________________ चै०भा० AMBABAMBAHANIVAARE/ATINDotoi/50/ शब्दार्थ-वली पांचना अधिकारमा ग भुवनना स्थापना जिसने, छहा अधिकारमा विचरता जिनने, सातमा अधिकारमा श्रुतज्ञानने अने आठमा अधिकारमा सर्व सिद्धनी स्तुति जाणवी. // 44 // विस्तारार्थः-वली सवलोए अरिहंतचेश्याएंरूप पांचमा अधिकारने विषे स्वर्ग, मृत्यु अने पाताल रूप त्रण जुवनने वषे जे शाश्वता अने अशाश्वता एवा स्थापना जिन जे ते प्रत्यें हूं वांदुं. तथा पुरकरवरदीवमेनी पहेली गाथा रूप बहा अधिकारने विषे अढी द्वीपमध्ये श्रीसीमंधर स्वाम्यादि विचरता नाव जिनप्रत्ये वां, बु. तथा तमतिमिरपाल इहांथी मामीने सुअस्सलगव पर्यंत सातमा अधिकारने विषे श्रीश्रुतज्ञानप्रत्ये हुं वांदु. तथा सिद्धाणं बुद्धाणं ए गाथा-| रूप थाउमा अधिकारने विषे तीर्थ अतीर्थादिक पन्नर नेदवाला एवा सर्व सिद्धनी स्तुति जाणवी // 4 // तिथ्याहिब-तीर्थना अधिपति दसमे-दसमा अबायाइ अष्टापदादिकनेविषे सुर-देवताने बीर-वीर भगवाननी अ-वली इगदिसि-अगीआरमा समरणा-स्मरण करवा थुइ-स्तुति उज्झयंत-गीरनार पर्वत मुदिहि-सम्यदृष्टी चरिमे-छेल्ला बारमा नवमे-नवमा | थुइ-स्तुति a/ I/AAAID/ // 42 // MBASI/AAI www.by og For Personal & Private Use Only Jain Education international