________________ RAMMEANINEMANTRVASNEPuwasantvNANJAspatra/mVIORN श्राचार्य ते सूत्र ने अर्थ उन्नयना वेत्ता, प्रशस्त समस्त लक्षणे लक्षित, प्रतिरूपादि गुणयुक्त शरीर होय, जाति कुल गांनीर्य धैर्यादि अनेक गुणमणियुक्त, अाठ प्रकारनी गणिसंपदायें करी युक्त, पंचाचार पालक, पलाववाने समर्थ. बत्रीश बत्रीशी गुणें करीबिराजमान आर्य पुरुर्षे सेवा योग्य, गबमूलस्तंननूत गडचिंतारहित अर्थनाषी, एटले जेमांगठचिंता न उ. पजे एवा अर्थ नाषे एवा गुणयुक्त ते आचार्य जाणवा. तथा उपाध्याय ते जेनी पासें अगीयार अंग, बार उपांग, चरणसित्तिरी, करणसित्तिरीनणीये, आचार्यने यूवराज समान, शान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयी युक्त, सूत्र अर्थना जाण, आचार्यने हितचिंतक, ते उपाध्याय. तथा प्रवर्तक ते यथोचित्त प्रशस्त योग जे तप संयम तेने विष साधुसमुदायने प्रवर्त्तावे, गलने योगक्षेम करवानी योग्यतानी संन्नालना करनार जाणवा. तथा शिविर ते ज्ञानादिक गुणोने विषे सिदाता साधुने इहलोक तथा परलोकना IVANAVOND INDIAN Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janebryong