________________ गु०भा० ०भा० // 75 // PathartsupAANIAnovocessitivevasaetoutopesasur आयरिय उवज्झाए, पवत्ति थेरे तहेव रायणिए॥ किइकम्मनिज्जरठ्ठा, कायब मिमेसि पंचन्हें ॥१३॥दारं // शब्दार्थ-भाचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर तेमज रत्नाधिक. निर्जराने अर्थे ए पांचने कृतिकर्म (वंदन) करवं. विस्तारार्थः-पहेला ज्ञानादिक पांच आचारे करी युक्त ते श्रीश्राचार्य कहीये, बीजा श्रीउपाध्यायजी, त्रीजा जे तप संयमने विषे प्रवर्तीवे, गझनी चिंता करे ते प्रवर्तक कहीये, चोथा जे चारित्रयी पमता होय तेने प्रतिबोध श्रापीने पाला ठेकाणे थाणे तेने थिविर कहीये तथैव एटले तेमज वली पांचमा गलने अर्धे क्षेत्र जोधा माटे विहार करे, सूत्र अर्थना जाण तेने रत्नाधिक गणाधिप कहीये, ए कडा जे आचार्यादिक पांच जण तेने कृतिकर्म एटले वांदणार्नु कर्म कर, एटले वांदणां देवां ते केवल कर्मनिर्जराने अर्थे जाणवू // 13 // ए श्राचार्यादिक पांचवें कांश्क विशेष स्वरूप नीचे लखीये बैये. maavarateGVANVAGOVAVaavamahatseen inin Education international For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org