिशि, ते थाथवर्तु एत्रण दिशिनुं जो बम एटले वर्जन करवं. अथवा पाबली पुग्नी दिशियें जमणी दिशियें तथा माबी दिशियें एटले जे | दिशायें श्री नगवंतनी प्रतिमा होय, ते दिशि टालीने शेष पुंनी बाजु तथा जमणी बाजु अने माबी बाजु, ए त्रण दिशायें जोवानुं वर्जन करवं, मात्र श्री जिनेश्वरना मुखनेविषे पोतानी दृष्टिने न्यस्त एटले स्थापी राखेली होय. तेणे करी युक्त एटले सहित एवो थको वंदन करे. एटले जिनप्रतिमा उपर पोतानां लोचन थापी एकाग्र मन करे, परंतु थामु अवतुं अरहुं परहुँ जुवे नहीं. ए बहुं त्रण दिशि निरखण वर्कवानुं त्रिक कर्वा // 13 // हवे सातमं पदनूमिप्रमार्जनत्रिक कहे , ते यावीरीतें केः-श्री जिनवंदनायें शरियावहि पमिकमतां तथा चैत्यवंदन करतां जीवयत्नने अर्थे रूके प्रकारें दृष्टिवके जोड्ने पद स्पापवानी | नूमि त्रण वार पुंजवी. तिहां गृहस्थ होय तो वस्त्रांचले करी पुंजे, अने साधु होय तो रजोहरणे करी पुंजे. ए सातमुंत्रिक थयुं. INDANDO Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004260
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai kakalbhai
PublisherBalabhai kakalbhai
Publication Year1912
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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